नागफनी कविता तातल-हेमाल (कविता संग्रह ) का कवि – शिवनाथ प्रमाणिक
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नागफनी कविता

तातल-हेमाल (कविता संग्रह ) का कवि – शिवनाथ प्रमाणिक 

नागफनी नागफनी पसइर गेला आदिक माड़ल ठावे कुल्ही – डाँड़ी , घरे – घाटें हरिहर बोने एकर जनम ठांव रहे मरूभूमें जहाँ सुधे बालू , सुधे बालू मुदा , कइसें पइरचल , पइरकल ई हरिहर बोने । आपन गात टा हरियर बनाइ बोनतुरियाक संगे मीता पाताई ई तो चाइरो बाट बाइढ़ गेला बोनतुरिया एकर खुनहरा रूप देख अबाका अब तो बारी – झारी खेते – किआरी आइते – जाइते , पोखइर घाटे एकर चोखाइल काँटा गोड़ें । काटियों देले फेर फुनगे सुखाइल परहू सिराइल परहूं कांटाक दरद मगजें । कहूं तो ई तलियाइ – तलेबरों भई गेल । झूरो – पातो नात्र फुनगे दिये लागल अब तो भातें धुरा दिये लागल चाइरो बाट साड़ा भेल डुगडुगी बाइज उठल गाँव मिटिंग – जुलुस हवे लागल जनी – मरइ सभे जागल बुझाहे एकर ढीपा – ढहान ई नागफेनिया पूँजिआइ गेल एकरां तो उज्जर करबथिन ऐ देख , देख । ककरो हाथे टंइगली फरसा – गाँइत – कोदाइर । जनी – मरद एक जुट हवे लागला । फेर कहूँ नागफेनिया मिलतइ नाञ

24 : नागफनी कविता

तातल-हेमाल (कविता संग्रह ) का कवि – शिवनाथ प्रमाणिक

भावार्थ : इस कविता में नागफनी (मरूस्थलीय पौंधा) बाहरी तत्वों का प्रतीक है। आज रत्नगर्भा ध रती झारखण्ड में चाय और नागफनी रूपी बाहरी तत्व पसर गये हैं। पता नहीं इस हरे भरे वन में यह मरूस्थलीय पौधा नागफनी किस भांति पसर गया है। जो भी है, झारखण्ड को इस कंटीले पौधे नागफनी से मुक्त करना ही होगा। लोग अब जाग गये हैं। इसके अवगुणों से परिचित हो गये हैं। लोगों ने अपने हाथों में टांगी, कुल्हाड़ी ने ले लिया है। अब नागफनी का मूलोच्छेद होकर रहेगा।

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