करिया काजरेक घर से ऑखीक गीत KARIYA KAJREK GHAR SE ANKHIK GEET
करिया काजरेक घर से ऑखीक गीत
करिया काजरेक घर से
करिया काजरेक घर से
साबित बहराइल के
कहाँ ऊ साबून जे
धोवे ई दाग के
माया विनी मायाक देशें
हावाँय फूटे फूल
टाने विश्वामितरेक प्राण
मेनका कानेक दूल
बनत दधीचि पर-हिते
ऐसन दानी के।
एखनू पूरबें सुरुज उगे
पैछमें नतून चाँद
बाँटे नतुन जीवन भलय
शोभे फूले बाँध
एखनू साझें सोहागिनी
करे सोवागत तिमिर-राज के
कविता का भावार्थ – इस संसार में प्रीत की रीति से कोई भी बचा नहीं है, जिस प्रकार काजल की कोठरी से कोई बेदाग नहीं निकल सकता, यह शाश्वत सत्य है। आज भी नित्य दिन की भांति पूरब में सूर्योदय होता है, पश्चिम में नवचन्द्र उदित होता है और नवजीवन बांटता है। आज भी मेनका विश्वामित्र की तपस्या भंग करती है और आज भी सुहागिने बड़े मनोयोग से रात्रि आगमन की स्वागत पिया-मिलन की इच्छा से करती है।