महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम
(Mahatma Gandhi National Rural Employment Guarantee Act-MGNREGA)
राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम के रूप में इसकी शुरुआत 2 फरवरी, 2006 को आंध्र प्रदेश से की गई, जबकि यह अधिनियम संसद द्वारा सितंबर 2005 में ही पारित हो गया था।
2 अक्तूबर, 2009 से इसका नाम बदलकर महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) कर दिया गया।
यह कानून किसी वित्तीय वर्ष में प्रत्येक ग्रामीण परिवार के वैसे सभी वयस्क सदस्यों को, जो अकुशल श्रम के लिये तैयार हों, 100 दिनों के रोज़गार ( सुखा प्रभावित क्षेत्र और जनजातीय क्षेत्रों में 150 दिनों का रोज़गार ) की गारंटी प्रदान करता है।
इस कानून में यह प्रावधान है कि लाभार्थियों में कम-से-कम 33% महिलाएँ होनी चाहिये ।
इस योजना का क्रियान्वयन ग्राम पंचायत द्वारा किया जाता है तथा लाभ प्राप्तकर्ता इकाई परिवार है।
यह योजना रोज़गार पाने के कानूनी अधिकार के रूप में शुरू गई है। अतः यह अन्य योजनाओं से भिन्न है।
रोज़गार पाने के लिये आवेदन के 15 दिनों के अंदर रोज़गार दिया जाएगा तथा यह रोज़गार श्रमिक के निवास स्थान से 5 किलोमीटर के भीतर उपलब्ध होगा। यदि कार्य इससे अधिक दूरी पर उपलब्ध हो तो उसे परिवहन भत्ता भी दिया जाएगा। यदि इस समय-सीमा के भीतर रोज़गार नहीं प्रदान किया गया तो आवेदक को बेरोज़गारी भत्ता प्राप्त होगा।
‘संपूर्ण ग्रामीण रोज़गार योजना’ (SGRY) तथा ‘काम के बदले अनाज योजना’ का इसमें विलय कर दिया गया है।
मनरेगा के अंतर्गत ग्रामीण अवसंरचना के विकास से संबंधित क्षेत्रों,जैसे- जल संभरण, गाँवों में सड़क निर्माण इत्यादि में रोज़गार प्रदान किया जाता है।
मनरेगा से लाभ
रोज़गार में वृद्धि;
महिलाओं तथा पिछड़े वर्गों का वित्तीय समावेशन;
न्यूनतम मज़दूरी की सुनिश्चितता;
रहन-सहन के स्तर में सुधार;
प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण ।