उराँव
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      • उराँव जनजाति (Oraon Tribe) झारखण्ड की दूसरी सर्वाधिक जनसंख्या वाली जनजाति
      • भारत की चौथी सर्वाधिक जनसंख्या वाली जनजाति 
      • झारखण्ड की सबसे शिक्षित जनजाति
      • झारखण्ड की जनजातियों में सर्वाधिक विकास उराँव जनजाति का
      • जनजातियों की कुल जनसंख्या में प्रतिशत –  18.14% 
      • सर्वाधिक संकेंद्रण –  दक्षिणी छोटानागपुर एवं पलामू प्रमण्डल 
      • उराँव जनाजाति का मूल निवास स्थान –  दक्कन 
      • उपनाम – कुडुख (अर्थ ‘मनुष्य‘) 
      • उराँव जनजाति की भाषा –  कुडुख भाषा (द्रविड़ परिवार )
      • प्रजातीय संबंध –  द्रविड़ समूह
      • भाषायी संबंध – द्रविड़ समूह
      • उराँव जनजाति का प्रथम वैज्ञानिक अध्ययन किया  – शरच्चंद्र राय ने

      उराँव जनजाति के प्रमुख गोत्र एवं उनके प्रतीक

      गोत्र 

      प्रतीक 

      गोत्र 

      प्रतीक 

      गोत्र 

      प्रतीक 

      किस्पोट्टा 

      सूअर की अंतड़ी

      खलखो  

      मछली

      बाखला 

      घास

      मिज 

      सांपाकार मछली 

      खेस 

      धान

      किडो 

      मछली

      बारला/बाड़ा 

      बट वृक्ष

      खाखा 

      कौआ

      बेक

      नमक

      खोया  

      जंगली कुत्ता 

      गाड़ी/तिग्गा 

      बंदर

      तारा

      केरकेट्टा 

      गोरैया पक्षी

      लकडा

      बाघ 

      कुजूर 

      लता 

      टोप्पो

      छोटी चिड़िया

      एक्का/कच्छप 

      कछुआ

      मुंजनी 

      लता 

      बरवा 

      जंगली कुत्ता 

      तिर्की 

      चिड़िया

      रूण्डा 

      लोमड़ी

       

      • इनमें गोदना (Tatoo) प्रथा प्रचलित है। 
      • समगोत्रीय विवाह निषिद्ध 

      विवाह के रूप 

      • आयोजित विवाह 
        • सर्वाधिक प्रचलित  विवाह 
        • जिसमें वर पक्ष को वधु मूल्य देना पड़ता है।
      • सेवा विवाह – भावी वर कुछ समय तक भावी वधु के परिवार की सेवा करता है।
      • विधवा विवाह 
        • एक ही गाँव के लड़का-लड़की के बीच शादी नहीं किया जाता है

      सहियारो

      • इस जनजाति में आपस में नाता स्थापित करने हेतु सहिया का चुनाव किया जाता है, जिसे ‘सहियारो‘ कहा जाता है।
      • प्रत्येक तीन वर्षों की धनकटनी के बाद ‘सहिया चयन समारोह‘ का आयोजन किया जाता है।
      •  इस जनजाति में आपसी मित्रता की जाती है।
        • गोई’ या ‘करमडार‘ – लड़कि की  मित्र को 
        • लार’ या ‘संगी‘ – लड़के  का मित्र को 
        •  ‘लारिन’ या ‘संगिनी‘ – विवाह के बाद लड़कों की पत्नियाँ आपस में एक-दूसरे को
      • परिवार की संपत्ति पर केवल पुरूषों का अधिकार होता है।
      • सामाजिक व्यवस्था से संबंधित विभिन्न नामकरण:
        • युवागृहघुमकुरिया
        • ग्राम प्रधान – महतो (मुखिया)
        • पंचायतपंचोरा
        • नाच का मैदान – अखाड़ा
      • करया – त्योहार के समय पुरुषों द्वारा पहना जाने वाला वस्त्र 
      • खनरिया –  त्योहार के समय  महिलाओं द्वारा पहना जाने वाला वस्त्र 
      • पितृसत्तात्मक परिवार 
      • प्रमुख नृत्य – ‘यदुर‘ 
      • प्रमुख उत्सव – 
        • वैशाख में विसू सेंदरा
        • फागुन में फागु सेंदरा 
        • वर्षा ऋतु में  जेठ शिकार करते हैं। 
          • अनौपचारिक शिकार – दौराहा शिकार 
      • उराँव जनजाति के वर्ष का प्रारंभ  – नवम्बर-दिसम्बर में धनकटनी के बाद होता है। 

      प्रमुख त्योहार 

      • करमा (भादो माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी को) 
      • सरहुल
      • खद्दी (चैत माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को) 
      • जतरा (जेठ, अगहन व कार्तिक माह में धर्मेश देवता के सम्मान में) 
      • सोहराय (कार्तिक अमावस्या को पशुओं के सम्मान में) 
      • फागु पर्व (फागुन माह में होली के समरूप) आदि हैं।

       

      • यह जनजाति स्थायी कृषक बन गयी है।

      भुईहर /भुईहर गाँव

      • उराँव जनजाति के ऐसे लोग जिन्होंने प्रारंभ में छोटानागपुर क्षेत्र में आने के बाद जंगलों को साफ करके कृषि कार्य करना प्रारंभ किया। ऐसे उराँवों को ‘भुईहर‘ कहा गया 
        • इनकी भूमि को ‘भुईहर भूमि‘ कहा गया।
        • इनकी गाँव को ‘भुईहर गाँव‘ कहा गया। 
        • बाद में आने वाले उराँवों को रैयत’ या ‘जेठ रैयत कहा गया।

      ‘पसरी’ प्रथा

      • जिसके अंतर्गत आपस में मेहनत का विनिमय किया जाता है
      • या किसी को हल-बैल देकर उससे खेत को जोतने व कोड़ने में सहायता ली जाती है।

       

      • बंदर का मांस नहीं खाती है।
      • हड़िया – प्रिय पेय पदार्थ  
      • प्रमुख देवता –  धर्मेश या धर्मी (सूर्य के समान) 
      • अन्य प्रमुख दवी-देवता 
        • मरांग बुरू – पहाड़ देवता
        • ठाकुर देव – ग्राम देवता
        • डीहवार – सीमांत देवता
        • पूर्वजात्मा – कुल देवता
      • भेलवा पूजा – वर्ष में एक बार फसल की रोपनी के समय
      • गोरेया पूजा‘ – गाँव के कल्याण के लिए वर्ष में एक बार 
      • गाँव का धार्मिक प्रधान  – पाहन 
        • सहयोगी  – पुजार 
        • पूजा स्थल –  सरना 
        • पूर्वजों की आत्मा के निवास स्थान – सासन 
      • हड़बोरा’ संस्कार/गोत्र-खुदी’//कोहाबेंजा‘ 
        • जनवरी में ‘हड़बोरा’ संस्कार का आयोजन 
        • साल भर में मरे गोत्र के सभी लोगों की हड्डियों को नदी में निक्षेपित किया जाता है। इसे ‘गोत्र-खुदी’ कहा जाता है।
        • कोहाबेंजा‘ – हड़बोरा संस्कार के बाद उनकी आत्मा पूर्वजों की आत्मा से मिलन 
      • माटी- जादू-टोना करने वाले व्यक्ति को 

                                                                          घुमकुरिया

      • घुमकुरिया एक युवागृह है 
        • युवागृहजिसमें युवक-युवतियों को जनजातीय रीति-रिवाजों एवं परंपराओं का प्रशिक्षण दिया जाता है। 
        • प्रवेश – 10 -11 वर्ष की आयु में 
        • सदस्य्ता समाप्त – विवाह होने पर 
      • प्रवेश करने वाले सदस्यों की तीन श्रेणियाँ 
        • पूना जोखर (प्रवेश करने वाले नये सदस्य)
        • माँझ जोखर (3 वर्ष बाद)
        • कोहा जोखर
      • जोख-एड़पा (धांगर कुड़िया) –युवकों के लिए प्रबंध
        • मुखिया – धांगर या महतो
        • सहायक – कोतवार
      • पेल-एड़पा – युवतियों के लिए प्रबंध 
        • जोख का अर्थ  – कुँवारा होता है।
        • पेल-एड़पा की देखभाल करने वाली महिला – बड़की धांगरिन 
      • घुमकुरिया के अधिकारियों का बदलना –  3 वर्ष पर 
        • इसके लिए ‘मुखिया हंडी’ (हडिया पीना) समारोह का आयोजन