•  ‘समास’ दो शब्दों से मिलकर बना है:
    • सम् (पास) + आस (रखना, बैठाना) = समास । 
  • समास का अर्थ है- संक्षेप अथवा संग्रह अर्थात् दो शब्दों को मिलाकर एक कर देना।

समास की परिभाषा

  • दो या अधिक शब्दों (पदों) को मिलाकर उनके बीच आई विभक्ति-चिन्हों को छोड़कर नया शब्द बनाने की प्रक्रिया को समास कहते हैं। 
  • जैसे 
    • गंगा का जल = गंगा जल 
    • दही में पड़ा हुआ बड़ा = दही बड़ा 
    • रसोई के लिए घर = रसोई घर 
    • घोड़ा युक्त गाड़ी = घोड़ा गाड़ी 
    • राजा का भवन = राजभवन

समास की विशेषताएँ 

  • (i) समास में कम-से-कम दो पदों का योग होता है।
  • (ii) वे दो या अधिक पद एक पद हो जाते है।
  • (iii) समास में समस्त होनेवाले पदों का विभक्ति-चिन्ह लुप्त हो जाता है। 

समस्त पद या सामासिक पद 

  • समास के दोनों पदों को क्रमशः पूर्वपद और उत्तरपद कहते हैं। 
  • जैसे- रसोई के लिए घर = रसोई घर।
    • रसोई घर में रसोई पूर्वपद तथा घर उत्तरपद है। 
  • पूर्वपद और उत्तरपद को मिलाकर लिखने की प्रक्रिया को समस्त पद या सामासिक पद कहते हैं। जैसे- रसोई घर । 
  • पूर्वपद और उत्तरपद को मिलाकर लिखना चाहिए या उनके बीच योजक चिह्न (-) लगाना चाहिए। 
    • जैसे-  माता-पिता, राजभवन। 
    • उदाहरण 
    • रसोई (पूर्वपद) घर (उत्तरपद) = रसोई घर (समस्त पद या सामासिक पद) 
    • माता (पूर्वपद) पिता (उत्तर पद) = माता-पिता (समस्त पद या सामासिक पद) 
    • राज (पूर्वपद) भवन (उत्तरपद) = राज भवन(समस्त पद या सामासिक पद)

समास विग्रह 

  • समस्त या सामासिक पद को पुनः अलग-अलग करके विभिक्त चिह्नों आदि सहित दर्शाने की प्रक्रिया को समास-विग्रह कहते हैं। 
    • जैसे    (समस्त या सामासिक पद          समास-विग्रह)
    • गंगाजल का विग्रह होगा      =     गंगा का जल 
    • शोकातुर का विग्रह होगा     =     शोक से आतुर 
    • रसोई घर का विग्रह होगा    =    रसोई के लिए घर
    • माता-पिता का विग्रह होगा  =    माता और पिता 
    • राजभवन का विग्रह होगा    =    राजा का भवन।

समास के 6 भेद 

  • समास के छ (छ:) भेद माने गये हैं। 
  • समास मूलतः चार प्रकार के होते हैं। 
  • तत्पुरूष के ही दो उपभेदों (कर्मधारय और द्विगु) को मिलाकर छ (छ:) प्रकार के समास माने गये हैं
  • (1) अव्ययीभाव समास 
  • (2) तत्पुरूष समास 
    • (3) कर्मधारय समास 
    • (4) द्विगु समास 
  • (5) द्वन्द्व समास 
  • (6) बहुव्रीह समास 

अव्ययीभाव समास पहचान 

  • इस समास में दो शब्दों से मिलकर जो शब्द बनता है, वह क्रिया विशेषण अव्यय हो जाता है। इसलिए इसका नाम अव्ययीभाव पड़ा। 
  • इसमें पहला पद प्रधान होता है। 
  • संस्कृत अव्ययीभाव समासों में पहला पद अव्यय और दूसरा पद संज्ञा या विशेषण होता है। 
  • जैसे 
    • यथा(अव्यय) + शक्ति(संज्ञा) = यथाशक्ति (क्रिया विशेषण अव्यय) 
    • यथा(अव्यय ) + सम्भव(विशेषण ) = यथासम्भव (क्रिया विशेषण अव्यय) 
  • हिन्दी अव्ययीभाव समासों के उदाहरण में पहला पद अव्यय न होकर प्रायः संज्ञा होता है। 
  • जैसे 
    • दिन + दिन = दिनोंदिन 
    • घर + घर = घरघर 
  • शब्दों की आवृत्ति (दो बार प्रयोग) होने पर अव्ययीभाव समास होता है। 
    • जैसे- धीरे-धीरे, पहले-पहल, धड़ाधड़, एकाएक, सरासर,गाँव-गाँव, गली-गली  आदि ।  
  • सार्थक-निरर्थक शब्दों में अव्ययीभाव समास होता है। 
    • जैसे- पानी-वानी, सडक-वडक, मिठाई-विठाई, सोना-वोना, चाय-वाय आदि। 
  • पर्याय शब्दों (समान अर्थ देने वाले) में भी अव्ययीभाव समास होता है। 
  • जैसे- पूजा-पाठ, कुशल-मंगल, सीधा-सादा, मेल-मिलाप, खान-पान आदि।
  • अव्ययीभाव समास में लिंग, वचन, कारक, पुरूष आदि की दृष्टि से परिवर्तन नहीं होता है। 
  • अव्ययीभाव समास के उदाहरण 
    • समस्त पद               समास-विग्रह 
    • यथाशक्ति            शक्ति के अनुसार 
    • मनमाना                  मन के अनुसार 
    • भरपेट                    पेट भरकर 
    • यथाशीघ्र                 जितना शीघ्र हो 
    • दिनानुदिन               दिन के बाद दिन 

तत्पुरुष समास पहचान 

  • तत् + पुरूष = वह आदमी। 
  • इसी आधार पर इसका नामकरण हुआ है। 
  • इस समास में दूसरा पद प्रधान होता है।
  • भेद – इसके तीन तथा छह उपभेद हैं
    • (1) तत्पुरूष
    • (2) कर्मधारय 
    • (3) द्विगु
  • छह उपभेद हैं
    • (1) उपपद 
    • (2) नन्
    • (3) प्रादि
    • (4) अलुक्
    • (5) मध्यमपदलोपी
    • (6) मयूरब्यंसकादि
  • तत्पुरूष समास में दोनों पद संज्ञा या पहला पद संज्ञा तथा दूसरा पद विशेषण होता है।
  • इसे व्याधिकरणतत्पुरूष भी कहा जाता है।
  • इस समास की रचना में समस्त पदों के बीच में आनेवाले परसर्गों (कारक के चिह्न) का लोप हो जाता है। 
  • कर्ता और सम्बोधन कारक को छोड़कर इसी आधार पर  इसके छह भेद माने गये हैं
    • (i) कर्म तत्पुरूष 
    • (ii) करण तत्पुरूष 
    • (iii) संप्रदान तत्पुरूष 
    • (iv) अपादन तत्पुरूष 
    • (v) संबंध तत्पुरूष 
    • (vi) अधिकरण तत्पुरूष।
  • इसे ‘विभक्तितत्पुरूष’ भी कहते हैं। 
  • तत्पुरूष समास में समस्त पदों के लिंग और वचन उत्तरपद (अंतिम पद) के अनुसार होते हैं। 
  • इस समास की रचना दो तरह से होती है 
    • (i) संज्ञा + संज्ञा – दोनों पद संज्ञा होते हैं।जैसे- गंगा जल = गंगा का जल। 
    • (ii) संज्ञा + क्रिया – पहला पद संज्ञा तथा दूसरा क्रिया होता है। क्रिया प्रायः भूतकाल में होती है। जैसे- भूख मरा = भूख से मरा। 
  • तत्पुरूष समास में कभी-कभी विभक्ति के साथ कुछ शब्द होते हैं, विभक्ति के साथ इन शब्दों का भी लोप हो जाता है। जैसे सांभरबड़ा – सांभर में डूबा हुआ बड़ा, गोबर गणेश = गोबर से बना गणेश।

तत्पुरूष समास के भेद 

i. कर्म तत्पुरूष 

  • जहां पूर्वपद में ‘को’ का लोप हो। 
  • जैसे 

समस्त पद            समास-विग्रह 

  • यश प्राप्त              यश को प्राप्त 
  • गिरहकट            गिरह को काटनेवाला 
  • जनप्रिय          जन को प्रिय 
  • ज्ञान प्राप्त          ज्ञान को प्राप्त 
  • ग्रामगत           ग्राम को गया हुआ 
  • सर्वप्रिय             सब को प्रिय 
  • नगरगमन           नगर को गमन 
  • विद्याप्राप्त        विद्या को प्राप्त 
  • परलोकगमन    परलोक को गमन 
  • गुरूनमन        गुरू को नमन 

ii. करण तत्पुरूष 

  • जहां पूर्वपद में से ‘के द्वारा’ विभक्ति का लोप हो। 
  • जैसे 

        समस्त पद                  समास-विग्रह 

    • शोकाकुल           शोक से आकुल 
    • निरालारचित       निराला के द्वारा रचित 
    • कामचोर              काम से चोर 
    • शिक्षकदत्त          शिक्षक के द्वारा दत्त 
    • बाढ़ पीड़ित         बाढ़ से पीड़ित 
    • ईश्वर-प्रदत्त          ईश्वर के द्वारा प्रदत्त 
    • रोगमुक्त             रोग से मुक्त 
    • तुलसीकृत           तुलसी द्वारा रचित 
    • विरहाकुल            विरह से आकुल 
    • गुरूदत्त              गुरू द्वारा दत्त 

iii. संप्रदान तत्पुरूष 

  • जहां पूर्वपद में के लिए विभक्ति का लोप हो। 
  • जैसे 
    • पुस्तकादेश         पुस्तक के लिए आदेश 
    • मालगाड़ी            माल के लिए गाड़ी 
    • रसोईघर               रसोई के लिए घर 

iv. अपादान तत्पुरूष 

  • जहां पूर्वपद में ‘से’ विभक्ति का लोप हो। 
  • जैसे 
    • देशनिकाला        देश से निकाला 
    • जीवनमुक्त          जीवन से मुक्त 

v. संबंध तत्पुरूष 

  • जहां पूर्वपद में ‘का’, ‘के’, ‘की’ विभक्ति का लोप हो । 
  • जैसे
    • भारतेंदु           भारत का इंदु
    •  आज्ञानुसार    आज्ञा के अनुसार 
    • वित्तहानि         वित्त की हानि  

vi. अधिकरण तत्पुरूष 

  • जहां पूर्वपद में ‘पर’ का लोप हो। 
  • जैसे 
    • घुड़सवार      घोड़े पर सवार 

तत्पुरूष के उपभेद 

  • 1. उपपद 
    • किसी धातु या क्रिया में कोई प्रत्यय लगाकर सामासिक पद बनता है तो वहाँ उपपद तत्पुरूष समास होता है। इसमें प्रत्यय से पहले कोई भी विभक्ति रह सकती हैं जैसे- दिवा + कर = दिवाकर उर से गमन करने वाला = उरग। यहाँ ‘दिवा’ का अर्थ ‘दिन को’ तथा ‘कर’ का करने वाला; एवं ‘को’ द्वितीया विभक्ति ‘कर’ प्रत्यय से पूर्व लगा है। 
  • 2. नञ 
    • जिस समास का पहला पद नकारात्मक या अभावात्मक हो वह नञ् समास कहलाता है। इसमें पहला पद ‘अ, न, ना, अन्, नि, निर, निस् आदि होता हैं जैसे- अनदेखा- न देखा, नीरोग-नहीं रोग, नालायक- न लायक, अनजाना-न जाना, आदि। 
  • 3. प्रादि 
    • जिस समास का पहला पद ‘प्र’ आदि उपसर्गों में से कोई हो, तथा उन्हीं के अंग के रूप में दूसरा शब्द जुड़ा हो वहाँ प्रादि समास होता है। समास करने पर दूसरा शब्द लुप्त हो जाता हैं जैसे- प्राचार्य-प्रकृष्ट आचार्य, आदि। 
  • 4. अलुक 
    • जिस समास का पहला पद विभक्ति सहित रहता है, वहाँ अलुक् समास होता है। जैसे- मनसिज-मन में जन्मने वाला, युधिष्ठिर-युद्ध में स्थिर, आदि । 
  • 5. मध्यमपदलोपी
    • जिस तत्पुरूष समास में दोनों पदों के बीच कुछ पद हो तथा समास करने पर उनका लोप हो जाय तो वहाँ मध्यमपदलोपा समास होता हैं जैसे- दही बड़ा- दही में डूबा हुआ बड़ा।
  • 6. मयूरब्यंसकादि
    • जिस तत्पुरूष समास में दोनों पद विग्रह करने पर आपस में बदल जाते हैं, वहाँ मयूरब्यंसकादि समास होता है। जैसे-देशान्तर-अन्तर (अन्य) देश, आदि । 

कर्मधारय समास पहचान एवं भेद

  • कर्मधारय समास  पहचान 
  • कर्मधारय में ‘कर्म’ का अर्थ है ‘भेदक क्रिया’ और ‘धारय’ का अर्थ है ‘धारण करने वाला’, अर्थात् भेदक क्रिया को धारण करने वाला। – यह समास संज्ञा की विशेषता बताता है। 
  • इस समास में पूर्वपद या उत्तर पद अथवा दोनों पद विशेषण-विशेष्य होते हैं। 
  • भेद – इसके चार भेद होते हैं
    • (i) विशेषण पूर्व पद 
    • (ii) विशेष्य पूर्व पद 
    • (iii) विशेषणो भय पद 
    • (iv) विशेष्योभय पद। 
  • कर्मधारय समास के तीन उपभेद भी होते हैं
    • (i) उपमान कर्मधारय 
    • (ii) उपमित कर्मधारय
    • (iii) रूपककर्मधारय। 
  • जिस समस्त पद में विशेषण-विशेष्य या उपमेय-उपमान हो वहाँ कर्मधारय समास होता है।
  • कर्मधारय समास के भेद 
  • i. विशेषण पूर्व पद
    • जिस समस्त पद में पूर्व पद विशेषण हो। 
    • जैसेसमस्त पद विशेषण विशेष्य नीलगाय नीली गाय नीलगगन नील गगन परमेश्वर परम ईश्वर पीताम्बर पीत अम्बर शुभागमन शुभ – आगमन
  •  ii. विशेष्य पूर्व पद
    • जिस समस्त पद का पूर्वपद विशेष्य हो। जैसे। समस्त पद विशेषण विशेष्य कुमारश्रमणा श्रमणा कुमारी 
  • iii. विशेषणोभय पद
    • जिस समस्त पद के दोनों पद विशेषण हो। 
    • जैसेसमस्त पद विशेषण विशेष्य नीलपीत नीला पीला शीतोष्ण ठंडा गरम 
  • iv. विशेष्योभय पद
    • जिस समस्त पद के दोनों पद विशेष्य हो। जैसे- आम्रवृक्ष ।
  • कर्मधारय समास के उपभेद
  • i. उपमान कर्मधारय
    • जिस समस्त पद में पूर्व पद उपमान एवं उत्तर पद उपमेय हो। 
    • जैसे समस्त पद उपमान अपमेय विधुच्चंचला विद्युत जैसी चंचला 
    • इस समास में दोनों शब्दों के बीच ‘इव’ या ‘जैसा- जैसी; अव्यय का लोप हो जाता है। 
  • ii. उपमित कर्मधारय
    • जिस समस्त पद में पूर्वपद उपमेय एवं उत्तरपद उपमान हो। जैसे एवं उत्तर पद उपमान हो। जैसे समस्त पद उपमेय उपमान मृगनयन मृग नयन 
  • iii. रूपक कर्मधारय
    • जिस समस्त पद में उपमेय को ही उपमान कहा जाए। जैसे मुखचन्द्र- मुख ही है चन्द्र। 

द्विगु समास पहचान एवं भेद

  • द्विगुसमास पहचान 
  • द्विगु का अर्थ होता है- दो गायों या बैलों का समूह। जिस शब्द का पहला पद संख्या वाचक (एक, दो, तीन) हो और समस्त पद से किसी समूह का बोध हो, तो वहाँ द्विगु समास होता है। 
  • जैसे-त्रिभुवन = तीन भुवनों का समूह । त्रिलोक = तीन लोकों का समूह । चौमासा = चार मासों का समूह । 
  • भेद – द्विगु समास के दो भेद होते हैं
    • (i) समाहार द्विगु
    • (ii) उत्तरपदप्रधान द्विगु
  • i. समाहार द्विगु
    • समाहार का अर्थ होता है-‘समदाय’, इकटठा’ । 
    • जैसे-पंचवटी = पाँचों वओं का समाहार। 
  • ii. उत्तरपदप्रधान द्विगु
    • इस समास में उत्तरपद पर जोड़ रहता है। 
    • जैसे-पंचप्रमाण-पाँच प्रमाण (नाम)। 

द्वन्द्व समास पहचान एवं भेद

  • द्वन्द्व समास पहचान 
  • द्वन्द्व का अर्थ होता है- ‘जोड़ा या युग्म’ । 
  • जिस सामासिक पद में दो या तीन संज्ञाएँ हो तथा उनके बीच-‘और, तथा, अथवा, या’ जैसे समुच्चयबोधक शब्दों का लोप (छुपे) हो वहाँ द्वन्द्व समास होता है।
  • जैसे- माँ-बाप = माँ और बाप। 
  • इस समास के उदाहरणों में प्रायः संयोजक चिह्न (-) लगा रहता है।
  • द्वन्द्व समास में दोनों पद प्रधान होते हैं। इस समास में लिंग उत्तर पर के अनुसार होता है। 
  • द्वन्द्व समास के तीन भेद होते है
    • (i) इतरेतर द्वन्द्व 
    • (ii) वैकल्पिक द्वन्द्व
    • (iii) समाहार द्वन्द्व 
  • i. इतरेतर द्वन्द्व
    • इसमें सभी पदों के बीच ‘और’ शब्द का लोप रहता है। जैसे – गाय-बैल = गाय और बैल। 
    • इस समास के पद हमेशा बहुवचन में प्रयुक्त होते है: तथा अपना अस्तित्व अलग-अलग – रखते हैं।
  •  ii. वैकल्पिक द्वन्द्व
    • इस समास के पदों के बीच में ‘या’, ‘अथवा’ जैसे विकल्प सूचक शब्द का लोप (छिपे) होता है। 
    • जैसे-भला-बुरा = भला या बुरा। इस समास में विपरीतार्थक शब्दों का योग होता है। जैसे-थोड़ा-बहुत । 
  • iii. समाहार द्वन्द्व
    • समाहार का अर्थ होता है समष्टि या समूह। 
    • जिस समास के दोनों पद ‘और’ समुच्चयबोधक से जुड़े हों तथा समूह का बोध कराते हो तो वहाँ समाहार द्वन्द्व होता है। 
    • इस समास में प्रयुक्त पदों के अर्थ के अतिरिक्त मिलते-जुलते अन्य अर्थ भी प्रकट होते हैं। 
    • जैसे- दाल रोटी = दाल और रोटी (भोजन के लिए अन्य पदार्थ भी) 
    • एक ही अर्थ देने वाले भिन्न-भिन्न पदों के योग से बने शब्दों में भी समाहार द्वन्द्व होता है। 
    • जैसे- कपड़ा-लता → विपरित अर्थ देने वाले पदों के योग में भी समाहार द्वन्द्व होता है। जैसे-चूहा-बिल्ली।
    • जब दो विशेषण पदों का प्रयोग संज्ञा के अर्थ में होता है तब समाहार द्वन्द्व होता है। जैसे भूखा-प्यासा। 

बहुव्रीहि समास पहचान एवं भेद

  • बहुव्रीहि- पहचान 
    • बहुव्रीहि का अर्थ होता है- बहुत धनोंवाला अर्थात् सम्पन्न। 
    • इस समास में प्रयुक्त पद किसी अन्य की विशेषता को प्रकट करते है। 
    • जब दो शब्द मिलकर किसी तीसरे शब्द का विशेषण बन जाएँ तो उसे बहुव्रीहि समास कहते हैं।
    • इस समास में कोई भी पद प्रधान नहीं होता है। 
    • जैसे- पीताम्बर = पीत है अम्बर जिसका वह अर्थात् ‘विष्णु। 
  • बहुव्रीहि समास के भेद
  • बहुव्रीहि समास के चार भेद होते हैं
    • (1) समानाधिकरण बहुव्रीहि
    • (2) व्यधिकरण बहुव्रीहि
    • (3) तुल्य योगबहुव्रीहि या सहबहुव्रीहि
    • (4) व्यतिहार बहुव्रीहि 
  • 1. समानाधिकरण बहुव्रीहि 
    • इसमें समस्त पद कर्त्ताकारक के होते हैं, परन्तु जो अन्य विशेषता प्रकट होती है। वह कर्त्ताकारक को छोड़ अन्य कारक के रूप में होता है। 
    • जैसे दत्त भोजन = दत्त है भोजन जिसके लिए। 
  • 2. व्यधिकरण बहुव्रीहि 
    • इसमें पूर्वपद कर्ता कारक का एवं उत्तर पद सम्बन्ध कारक या अधिकारण कारक का होता है।
    • जैसे- वीणापाणि = वीणा है पाणि में जिसके। 
  • 3. तुल्य योग बहुव्रीहि 
    • इसमें पहला पद ‘सह’ होता है तथा समास होने पर ‘सह’ का ‘सह’ होता है तथा समास होने पर ‘सह’ का ‘स’ हो जाता है। 
    • जैसे- सबल = जो बल के साथ है वह। ‘सह’ का अर्थ होता है- ‘साथ’ 
  • 4. व्यतिहार बहुव्रीहि 
    • इसमें ‘घात-प्रतिघात’ वाले शब्द होते है। 
    • जैसे- बाताबाती = बातों- बातों से जो लड़ाई हुई। 
  • सामासिक सूची
  • अव्ययीभाव समास
    • निर्भय = बिना भय का 
    • प्रत्येक = एक-एक 
    • प्रत्यंग = अंग-अंग 
    • बेकाम = बिना काम का 
    • बेलाग = बिना लाग का 
    • आपादमस्तक = पाद से मस्तक तक 
    • समक्ष = अक्षि के सामने 
    • बखूबी = खूबी के साथ 
    • निधड़क = बिना धड़क के 
    • उपकूल = कूल के समीप 
    • प्रत्युपकार = उपकार के प्रति 
    • परोक्ष = अक्षि के परे 
    • प्रत्यक्ष = आँख के सामने (आगे) 
    • बेफायदा = बिना फायदे का 
    • बेरहम = बिना रहम के 
    • यथार्य= अर्थ के अनुसार 
    • यथारूप = रूप के अनुसार 
    • रातोंरात = रात ही रात में
    • बेखटके = बिना खटके के 
    • प्रतिवर्ष = प्रत्येक वर्ष 
    • हरघड़ी = प्रत्येक घड़ी 
    • आजन्म = जन्म से लेकर 
    • यथासमय = समय के अनुसार 
    • बेरोजगार = बिना रोजगार के 
    • बातोंबात = बात ही बात में 
    • हाथों हाथ = हाथ ही हाथ में 
    • बेनकाब = बिना नकाब के 
    • यथा विधि = विधि के अनुसार 
    • सपरिवार = परिवार के साथ 
    • प्रतिदिन = प्रत्येक दिन 
    • यथासामर्थ्य = सामर्थ्य के अनुसार 
    • आजीवन = जीवन भर 
    • दिनोंदिन – दिन ही दिन में 
    • आमरण = मरने तक 
    • बदौलत = दौलत के साथ 
    • अकारण = बिना कारण के 
    • यथामति = मति के अनुसार 
    • हमसफर = सफर के साथ 
    • अनजाने = बिना  जाने 
    • प्रतिमाह = प्रत्येक माह 
    • आसमुद्र = समुद्र तक 
    • यथोचित = जो उचित हो
  • कर्मतत्पुरूष समास 
    • पाकिटमार = पाकिट को मारने वाला 
    • गृहागत = गृह को आगत 
    • गगन चुम्बी = गगन को चूमने वाला 
    • गिरहकट = गिरह को काटने वाला 
    • कठखोदवा = काठ को खेदने वाला 
    • चीड़ीमार = चिड़ियों को मारने वाला 
    • मूंहतोड़ = मुँह को तोड़ने वाला 
    • जलघर = जल को धारण करने वाला 
    • ग्रन्थकर्ता = गन्थ को करने वाला 
    • स्वर्गगत = स्वर्ग को गया हुआ 
    • जलपिपासु = जल को पीने वाला 
    • गँठ कटा = गाँठ को काटने वाला 
    • जेबकतरा = जेब को कतरने वाला 
    • शरणागत = शरण को आगत 
    • ग्रामगत = ग्राम को आगत (गया हुआ) 
    • जनप्रिय = जन को प्रिय
    • अतिथ्यर्पण = अतिथि को अर्पण 
    • यशप्राप्त = यश को प्राप्त 
    • स्वर्गीय = स्वर्ग को गया 
    • मरणासन्न = मरण को पहुँचा हुआ 
    • सर्वप्रिय = सब को प्रिय 
    • गृहागत = घर को आया हुआ, 
    • परलोकगमन = परलोक को गमन 
    • विद्याप्राप्त = विद्या को प्राप्त 
    • विदेशगत = विदेश को गत 
    • ज्ञान प्राप्त = ज्ञान को प्राप्त 
    • कार्यालयागत = कार्यालय को आगत 
    • गुरूनमन = गुरू को नमन 
    • हथ लगा = हाथ को लगा हुआ 
    • नगर गमन = नगर को गमन
  • करणतत्पुरूष 
    • भयाकुल = भय से आकुल 
    • शिक्षकदत्त = शिक्षक द्वारा दत्त 
    • ईश्वर-प्रदत्त = ईश्वर द्वारा प्रदत्त 
    • मनचाहा = मन से चाहा 
    • विरहाकुल = विरह से आकुल 
    • श्रद्धापूर्ण = श्रद्धा से पूर्ण 
    • रोगमुक्त = रोग से मुक्त 
    • कामातुर = काम से आतुर 
    • निरालारचित = निराला के द्वारा रचित 
    • ज्ञानार्जित = ज्ञान से अर्जित 
    • बाढ़पीड़ित = बाढ़ से पीड़ित 
    • हस्तलिखित = हाथ से लिखित 
    • मुँहमाँगा = मुँह से माँगा 
    • अकालपीड़ित = अकाल से पीड़ित 
    • मुँहबोला = मुँह से बोला 
    • राजनीति-पीड़ित = राजनीति से पीड़ित 
    • शोकाकुल = शोक से आकुल 
    • कामचोर = काम से चोर 
    • कष्टसाध्य = कष्ट से साध्य 
    • गुणयुक्त = गुण से युक्त 
    • मदमाता = मद से माता 
    • वाग्दत्ता = वाक् से दत्ता 
    • प्रेमसिक्त = प्रेम से सिक्त 
    • ईश्वर दत्त = ईश्वर से दिया हुआ 
    • पददलित = पद से दलित 
    • दयार्द्र = दया से आर्द्र 
    • देवकृत = देव द्वारा कृत्त 
    • सूरकृत = सूर द्वारा कृत 
    • गुरूदत्त = गुरू द्वारा दिया हुआ 
    • जलसिक्त = जल से सिक्त 
    • मनमाना = मन से माना 
    • हस्तलिखित = हाथ के द्वारा लिखित 
    • अनुभवजन्य = अनुभव से जन्य 
    • भुखमरा = भूख से मरा हुआ 
    • शोकातुर = शोक से आतुर 
    • रसभरा = रस से भरा 
    • ज्ञानमुक्त = ज्ञान से मुक्त 
    • मदांध = मद से अंधा 
    • रेखांकित = रेखा से अंकित 
    • मेघाच्छन्न = मेघ से आच्छन्न 
    • तुलसीकृत = तुलसी द्वारा कृत 
    • बिहारी रचित = बिहारी के द्वारा रचित 
    • दुःखसन्तप्त = दुःख से सन्तप्त 
    • करूणापूर्ण = करूणा से पूर्ण 
    • अकाल पीड़ित – अकाल से पीड़ित 
    • प्रेमातुर = प्रेम से आतुर 
    • रोग पीड़ित = रोग से पीड़ित 
    • रोगग्रस्त = रोग से ग्रस्त 
    • शोकार्त्त = शोक से आर्त्त 
    • श्रमजीवी = श्रम से जीनेवाला 
    • शोकग्रस्त = शोक से ग्रस्त 
    • दुःखात = दुःख से आर्त्त 
    • देहचोर = देह से चोर 
    • आँखोंदेखी = आँखों से देखी 
    • स्वरचित = स्व द्वारा रचित 
    • प्रकृतिदत्त = प्रकृति द्वारा दत्त
  • सम्प्रदानतत्पुरूष 
    • आराम कसी = आराम के लिए 
    • देवबलि = देवताओं के लिए बलि 
    • शिवार्पण = शिव के लिए अर्पण 
    • डाकमहसूल = डाक के लिए महसूल 
    • लोकहितकारी = लोक के लिए हितकारी
    •  गुरूदक्षिणा = गुरू के लिए दक्षिणा 
    • साधु दक्षिणा = साधु के लिए दक्षिणा 
    • गोशाला = गो के लिए शाला 
    • पाठशाला = पाठ के लिए शाला 
    • युद्ध भूमि = युद्ध के लिए भूमि 
    • हवनसामग्री = हवन के लिए सामग्री 
    • रसोईघर = रसोई के लिए घर 
    • ब्राह्मणदेय = ब्राह्मण के लिए देय 
    • देशार्पण = देश के लिए अर्पण 
    • विधान सभा = विधान के लिए सभा 
    • हथघड़ी = हाथ के लिए घड़ी 
    • देशभक्ति = देश के लिए भक्ति 
    • मार्गव्यय = मार्ग के लिए व्यय 
    • मालगोदाम = माल के लिए गोदाम 
    • डाकगाड़ी = डाक के लिए गाड़ी 
    • हथकड़ी = हाथ के लिए कड़ी 
    • सभाभवन = सभा के लिए भवन 
    • राहखर्च = राह के लिए खर्च 
    • राज्यलिप्सा = राज्य के लिए लिप्सा 
    • देवालय = देव के लिए आलय 
    • बलिपशु = बलि के लिए पशु 
    • पुत्रशोक = पुत्र के लिए शोक 
    • स्नानघर = स्नान के लिए घर 
    • सत्याग्रह = सत्य के लिए आग्रह 
    • देश प्रेम = देश के लिए प्रेम 
    • मालगाड़ी = माल के लिए गाड़ी 
    • पुस्तकादेश = पुस्तक के लिए आदेश 
    • पूजाघर = पूजा के लिए घर 
    • बसस्टैंड = बस के लिए स्टैंड 
    • मनोरंजनस्थल = मनोरंजन के लिए स्थल 
    • यश शाला = यज्ञ के लिए शाला 
    • बसटिकट = बस के लिए टिकट 
    • दानपेटी = दान के लिए पेटी 
    • क्रीड़ा क्षेत्र = क्रीड़ा के लिए क्षेत्र
  • अपादानतत्पुरूष
    •  बलहीन = बल से हीन 
    • मायारिक्त = माया से रिक्त 
    • नेत्रहीन = नेत्र से हीन 
    • प्रेमारिक्त = प्रेम से रिक्त 
    • धनहीन = धन से हीन 
    • पाप मुक्त = पाप से मुक्त 
    • शक्तिहीन = शक्ति से हीन 
    • व्ययमुक्त = व्यय से मुक्त 
    • पदभ्रष्ट = पद से भ्रष्ट 
    • ऋणमुक्त = ऋण से मुक्त 
    • पथभ्रष्ट = पथ से भ्रष्ट 
    • धर्मविमुख = धर्म से विमुख 
    • स्थानभ्रष्ट = स्थान से भ्रष्ट 
    • ईश्वरविमुख – ईश्वर से विमुख 
    • जलरिक्त = जल से रिक्त 
    • पदच्युत = पद से च्युत 
    • प्रक्षण रहित = प्रदूषण से रहित 
    • स्थानच्युत = स्थान से च्युत 
    • सेवामुक्त = सेवा से मुक्त 
    • धर्मच्युत = धर्म से च्युत
    •  कर्तव्यमुक्त = कर्तव्य से मुक्त 
    • लोकोत्तर = लोक से उत्तर (बाद) 
    • मरणोत्तर = मरण से उत्तर 
    • संस्कारहीन = संस्कार से हीन 
    • जलजात = जल से जात (उत्पन्न) 
    • दायित्वमुक्त = दायित्व से मुक्त्त 
    • जन्मांध = जन्म से अंधा 
    • लक्ष्यभ्रष्ट = लक्ष्य से भ्रष्ट 
    • जीवनमुक्तं = जीवन से मुक्त 
    • आकाश पतित = आकाश से पतित 
    • देशनिष्कासित = देश से निष्कासित 
    • जातिच्युत = जाति से च्युत 
    • भयभीत = भय से भीत 
    • गुणहीन = गुणों से हीन 
    • देशनिकाला = देश से निकाला 
    • आवरण हीन = आवरण से हीन 
    • अभियोगमुक्त = अभियोग से मुक्त 
    • पापोद्धार = पाप से उद्धार 
    • अपराधमुक्त = अपराध से मुक्त
  • संबध तत्पुरूष
    •  श्रमदान = श्रम का दान 
    • सरामायण = राम का अयन 
    • अन्नरान = अन्न का दान 
    • त्रिपुरारि = त्रिपुर का अरि 
    • प्रेमोपासक – प्रेम का उपासक 
    • आनन्दाश्रम = आनन्द का आश्रम 
    • खरारि = खर का अरि 
    • देवालय = देवा का आलय 
    • रामोपासक = राम का उपासक 
    • राजभवन = राजा का भवन 
    • वीरकन्या = बीर की कन्या 
    • गंगाजल = गंगा का जल 
    • चन्द्रोदय = चन्द्र का उदय 
    • सेनानायक = सेना का नायक 
    • ग्रामोद्वार = ग्राम का उद्धार 
    • गुरूसेवा = गुरू की सेवा 
    • जीवन साथी = जीवन का साथी 
    • देश सेवा = देश की सेवा 
    • चरित्र = चरित्र का चित्रण 
    • मंत्रालय = मंत्री का आलय 
    • प्राणहानि = प्राण की हानि 
    • भाग्य-विधाता = भाग्य का विधाता 
    • लोक-कल्याण = लोक का कल्याण 
    • राजनीतिज्ञ = राजनीति का विज्ञ 
    • रक्षा सदन = रक्षा का सदन 
    • मताधिकार = मत का अधिकार 
    • लोकहित = लोक का हित 
    • मित्रभय = मित्र का भय 
    • जलापूर्ति = जल की आपूर्ति 
    • राजगृह = राजा का गृह 
    • मृगछौना = मृग का छौना 
    • पुस्तकालय = पुस्तक का आलय 
    • हिमालय = हिम का आलय 
    • अमरस = आम का रस 
    • सभापति = सभा का पति 
    • समयानुसार = समय के अनुसार 
    • राजपुत्र = राजा का पुत्र 
    • राष्ट्रपति = राष्ट्र का पति 
    • प्रसंगानुकूल = प्रसंग के अनुकूल 
    • राजदरबार = राजा का दरबार 
    • विघासागर = विधा का सागर 
    • अवसरानुकूल = अवसर के अनुकूल 
    • जीवनदान = जीवन का दान 
    • वित्तहानि = वित्त की हानि 
    • लखपति = लाखें का पति 
    • सीमारेखा = सीमा की रेखा 
    • विद्यादान = विद्या का दान
    • पूँजीपति = पॅली का पति 
    • प्रजापति = प्रजा का पति 
    • क्षमादान = क्षमा का दान 
    • जनसंगठन = जन का संगठन 
    • देशभक्ति = देश की भक्ति 
    • भारतरत्न = भारत का रत्न 
    • लोकसभा = लोक की सभा 
    • मातृभक्ति = मातृ की भक्ति 
    • मृत्युदंड = मृत्यु का दंड 
    • विद्यारम्भ = विद्या का आरम्भ 
    • भ्रातृस्नेह = भ्रातृ का स्नेह 
    • प्रजाभय = प्रजा का भय 
    • प्रजातंत्र = प्रजा का तंत्र 
    • आत्मबलिदान = आत्म का बलिदान 
    • आत्म नियंत्रण = आत्म का नियंत्रण 
    • भाग्याधीन = भाग्य के अधीन 
    • स्वतंत्र = स्व का तंत्र 
    • कनकघट – कनक का घट 
    • आत्मकथा = आत्म की कथा 
    • स्वाधीन = स्व के अधीन 
    • आत्मरक्षा = आत्म की रक्षा 
    • स्वलेख = स्व का लेख 
    • बिहारवासी = बिहार का वासी 
    • गृहस्वामी = गृह का स्वामी 
    • दिनचर्या = दिन की चर्या 
    • राजसभा = राजा की सभा 
    • अमृतधारा = अमृत की धारा 
    • रामभक्ति = राम की भक्ति 
    • भारतेंदु = भारत का इंदु 
    • विषयसूची = विषय की सूची 
    • देवमूर्ति = देव की मूर्ति 
    • समयतालिका = समय की तालिका 
    • अछूतोद्धार = अछूतों का उद्धार 
    • आज्ञानुसार = आज्ञा के अनुसार 
    • नरेश बाला = नरेश की बाला
  • अधिकरण तत्पुरूष
    •  ग्रामवास = ग्राम में वास 
    • गृहप्रवेश = गृह में प्रवेश 
    • पुरूषोत्तम = पुरूषों में उत्तम 
    • दानवीर = दान में वीर 
    • शरणागत = शरण में आगत 
    • ध्यानमग्न = ध्यान में मग्न 
    • हरफन मौला = हर फन में मौला 
    • मुनिश्रेष्ठ = मुनियों में श्रेष्ठ 
    • स्कूटरसवार = स्कूटर पर सवार 
    • रथासीन = रथ पर आसीन नमा 
    • रणशूर = रण में शूर 
    • पराश्रित = पर पर आश्रित 
    • मृत्युंजय = मृत्यु पर जय 
    • नरोत्तम = नरों में उत्तम 
    • शास्त्रप्रवीण = शास्त्रों में प्रवीन 
    • नराधम = नरों में अधम 
    • पुरूषसिंह = पुरूषों में सिंह 
    • क्षत्रियाधम = क्षत्रियों में अधम 
    • कविश्रेष्ठ = कवियों में श्रेष्ठ 
    • आत्मनिर्भर = आत्म पर निर्भर 
    • सर्वोत्तम = सर्व में उत्तम 
    • आनन्दमग्न = आनन्द में मग्न 
    • घुड़सवार = घोड़े पर सवार 
    • परारूढ़ = पर पर आरूढ़ 
    • आत्मविश्वास = आत्म पर विश्वास 
    • भाषाधिकार = भाषा पर अधिकार
  • कर्मधारय समास (विशेषण-विशेष्य)
    •  प्रधानाध्यापक = प्रधान है जो अध्यापक 
    • नीलकंठ = नीला है जो कंठ 
    • सत्कर्म = सत् है जो कर्म 
    • अंधकूप = अंधा है जो कूप 
    • नीलकमल = नीला है जो कमल 
    • गोलगुंबद = गोल है जो गुंबद सद्धर्म 
    • नीलगगन = नीला है जो गगन 
    • सुमुख = सुंदर है जो मुख 
    • उच्चशिखर = उच्च है जो शिखर 
    • पीतांबर = पीत है जो अंबर 
    • कालीमिर्च – काली है जो मिर्च 
    • नववधू = नव है जो वधू 
    • सुलोचना = सुंदर है जिसके लोचन 
    • सच्चरित्र = सत् है जो चरित्र 
    • प्रियदर्शनी = जिसका दर्शन प्रिय है 
    • सूक्ष्माणु = सूक्ष्म है जो अणु 
    • महात्मा = महान है जो आत्मा 
    • खलनायक = खल है जो नायक 
    • महादेव = महान है जो देव 
    • सदाचार = सद् है जो आचार 
    • लघुकथा = लघु है जो कथा 
    • कुपुत्र = बुरा है जो पुत्र 
    • सद्धर्म = सत् है जो धर्म 
    • महावीर = महान है जो वीर 
    • अधपका = आधा है जो पका 
    • दुरात्मा = बुरी है जो आत्मा 
    • सुहासिनी = सुंदर है जिसकी हँसी 
    • अधोमुख = नीचे की ओर है जिसका मुख 
    • कापुरूष = कायर है जो पुरूष 
    • महाविद्यालय = महान है जो विद्यालय 
    • खेतांबर = खेत है जो अंबर 
    • महायुद्ध = महान है जो युद्ध 
    • अंधकूप = अंधा है जो कूप 
    • मुख्यमंत्री = मुख्य है जो मंत्री
  • कर्मधारय समास (उपमेय-उपमान)
    • चंद्रमुख = चंद्र के समान मुख 
    • कमलनयन = कमल के समान नयन 
    • राजीवलोचन = राजीव के समान लोचन 
    • ज्ञानकोष = ज्ञान रूपी कोष 
    • नररत्न = नर रूपी रत्न 
    • लौहपुरूष = लोहे के समान पुरूष 
    • सोनजुही = सोने के समान जुही 
    • देहलता = देह रूपी लता 
    • पदपंकज = पंकज के समान पद 
    • करकमल = कमल के समान कर 
    • मुखचंद = चंद्र रूपी मुख 
    • कनकलता = कनक के समान लता 
    • दयासागर = दया रूपी सागर 
    • मातृभूमि = माता के समान भूमि 
    • चरण कमल = कमल के समान चरण 
    • क्रोधग्नि = क्रोध रूपी अग्नि 
    • मृगनयन = मृग के समान नयन 
    • रजनीबाला = रजनी के समान बाला 
    • घनश्याम = घन के समान श्याम 
    • विद्यासागर = विद्या रूपी सागर 
    • स्त्रीधन = स्त्री रूपी धन 
    • नरसिंह = नर रूपी सिंह 
    • प्राणप्रिय = प्राणों के समान प्रिय 
    • सूर्यप्रभा = सूर्य की प्रभा के समान 
    • ग्रंथरत्न = रत्न रूपी ग्रंथ 
    • भुजदंज = दंड के समान भुजा 
    • नयन बाण = नयन रूपी बाण 
    • कुसुमकोमल = कुसुम सा कोमल
  • द्विगु समास 
    • चौराहा = चार राहों का समूह 
    • त्रिभुज = तीन भुजाओं का समूह 
    • त्रिवेणी = तीन नदियों का समाहार 
    • पंचवटी = पँच वटों का समूह 
    • नवग्रह = नौ ग्रहों का समूह 
    • तिरंगा = तीन रंगों का समूह 
    • शताब्दी = सौ वर्षों का समूह 
    • नवनिधि = नौ निधियों का समाहार 
    • अष्टसिद्धि = आठ सिद्धियों का समाहार 
    • त्रिलोक = तीन लोकों का समूह 
    • सप्तहार = सात दिनों का समूह 
    • चतुष्कोण = चार कोण वाला 
    • सतसई = सात सौ दोहों का समूह 
    • चवन्नी = चार आनों का समूह 
    • नवरत्न = नौ रत्नों का समाहार 
    • चौमासा = चार मासों का समाहार 
    • पंचतंत्र = पाँच तंत्रों का समाहार 
    • त्रिकोण = तीन कोणों का समूह 
    • अठन्नी = आठ आनों का समूह 
    • त्रिभुवन = तीन भुवनों का समूह 
    • सप्तसिंधु = सात सिंधुओं का समूह 
    • पंजाब= पाँच (नदियों) आबों का समूह 
    • त्रिकाल = तीनों कालों का समूह 
    • पंचामृत = पंच अमृतों का समूह 
  • द्वंद्व समास 
    • भाई-बहन = भाई और बहन 
    • चाचा-चाची = चाचा और चाची 
    • कप-प्लेट = कप और प्लेट 
    • गुरू-शिष्य = गुरू और शिष्य 
    • नर-नारी = नर और नारी 
    • लाभ-हानि = लाभ और हानि 
    • नायक-नायिका = नायक और नायिका 
    • कॉपी-पेंसिल = कॉपी और पेंसिल 
    • माता-पिता = माता और पिता 
    • आग-पानी = आग और पानी 
    • अध्यापक-अध्यापिका= अध्यापक और अध्यापिका 
    • पहाड़-पहाड़ी = पहाड़ और पहाड़ी 
    • दाल-भात – दाल और भात 
    • फूफी-फूफा = फूफी और फूफा
    • भैया-भाभी = भैया और भाभी 
    • दादा-दादी = दादा और दादी 
    • नाना-नानी = नाना और नानी 
    • चाँद-सूरज = चाँद और सूरज 
    • लेखक-लेखिका = लेखक और लेखिका 
    • राम-लक्ष्मण = राम और लक्ष्मण
  • बहुब्रीह समास
    • नीलकंठ = नीला है कंठ जिसका (शिव) 
    • चंद्रमौलि = चंद्र है मौलि पर जिसके (शिव) 
    • लंबोदर = लंबा है उदर जिसका (गणेश) 
    • त्रिलोचन = तीन है लोचन जिसके (शिव) 
    • गजानन = गज है आनन जिसका (गणेश) 
    • मृत्युंजय = मृत्यु को जय करने वाला (शिव) 
    • शुलपाणि= शूल है पाणि (हाथ) में जिसके (शिव) 
    • विषघर= विष को धारण किया है जिसने (शिव) 
    • हंसगामिनी = हंस पर गमन करती हैं जो (सरस्वती) 
    • महादेव = महान हैं जो देव (शिव) 
    • चंद्रशेखर = चंद्र है शेखर पर जिसके (शिव) 
    • पीतांबर = पीत है अंबर जिसके (विष्णु)
    • चतुर्मुख = चार हैं मुख जिसके (ब्रह्मा) 
    • गिरिधर = गिरि को धारण करने वाला (कृष्ण) 
    • एकदंत = एक है दंत जिसका (गणेश) 
    • लक्ष्मीपति = लक्ष्मी के पति हैं जो (विष्णु) 
    • चक्रधर = चक्र को धारण करने वाला (विष्णु) 
    • वीणापाणि = वीणा है पाणि में जिसके (सरस्वती) 
    • दशमुख = दश है मुख जिसके (रावण) 
    • दशानन = दश है आनन जिसके (रावण) 
    • गोपाल = गौओं का पालन करता है जो (कृष्ण) 
    • चक्रपाणि = चक्र है पाणि में जिसके (विष्णु) 
    • मुरलीधर = मुरली को धारण करने वाला (कृष्ण) 
    • षडानन = छह है आनन जिसके (कार्तिकेय) 
    • चतुर्भुज = चार है भुजाएँ जिसकी (विष्णु) 
    • दिगंबर = दिशाएँ हैं वस्त्र जिसकी जिसकी (नग्न) 
    • दीर्घ बाहु = लम्बी भुजाओं वाला (विष्णु) 
    • निशाचर =निशा में विचरण करने वाला (राक्षस) 
    • नकटा = नाक कटा है जिसका 
    • मोदक प्रिय = मोदक प्रिय है जिसे (गणेश)