सुहरावर्दी सिलसिला
- सुहरावर्दी सिलसिले के संस्थापक -बगदाद के शेख शिहाबुद्दीन सुहरावर्दी
- भारत में सुहरावर्दी सिलसिले को लोकप्रिय बनाने का श्रेय शिहाबुद्दीन सुहरावर्दी के शिष्य बहाउद्दीन जकारिया को जाता है। इल्तुतमिश ने उन्हें ‘शेख-उल-इस्लाम’ की पदवी दी।
- सुहरावर्दी सिलसिले का मुख्यालय मुल्तान में था। इसके अलावा यह पंजाब व सिंध में भी लोकप्रिय था।
- सुहरावर्दी सिलसिले पर परंपरावादी रूढ़िवादी विचारों का अत्यधिक प्रभाव था। इस सिलसिले के संत चिश्ती सिलसिले के विपरीत शासक वर्ग से संबंध रखते थे तथा राजकीय पद और संरक्षण का लाभ उठाते हुए अत्यंत आराम से जीवन व्यतीत करते थे।
सुहरावर्दी सिलसिले के प्रमुख संतों
- शेख रुक्नुद्दीन, शेख सलाउद्दीन जमाली, मखदूमें जहाँनियाँ, सैय्यद जलालुद्दीन बुखारी , हमीमुद्दीन नागौरी(उपाधि-सुल्तान-ए-तारीकिन’ (सन्यासियों के सुल्तान))
सुहरावर्दी सिलसिले की शाखा
फिरदौसी
- जो पूर्वी भारत विशेषकर बिहार में लोकप्रिय हुई,
- फिरदौसी शाखा के संस्थापक सैफुद्दीन बखरजी ,वही भारत में इसके संस्थापक बदरुद्दीन समरकंदी है .
- इसके सबसे प्रमुख संत हज़रत शफुद्दीन याहया मनेरी थे।
- इनके पत्रों को ‘मक्तूबात’ के नाम से जाना जाता है।
चिश्ती सिलसिला और सुहरावर्दी सिलसिला में अंतर
- चिश्ती सिलसिले के संत सुल्तानों और अमीरों से मेल-मिलाप नहीं रखते थे, जबकि सुहरावर्दी संत सुल्तानों और अमीरों से मेल-मिलाप रखते थे।
- चिश्ती संतों को जो धन मिलता था, उसे वे लोगों में बाँट देते थे, जबकि सुहरावर्दी संत बहाउद्दीन जकारिया ने सब प्रकार से धन इकट्ठा किया।
- चिश्तियों के ‘जमातखाना’ में हर तरह के लोग आ सकते थे, वे सभी एक बड़े कमरे में बैठते थे। जबकि सुहरावर्दी सिलसिले के लोगों को अलग-अलग रहने का स्थान दिया जाता था। अमीर और साधारण लोगों को मिलने के लिये अलग-अलग समय दिया जाता था।