- संथाल जनजाति (Santhal Janjati) झारखण्ड की सर्वाधिक जनसंख्या (35 %) वाली जनजाति
- जनजातियों की कुल जनसंख्या में प्रतिशत – 35%
- भारत की तीसरी सर्वाधिक जनसंख्या वाली जनजाति (प्रथम – भील तथा दूसरी – गोंड)
- झारखण्ड में निवास – झारखण्ड के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र (संथाल परगना )
- ‘दामिन-ए-कोह‘ – राजमहल पहाड़ी क्षेत्र में इनके निवास स्थान को
- प्रजातीय संबंध – प्रोटो-आस्ट्रेलायड समूह
- भाषायी संबंध – ऑस्ट्रो एशियाटिक समूह
- बसे हुए किसानों के समूह से संबंधित है।
- संथालों का संस्थापक पिता – लुगु बुरू
- प्रमुख भाषा – संथाली
- (2004 में संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल)
- 92वाँ संविधान संशोधन, 2003 द्वारा
- संथाली भाषा की लिपि – ‘ओलचिकी‘ है
- आविष्कार – रघुनाथ मुर्मू द्वारा
- चार हडों (वर्ण/वर्ग) में विभाजित
- 1. किस्कू हड (राजा)
- 2. मुरमू हड (पुजारी)
- 3. सोरेन हड (सिपाही)
- 4. मरूडी हड (कृषक)
- गोत्र की संख्या – 12 गोत्र (किली)
- उप-गोत्रों (खूट) की कुल संख्या – 144
- सगोत्रीय विवाह निषिद्ध होता है।
- बाल विवाह की प्रथा का प्रचलन नहीं है।
- विभिन्न प्रकार के विवाहों (बापला)
- किरिंग बापला – सर्वाधिक प्रचलित विवाह
- माता-पिता द्वारा मध्यस्थ के माध्यम से विवाह तय होता है।
- गोलाइटी बापला – गोलट विवाह
- टुनकी दिपिल बापला
- गरीब परिवारों में प्रचलित
- कन्या को वर के घर लाकर सिंदूर दान करके विवाह
- धरदी जावाय बापला
- दामाद को घर जंवाई बनके रहना है
- अपगिर बापला
- लड़का-लड़की में प्रेम हो जाने के बाद पंचायत की सहमति से विवाह।
- इतुत बापला
- पसंद के लड़के से विवाह की अनुमति नहीं मिलने पर लड़के द्वारा किसी अवसर पर लड़की को सिंदूर लगाकर विवाह
- बाद में लड़की के घरवालों द्वारा स्वीकृति दे दी जाती है।
- निर्बोलक बापला
- लड़की द्वारा हठपूर्वक पसंद के लड़के के घर रहना तथा बाद में पंयाचत के माध्यम से विवाह।
- बहादुर बापला
- लड़का-लड़की द्वारा जंगल में भागकर प्रेम विवाह।
- राजा-राजी बापला
- गाँव की स्वीकृति से प्रेम विवाह।
- सांगा बापला
- विधवा/तलाकशुदा स्त्री का विधुर/परित्यक्त पुरूष से विवाह।
- किरिंग जवाय बापला
- लड़की द्वारा शादी से पहले गर्भधारण कर लेने के बाद इच्छुक व्यक्ति से लड़की का विवाह।
- वधु मूल्य – पोन कहते हैं।
- बिटलाहा – संथाल समाज का सर्वाधिक कठोर सजा (सामाजिक बहिष्कार)
- सामाजिक व्यवस्था से संबंधित विभिन्न नामकरण:
- माँझीथान – स्थान जंहा में संथाल गाँव की पंचायत का बैठक
- महिलाओं का माँझीथान में जाना वर्जित
- प्रमुख त्योहार
- बा-परब (सरहुल)
- करमा
- ऐरोक (आषाढ़ माह में बीज बोते समय)
- बंधना
- हरियाड (सावन माह में धान की हरियाली आने पर अच्छी फसल हेतु)
- जापाड
- सोहराई (कार्तिक अमावस्या को पशुओं के सम्मान में)
- सकरात (पूस माह में घर-परिवार की कुशलता हेतु)
- भागसिम (माघ माह में गांव के ओहदेदार को आगामी वर्ष हेतु ओहदे की स्वीकृति देने हेतु)
- बाहा (फागुन माह में शुद्ध जल से खेली जाने वाली होली)
- संथाल जनजाति चित्रकारी के कार्य में निपुण होते हैं।
- ‘कॉम्ब-कट चित्रकला‘ (Comb-Cut Painting) – बर्तनों का चित्र बनाया जाता है।
- गोदना गोदवाने का प्रचलन पाया जाता है।
- माह को ‘बोंगा‘ के नाम से जाता है
- ‘माग बोंगा‘ माह से वर्ष की शुरूआत मानी जाती है।
- “हड़िया’ या ‘पोचाई’ – चावल से बनने वाले शराब (स्थानीय मदिरा)
- संथाल जनजाति के लोग बुनाई के कार्य में कुशल होते हैं।
- संथालों का प्रधान देवता – सिंगबोंगा या ठाकुर (सृष्टि का रचयिता)
- दूसरा प्रमुख देवता – मरांग बुरू
- प्रधान ग्राम देवता – जाहेर-एरा
- ग्राम देवता का निवास स्थान – जाहेर थान(सखुआ या महुआ के पेड़ )
- गृह देवता – ओड़ाक बोंगा
- गाँव के धार्मिक प्रधान – नायके