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झारखण्ड का साहित्य
जनजातीय साहित्य
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झारखण्ड का संथाली साहित्य अत्यंत समृद्ध है। इस साहित्य में जंगली पशुओं को पात्र में प्रस्तुत करते हुए अधिकांश कहानियों की रचना की गई है।
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इस भाषा का संबंध आस्ट्रिक या आग्नेय भाषा परिवार से है।
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संथाली भाषा पर प्रथम पुस्तक का प्रकाशन 1852 ई. में ‘एन इंट्रोडक्शन टू द संथाल लैंग्वेज’ के नाम से किया गया था।
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1873 ई. में एल. ओ. स्क्रफ्सरूड द्वारा संथाली भाषा का प्रथम व्याकरण “ए ग्रामर ऑफ दि संथाली लैंग्वेज‘ प्रकाशित किया गया था।
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1867 ई. में सींथालिया एण्ड द संथाल (ई. जी. मन्न) तथा 1868 ई. में ए वोकेबुलेरी ऑफ संथाल लैंग्वेज (रे. ई. एल. पक्सुले) का प्रकाशन किया गया।
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1899 ई. में कैंपवेल द्वारा ‘संथाली-इंग्लिश एण्ड इंग्लिश-संथाली शब्दकोष‘ का प्रकाशन किया गया था।
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1929 ई. में पी. ओ. बोडिंग की मैटिरियल्स फॉर ए संताली ग्रामर का प्रकाशन किया गया। 1936 ई. में पाल जूझार सोरेन की मौलिक कविताओं का संग्रह ‘ओनांडहें बाहा डालवाक’ का प्रकाशन किया गया।
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संथाली का प्रथम उपन्यास ‘हाड़मवाक् आतो’ (हाड़मा का गाँव) 1946 ई. में रोमन लिपि में प्रकाशित किया गया। इसके उपन्यासकार आर. कारर्टेयर्स थे।
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संथाली का दूसरा उपन्यास ‘मुहिला चेचेत दाई’ (अध्यापिका महिला) है, जिसके उपन्यासकार ननकू सोरेन हैं।
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देवनागरी लिपि में संथाली का प्रथम काव्य-संग्रह ‘कुकमू ‘ (स्वप्न) बाल किशोर साहु द्वारा लिखा गया।
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पंडित रघुनाथ मुर्मू ने सन् 1941 में संथाली भाषा के लिए ‘ओलचिकी’ लिपि की खोज की है।
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संथाली भाषा का प्रथम साहित्यिक नाटक रघुनाथ मुर्मू द्वारा लिखित ‘विदू-चांदन‘ है। इसका पहली बार 1942 में उड़िया लिपि में प्रकाशन किया गया।
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संथाली भाषा का प्रथम समाचार पत्र ‘होड़ संवाद‘ था, जिसका संपादन 1947 ई. में डोमन साह समीर (संथाली भाषा का भारतेंदु) द्वारा किया गया।
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1947 ई. में ही मैकफेल की एन इन्ट्रोडक्शन टू संथाली का प्रकाशन किया गया।
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1951 ई. में डोमन साहू समीर द्वारा ‘संथाली प्रवेशिका‘ तथा केवल सोरेन द्वारा ‘हिंदी-संथाली’ कोष का प्रकाशन किया गया। दोनों ही पुस्तकें देवनागरी लिपि में थी।
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1953 ई. में शारदा प्रसाद किस्कु द्वारा देवनागरी लिपि में 41 कविताओं का संग्रह ‘भुरका इंपिल‘ का प्रकाशन किया गया।
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1953 ई. में ही डोमन साहू समीर की पुस्तक ‘दिसोम बाबा’ का प्रकाशन किया गया। इसमें देवनागिरी लिपि में छंद के रूप में संथाली लोकगीत हैं।
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मोगला सोरेन को संथाली नाटक ‘राही रावण काना‘ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।
मुण्डारी
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सोंगा-बोंगा मुण्डारी साहित्य की एक प्रमुख कथा है जो देवड़ा द्वारा धार्मिक रीति के साथ कही जाती है। सोंगा-बोंगा को बैलेट के रूप में गढ़ा गया है।
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मुण्डारी पर सर्वप्रथम 1873 में जे. सी. व्हिटली द्वारा ‘मुण्डारी प्राइमर‘ पुस्तक लिखी गई।
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मुंडारी भाषा की पहली व्याकरण ‘मुण्डारी ग्रामर‘ का प्रकाशन 1882 ई. में ए. नोट्रोट द्वारा किया गया। इन्होनें 1899 ई. में मुण्डारी बाइबिल नामक पुस्तक लिखी।
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1891 ई. में एस. जे. डी. स्मेट की मुण्डारी ग्रामर का प्रकाशन हुआ।
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फादर हॉफमैन ने 1896 ई. में मुण्डारी फर्स्ट प्राइमर तथा 1903 ई. में मुण्डारी ग्रामर नामक पुस्तक लिखी।
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1912 ई. में एस. सी. राय द्वारा लिखित ‘मुण्डाज एंड देयर कंट्रीज’, 1915 में हॉफमैन द्वारा लिखित ‘इनसाइक्लोपीडिया मुण्डारिका‘ तथा 1986 में पी. के. मित्रा द्वारा लिखित ‘मुण्डारी फोकटेल’ इस भाषा की प्रमुख पुस्तकें हैं। इनसाइक्लोपीडिया मुण्डारिका को मुण्डारी भाषा एवं साहित्य का विश्वकोष माना जाता है।
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‘मुण्डा दुरह‘ मुण्डारी लोकगीतों का संकलन है जिसकी रचना डब्लू. जी. आर्चर ने 1942 ई. में की।
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1956 ई. में पी. के. मित्रा ने मुण्डारी फोक टेल नामक पुस्तक लिखी।
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वर्ष 2000 में रामदयाल मुण्डा द्वारा लिखित ‘मुण्डारी टुड कोठारि‘ नामक पुस्तक हेतु उन्हें साहित्य अकादमी सम्मान प्राप्त हुआ।
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मुण्डारी भाषा की कुछ अन्य प्रमुख पुस्तकें बज रही बाँसुरी व सोसो बोंगा (जगदीश त्रिगुणायत), चंगा दुरंड (बलदेव मुण्डा), बिरसा भगवान नाटक (सुखदेव वरदियार) आदि हैं।
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इस भाषा में जयपाल सिंह द्वारा ‘आदिवासी सकम‘ नामक पत्रिका का प्रकाशन किया गया था।
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‘मुण्डारी लोक कथाएँ‘ नामक पुस्तक के लेखक जगदीश त्रिगुणायत हैं।
हो भाषा
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हो भाषा की अपनी शब्दावली एवं उच्चारण पद्धति है।
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हो भाषा की प्रथम पुस्तक ‘द ग्रामेटिकल कंस्ट्रक्शंस ऑफ द हो लैंग्वेज‘ का प्रकाशन 1840 ई. में किया गया।
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1866 ई. में भीमराम सुलंकी की ‘हो काजी-व्याकरण ग्रंथ’ का प्रकाशन किया गया।
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1902 ई. में एन. के. बोस तथा सी. एच. बोम्बावस द्वारा हो जनजातियों के लोकगीतों पर पहली पुस्तक ‘फोकलोर ऑफ द कोल्हान‘ का प्रकाशन किया गया।
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1905 ई. में ए. नोट्राट की पुस्तक ‘ग्रामर ऑफ द कोल‘ का प्रकाशन किया गया।
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1915 ई. में लियोनल बरो की ‘हो ग्रामर’ का प्रकाशन किया गया।
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1930 में हाफमैन द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘एनसाइक्लोपीडिया मुण्डारिका’ में भी हो भाषा के अनेक लोकगीतों एवं लोक कथाओं का संकलन है।
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डब्लू. जी. आर्चर की पुस्तक ‘हो दूरङ‘ में हो लोकगीतों का संकलन है। यह पुस्तक देवनागिरी लिपि में है।इसे हो साहित्य का महाकाव्य कहा जाता है। इसका प्रकाशन 1942 ई. में किया गया।
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किसी हो व्यक्ति द्वारा लिखित पहली पुस्तक का नाम ‘रूमुल’ है। इसे सतीश कोड़ा सेंगल द्वारा लिखा गया है।
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हो भाषा की अन्य प्रमुख पुस्तकें भीम राम सोलंकी द्वारा लिखित ‘हो काजी’, लियोनल बरो की ‘हो ग्रामर’, हो ग्रामर एंड वोकेबुलरी आदि हैं।
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खड़िया का लिखित साहित्य अभी विकासशील अवस्था में है।
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1894 ई. में जी. सी. बनर्जी द्वारा लिखित ‘इंट्रोडक्शन टू खड़िया लैंग्वेज‘, 1934 में फ्लोर चेइसंस द्वारा लिखित पुस्तक ‘खड़िया शब्दकोष‘ का प्रकाशन किया गया।
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1937 में एस. सी. राय ने खड़िया लोकगीतों, लोक-कथाओं तथा मंत्रों को ‘द खड़ियाज‘ नामक पुस्तक में संकलित किया।
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1942 ई. में डब्लू. जी. आर्चर द्वारा खड़िया लोकगीतों को ‘खड़िया ओलोंग‘ नामक पुस्तक में संकलित किया गया।
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खड़िया भाषा की प्रमुख पत्रिकाएँ ‘तारदी- और ‘जोहार‘ का प्रकाशन भी किया गया।
कुडुख
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झारखण्ड की सभी क्षेत्रीय भाषाओं में सर्वाधिक लिखित साहित्य कुडुख भाषा में ही उपलब्ध है।
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1874 ई. में ओ. फ्लैक्स द्वारा ‘एन इंट्रोडक्शन टू उराँव लैंग्वेज’ तथा सर जार्ज कैंपवेल द्वारा ‘स्पेरिमेंस ऑफ लैंग्वेज ऑफ इण्डिया‘ नामक पुस्तक की रचना की गई।
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1886 ई. में एफ. वैच की ‘ब्रीफ ग्रमार एंड वोकेबुलरी ऑफ उरॉव लैंग्वेज’ नामक पुस्तक की रचना की गई।
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फर्डिनेंट हॉन द्वारा 1898 ई. में ‘कुडूख ग्रामर‘ तथा 1903 ई. में ‘कुडुख-अंग्रेजी डिक्शनरी‘ की रचना की गयी।
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1909 ई. में ए. ग्रिनार्ड द्वारा ‘कुडुख फोकलोर‘ नामक पुस्तक की रचना की गई।
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1924 ई. में ए. ग्रिनार्ड ने ‘ए उराँव इंग्लिश डिक्शनरी’ तथा 1941 में रेवहॉन व डब्लू. जी. आर्चर ने ‘लील-खोरा-खेखेल‘ नामक पुस्तक का प्रकाशन किया।
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1949 ई. में अहलाद तिर्की ‘कुडुख सरहा‘ नामक व्याकरण की रचना की।
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कवि बिहारी लकड़ा ने 1950 में कुडुख गीतों का संकलन ‘कुडुख दांडी‘ प्रकाशित किया। इन्हें 2005 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
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1950 ई. में देवले कुजूर की कविता संग्रह ‘मुता-पूँप-झुपा’ का प्रकाशन किया गया।
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1940 ई. में इग्नेश बे ने ‘विजबिनको’ तथा 1949 ई. में अहलाद तिर्की ने ‘बोलता’ एवं ‘धुमकुड़िया‘ नामक पत्रिका का प्रकाशन किया।
सदानी साहित्य
खोरठा
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यह खरोष्ठी लिपि से संबंधित है तथा खरोष्ठी का ही अपभ्रंशित रूप है।
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सिंधु सभ्यता के लोग खरोष्ठी लिपि का प्रयोग करते थे।
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खोरठा साहित्य में अधिकतर राजा-रानी तथा राजकुमार राजकुमारी आदि की कथाएँ मिलती हैं।
नागपुरी
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नागपुरी का लिखित साहित्य अत्यंत समृद्ध है।
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1896 ई. में ई. एच. व्हिटली द्वारा नागपुरी का प्रथम व्याकरण ‘नोट्स ऑन दि गँवारी डायलेक्ट ऑफ लोहरदगा, छोटानागपुरी‘ की रचना की गई।
पंचपरगनिया
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विनोदिया कवि / विनोद कवि को पंचपरगनिया साहित्य का आरंभकर्ता माना जाता है।
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पंचपरगनिया साहित्य में क्षेत्र एवं परिवेश के प्रति सजगता तथा वैष्णव भक्ति की झलक दिखायी पड़ती है।
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पंचपरगनिया के कवि सोबरन ने पंचपरगनिया के कबीरपंथी धारा को प्रोत्साहित किया।
पंचपरगनिया से संबंधित प्रमुख रचनाएँ तथा रचनाकार:
कुरमाली
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कुरमाली भाषा का प्रथम शोध डॉ० नन्दकिशोर सिंह ने किया है।
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कुरमाली भाषा का लिखित साहित्य अत्यंत कम मिलता है।
कुरमाली से संबंधित प्रमुख रचनाएँ तथा रचनाकार:
हिन्दी साहित्य
गद्य साहित्य
1. कहानी
2. उपन्यास
झारखण्ड के प्रमुख उपन्यासकार एवं उनकी रचनाएँ
3. नाटक
पद्य साहित्य
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य
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झारखण्ड के आरंभिक कवियों में वैद्यनाथ पोद्दार (बैजू बाबू), चिरंजी लाल शर्मा, कवि संचिवी, कविराज देवकी नंदन शर्मा आदि प्रमुख हैं।
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चिरंजी लाल शर्मा हास्य प्रधान कवि थे।
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वैद्यनाथ पोद्दार झारखण्ड में प्रथम पीढ़ी के कहानीकार माने जाते हैं।
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राधाकृष्ण झारखण्ड में द्वितीय पीढ़ी के कहानीकार हैं।
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रामची सिंह ‘वल्लभ’ के उपन्यास ‘राजपूतानी शान’ (1906) को झारखण्ड के हिन्दी साहित्य का पहला उपन्यास माना जाता है।
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अनन्त सहाय अखौरी के नाटक ‘ग्रह का फेर‘ (1913) को झारखण्डी हिन्दी साहित्य का पहला नाटक माना जाता है।
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