रस ,रस की परिभाषा, अंग,भेद

      रस

      • रस की परिभाषा
      • रस के अंग
      • रस के भेद

      रस की परिभाषा

      • रस सिद्धांत के प्रवर्तक आचार्य भरतमुनि है। 

      • आचार्य भरत मुनि ने रस की परिभाषा इस प्रकार दी है 

      “तत्र विभवानुभाव व्यभिचारि संयोग द्रस निष्पति” 

      • अर्थात् विभाव, अनुभाव, व्यभिचारी भाव आदि से संयोग होने पर रस की अनुभूति होती है।

      रस के अंग 

      भरत की परिभाषा के आधार पर रस के चार अंग होते हैं 

      (1) स्थायीभाव

      (2) विभाव 

      (3) अनुभाव 

      (4) संचारीभाव

      स्थायीभाव

      • जो भाव पाठक, वाचक या श्रोता के चित में स्थायी रूप से विद्यमान रहते हैं और जिन्हें कोई विरुद्ध या अविरुद्ध भाव दबा नहीं सकता, उन्हें स्थायीभाव कहते हैं। 

      • भरत मुनि ने स्थायी भावों की संख्या आठ मानी थी। 

      • अब इसकी संख्या नौ मानी जाती है, जो इस प्रकार है 

      1.रति, 2.हास, 3.शोक, 4.क्रोध, 5.उत्साह, 6.भय, 7.जुगुप्सा, 8.विस्मय और 9.निर्वेद 

      विभाव 

      • स्थायीभावों के जो कारण होते हैं उन्हें विभाव कहते हैं। 

      • यह दो प्रकार का होता है – (1) आलंबन और (2) उद्दीपन

      अनुभाव 

      • स्थायी भावों को प्रकाशित करने वाली आश्रय की बाह्य चेष्टाओं को अनुभाव कहा जाता है। 

      • इसके दो वर्ग हैं – (1) यत्नज और (2) अत्नयज। 

      • अनुभावों की संख्या आठ है – स्तम्भ, स्वेद, रोमांच, स्वरभंग, कम्प, विवर्णता, अश्रु और प्रलाप।

      संचारीभाव 

      • इन्हें व्यभिचारीभाव भी कहा जाता है। ये भाव किसी एक ही स्थायीभाव के साथ स्थिर नहीं रहते हैं। इसी कारण इन्हें संचारीभाव कहा जाता है। 

      • संचारीभावों की संख्या 33 (तैंतीस) मानी गई है। 

        • निर्वेद, ग्लानि, शंका, असूया, मद, श्रम, आलस्य, दीनता, चिन्ता, मोह, स्मृति, धृति, क्रीड़ा, चापल्य, हर्ष, आवेग जड़ता, गर्व, विषाद, औत्सुक्य, निद्रा, अपस्मार, स्वप्न, विबोध, अवमर्ष, अवहित्था, उग्रता, मति, व्याधि, उन्माद, मरण, त्रास और वितर्क ।

      रस के भेद 

      • भरत मुनि ने रसों की संख्या आठ मानी है। 

      • रसों की संख्या नौ मानी गई है। जो इस प्रकार हैं 

      रस

      स्थायीभाव

      1

      शृंगार 

      रति

      2

      हास्य

      हास

      3

      करुण

      शोक

      4

      रौद्र

      क्रोध

      5

      वीर

      उत्साह

      6

      भयानक

      भय

      7

      वीभत्स

      जुगुप्सा या घृणा

      8

      अद्भुत

      विस्मय या आश्चर्य

      9

      शान्त

      निर्वेद

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