बन बोनेक बाघिन कविता
तातल-हेमाल (कविता संग्रह ) का कवि – शिवनाथ प्रमाणिक
तोत्र कि कंगाल । न मन टा तोर कंगाल । बोनचंडिक रूप धरले काटाइ जिनगिक जंजाल तोञ कि कंगाल । न मन टा तोर कंगाल । खोइस आँचरा बाघिन बन आँइख के तरंगिनी कर नख – दात पाजाइकें उमकेक तरियानी कर फेर करत जबरानी ऊ हइ ओकोर मजाल तोत्र कि कंगाल । न मन टा तोर कंगाल । पइनखरिसेक कि दम चहटत नागिनेक पासे ढांइस देले भसम हवत जान उड़त आकासे । जनी सिकारेक भेउ जान री बीर जनी संथाल तोत्र कि कंगाला न मन टा तोर कंगाल तोत्र बोनेक हाथिन पीपरी से डेराहें ।
झार बोनेक बाघिन । सियार से पाराहें । हार्थे कांड धनुक घर भागतो ऊ कोन काल तोञ कि कंगाल । न मन टा तोर कंगाल । छाँदले खोइछाक से नाञ नारी इजइतेक भीख आँचरा तोर टानेवालाक हाथ मचोरे सीख । कइली – सीनगिक कथा सुन कि रंग काटे जाल तोञ कि कंगाल । न मन टा तोर कंगाल । न मन टा तोर कंगाल । नारी कयुँ निजौरी ना नाके नून कइस दिहीं नंगट , लम्मट , नरकट के नाके नथ नाइथ दिहीं । री बोनेक बीर बाला चरपट के चाम छाल तोञ कि कंगाल । न मन टा तोर कंगाल ।
3 : बन बोनेक बाघिन कविता
तातल-हेमाल (कविता संग्रह ) का कवि – शिवनाथ प्रमाणिक
भावार्थ – यह एक उत्प्रेरक, उदबोधन कविता है। कवि कहता है कि तुम झारखण्ड वासी कंगाल नहीं हो, कमजोर नहीं हो। तुम जंगल के शेर हो। तुम अपने इतिहास को भूल रहे हो अपनी महामानवीय सांस्कृतिक परम्परा को भूल रहे हो। यहां की नारियां किसी से कम नहीं है। सिनगी, कइली देइ, को याद करो। अपने आंचल को कमर में खोंसो और तैयार हो जाओ। अन्याय का प्रतिकार करो। आगे बढ़ो।
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