भाषा का अर्थ एवं स्वरूप
- ‘भाषा’ शब्द संस्कृत के ‘भाष’ धातु से बना है, जिसका अर्थ होता है- बोलना, बताना या व्यक्त वाणी।
- विश्व में लगभग तीन हजार भाषाएँ बोली जाती हैं।
- भाषा का सबसे प्राचीन रूप ‘ऋग्वेद संहिता’ में प्राप्त होता है।
- भारत की प्रथम ‘देशभाषा पाली’ है। जिसे ‘पुरानी प्राकृत’ भी कहा जाता है।
- सबसे पहले भारत की भाषाओं का सर्वेक्षण जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन ने सन् 1894 ई० में किया था।
- जार्ज ग्रियर्सन की पुस्तक का नाम है- ‘ए लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इण्डिया’ ।
- जार्ज ग्रियर्सन के अनुसार भारत में 179 भाषाएँ तथा 544 बोलियाँ हैं।
- भाषा की प्रथम एवं छोटी इकाई ‘ध्वनि’ है, द्वितीय ‘शब्द’ एव तृतीय तथा सबसे बड़ी इकाई ‘वाक्य’ है।
- मनुष्य की भाषा की उत्पत्ति ‘मौखिक रूप से हुई है
- संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाषाओं का वर्णन है – संस्कृत, हिन्दी, असमिया, बांग्ला, गुजराती, कन्नड़, कश्मीरी, मलयालम, मराठी, उड़िया, पंजाबी, तमिल, तेलुगू, उर्दू, सिंधी, कोंकणी, मणिपुरी, नेपाली, बोड़ो, डोगरी, मैथिली, संथाली।
- भाषा परिवर्तनशील होती है।
- भाषा में नये शब्दों, वाक्यों का आगमन होता रहता है और पुराने टूटते मिटते रहते हैं।
भाषा की परिभाषा
- भाषा को परिभाषित करना कठिन है। फिर भी, अनेक विद्वानों ने इसकी परिभाषाएँ अपने-अपने ढंग से दी हैं।
- आचार्य देवेन्द्रनाथ के अनुसार – “उच्चरित ध्वनि-संकेतों की सहायता से भाव या विचार की पूर्ण अथवा जिसकी सहायता से मनुष्य परस्पर विचार-विनिमय या सहयोग करते हैं, उस यादृच्छिक, रूढ़ ध्वनि-संकेत की प्रणाली को भाषा कहते हैं।”
- डॉ. श्याम सुन्दर दास के अनुसार- “मनुष्य और मनुष्य के बीच वस्तुओं के विषय में अपनी इच्छा और मति का आदान-प्रदान करने के लिए व्यक्त ध्वनि-संकेतों का जो व्यवहार होता है, उसे भाषा कहते हैं।”
- डॉ. बाबूराम सक्सेना के अनुसार “जिन ध्वनि-चिह्नों द्वारा मनुष्य परस्पर . विचार-विनिमय करता है, उसको समष्टि रूप से भाषा कहते हैं।”
- डॉ. भोलानाथ तिवारी के अनुसार – “भाषा, उच्चारण-अवयवों से उच्चरित (मूलतः) प्रायः यादृच्छिक ध्वनि-प्रतीकों की वह व्यवस्था है, जिसके द्वारा किसी भाषा-समाज के लोग आपस में विचारों का आदान-प्रदान करते हैं।”
- सुमित्रानन्दन पन्त के अनुसार – “भाषा संसार का नादमय चित्र है, ध्वनिमय स्वरूप है, यह विश्व की हृदय तन्त्री की झंकार है, जिनके स्वर में अभिव्यक्त पाती है।”
- सीताराम चतुर्वेदी के अनुसार – “भाषा के आविर्भाव से सारा मानव संसार गूंगों की विराट बस्ती बनने से बच गया।” ।
- रामचन्द्र वर्मा के अनुसार – “मुख से उच्चारित होने वाले शब्दों और वाक्यों आदि का समूह, जिसके द्वारा मन की बातें बतायी जाती है भाषा कहलाती है।”
- कामता प्रसाद गुरू के अनुसार – “भाषा वह साधन है, जिसके द्वारा मनुष्य अपने विचार दूसरों पर भली-भाँति प्रकट कर सकता है और दूसरों के विचार आप स्पष्टतया समझ सकता है।”
भाषा के आधार
- भाषा के दो आधार होते हैं – (1) मानसिक आधार (2) भौतिक आधार
- अपने विचार या भाव को अभिव्यक्त करने के लिए वक्ता द्वारा भाषा का प्रयोग किया जाता है, वह मानसिक आधार है तथा श्रोता द्वारा ग्रहण करना भौतिक आधार है। भौतिक आधार अभिव्यक्ति का साधन है जबकि मानसिक आधार साध्य । दोनों से भाषा का निर्माण होता है। इसे ही बाह्य भाषा और आन्तरिक भाषा कहते हैं।
भाषा की उत्पत्ति
भाषा की उत्पत्ति के निम्नलिखित सिद्धांत प्रचलित हैं
- 1. दैवी उत्पत्ति का सिद्धांत
- 2. सांकेत्तिक उत्पत्तिवाद
- 3. डिंगडागवाद
- 4. अनुकरण मूलकतावाद
- 5. प्रतीकवाद
- 6. संपर्क सिद्धांत
- 7. समन्वय सिद्धांत
- 8. यो-हे हो वाद
- 9. टा-टा वादन
- 10. मनोभाव अभिव्यजकतावाद
भाषा के अंग
- भाषा के निम्नलिखित तीन अंग हैं – 1. ध्वनि 2. अर्थ और 3. वाक्य ।
भाषा के रूप या प्रकार
- भाषा के दो रूप हैं
- 1. मौखिक भाषा
- 2. लिखित भाषा
- मौखिक भाषा की आधारभूत इकाई ‘ध्वनि’ है।
- लिखित भाषा की आधारभूत इकाई ‘वर्ण’ है।
हिन्दी भाषा का विकास
- संस्कृत – पालि – प्राकृत – अपभ्रंश – हिन्दी अपभ्रंश
- अपभ्रंश साहित्य मुख्य रूप से 9वीं शताब्दी से मिलता है।
- अपभ्रंश साहित्य में स्वयंभू सबसे प्राचीन कवि माने जाते हैं।
- अपभ्रंश का अर्थ है ‘गिरा हुआ’ या ‘बिगड़ा हुआ।
- सर्वप्रथम अपभ्रंश शब्द का प्रयोग आचार्य व्याडि ने किया है।
- इसके बाद महाभाष्यकार पंतजलि ने इस शब्द का प्रयोग किया है।
- भरत ने अपने ‘नाट्य शास्त्र’ में अपभ्रंश को निम्नलिखित नामों से पुकारा है- संस्कृत, देशीभाषा, विभ्रष्ट भाषा, साबर की भाषा, आभिर की भाषा, गुर्जर की भाषा।
- अपभ्रंश में साहित्य रचना सर्वप्रथम वल्लभी के राजा धरसेन के शिलालेख में मिलता है।
- अपभ्रंश को ऊकार बहुला भाषा कहा गया है।
- हेमचन्द्र ने ‘देशी शब्द संग्रहों’ नाम से एक कोश, नागर अपभ्रंश में लिखा जिसे अपभ्रंश का व्याकरण कहा जाता है।
अपभ्रंश के प्रमुख कवि
1.स्वयंभू
- स्वयंभू अपभ्रंश के सर्वप्रथम महाकवि हैं। इनका समय 9वीं शताब्दी है।
- इनकी तीन रचनाएँ मिलती है
- 1. पउमचरिउ
- 2. रिट्ठणेमिचरिउ
- 3. स्वयंभू छंद
2.पुष्पदंत
- अपभ्रंश के दूसरे कवि पुष्पदंत हैं।
- इनका समय 10वीं शताब्दी है।
- इनकी तीन रचनाएँ मिलती है –
- 1. महापुराण
- 2. णयकमार चरिउवा
- 3. जसहर चरिउ।
3. घनपाल
- अपभ्रंश के तीसरे कवि घनपाल हैं।
- इनकी रचना ‘भविसयत्तकहा’ है।
- यह ग्रंथ सबसे पहले याकोवी को मिला था।
अवहट्ठ
- सामान्यतः अपभ्रंश को अवहट्ठ कहा जाता ‘वर्णरत्नाकर’ के रचयिता ज्योतिरीश्वर ठाकुर ने अपभ्रंश के लिए अवहट्ठ संज्ञा का प्रयोग किया है।
- विद्यापति ने कीर्तिलता की भाषा को अवहट्ठ कहा है।
- “उक्ति व्यक्ति प्रकरण” में दामोदर शर्मा ने कोशल की भाषा को अपभ्रष्ट कहा है।
- ‘संदेशरासक के कवि अदहमान (अब्दूलरहमान) ने अवहट्ठ भाषा के कवियों का उल्लेख किया है।
- अवहट्ठ का काल सन् 900 ई० से 1100 ई० तक माना जाता है।
- अवहट्ट का प्रयोग साहित्य में 14वीं शताब्दी तक हुआ है।
पुरानी हिन्दी
- पुरानी हिन्दी की चर्चा सर्वप्रथम चन्द्रधर शर्मा गुलेरी ने की।
- अपभ्रंश साहित्य को पुरानी हिन्दी राहुल सांकृत्यायन ने अपने शोध ‘हिन्दी काव्यधारा’ में कहा है।
- चन्द्रधर शर्मा गुलेरी के अनुसार – “विक्रम की सातवीं शताब्दी से 11वीं शताब्दी तक अपभ्रंश की प्रधानता रही और फिर वह पुरानी हिन्दी में परिणित हो गई।”
- राहुल सांकृत्यायन के अनुसार– “अपभ्रंश एंव पुरानी हिन्दी में केवल शब्दावली का अन्तर है। अपभ्रंश में तद्भव शब्दों का प्रयोग हुआ है और हिन्दी में तत्सम ।”
भाषा परिवार
- विश्व की तीन हजार भाषाओं को बारह भाषा परिवारों में बाँटा गया है। ये परिवार हैं।
- भारत की भाषाओं को दो परिवारों में बाँटा गया है
- 1. भारोपीय
- 2. द्रविड़
- भारोपीय– इस परिवार के अन्तर्गत आने वाली भारत की भाषाओं को ‘भारतीय आर्य भाषा’ भी कहा जाता है। जिनमें प्रमुख हैं- हिन्दी, बांग्ला, पंजाबी, गुजराती, मराठी, असमिया, सिंधी, उड़िया, कश्मीरी आदि।
- द्रविड़– इस परिवार की प्रमुख भाषाएँ हैं- तमिल तेलुगू, कन्नड़ और मलयालम।
हिन्दी का क्षेत्र, बोलियाँ, वर्गीकरण
- रूप रचना एवं स्रोत के आधार पर हिन्दी की उपभाषाएँ व बोलियाँ।
- सबसे पहले भारत की भाषाओं का सर्वेक्षण जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन ने सन् 1894 ई० में किया था।
- जार्ज ग्रियर्सन की पुस्तक का नाम है- ‘ए लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इण्डिया’।
- जार्ज ग्रियर्सन के अनुसार भारत में 179 भाषाएँ तथा 544 बोलियाँ हैं।
- बोलियों की दृष्टि से हिन्दी को जॉर्ज ग्रियर्सन ने दो भागों में बाँटा है।
- (i) पश्चिमी हिन्दी
- (ii) पूर्वी हिन्दी
- वे इसे बाहरी शाखा और भीतरी शाखा के रूप में भी स्थापित करते हैं। बाहरी शाखा- पूर्वी हिन्दी भीतरी शाखा-पश्चिमी हिन्दी
- पूर्वी हिन्दी – पूर्वी हिन्दी का उद्भव अर्द्धमागधी अपभ्रंश से हुआ है। इसका क्षेत्र प्राचीन कोशल जनपद है।
- इसके अर्न्तगत अवधी, बघेली, और छत्तीसगढ़ी बोलियाँ आती हैं।
- अवधी– अवध अंचल की बोली को अवधी कहा जाता है। इसी आधार पर इसका नामकरण अवधी हुआ है।
- सर्वप्रथम अमीर खुसरो ने भाषा के अर्थ में अवधी संज्ञा का प्रयोग किया है।
- इसके बाद ‘आईने अकबरी’ में इसका प्रयोग त हुआ है।
- पूर्वी हिन्दी की बोलियों में यह सबसे महत्वपूर्ण बोली है।
- यह बोली फतेहपुर, इलाहाबाद, जौनपुर, मिर्जापुर, लखनऊ, रायबरेली, सुल्तानपुर, __प्रतागढ़, बाराबंकी जिले में बोली जाती है।
- अवध के हरदोई, खिरी और फैजाबाद के कुछ भागों में यह बोली नहीं बोली जाती है। – भक्तिकाल में अवधी का उच्च साहित्य “रामचरित मानस” और “पदमावत” है।
- मुल्लादाऊद की लोरकहा या ‘चंदायन’ अवधी का प्रथम ग्रंथ है।
अवधी के ग्रंथ
बघेली
- यह बोली बघेलखण्ड में बोली जाती है इसलिए इसे बघेलखंडी (बुन्देलखंडी) भी कहा जाता है।
- यह छत्तीसगढ़ की बोली है।
- छत्तीसगढ़ के रायपुर, विलासपुर सरगुजा, रायगढ़, बस्तर जिलों में यह बोली, बोली जाती है।
- छत्तीसगढ़ के नाम पर ही इसका नाम छत्तीसगढ़ी है।
पश्चिमी हिन्दी
- जॉर्ज ग्रियर्सन के अनुसार पश्चिमी हिन्दी ही वास्तविक हिन्दी है।
- ग्रियर्सन इसे केन्द्रीय हिन्दी या आर्यभाषा हिन्दी भी कहते हैं।
- इसका विकास शौरसेनी अपभ्रंश से हुआ है।
- इसकी बोलियों को आकार बहुला और ओकार बहुला दो वर्गों में विभक्त किया गया है।
- आकार बहुला में हरियाणी और खड़ी बोली तथा ओकार बहुला में ब्रजभाषा, कन्नौजी तथा बुंदेली बोलियाँ आती है।
- पश्चिमी हिन्दी की प्रमुख बोली ब्रजभाषा है।
हरियाणी
- हरियाणी को बाँगरू भी कहा जाता
- इसका क्षेत्र करनाल, रोहतक, पटियाला हिसार, जिन्द है।
- पंजाब तथा पानीपत एंव कुरूक्षेत्र में भी यह बोली बोली जाती है।
- हरियाणा जाट बहुल क्षेत्र है और जाटों की बोली हरियाणी है, अतः इसे जाटू बोली के नाम से भी जाना जाता है।
बुंदेली
- बुंदेलखंड में बोली जाने वाली बोली को बुंदेली कहा जाता है। इसे बुंदेलखंडी भी कहते हैं।
- इसका क्षेत्र- झाँसी, जालोन, हमीरपुर, ललितपुर (उत्तर प्रदेश), ग्वालियर, सागर, छत्तरपुर, होशंगाबाद, सिवनी (मध्य प्रदेश) में यह बोली, बोली जाती है।
- इसी बोली की सीमा को पूर्वी हिन्दी, पश्चिमी हिन्दी, राजस्थानी तथा मराठी की सीमाएँ स्पर्श करती हैं।
- बुंदेली का प्रमुख काव्यग्रंथ ‘आल्हाखण्ड’ और ‘छत्रप्रकाश’ है।
कन्नौजी
- प्राचीन कान्य कुब्ज का आधुनिक नाम कन्नौज है।
- यह नगर फर्रुखाबाद जिले में स्थित है।
- कन्नौज के आधार पर ही इस बोली को कन्नौजी कहा गया।
- कन्नौजी का क्षेत्र इटावा, फर्रुखाबाद, शाहजहाँपुर, कानपुर, हरदौई और पीलीभीत है
ब्रजभाषा
- ब्रज का पुराना अर्थ पशुओं या गौओं का समूह या चरागाह है।
- ब्रजभाषा का क्षेत्र आगरा, अलीगढ़, एटा, मथुरा, मैनपुरी, बुलन्दशहर, बदायूँ, बरेली, ग्वालियर गुड़गाँव, धौलपुर, भरतपुर, जयपुर।
- ब्रजभाषा के प्रारम्भिक उदाहरण पृथ्वीराज रासो, संदेशरासक, प्राकृतपैंगलम में मिलते हैं।
- ब्रजभाषा का पहला ग्रंथ ‘अग्रवाल’ कवि का ‘प्रद्युम्न चरित’ है।
- ब्रजभाषा भक्तिकाल एंव रीतिकाल की भाषा है। आधुनिक काल में भारतेन्दु, जगरनाथ दास रत्नाकर, लल्लू लाल ने अपनाया।
खड़ी बोली
- खड़ी बोली नाम का प्रयोग दो अर्थों में होता है
- 1. मानक हिन्दी के लिए
- 2. दिल्ली, मेरठ के आस-पास की बोली के लिए।
- मानक हिन्दी के अर्न्तगत 3 शैलियाँ आती है
- 1. हिन्दी 2. उर्दू और 3. हिन्दुस्तानी
- इसका क्षेत्र – सहारनपुर, मुजफ्फरनगर मेरठ, दिल्ली, गाजियाबाद, बिजनौर, रामपुर और मुरादाबाद है।
- खड़ी बोली में लोक-साहित्य मिलता है, जिसमें-पवाड़े प्रमुख है।
- कामता प्रसाद गुरू ने खड़ी का अर्थ कर्कश माना है।
- चन्द्रबली पांडेय ने खड़ी का अर्थ प्रचलित या चलती माना है।
- गिलक्राइस्ट ने खड़ी का अर्थ मानक या रिनिष्ठित माना है।
- अब्दूल हक ने खड़ी का अर्थ गवारूँ माना है। में अधिकांश विद्वानों का मत है कि मानक हिन्दी खड़ी बोली का आधार कौरवी है, जो मेरठ में बोली जाती है।
- खड़ी बोली का जन्म 1000ई० के आस-पास माना जाता है।
- फोर्ट विलियम कॉलेज से खड़ी बोली का नामकरण हुआ है।
- खड़ी बोली के नामकरण का श्रेय गिलक्राइस्ट, लल्लूलाल एवं सदलमिश्र को प्राप्त है।
- भाषा के रूप में खड़ी बोली का प्रयोग सन् 1803 ई. में हुआ।
- खड़ी बोली को ग्रियर्सन ने वर्नाक्यूलर हिन्दुस्तानी तथा सुनीति कुमार चटर्जी ने जनपदीय हिन्दुस्तानी कहा है।
- ‘खड़ी बोली की निरूक्ति’ निबंध के लेखक चन्द्रबली पांडेय है।
- खड़ी बोली का हिन्दी अर्थ 1823 ई. में हुआ।
- खड़ी बोली की पहली पुस्तक श्रीधर पाठक अनुदित ‘एकांतवासी योगी’ है।
- खड़ी बोली का प्रथम महाकाव्य हरिऔध रचित ‘प्रियप्रवास’ है।
- भाषा के अर्थ में खड़ी बोली के प्रथम कवि-अमीर खुसरो हैं।
- स्वच्छन्दतावाद के प्रवर्तक श्रीधर पाठक को खड़ी बोली का प्रथम कवि माना जाता है।
हिन्दी का नामकरण एवं प्रचार
- हिन्दी शब्द का मूल रूप ‘हिन्दी’ है।
- ईरानी काल में हिन्द + ईक (प्रत्यय) जोड़कर हिन्दीक’ इसके बाद ‘हिन्दीग्’ शब्द बना।
- कालान्तर में अन्तिम व्यंजन का लोप हो गया तब ‘हिन्दी’ शब्द बना।
- ईरान से ‘हिन्द’ और ‘हिन्दी’ शब्द अन्य देशों में जैसे अरब, मिश्र, सीरिया आदि के साहित्य में प्रयुक्त हुआ है।
- ग्रीक साहित्य में ‘हिन्द’ को ‘इण्डया’ या ‘इण्डिका’ कहा गया है, जिससे ‘इण्डिया’ का जन्म हुआ।
- भारतीय मुसलमान फारसी लेखकों द्वारा “हिन्दवी’ शब्द का प्रयोग किया गया है।
- फारसी कवि औफी ने 1228 ई. में ‘हिन्दवी’ शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग किया है। इसके बाद अमीर खुसरो ने खालिकबारी’ में हिन्दी ‘या’ हिन्दवी’ या ‘हिन्दुई’ नाम दिया।
- गिलक्राइस्ट से पूर्व ‘हिन्दवी’ को ‘शुद्ध हिन्दुस्तानी’ और ‘हिन्दुस्तानी’ को ‘मिश्रित हिन्दुस्तानी’ हेलहेड ने कहा था।
- 1800 ई. में कलकता में फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना हुई, जिसमें गिलक्राइस्ट को ‘हिन्दुस्तानी’ विभाग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था।
- लल्लूलाल ने प्रेमसागर (1803 ई.), सदल मिश्र ने नासिकेतोपाख्यान (1803 ई.), तथा ‘रामचरित’ में हिन्दवी’ शैली का प्रयोग किया जिसे ‘खड़ीबोली’ कहा गया।
- हिन्दी का दक्षिण भारत में प्रचलन दक्षिण में मुसलमान शासकों (अलाउद्दीन खिलजी) की विजय के कारण बढ़ा।
- बीजापुर के शासकों ने भी दक्खिनी भाषा-‘हिन्दी’ ‘हिन्दवी’ को राजभाषा के रूप में प्रयोग किया है।
- पेशवा, सिंधिया तथा होलकर जैसे मराठी परिवार ने भी अपने राज्य का कार्य हिन्दी में किया था।
- “न आप आए न भेजीं बत्तियाँ” लिखकर अमीर खुसरो ने हिन्दी की बुनियाद रखी थी।
- अकबर के दरबारी कवि गंग के “चंदछंद बरनन की महिमा” नामक ग्रंथ में खड़ी बोली गद्य के दर्शन प्राप्त होते हैं।
- औरंगजेब की पुत्री ‘जेबुन्निसां’ हिन्दी में कविता लिखती थीं।
संविधान में हिन्दी
- 14 सितंबर, 1949 ई. को हिन्दी को राजभाषा बनाने का निर्णय संविधान सभा की बैठक में लिया गया था, जिसकी अध्यक्षता डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने की थी।
- 26 जनवरी, 1950 ई. को राष्ट्रीय सम्पर्क की भाषा के रूप में हिन्दी को संघ सरकार की राजभाषा का दर्जा मिला।
- भारतीय संविधान में राजभाषा सम्बन्धी अनुच्छेद का वर्णन अनुच्छेद 343 से 351 तक है।
- अनुच्छेद 343 खण्ड 1 के अनुसार भारत संघ की सरकारी भाषा देवनागरी लिपि में हिन्दी होगी और संघ के सरकारी प्रयोजनों के लिए अन्तर्राष्ट्रीय अंकों का प्रयोग होगा।
- अनुच्छेद 345 राज्यों की राजभाषाएँ से सम्बधित है, जिसमें स्थानीय भाषाओं को राजभाषा बनाने का अधिकार है।
- अनुच्छेद 346 के अनुसार एक राज्य दूसरे राज्य तथा राज्य और संघ के बीच सम्पर्क की भाषा हिन्दी होगी।
- अनुच्छेद 350 के अनुसार व्यथा निवारण के लिए संघ की राजभाषा होगी।
- अनुच्छेद 351 हिन्दी के विकास से संबधित है। जो मुख्यतः संस्कृत से तथा गौणतः अन्य भारतीय भाषाओं से शब्द ग्रहण कर सकती
राष्ट्रभाषा से संबंधित धार्मिक,सामाजिक एवं साहित्यिक संस्थाएँ
हिन्दी भाषा का इतिहास history of Hindi language : SARKARI LIBRARY