प्राचीन भारत के विविध पहलू

भारत का नामकरण 

  • ऋग्वैदिक काल के प्रमुख जन ‘भरत’ के नाम पर प्राचीन काल में भारत के विशाल उपमहाद्वीप को ‘भारतवर्ष‘ के नाम से जाना जाता था। 
  • भारत देश जंबूद्वीप का दक्षिणी भाग था। 
  • आर्यों का निवास स्थल होने के कारण इसका नामकरण ‘आर्यावर्त‘ के रूप में हुआ। 
  • भारत का अंग्रेजी नाम ‘इंडिया‘ की उत्पत्ति ‘इंडस’ (सिंधु) शब्द से हुई है जो यूनानियों द्वारा चौथी सदी से प्रचलन में है। 
  • चीनियों ने प्रारंभ में भारत के लिये तिएन-चू अथवा चुआतू शब्द का प्रयोग किया, लेकिन ह्वेनसांग के बाद वहाँ पर ‘यिन-तू’ शब्द का चलन हो गया। 
  • मध्यकालीन फारसी और अरबी लेखकों ने इस देश को ‘हिंद’ अथवा ‘हिंदुस्तान‘ शब्द से संबोधित किया। 
  • इत्सिंग ने भारत के लिये ‘आर्य देश’ और ‘ब्रह्मराष्ट्र‘ जैसे शब्दों का प्रयोग किया है। 
  • एक प्रदेश के रूप में भारत का प्रथम सुनिश्चित उल्लेख पाणिनी लिखित ‘अष्टाध्यायी’ में मिलता है। 

प्राचीनकालीन प्रमुख शिक्षा के केंद्र 

 तक्षशिला 

  •  तक्षशिला, वर्तमान पाकिस्तान के रावलपिंडी जिले में स्थित है। यह प्राचीन समय में राजनीति और शस्त्रविद्या की शिक्षा का प्रमुख केंद्र था। 
  • तक्षशिला विश्वविद्यालय के बारे में कहा जाता है कि श्री राम के भाई भरत के पुत्र तक्ष ने उस नगर की स्थापना की थी।
  •  कोशल के राजा प्रसेनजित, मगध का राजवैद्य जीवक, सुप्रसिद्ध राजनीतिविद् चाणक्य, बौद्ध विद्वान वसुबंधु आदि ने यहाँ से शिक्षा प्राप्त की थी। चाणक्य यहाँ के प्रमुख आचार्य थे।

नालंदा 

  • वर्तमान में नालंदा विश्वविद्यालय, राजगीर,नालंदा जिलेबिहार , में स्थित है।
  • नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना गुप्त शासक कुमारगुप्त प्रथम (415-455 ई.) ने की थी। 
  • नालंदा महायान बौद्ध धर्म की शिक्षा का प्रमुख केंद्र था। 
  • इस विश्वविद्यालय में 8 बड़े कमरे तथा व्याख्यान के लिये 300 छोटे कमरे बने हुए थे। यहाँ भारत के अतिरिक्त चीन, मंगोलिया, तिब्बत, कोरिया, मध्य एशिया आदि देशों से भी विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने आते थे। 
  • यहाँ लगभग 10,000 विद्यार्थियों को पढ़ाने के लिये करीब 2000 शिक्षक थे।
  •  ह्वेनसांग ने यहाँ 18 महीने तक रहकर अध्ययन किया था। ह्वेनसांग के समय इस विश्वविद्यालय के कुलपति शीलभद्र थे। 
  • इत्सिंग ने यहाँ रहकर 400 संस्कृत ग्रंथों की प्रतिलिपियाँ तैयार की थी। यहाँ का ‘धर्मगंज’ नामक पुस्तकालय तीन भव्य भवनों-रत्नासागर, रत्नोद्धि तथा रत्नरंजक में स्थित था। 

तेल्हाड़ा विश्वविद्यालय 

  • नालंदा जिले के तेल्हाड़ा, बिहार ,में स्थित है।
  • विश्वविद्यालय के अवशेष से पता चला है कि यह नालंदा और विक्रमशिला विश्वविद्यालय से भी प्राचीन है।

वल्लभी

  • वल्लभी या वल्लभीपुर गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में भावनगर के निकट स्थित एक प्राचीन नगर है। यह प्राचीन मैत्रक राजवंश की राजधानी था।
  • इसकी स्थापना  470 ई. में मैत्रक वंश के संस्थापक सेनापति भुट्टारक ने की थी।
  • वल्लभी पश्चिम भारत में शिक्षा तथा संस्कृति का प्रसिद्ध केंद्र था।
  •  यह हीनयान बौद्ध धर्म की शिक्षा का प्रमुख केंद्र था। 
  • यहाँ सातवीं सदी के मध्य में चीनी यात्रीह्वेनसांग  और अन्त में आईचिन आए थे। जिन्होंने इसकी तुलना बिहार के नालन्दा से की थी।
  • इत्सिंग के अनुसार, सभी देशों के विद्वान यहाँ एकत्रित होते थे तथा विविध सिद्धांतों पर शास्त्रार्थ करके उनकी सत्यता निर्धारित किया करते थे। 
  • ह्वेनसांग के अनुसार, यहाँ एक सौ बौद्ध विहार थे जिनमें लगभग 6000 हीनयानी भिक्षु निवास करते थे। 

 विक्रमशिला 

  • विक्रमशिला के महाविहार की स्थापना पाल नरेश धर्मपाल (770-810 ई.) ने करवाई थी। विक्रमशिला विश्वविद्यालय में छह महाविद्यालय थे। प्रत्येक में एक केंद्रीय कक्ष तथा 108 अध्यापक थे। केंद्रीय कक्ष को ‘विज्ञान भवन’ कहा जाता था। 
  • यहाँ के आचार्यों में दीपंकर एवं श्रीज्ञान का नाम सर्वाधिक उल्लेखनीय है। 
  • यहाँ के स्नातकों को अध्ययनोपरांत पाल शासकों द्वारा उपाधियाँ प्रदान की जाती थीं। स्नातकों को ‘पंडित’ की उपाधि दी जाती थी। महापंडित, उपाध्याय तथा आचार्य क्रमशः उच्चतर उपाधियाँ थीं। 
  • 1203 ई. में मुस्लिम आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने विक्रमशिला विश्वविद्यालय को ध्वस्त कर दिया तथा भिक्षुओं की सामूहिक हत्या की। 

पुष्पगिरी विश्वविद्यालय 

  • वर्तमान भारत के उड़ीसा में स्थित था।
  •  इसकी स्थापना तीसरी शताब्दी में कलिंग राजाओं ने की थी। 

ओदन्तपुर विश्वविद्यालय 

  • यह बिहार में नालन्दा से 10  किमी की दूरी पर स्थित है। 
  • पालनरेश धर्मपाल ने यहीं एक अत्यत भव्य विहार का निर्माण कराया था।

गणित

  • भारतीय अंकगणित के अंतर्गत अंक गणना का सर्वप्राचीन उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है।
  • गणित के क्षेत्र में प्राचीन भारतीयों ने तीन विशिष्ट योगदान किये-अंकन पद्धति, दाशमिक पद्धति और शून्य की खोज। 
  • बीजगणित में भारतीयों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। हड़प्पा में बनी ईंट की इमारतों से ज्ञात होता है कि पश्चिमोत्तर भारत में लोगों को मापन और ज्यामिति का अच्छा ज्ञान था। 
  • वैदिक साक्ष्यों में 1 के आगे 12 बार शून्य लगाने को ‘परार्द्ध‘ कहा गया है। 
  • रेखागणित संबंधी सिद्धांतों के प्रतिपादन तथा विकास का प्रधान श्रेय (बोधायन को ही दिया जाता है, जिसने वृत्त को वर्ग तथा वर्ग को वृत्त में बदलने का नियम प्रस्तुत किया। 
  • आर्यभट्ट ने त्रिभुज का क्षेत्रफल जानने का नियम निकाला, जिसके फलस्वरूप त्रिकोणमिति का जन्म हुआकोण के ज्या का सिद्धांत आर्यभट्ट की पुस्तक ‘सूर्यसिद्धांत’ में वर्णित है। 

खगोल विज्ञान 

  • खगोलशास्त्र के प्रसिद्ध विद्वान आर्यभट्ट पाँचवीं सदी में हुए। 
  • आर्यभट्ट ने बेबिलोनियाई विधि से ग्रहों की स्थिति की गणना की। 
  • उन्होंने चंद्रग्रहण एवं सूर्यग्रहण के कारणों का पता लगाया तथा बताया कि सूर्य स्थिर है और पृथ्वी घूमती है। 

ज्योतिष विद्या

  • छठी सदी के विद्वान वराहमिहिर फलित ज्योतिष के प्रणेता के रूप में स्मरणीय हैं। उन्होंने ‘पंचसिद्धांतिका‘, ‘बृहत्जातक‘, ‘बृहत्संहिता‘ तथा ‘लघुजातक‘ की रचना की। 
  • बृहत्संहिता में यवनों को ज्योतिष का जन्मदाता होने के कारण ऋषियों के समान पूज्य माना गया है। 

ज्योतिष से संबंधित पाँच सिद्धांत आगे चलकर (यूनानी प्रभाव के साथ) प्रचलित हुए 

  1. पितामह – सूर्य एवं चंद्रमा के संदर्भ में वर्णन
  2. वशिष्ठ – राशि एवं लग्नों के संदर्भ में 
  3. पोलिश – सूर्य तथा चंद्रग्रहण के संदर्भ में 
  4. रोमक – यूनानी सिद्धांतों की गणना
  5.  सूर्य – ज्योतिष के विभिन्न नियम एवं ग्रहण 

भौतिकशास्त्र 

  • आधुनिक भौतिक का सर्वप्रमुख सिद्धांत परमाणुवाद है। 
  •  भारत में परमाणुवाद(भौतिकशास्त्र ) के संस्थापक वैशेषिक दर्शन के प्रवर्तक महर्षि  कणाद् (ई.पू. छठी सदी) को माना जाता है, जिन्होंने भारत में भौतिकशास्त्र का आरंभ किया।

रसायनशास्त्र 

  • रसायनशास्त्र को प्राचीन काल में ‘रसविद्या’ अथवा ‘रसशास्त्र‘ के नाम से जाना जाता था।
  • बौद्ध दार्शनिक नागार्जुन को रसायन का नियामक माना गया है।पारा की खोज उनका महत्त्वपूर्ण आविष्कार था।

चिकित्साशास्त्र 

  • चिकित्साशास्त्र औषधियों का उल्लेख सर्वप्रथम अथर्ववेद में मिलता है। अथर्ववेद में आयुर्वेद का सिद्धांत तथा व्यवहार संबंधी बातें मिलती हैं। 
  • मुनि आत्रेय की आत्रेयसंहिता आयुर्वेद की प्रसिद्ध रचना है, जिसमें जल-चिकित्सा का वर्णन है।
  • ईसा की दूसरी सदी में आयुर्वेद के दो महान विद्वान हुए- सुश्रुत और चरक। चरक की ‘चरकसंहिताभारतीय चिकित्साशास्त्र का विश्वकोश है।

भारत के प्रमुख सूर्य मंदिर

 कोणार्क का सूर्य मंदिर (ब्लैक पैगोडा) 

  •  कोणार्क के सूर्य मंदिर (पूरी, ओडिशा) का निर्माण गंग वंश के शासक नरसिंह देव ने करवाया था। 
  • मंदिर स्थल को एक बारह जोड़ी चक्रों वाले, सात घोड़ों से खींचे जाते सूर्य देव के रथ के आकार में बनाया गया है। 
  • इस मंदिर को लाल बलुआ पत्थर एवं ग्रेनाइट पत्थर से निर्मित किया गया है। 
  • मंदिर अपनी कामुक मुद्राओं वाली शिल्पाकृतियों के लिये भी प्रसिद्ध है। इस प्रकार की आकृतियाँ मुख्यतः द्वारमंडप के द्वितीय स्तर पर मिलती हैं। 
  • कोणार्क के सूर्य मंदिर को 1984 में यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल किया गया। 

मोढेरा का सूर्य मंदिर 

  • मोढेरा का सूर्य मंदिर गुजरात के मोढेरा में स्थित है। 
  •  इसके निर्माण में हिंदू-ईरानी शैली का प्रयोग किया गया है। 
  • सोलंकी राजा भीमदेव ने इस मंदिर को बनवाया था। 
  • मोढेरा के इस सूर्य मंदिर को गुजरात का खजुराहो के नाम से भी जाना जाता है, 
  • इस विश्व प्रसिद्ध मंदिर की स्थापत्य कला की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि पूरे मंदिर के निर्माण में जुदाई के लिये कहीं भी चूने का प्रयोग नहीं हुआ है। 

मार्तण्ड सूर्य मंदिर 

  • मार्तण्ड सूर्य मंदिर जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग में स्थित है। 
  • यह मंदिर ललितादित्य मुक्तापीड द्वारा बनवाया गया था।

सूर्य नारायण स्वामी मंदिर, अरसवल्ली 

  • यह मंदिर आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम जिले में अवस्थित है। 
  • ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण 7वीं शताब्दी में कलिंग के राजा देवेंद्र वर्मा द्वारा करवाया गया था। 
  • मंदिर में भगवान सूर्य की मूर्ति के साथ तीन देवियों- उषा, छाया और पदमिनी की मूर्तियाँ भी देखने को मिलती हैं। भगवान सूर्य को रथ पर सवार दिखाया गया है। 

सूर्य पहर मंदिर (असम

  • यह मंदिर गुवाहाटी में गोलपारा के समीप सूर्य पहर नामक पर्वत पर स्थित है। 
  • यह प्राचीन मंदिर लगभग 12वीं सदी का है, जो पत्थरों को काटकर निर्मित किया गया हैं। 

दक्षिणार्क सूर्य मंदिर, गया (बिहार

  • यह प्राचीन सूर्य मंदिर बिहार राज्य के गया जिले में स्थित है। 
  • कछ विद्वान इस मंदिर के निर्माण की तिथि को  मौर्य युग से पूर्व का मानते हैं, तो कुछ इसे 13वीं सदी का मानते हैं। 

प्रमुख संवत्

  • प्राचीन भारतीय लेखों में उल्लिखित अधिकांश तिथियाँ किसी-न किसी संवत् से संबद्ध हैं। प्रमुख संवतों का उल्लेख निम्नवत् है

विक्रम संवत् 

  • विक्रम संवत् का आरंभ 57 ई.पू. में हुआ था। 
  • इतिहासकारों के एक समूह की मान्यता है कि विक्रम संवत् का आरंभ उज्जैन के शासक विक्रमादित्य द्वारा शकों पर विजय प्राप्त करने के बाद किया गया था, 
  • वहीं इतिहासकारों के दूसरे वर्ग के अनुसार इस संवत् का प्रारंभ ‘मालव गणराज्य’ द्वारा किया गया थो कालांतर में गुप्त सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य द्वारा मालवा विजय के पश्चात इसका नाम विक्रम संवत् रखा गया। 

शक संवत् /शालिवाहन संवत्

  • शक संवत् या शालिवाहन संवत् का आरंभ 78 ई. से माना जाता है।
  • पारम्परिक मान्यता के अनुसार यह माना जाता है कि इसका प्रचलन सम्राट कनिष्क ने शकों पर विजय प्राप्त करने के उपरांत किया था। 
  • भारत का वर्तमान राष्ट्रीय पंचांग (कैलेंडर) इसी संवत् पर आधारित है। 
  • 365 दिन के सामान्य वर्ष में शक संवत् में वर्ष का पहला दिन 1 चैत्र, ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार, प्रतिवर्ष 22 मार्च या अधिवर्ष में 21 मार्च को पड़ता है।

कलचुरि-चेदि संवत्

  • संभवतः इसकी शुरुआत 248-49 ई. के लगभग पश्चिमी भारत के आमीर नरेश ईश्वरसेन द्वारा की गई थी। 
  • मध्य प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश के कलचुरि शासकों द्वारा उनके लेखों में इसी संवत् का प्रयोग किया गया। 

गुप्त संवत् 

  • गुप्त संवत् की शुरुआत गुप्त वंश के शासक चंद्रगुप्त प्रथम ने 319 ई. में की थी। 

वल्लभी संवत्  

  • वल्लभी संवत् की जानकारी अलबरूनी के विवरण से मिलती है। 
  • वह लिखता है कि वल्लभ नामक राजा ने शक काल के 241 वर्ष बाद वल्लभी संवत् का प्रवर्तन किया था। 
  • इस प्रकार इसकी स्थापना तिथि 78 +241 = 319 ई. निकाली जाती है। यही तिथि गुप्त संवत् की भी है। अतः दोनों संवत् एक प्रतीत होते हैं। 

हर्ष संवत्

  • हर्ष संवत् का संबंध वर्धन वंश के शासक हर्षवर्धन से है। 
  • हर्ष के लेखकों द्वारा राज्यारोहण की तिथि 606 ई. बताई गई है। अतः संभवतः हर्ष संवत् का प्रारंभ इसी समय हुआ होगा।
  • हर्ष के लेखों, समकालीन उत्तरगुप्त राजाओं तथा नेपाल के लेखों में इस संवत् का प्रयोग पाया जाता है।

मंदिर निर्माण शैलियाँ

नागर शैली

  • कालखंड-7वीं से 13वीं शताब्दी तक
  • क्षेत्र विशेष-उत्तर भारत की शैली, हिमालय से लेकर विंध्य पर्वत के पहले तक

बेसर शैली

द्रविड़ शैली

  • कालखंड– 7वीं से 18वीं शताब्दी तक तीनों शैलियों में द्रविड़ ही सबसे ज्यादा दीर्घकालिक रही, क्योंकि यह मुस्लिम आक्रमण से बची रही।
  • क्षेत्र विशेष– सुदूर दक्षिण भारत की शैली- तमिलनाडु, केरल, दक्षिण आंध्र और दक्षिण कर्नाटक

द्रविड़ शैली के विभिन्न मंदिर

मंदिर

समय/शासन

कैलाशनाथ मंदिर

कांचीपुरम

 (तमिलनाडु)

8वीं शताब्दी, राजसिंह उप-शैली

बैकुंठ पेरूमल मंदिर

कांचीपुरम 

(तमिलनाडु)

8वीं शताब्दी, राजसिंह उप-शैली

मुक्तेश्वर मंदिर

कांचीपुरम 

(तमिलनाडु)

9वीं शताब्दी, नंदीवर्मन-अपराजित वर्मन शैली

मंगलेश्वर मंदिर

कांचीपुरम 

(तमिलनाडु)

9वीं शताब्दी, नंदीवर्मन-अपराजित वर्मन शैली

चोलेश्वरम् मंदिर

नामलाई 

(तमिलनाडु)

9वीं शताब्दी, विजयालय

नागेश्वर मंदिर 

कुंबकोनम 

(तमिलनाडु)

9वीं-10वीं शताब्दी, आदित्य-I 

तिरुवालेश्वर मंदिर

ब्रह्मदेशम, तीनवेल्ली ज़िला (वर्तमान तिरुनेलवेली)

10वीं-11वीं शताब्दी, राजराज-I 

राजराजेश्वर मंदिर

उर्फ बृहदेश्वर मंदिर

तंजौर 

(तमिलनाडु)

10वीं-11वीं शताब्दी, राजराज-I 

वैद्यनाथ मंदिर

तिरूचिरापल्ली (तमिलनाडु

10वीं-11वीं शताब्दी, राजराज-I 

उत्तर कैलाश मंदिर

तंजौर 

(तमिलनाडु)

10वीं-11वीं शताब्दी, राजराज-I 

शिव देवालय

पुलुन्नरूबा

 (श्रीलंका)

10वीं-11वीं शताब्दी, राजराज-I 

ऐरावतेश्वर मंदिर

दारासुरम 

(तमिलनाडु)

12वीं शताब्दी राजराज-II

त्रिभुवनेश्वर मंदिर या कंपहरेश्वर मंदिर

त्रभुवनम 

(तमिलनाडु)

12वीं-13वीं शताब्दी कुलोतुंग-III

वैष्णव मंदिर

नेल्लोर

 (आंध्र प्रदेश)

12वीं शताब्दी, बुक्का प्रथम

पंपावती का मंदिर

विजयनगर 

(कर्नाटक)

15वीं शताब्दी, देवराय-II.

पार्वती मंदिर

चिदंबरम 

(तमिलनाडु

15वीं शताब्दी, देवराय-II.

वरदराज पेरूमल मंदिर

कांचीपुरम

 (तमिलनाडु)

15वीं शताब्दी, देवराय-II

जलगढ़ेश्वर मंदिर

बेल्लूर 

(तमिलनाडु)

15वीं शताब्दी, देवराय-II

मीनाक्षी मंदिर

मदुरई 

(तमिलनाडु)

नायक वंश