झारखण्ड के मेले
नूनबिल मेला , दुमका
- दुमका जिले के मसलिया प्रखंड के नुनबिल नदी के तट पर मकर संक्रांति के बाद लगता है
- पहाड़िया जनजाति के द्वारा शुरु किया गया
बिसुआ मेला , गोड्डा
- बसंतराय प्रखंड , गोड्डा
- 14 अप्रैल से शुरू (हर वर्ष चैत माह के अंतिम तारीख व वैशाख की पहली तारीख को)
- साफाहोड़ समुदाय के लोग द्वारा
इंद जतरा मेला , सुतियाम्बे ,रांची जिला के कांके प्रखंड के
- इस मेले की शुरुआत मुंडा राजा मदरा मुंडा ने अपनी राजधानी से की थी
- यह मेला कर्म पूजा के बाद त्रयोदशी को आयोजित किया जाता है
- इस मेले की शुरुआत नागवंशी शासकों के शासनकाल में हुई थी
भूत मेला (हैदरनगर, पलामू)
- पलामू स्थित हैदरनगर के देवी-धाम में प्रत्येक वर्ष चैत्र महीने के प्रतिपदा तिथि से पूर्णिमा तक (अर्थात् 15 दिन) भूत मेला का आयोजन होता है।
करमदाहा मेला (जामताड़ा)
- जामताड़ा के नारायणपुर में मकर संक्रांति के अवसर पर इस मेले का आयोजन किया जाता है, जो 15 दिनों तक चलता है।
- इस अवसर पर भगवान शिव के दुखहरण मंदिर में पूजा की जाती है।
- शिवलिंग की खोज प्रसिद्ध राजा कर्ण ने की थी।
नवमी डोला मेला ,टाटीसिल्वे (राँची)
- चैत महीने के कृष्ण पक्ष की नवमी को
- यह मेला होली के 9 दिन बाद प्रत्येक वर्ष आयोजित किया जाता है।
रथयात्रा मेला , जगन्नाथपुर (राँची)
- आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को रथयात्रा का आयोजन
- जगन्नाथपुर में भगवान जगन्नाथ का मंदिर है
- जगन्नाथ मंदिर से कुछ दूरी पर मौसी बाड़ी निर्मित की गयी है।
- 9 दिनों के बाद एकादशी को इस रथ की वापस यात्रा होती है, जिसे ‘घुरती रथयात्रा‘ कहा जाता है।
- इस मेले की शुरुआत 1691 में बड़कागढ़ के राजा एनी नाथ शाहदेव ने किया था
- रथयात्रा मेला हजारीबाग जिले के निकट हलीं और सिलावा में हर वर्ष ‘आषाढ़‘ महीने में आयोजित होता है
मुड़मा जतरा मेला ,मुड़मा (राँची)
- दशहरा के दस दिन बाद
- आदिवासियों द्वारा इसे जतरा मेला कहा जाता है।
- मुंडा और उराव जनजाति के बीच आपसी समझौता मुड़मा में ही हुआ तभी से ही मुड़मा जतरा का आयोजन होता है
- मुड़मा मेले के दूसरे दिन जतरा खूंट की पूजा का प्रचलन है
- इस अवसर पर सामाजिक सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन होता है जिसमें सबसे प्रमुख शम्पा चंपा है
मण्डा मेला ,(हजारीबाग, रामगढ़, बोकारो )
- बैशाख, जेठ एवं आषाढ़ माह में
- श्रद्धालु आग पर नंगे पांव चलते हैं।
- ‘जागरण‘ – जिस रात लोग आग पर चलते हैं
- भगवान महादेव (शिव) की पूजा की जाती है।
सूर्यकुण्ड मेला, हजारीबाग
- मकर सक्रांति से अगले 10 दिनों तक
नरसिंहस्थान मेला ,हजारीबाग
- कार्तिक पूर्णिमा को
हथिया पत्थर मेला ,फुसरो (बोकारो)
- मकर सक्रांति के अवसर पर
कुंडा मेला, प्रतापपुर (चतरा)
- फागुन शिवरात्रि
- पशु मेला के रूप में
रामरेखा धाम मेला ,सिमडेगा
- कार्तिक पूर्णिमा
- मान्यता है कि भगवान श्रीराम दण्डकारण्य जाने के क्रम में रामरेखा पहाड़ (सिमडेगा) पर कुछ दिन बिताये थे
श्रावणी/सावन मेला, वैद्यनाथ धाम (देवघर),
- श्रावण महीना
- शिव के ज्योतिर्लिंग पर जल अर्पण
- झारखंड सरकार ने इसे राजकीय मेले का दर्जा दिया है
- सुल्तानगंज से देवघर यात्रा में सबसे दुर्गम पहाड़ी मार्ग का नाम सुईया पहाड़ है
बुढ़ई मेला, देवघर
- अगहन माह में नवान पर्व के रूप में आयोजित
टुसू मेला , पंचपरगना,रांची
- यह सूर्य पूजा से संबंधित त्योहार है तथा मकर सक्रांति के दिन मनाया जाता है।
- यह पर्व टुसू नाम की कन्या की स्मृति में मनाया जाता है।
- इस पर्व के अवसर पर पंचपरगना में टुसू मेला लगता है।
हिजला मेला,दुमका
- बसंत ऋतु (फरवरी-मार्च) में
- ‘हिजला’ शब्द हिजलोपाइट खनिज का संक्षिप्त रूप है
- हिजलोपाइट संथाल परगना की पहाड़ियों में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध
- मयूराक्षी नदी के किनारे आयोजित
- प्रारंभ – 1890 ई. में ,संथाल परगना के तत्कालीन उपायुक्त कास्टैयर्स ने शुरू किया था
- इस मेले का उद्देश्य जनता को विकास कार्यक्रम की जानकारी देना है
बिंदुधाम मेला,साहेबगंज
- बिंदुधाम शक्तिपीठ (साहेबगंज) में
- चैत्र माह में
सपही का माकोमारो पहाड़ मेला ,डोमचांच (कोडरमा)
- धार्मिक ग्रंथों के अनुसार महर्षि परशुराम ने अपने पिता के कहने पर माता रेणुका का वध सपही स्थित इसी पहाड़ी पर किया था।