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झारखण्ड की जनजातियाँ।। सबर जनजाति
सबर जनजाति
- सबर जनजाति का संबंध प्रोटो ऑस्ट्रेलायड समूह से है।
- इनका संबंध मुण्डा जनजातीय समूह से है।
- यह झारखण्ड की अल्पसंख्यक आदिम जनजाति है।
- इस जनजाति के अस्तित्व का पहला उल्लेख त्रेता युग में मिलता है।
- इसके अलावा इनका उल्लेख महाभारत महाकाव्य में भी मिलता है।
- इनकी तीन प्रमुख शाखाएँ है- झारा, बासु एवं जायतापति।
- इसमें से केवल झारा सबर झारखण्ड में पायी जाती है, शेष सबर उड़ीसा में पाये जाते हैं।
- ब्रिटिश शासन काल में ‘आपराधिक जनजाति अधिनियम, 1871‘ के तहत इन्हें आपराधिक जनजातियों में से एक के रूप में वर्गीकृत किया गया था।
- प्रसिद्ध साहित्यकार महाश्वेता देवी ने विशेष रूप से सबर जनजाति पर काम किया है।
- झारखण्ड में इनका संकेंद्रण मुख्यतः सिंहभूम क्षेत्र में है। इसके अतिरिक्त यह जनजाति राँची, हजारीबाग, बोकारो, धनबाद, गिरिडीह, पलामू तथा संथाल परगना में भी निवास करती है।
- इनकी भाषा उड़िया, बांग्ला तथा हिन्दी है।
- इनका समाज पितृसत्तात्मक होता है।
- इस जनजाति में गोत्र एवं बहुविवाह की प्रथा नहीं पायी जाती है।
- इस जनजाति में वधु मूल्य को ‘पोटे‘ कहा जाता है।
- इस जनजाति में युवागृह नहीं पाया जाता है।
- इस जनजाति में डोमकच तथा पंता साल्या नृत्य लोकप्रिय है।
- इनके परंपरागत पंचायत का प्रमुख ‘प्रधान‘ कहलाता है।
- इनका प्रमुख त्योहार मनसा पूजा, दुर्गा पूजा, काली पूजा आदि है।
- इनका प्रमुख पेशा कृषि कार्य, वनोत्पादों का संग्रह तथा मजदूरी है।
- इनके प्रमुख देवता काली हैं।
- इस जनजाति में पूर्वज पूजा का विशेष महत्व है।
- मृत पूर्वज को ‘मसीहमान‘ या ‘बूढ़ा-बूढ़ी‘ कहा जाता है तथा इन्हें मुर्गा की बलि चढ़ाई जाती है।
- इनके गांव का पुजारी दिहुरी कहलाता हैं
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