1857 का विद्रोह
झारखण्ड में 1857 के आंदोलन का प्रसार के कारण
- अंग्रेजों के प्रति क्षेत्रीय शासकों में अविश्वास की भावना
- झारखण्ड के जनजातियों में अंग्रेजी सरकार, जमींदार, साहूकार आदि के प्रति असंतोष
- अंग्रेज अधिकारियों में जनजातीय समस्याओं की समझ का अभाव तथा प्रशासनिक सुधारों की कमी
- अंग्रेज सरकार द्वारा आदिवासी क्षेत्रों का निर्वासन स्थल के रूप में प्रयोग
- बाबू कुंवर सिंह के नेतृत्व में बिहार में 1857 के विद्रोह से प्रेरणा
- झारखण्ड में 1857 के विद्रोह की शुरूआत – 12 जून, 1857 को , रोहिणी गाँव (देवघर) से,
- इमाम खाँ नामक व्यक्ति पहचाने गए हमलावरों पर मुकदमा चलाकर उन्हें फाँसी दी गयी
- रेजीमेंट का मुख्यालय रोहिणी से भागलपुर स्थानांतरित कर दिया गया।
- विद्रोह का प्रसार
हजारीबाग में विद्रोह का प्रसार
- 25 जुलाई, 1857 को दानापुर रेजिमेंट के सैनिकों ने भी विद्रोह कर दिया। इसकी सूचना पाकर हजारीबाग स्थित रामगढ़ बटालियन के सैनिक उत्साहित हो गए तथा 30 जुलाई, 1857 को इन्होनें भी विद्रोह कर दिया। इस विद्रोह के समय रामगढ़ बटालियन का मुख्यालय राँची में अवस्थित था।
- हजारीबाग में सैनिकों के विद्रोह के पश्चात् मेजर सिम्पसन (उपायुक्त) सहित विभिन्न अंग्रेज अधिकारी कलकत्ता भाग गए तथा विद्रोहियों ने अंग्रेज अधिकारियों के बंगलों व दफ्तरों को जलाकर सरकारी खजाने को लूट लिया।
- रामगढ़ के राजा शम्भू नारायण सिंह द्वारा तार के माध्यम से इस विद्रोह की सूचना गवर्नर जनरल लार्ड कैनिंग को भेजी गयी।
- विद्रोहियों ने जेल से कैदियों को भी छुड़ा लिया तथा संबलपुर के सुरेन्द्र शाही के नेतृत्व में ये कैदी राँची की ओर चले गये।
- राँची के कमिश्नर ने विद्रोह को दबाने हेतु लेफ्टिनेंट ग्राहम के नेतृत्व में सैनिकों के एक दल को रामगढ़ भेजा, परंतु रामगढ़ के जमादार माधव सिंह एवं डोरंडा के सूबेदार नादिर अली खाँ व सूबेदार जयमंगल पाण्डेय ने विद्रोह कर दिया जिसके बाद लेफ्टिनेंट ग्राहम अपनी जान बचाने हेतु भाग गया।
राँची में विद्रोह का प्रसार
- 2 अगस्त, 1857 को हजारीबाग के विद्रोही सैनिक राँची आ गये तथा जमादार माधव सिंह, सूबेदार नादिर अली व जयमंगल पाण्डेय के नेतृत्व में यहाँ के सैनिकों ने भी विद्रोह कर दिया। इन सैनिकों ने राँची में अधिकारियों की कोठियाँ जला दी, गोस्सनर चर्च को तोप के गोले से उड़ा दिया तथा जेल से कैदियों को छुड़ा लिया।
- विद्रोह के प्रसार को देखते हुए राँची के कमिश्नर डाल्टन की सलाह पर अगस्त में पूरे छोटानागपुर में मार्शल कानून लागू कर दिया गया।
- विद्रोहियों ने बढ़कागढ़ के नागवंशी ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव (विद्रोहियों के नेता) के नेतृत्व में डोरंडा स्थित अंग्रेज अधिकारियों के सभी बंगले व कचहरी को जला दिया तथा खजाना लूट लिया। साथ ही इन्होनें जेल से सभी कैदियों को भी छुड़ा लिया। इसमें पाण्डेय गणपत राय (विद्रोहियों के सेनापति), टिकैत उमरांव सिंह, शेख भिखारी, रामरूप सिंह, जगन्नाथ शाही तथा दुखु ने विद्रोहियों का भरपूर साथ दिया।
- विश्वनाथ शाहदेव (झारखण्ड में 1857 के विद्रोह के प्रेरक) ने मुक्तवाहिनी सेना की स्थापना की और इस सेना ने 1857 के विद्रोह में अविस्मरणीय योगदान दिया। विश्वनाथ शाहदेव के अतिरिक्त गणपत राय (सेनापति) व शेख भिखारी इस सेना के प्रमुख सैनिक थे।
- मुक्तवाहिनी सेना को 1857 के विद्रोह में बाबू कुंवर सिंह का मार्गदर्शन प्राप्त था जो बिहार में 1857 के विद्रोह को नेतृत्व प्रदान कर रहे थे।
चतरा में विद्रोह का प्रसार
- राँची के बाद विद्रोही चतरा पहुँच गए जहाँ 2 अक्टूबर, 1857 को मेजर इंग्लिश, मेजर सिम्पसन, लेफ्टिनेंट अर्ल, सार्जेट डाइनन आदि के नेतृत्व वाले अंग्रेज सैनिकों व जयमंगल पाण्डेय के नेतृत्व वाले विद्रोहियों के बीच चतरा का ऐतिहासिक युद्ध हुआ। इस लड़ाई में सूबेदार नादिर अली खाँ घायल हो गए तथा जमादार माधव सिंह भाग गया। अंग्रेजों ने जमादार माधव सिंह पर 1,000 रुपये इनाम की घोषणा की।
- 3 अक्टूबर, 1857 को सूबेदार नादिर अली खाँ व जयमंगल पाण्डेय को गिरफ्तार कर लिया गया तथा कमिश्नर सिम्पसन के आदेश पर 4 अक्टूबर को उन्हें चतरा के ‘पंसीहारी तालाब’ के निकट आम के पेड़ से लटकाकर फाँसी दे दी गयी।
- विद्रोहियों के नेता ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव एवं सेनापति पाण्डेय गणपत राय भागकर लोहरदगा के जंगलों में छिप गए तथा वहीं से अंग्रेजी सरकार के विरूद्ध छापामार युद्ध करते रहे।
- रांची का कमिश्नर डाल्टन ओरमांझी के 12 गाँवों के जमींदार उमराव सिंह एवं उसके दीवान शेख भिखारी का गिरफ्तार कर राँची ले आया तथा 8 जनवरी, 1858 को टैगोर हिल के पास इन्हें फाँसी दे दी। इस फाँसी स्थल को ‘टुंगरी फाँसी’ के नाम से जाना जाता है।
- बाद में विश्वनाथ दुबे तथा महेश नारायण शाही नामक व्यक्तियों की गद्दारी से कैप्टन ओक्स ने कैप्टन नेशन के साथ मिलकर विद्रोह के प्रमुख नेता विश्वनाथ शाहदेव एवं गणपत राय को गिरफ्तार कर लिया।
- 16 अप्रैल 1858 को विश्वनाथ शाहदेव और 21 अप्रैल 1858 को गणपत राय को राँची जिला स्कूल के मुख्य द्वार के समीप कदम्ब के पेड़ पर छोटानागपुर के आयुक्त कमिश्नर डाल्टन के आदेशानुसार फाँसी दे दी गई।
मानभूम में विद्रोह का प्रसार
- 5 अगस्त, 1857 ई. को सैनिकों ने पुरूलिया में भी विद्रोह कर दिया जिससे घबराकर उपायुक्त जी. एन. ओकस समेत कई अंग्रेज अधिकारी रानीगंज भाग गये। इसके बाद विद्रोहियों ने पूरे जिले पर कब्जा कर भारी लूटपाट मचाया व कैदियों को जेल से छुड़ा कर राँची की ओर जाने लगे।
- मानभूम के संथाल भी इस विद्रोह में शामिल हो गये तथा आसपास के गाँवों में लूटपाट करने लगे। पुरुलिया के असिस्टेंट कमिश्नर ओक्स को सितंबर में वापस लौटने पर इसकी जानकारी मिली।
- ओक्स ने विद्रोहियों को नियंत्रित करने हेतु पंचेत के राजा नीलमणि सिंह से मदद मांगी। परंतु नीलमणि सिंह सरकार की मदद करने के बजाय संथालों को ही भड़काने लगा।
- ओक्स ने कैप्टेन माउंट गोमरी के नेतृत्व में सैनिकों का एक दल संथालों को नियंत्रित करने हेतु भेजा तथा संथालों पर कार्रवाई के बाद अक्टूबर तक पुरूलिया में शांति स्थापित हो गयी।
- पुलिस कार्रवाई के बाद संथाल विद्रोही मानभूम से हजारीबाग की ओर चले गये। इसी बीच नवंबर में राजा नीलमणि सिंह को अंग्रेजों ने गिरफ्तार करके अलीपुर जेल भेज दिया जिसके बाद मानभूम में विद्रोह समाप्त हो गया।
सिंहभूम में विद्रोह का प्रसार
- सिंहभूम में यह विद्रोह भगवान सिंह एवं रामनाथ सिंह ने प्रारंभ किया गया, परंतु संपूर्ण सिंहभूम क्षेत्र में क्रांतिकारियों का नेतृत्व राजा अर्जुन सिंह ने किया।
- 3 सितंबर, 1857 को चाईबासा के सैनिकों ने भगवान सिंह एवं रामनाथ सिंह के नेतृत्व में विद्रोह करके सरकारी खजाने को लूट लिया तथा कैदियों को जेल से छुड़ा लिया।
- सिंहभूम का असिस्टेंट कमिश्नर मेजर शिशमोर विद्रोह के प्रारंभ होने से पूर्व ही अंग्रेज समर्थक सरायकेला नरेश चक्रधर सिंह को चाईबासा का दायित्व सौंपकर कलकत्ता भाग गया।
- लूटपाट करने के बाद विद्रोही राँची की ओर रवाना हो गये, परंतु संजय नदी के पास सरायकेला नरेश चक्रधर सिंह एवं खरसावां नरेश हरि सिंह ने विद्रोहियों को रोक दिया।
- इस स्थिति में अंग्रेज विरोधी पोरहाट नरेश अर्जुन सिंह ने विद्रोहियों की सहायता करने का निर्णय लिया तथा अपने दीवान जग्गू की सहायता से विद्रोहियों को 7 सितंबर, 1857 को संजय नदी पार करवाया।
- अर्जुन सिंह के प्रति विद्रोहियों के मन में शंका थी जिसके बाद अर्जुन सिंह द्वारा पौरी देवी को साक्षी मानकर विश्वासघात नहीं करने की कसम खाने पर विद्रोहियों ने अर्जुन सिंह को नेतृत्व सौंपना स्वीकार कर लिया।
- 13 सितंबर, 1857 को आर. सी. बर्च ने सिंहभूम के नये जिलाधीश के रूप में कार्यभार संभाला तथा 16 सितंबर, 1857 को कैप्टन ओक्स की सेना ने चाईबासा शहर पर अधिकार कर लिया।
- आर. सी. बर्च ने अर्जुन सिंह को चाईबासा आकर आत्मसमर्पण करने का संदेश भेजा जिसे अस्वीकृत करते हुए अर्जुन सिंह ने स्वयं को ‘सिंहभूम का राजा’ घोषित कर दिया। बर्च द्वारा अर्जुन सिंह को बागी करार देते हुए उसके राज्य पर कब्जा करने तथा उसकी गिरफ्तारी पर 1,000 रुपये इनाम की घोषणा की गयी।
- अर्जुन सिंह राँची के कमिश्नर डाल्टन के समक्ष आत्मसमर्पण करना स्वीकार करते हुए अपने समर्थकों के साथ राँची आ गया। परंतु 17 अक्टूबर, 1857 को अर्जुन सिंह के साथ राँची पहुँचे विद्रोहियों को कमिश्नर डाल्टन के आदेशानुसार गिरफ्तार करके जेल में बंद कर दिया गया।
- इन गिरफ्तार सैनिकों पर कोर्ट मार्शल चलाकर उनकी सजा तय की गयी तथा 20 अक्टूबर, 1857 को ‘शहीद चौक’ के पास फांसी की सजा प्राप्त विद्रोहियों को फांसी पर लटका दिया गया।
- अर्जुन सिंह विद्रोहियों की फांसी से अत्यंत दुखी हो गया तथा पोरहाट आकर फिर से अंग्रेजों के विरूद्ध अभियान प्रारंभ कर दिया।
- 20 नवंबर, 1857 को अंग्रेज अधिकारी कैप्टन हेल ने चक्रधरपुर पर कब्जा कर लिया तथा अर्जुन सिंह के दीवान जग्गू को गिरफ्तार कर उसी दिन फांसी पर लटका दिया।
- 21 नवंबर, 1857 को आर. सी. बर्च ने पोरहाट पर कब्जा करके राजा अर्जुन सिंह के महल को जला दिया। परंतु अर्जुन सिंह यहाँ से बचकर भाग गया।
- अर्जुन सिंह ने अंग्रेजों के विरूद्ध अपना अभियान तेज कर दिया। उसने पहले मुण्डा-मानकी को तथा दिसंबर, 1857 तक लगभग सभी-जनजातियों को अपने साथ विद्रोह में शामिल कर लिया।
- इसके बाद विद्रोहियों ने जमकर उत्पात मचाना शुरू कर दिया तथा आसपास के बाजारों को लूटने के अलावा अंग्रेजी सैनिकों पर हमला करने लगे। विद्रोहियों के ऐसे ही एक हमले में कई अंग्रेज अधिकारी घायल हो गये जिसके बाद कर्नल फास्टर ने विद्रोहियों को दबाने हेतु शेखावती बटालियन को रानीगंज से चाईबासा भेजा।
- 17 जनवरी, 1858 को चाईबासा पहुँचने पर शेखावती बटालियन ने चक्रधरपुर को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया तथा कई विद्रोहियों को मार दिया।
- अंग्रेजों के दमनपूर्वक किए गए कार्रवाई से विद्रोह को कमजोर पड़ गया। लगभग एक वर्ष तक विद्रोह को शांत देख अर्जुन सिंह ने मयूरभंज के राजा (अर्जुन सिंह के ससुर) की सलाह पर राँची के कमिश्नर डाल्टन के समक्ष 16 फरवरी, 1859 को आत्मसमर्पण कर दिया।
पलामू में विद्रोह का प्रसार
- भोगता जनजाति के नीलांबर-पीतांबर (दोनों भाई थे) ने पलामू क्षेत्र में 1857 के विद्रोह को नेतृत्व प्रदान किया।
- इन्होनें चेरो, खरवार तथा भोगता को एकत्र कर सैन्य दल का गठन किया तथा स्वयं को स्वतंत्र शासक के रूप में घोषित कर दिया।
- चकला के भवानी बख्श राय के नेतृत्व में 26 सितंबर, 1857 को चेरो जनजाति के लोग इस विद्रोह में शामिल हो गये।
- विद्रोहियों ने 21 अक्टूबर, 1857 ई. को शाहपुर पर धावा बोल दिया तथा अंतिम चेरो राजा चूड़ामन राय की विधवा से चार तो छीन कर ले गये।
- विद्रोहियों ने इस विद्रोह के दौरान शाहपुर थाना एवं लेस्लीगंज थाना के साथ-साथ चैनपुर गढ़ पर भी भीषण हमला किया परंतु चैनपुर गढ़ का रघुवर दयाल सिंह इस हमले से बचने में सफल रहा।
- विद्रोह की खबर मिलने पर 5 नवंबर, 1857 लेफ्टिनेंट ग्राहम एक सैन्य दल के साथ लेस्लीगंज तथा 7 नवंबर 1857 को चैनपुर पहुँचा। परन्तु विद्रोहियों द्वारा घेरे जाने के बाद ग्राहम वहाँ से जान बचाकर भाग गया।
- विद्रोहियों ने इसके बाद रंकागढ़ एवं 27 नवंबर, 1857 को बंगाल कोल कंपनी के राजहरा कोयला खान पर धावा बोल दिया।
- विद्रोहियों का प्रभाव बढ़ने पर लेफ्टिनेंट ग्राहम की सहायता के लिए 8 दिसंबर, 1857 को मेजर काटर के नेतृत्व में एक सैन्य दल को सासाराम से शाहपुर भेजा गया जहां मेजर काटर ने एक विद्रोही नेता देवी बाणा राय को गिरफ्तार कर लिया।
- राँची के कमिश्नर डाल्टन के आदेश पर ले. ग्राहम की सहायता हेतु एक सैन्य टुकड़ी के साथ मेजर मेकडोनेल पलामू पहुंचा जिसके परिणामस्वरूप विद्रोहियों को पलामू किला से भागना पड़ा।
- 3 फरवरी, 1858 को कमिश्नर डाल्टन खुद पलामू आया तथा 6 फरवरी, 1858 को वापस लौटा। डाल्टन के आदेश पर विभिन्न स्थानों (पलामू किला. लेस्लीगंज. हरणामांड गाँव बाघमारा घाट आदि) से विद्रोहियों को खदेड़ने पर जोर दिया गया।
- नवंबर, 1858 में सीधा सिंह और राम बहादुर सिंह के नेतृत्व में विद्रोहियों की संख्या 1000 से अधिक हो गया जिसके बाद विद्रोहियों ने पलामू पर पुनः नियंत्रण स्थापित करने का प्रयास किया।
- जनवरी, 1859 तक विद्रोहियों ने पुनः पलामू पर नियंत्रण स्थापित करने में सफलता प्राप्त कर ली । इसके लिए विद्रोहियों ने गुरिल्ला युद्ध का प्रयोग किया।
- लेफ्टिनेंट की सहायता के लिए जनवरी, 1859 में कैप्टेन नेशन को भेजा गया जिसके बाद विद्रोहियों के खिलाफ कठोरता से कार्रवाई प्रारंभ की गयी तथा इसमें चेरो जागीरदारों का भी सहयोग लिया गया। इसके परिणामस्वरूप भोगता प्रदेश से नीलांबर-पीतांबर को भागना पड़ा।
- चेरो जागीरदारों द्वारा अंग्रेजों का साथ देने के कारण भोगता कमजोर पड़ने लगे जिसका फायदा उठाकर अंग्रेजों ने नीलांबर-पीतांबर को पकड़ने का भरपूर प्रयास किया। साथ ही इनको पकड़वाने पर जागीर व इनाम देने की भी घोषणा की गयी।
- अंग्रेजों ने एक गुप्तचर की सूचना पर नीलांबर-पीतांबर को एक गुप्त स्थान पर भोजन करते समय चारों ओर से घेर लिया तथा उन्हें आत्मसमर्पण हेतु विवश कर दिया।
- 28 मार्च, 1859 को नीलांबर-पीतांबर को लेस्लीगंज (पलामू) में एक आम के पेड़ पर फाँसी दे दी गई।
अन्य तथ्य
- 1857 के विद्रोह के दौरान नागवंशी राजा जगन्नाथ शाहदेव, पाण्डेय गणपत राय को पकड़वाने वाले विश्वनाथ दुबे तथा नारायण शाही, जगतपाल सिंह (पिठोरिया), जनक सिंह, शिवचरण राय (नावागढ़), कुंवर भिखारी सिंह (मनिका) आदि प्रमुख थे।
- अंग्रेजों की सहायता हेतु ‘रायबहादुर’ की उपाधि प्रदान की गयी।
- किशनु दयाल सिंह (रंका)
- रघुवर दयाल सिंह (चैनपुर) को
- अंग्रेजी सेना में शामिल कुछ भारतीय सैनिकों को उनकी सेवा हेतु ‘ऑर्डर ऑफ मेरिट’ दिया गया।
- चतरा की लड़ाई में शामिल
- सूबेदार शेख पंचकौड़ी
- हवलदार आरजू
- नायक तारा
- चतरा की लड़ाई में शामिल
- ‘विक्टोरिया क्रॉस’ से सम्मानित
- लफ्टिनेंट डौंट
- सार्जेन्ट डाइनन (मरणोपरांत)
- सैन्य व्यवस्था में परिवर्तन करते हुए छोटानागपुर के कोल, संथाल आदि लोगों को सेना में शामिल किया गया।
- रामगढ़ बटालियन में गोरखा एवं सिक्खों के साथ-साथ दुसाधों की भी भर्ती की जाने लगी।
झारखण्ड में वहाबी आंदोलन
- झारखण्ड में वहाबी आंदोलन का प्रसार – शाह मोहम्मद हुसैन ने
- राजमहल में वहाबी आंदोलन की शाखा खोली गयी थी।
- संथाल परगना क्षेत्र में पीर हुसैन ने वहाबी आंदोलन का प्रचार-प्रसार किया।
- पाकुड़ क्षेत्र के इब्राहिम मंडल को वहाबी आंदोलन के दौरान आजीवन कारावास की सजा दी गयी थी।
झारखण्ड में उग्र राष्ट्रीयता का प्रसार
देवघर
- उग्र राष्ट्रवाद के दौर में झारखण्ड में क्रांतिकारी गतिविधियों का प्रमुख केन्द्र – देवघर
- देवघर में ‘शीलेर बाड़ी’ मकान में 1908 के अलीपुर बम कांड से जुड़े कई बंगाली क्रांतिकारी छुपकर रहते थे
- इस मकान का प्रयोग बन बनाने एवं प्रशिक्षण हेतु किया जाता था।
- 1915 ई. में देवघर के ‘शीलेर बाड़ी’ नामक मकान से बम बनाने की सामग्रियां प्राप्त की गयी थी।
- वारीन्द्र कुमार घोष द्वारा देवघर में स्वर्ण संघ (गोल्डन लीग) का गठन किया गया था।
- देवघर में स्थित मित्रा उच्च विद्यालय के प्राचार्य शांति कुमार बख्शी द्वारा युवाओं को क्रांतिकारी प्रशिक्षण प्रदान किया जाता था।
- वर्ष 1927 ई. में देवघर षड़यंत्र केस में वीरेन्द्र नाथ भट्टाचार्य के घर छापा मारकर हथियार तथा क्रांतिकारी साहित्य बरामद किया गया था।
- देवघर षड्यंत्र केस में 20 व्यक्तियों की गिरफ्तारी
- वीरेन्द्र नाथ भट्टाचार्य, सुरेन्द्र नाथ भट्टाचार्य तथा तेजेश चंद्र घोष आदि
- देवघर षड्यंत्र केस में 20 व्यक्तियों की गिरफ्तारी
- दुमका के प्रभुदयाल हिम्मद सिंह एवं बैद्यनाथ विश्वास को ‘रोड्डा आर्म्स केस’ में अभियुक्त बनाया गया था।
- यह कलकत्ता के रोड्डा एंड कंपनी नामक बंदूक निर्माण कंपनी की दुकान से माउजर पिस्तौल की चोरी से संबंधित मामला था।
राँची
- राँची में क्रांतिकारियों का नेतृत्व – गणेश चंद्र घोष ने
- हावड़ा के बेलूर मठ के शचिन्द्र कुमार सेन डोरंडा आकर अपने पिता के पास ठहरे थे।
- नवंबर 1913 में हेमंत कुमार बोस (अंग्रेजों के संदिग्ध) राँची आकर पी. एन. बोस के घर रूके थे।
हजारीबाग
- निर्मल बनर्जी ने 1913 ई. में हजारीबाग जिले के गिरिडीह नगर में एक खंभे पर ‘आवर स्वाधीन भारत’ शीर्षक से परचे चिपकाए थे।
- ये पर्चे चौबीस परगना के क्रिस्टो राय बंगाल से लेकर आये थे।
- गिरिडीह के मनोरंजन गुहा (उपनाम – ठाकुर दा) तथा दुमका के हेमेन्द्र नाथ घोष द्वारा क्रांतिकारियों को आर्थिक सहायता उपलब्ध कराया जाता था।
- राम विनोद सिंह को ‘हजारीबाग का जतिन बाघा’ कहा जाता है।
- हजारीबाग के संत कोलंबा महाविद्यालय के छात्र
- राम विनोद सिंह को 14 सितंबर, 1918 को गिरफ्तार किया गया था
- जिसके खिलाफ हजारीबाग में छात्रों द्वारा प्रदर्शन किया गया था।
सिंहभूम
- ढाका, मैमनसिंह तथा कलकत्ता से कई क्रांतिकारी आकर सिंहभूम के जमशेदपुर एवं चाईबासा में छुपते थे तथा क्रांति का गुप्त प्रचार करते थे।
- 1908 ई. में टाटा कंपनी के कर्मचारी गिरीन्द्र नाथ मुखर्जी ने न्यूयॉर्क से घोषणा की थी कि ‘रक्तरंजित क्रांति से ही भारत को मुक्त किया जा सकता है।’ इनके भाई अमरनाथ मुखर्जी भी क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल थे।
- क्रांतिकारी आंदोलन में शामिल दुर्गादास बनर्जी, सुरेंद्र कुमार राय आदि का संबंध टाटा कंपनी से है।
- सुधांशु भूषण मुखर्जी अप्रैल, 1916 में अलीपुर जेल से रिहा होने के बाद सिंहभूम के सोनुआ ग्राम में रहने लगे तथा बाद में हजारीबाग चले गये।
- आनंद कमल चक्रवर्ती ने चाईबासा से प्रकाशित ‘तरूण शक्ति’ नामक क्रांतिकारी पत्रिका का संपादन किया था। इस पत्रिका में ब्रिटिश सरकार के विरूद्ध लिखने हेतु उन्हें गिरफ्तार भी किया गया था।
अन्य तथ्य
- काकोरी कांड के मुख्य आरोपी अशफाक उल्ला खाँ, कलकत्ता के प्रफुल्ल चंद्र घोष व ज्योति पंत राय जैसे क्रांतिकारियों ने भी कुछ दिनों तक छुपने हेतु झारखण्ड में शरण ली थी।
- छोटानागपुर क्षेत्र डॉ. यदुगोपाल मुखर्जी एवं बसावन सिंह के नेतृत्व में 1931-32 के आसपास भी क्रांतिकारी आंदोलन संचालित था।
- बिहार के गया में राजनैतिक डकैती के मामले में गिरफ्तार 18 क्रांतिकारियों में डाल्टनगंज के परमथ नाथ मुखर्जी तथा गणेश प्रसाद वर्मा भी शामिल थे।
गाँधी युग
गाँधीजी का झारखण्ड आगमन (1917-1940 के बीच)
- महात्मा गाँधी 1917 से 1940 के बीच विभिन्न कारणों से कई बार झारखण्ड की यात्रा पर आए। इनमें से गाँधीजी की झारखण्ड की प्रथम 4 यात्राओं का संबंध चंपारण आंदोलन से है।
- गाँधीजी पहली बार 3 जून, 1917 को झारखण्ड आए थे। गाँधीजी अंतिम बार रामगढ़ के कांग्रेस अधिवेशन के सिलसिले में झारखण्ड आए थे।
चंपारण आंदोलन के सिलसिले में (पहली बार)
- महात्मा गाँधी को 29 मई, 1917 को सरकार की तरफ से एक पत्र मिला जिसमें उन्हें 4 जून को बिहार-ओडिशा के तत्कालीन लेफ्टिनेंट गवर्नर एडवर्ड अल्बर्ट गेट से मिलने हेतु आग्रह किया गया था। इसके अतिरिक्त श्याम कृष्ण सहाय ने भी 1917 में गाँधी जी को राँची आने का निमंत्रण दिया था।
- इन्हीं संदर्भों में 3 जून, 1917 को ब्रजकिशोर बाबू के साथ पहली बार महात्मा गाँधी का राँची आगमन हुआ। इस दौरान गाँधीजी श्याम कृष्ण सहाय के घर पर ही रुके। 4 जून को महात्मा गाँधी की पत्नी कस्तूरबा गाँधी तथा उनके पुत्र देवदास गाँधी भी राँची आए।
- 4 जून से 6 जून तक तीन दिन बिहार के लेफ्टिनेंट गवर्नर अल्बर्ट गेट से उनकी वार्ता चली तथा 7 जून को वे पटना लौट गए। इस दौरान गांधीजी श्यामकृष्ण सहाय के घर पर रूके थे।
चंपारण आंदोलन के सिलसिले में (दूसरी बार )
- गाँधीजी 5 जुलाई को मोतिहारी से चलकर 7 जुलाई को दूसरी बार राँची पहुंचे। इस यात्रा का उद्देश्य 11 जुलाई, 1917 को चंपारण जांच समिति की एक बैठक में भाग लेना था। बैठक संपन्न होने के बाद गाँधीजी 13 जुलाई को पुनः मोतिहारी लौट गए।
चंपारण आंदोलन के सिलसिले में (तीसरी बार)
- 18 सितंबर को पूना से चलकर 22 सितंबर, 1917 को चंपारण आंदोलन के सिलसिले में पुनः राँची पहुंचे। उन्होनें ब्रजकिशोर प्रसाद को भी राँची बुला लिया। इस संदर्भ में 23 सितंबर को राँची के पते से मगनलाल गांधी को लिखा एक पत्र भी मिला है। 24 सितंबर, 1917 को राँची में चंपारण समिति की बैठक आयोजित की गयी जिसमें आंदोलन को लेकर काफी विचार-विमर्श किया गया।
- गांधीजी 24 सितंबर से 28 सितंबर, 1917 तक चंपारण जांच समिति की बैठक में शामिल हुए जिसमें चंपारण आंदोलन की रूपरेखा तैयार की गयी।
- 3 अक्टूबर, 1917 को गांधीजी ने सरकार को चुनौती देते हुए अपनी एक रिपोर्ट पर हस्ताक्षर किया तथा 4 अक्टूबर, 1917 को गांधीजी चंपारण हेतु निकल गए।
चंपारण आंदोलन के सिलसिले में (चौथी बार)
- असहयोग आंदोलन (1920-21) के दौरान महात्मा गाँधी 1920 में राँची आए थे। इस दौरान वे भीमराज बंशीधर मोदी धर्मशाला में रुके थे। गांधीजी की उपस्थिति में ही इसी धर्मशाला के बाहर विदेशी कपड़ों की होली जलाई गयी थी। इस दौरान गाँधीजी टाना भगतों से भी मिले जिसके बाद टाना भगत गाँधीजी के प्रिय शिष्य बन गए।
गाँधीजी का पाँचवी बार झारखण्ड आगमन
- गाँधीजी 5 फरवरी, 1921 में पहली बार धनबाद आए तथा यहाँ से झरिया गए। गाँधीजी के इस दौरे का उद्देश्य राष्ट्रीय विद्यालय हेतु कोष एकत्रित करना था। झरिया में कार्यक्रम समाप्त होने के बाद गाँधीजी पटना लौट गए।
गाँधीजी का छठी बार झारखण्ड आगमन
- 8 अगस्त, 1925 गाँधीजी सी. एफ. एण्डूज के आग्रह पर गाँधीजी पहली बार जमशेदपुर आए। गाँधीजी की इस यात्रा का उद्देश्य टाटा प्रबंधन एवं मजदूर यूनियन के बीच 1921 से चल रहे हड़ताल के कारण उत्पन्न तनाव के मामले में समझौता कराना था।
- जमशेदपुर में आर. डी. टाटा ने गाँधीजी का भव्य स्वागत किया तथा इस प्रवास के दौरान गाँधीजी डायरेक्टर्स बंगला में रुके।
- इसी दौरान जमशेदपुर की एक सभा में देशबंधु स्मृति कोष हेतु गाँधीजी को 5000 रुपये प्रदान किए गए।
- गाँधीजी 1934 में दूसरी बार तथा 1940 में तीसरी बार जमशेदपुर आए थे।
गाँधीजी का सातवीं बार झारखण्ड आगमन
- 15 सितंबर, 1925 को गाँधीजी पहली बार पुरूलिया से चक्रधरपुर आए तथा यहाँ राष्ट्रीय विद्यालय में जाकर छात्रों को संबोधित किया (1934 में दूसरी बार चक्रधरपुर की यात्रा की)।
- चक्रधरपुर से चाईबासा व खूंटी होते हुए गांधीजी 16 सितंबर, 1925 को राँची पहुंच गए। राँची जाने के क्रम में गाँधीजी चाईबासा में हो आदिवासियों से तथा खूंटी में मुण्डाओं से बातचीत की।
- गाँधीजी ने राँची में 17 सितंबर, 1925 को संत पॉल स्कूल में एक सभा को संबोधित किया। इस सभा में गाँधीजी को देशबंधु स्मारक कोष हेतु 1,000 रुपये की थैली भेंट मिली। इस सभा के बाद गाँधीजी योगदा सत्संग ब्रह्मचर्य विद्यालय भी गए (1 मई, 1934 को दूसरी बार योगदा सत्संग विद्यालय आए थे)।
गाँधीजी से टाना भगतों की मुलाकात व प्रभाव
- 1925 के राँची दौरे के समय गाँधीजी से मिलने बड़ी संख्या में झारखण्ड के विभिन्न क्षेत्रों से टाना भगत राँची आए।
- गाँधीजी के विचारों से ही प्रभावित होकर टाना भगतों ने अहिंसा का व्रत लेकर आजादी के आंदोलन में भागीदारी की थी। टाना भगतों ने अंग्रेजों को जमीन का लगान देना बंद कर दिया था जिसके बाद इनकी जमीनें नीलाम कर दी गयी।
- टाना भगत गाँधी टोपी पहनते थे तथा हाथ में घंटा लेकर आजादी का प्रचार करते थे।
- टाना भगतों ने कांग्रेस के कई अधिवेशनों (रामगढ़ सहित) में भाग लिया था।
- नमक आंदोलन के दौरान नमक नहीं बना पाने के कारण इन्होनें नमक खाना ही छोड़ दिया था।
- 1928 ई. में कोलकाता में आयोजित कांग्रेस अधिवेशन में टाना भगत एक सप्ताह की पैदल यात्रा करके कोलकाता पहुँचे थे (कारण- अंग्रेजों ने इनके कोलकाता जाने पर पाबंदी लगा दी थी)। लेकिन यहाँ डेलिगेट व्यवस्था के कारण गाँधीजी से मिलने में असफल हो गए।
- इसके बाद इन्होंने एक उपाय निकाला और जोर-जोर से ‘गाँधीजी की जय, भारत माता की जय, वंदे मातरम्’ जैसे नारे लगाने लगे। इन्हें विश्वास था कि गाँधीजी इनकी आवाज सुनकर इनसे जरूर मिलेंगे।
- कुछ लोगों द्वारा इस प्रकार नारे लगाने की सूचना गाँधीजी को दी गयी जिसके बाद गाँधीजी ने इनके लिए नि:शुल्क पास भेजकर टाना भगतों को अधिवेशन में शामिल कराया।
- राँची के बाद गाँधीजी रामगढ़ होते हुए 18 सितंबर, 1925 को हजारीबाग पहुँचे तथा यहाँ कर्जन ग्राउंड (वर्तमान नाम- वीर कुंवर सिंह स्टेडियम) में एक सभा को संबोधित किया। सभा में गाँधीजी को 1,300 रुपये की एक थैली भेंट की गयी।
- 19 सितंबर, 1925 को गाँधीजी ने हजारीबाग के संत कोलंबा महाविद्यालय में छात्रों को संबोधित किया।
- हजारीबाग में कार्यक्रम की समाप्ति के बाद गाँधीजी ट्रेन से पटना के लिए रवाना होगा। ट्रेन से पटना जाने के क्रम में ट्रेन जब कोडरमा स्टेशन पर रुकी तो हजारों लोगों की भीड़ गांधीजी के दर्शनार्थ खडी थी। यहाँ होरिल राम नामक एक व्यक्ति ने गाँधीजी को देशबंधु स्मारक कोष हेतु 350 रुपये की एक थैली भेंट की।
गाँधीजी का आठवीं बार झारखण्ड आगमन
- 3 अक्टूबर, 1925 को भागलपुर से बांका होते हुए पहली बार देवघर की यात्रा पर आए। यहाँ गाँधीजी का भव्य स्वागत किया गया। गाँधीजी इस यात्रा के दौरान देवघर में सेठ गोवर्धनदास के मकान में रुके थे। इस दौरे में गाँधीजी कुछ समय के लिए नौलखा मंदिर के पास स्थित कोलकाता व्यवसायी हरगोविंद डालमिया के मकान में भी रहे।
- कोलकाता उच्च न्यायालय के सॉलिसिटर कृष्ण कुमार दत्ता के आमंत्रण पर गाँधीजी देवघर के रिखिया गाँव में भी गए। (रिखिया गाँव में स्वामी सत्यानंद सरस्वती जी द्वारा निर्मित आश्रम भी है।)
- 7 अक्टूबर, 1925 को देवघर से खड़गडीहा जाते समय गाँधीजी गिरिडीह भी पहुंचे थे। यहाँ गाँधीजी ने एक सार्वजनिक सभा तथा महिलाओं की एक सभा को संबोधित किया।
- 8 अक्टूबर, 1925 को गाँधीजी गिरिडीह से मधुपुर पहुंचे। यहाँ रेलवे स्टेशन के पास ही गाँधीजी का भव्य स्वागत किया गया। मधुपुर में गाँधीजी चंपा कोठी में ठहरे थे। यहाँ गाँधीजी ने मधुपुर नगरपालिका के नये भवन का उद्घाटन भी किया (पुराने भवन का उद्घाटन 1909 में हुआ था)। इस भवन के दरवाजे पर चांदी का ताला लगा था जिसे गाँधीजी ने चाँदी की चाबी से खोला।
- 1925 की अपनी देवघर यात्रा के बारे में लिखते हुए गाँधीजी ने ‘यंग इण्डिया’ में देवघर के पंडों और देवघर की परंपरा की तारीफ की। गाँधीजी के अनुसार “अन्य मंदिरों के विपरीत यहां छुआछूत नहीं माना जाता है तथा मंदिर सबके लिए खुले हैं।”
गाँधीजी का नवीं बार झारखण्ड आगमन
- 11 जनवरी, 1927 को गाँधीजी ने डाल्टनगंज (मेदिनीनगर) की यात्रा की। वे डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के साथ काशी से रेलगाड़ी द्वारा यहां आए थे। यहाँ शिवाजी मैदान में एक विशाल जनसभा का आयोजन किया गया। इस सभा के बाद गाँधीजी मारवाड़ी सार्वजनिक पुस्तकालय भी गए। यहां के लोगों ने गाँधीजी को 525 रुपये एकत्र करके दिया। डाल्टनगंज के दौरे के बाद गाँधीजी धनबाद व झरिया के लिए रवाना हो गए।
- डाल्टनगंज की सभा के बाद गाँधीजी 12 जनवरी, 1927 को दूसरी बार धनबाद पहुँचे। यहाँ पहुँच कर उन्होनें खादी की दुकानों पर जाकर खादी की बिक्री का जायजा लिया। 12 जनवरी, 1927 को ही शाम में झरिया में आयोजित एक सभा को संबोधित करते हुए गाँधीजी ने खादी की कम बिक्री पर निराशा जाहिर की।
- 13 जनवरी, 1927 को गाँधीजी कतरास आ गए। यहाँ एक विशाल पंडाल में गाँधीजी की सभा का आयोजन किया गया। इसके अलावा गाँधीजी ने यहाँ महिलाओं की एक सभा को भी संबोधित किया।
गाँधीजी का दसवीं बार झारखण्ड आगमन
- 1934 में गाँधीजी ने छोटानागपुर का बड़ा व लंबा दौरा किया। 26 अप्रैल, 1934 को गाँधीजी दूसरी बार देवघर आए। यहाँ जसीडीह स्टेशन पहुँचने पर ही गाँधीजी की कार पर कुछ लोगों ने हमला कर दिया। इसमें कार के शीशे टूट गए परंतु गाँधीजी को स्वयंसेवकों ने बचा लिया। गाँधीजी पर इस हमले की पूरे देश में कड़ी निंदा की गयी।
- 28 अप्रैल, 1934 को गाँधीजी ने गोमिया के करमाटांड़ गाँव के गोबीटांड़ मैदान में एक सभा की। इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में संथाल आदिवासी गांधीजी को सुनने आए थे। इस सभा के आयोजन में होपन मांझी का प्रमुख योगदान था। सभा के बाद गाँधीजी होपन मांझी के घर भी गए। होपन माझी को 23 अगस्त, 1930 को 2,000 रूपया जुर्माना नहीं चुकाने के बाद हजारीबाग जेल में एक वर्ष कारावास की सजा दी गयी थी। परंतु हजारीबाग के उपायुक्त की अनुशंसा पर उसे सजा से पूर्व ही रिहा कर दिया गया था।
- गोमिया की सभा के बाद गाँधीजी ने 28 अप्रैल, 1934 को ही बेरमो में एक सभा एवं महिलाओं की एक बैठक को भी संबोधित किया। यहाँ से गाँधीजी कतरासगढ़ होते हुए झरिया चले गए। यहाँ गाँधीजी ने एक सभा को संबोधित किया तथा हरिजन कल्याण कोष हेतु लोगों से सहयोग मांगा। रात्रि में गाँधीजी ने झरिया में ही विश्राम किया।
- 29 अप्रैल, 1934 को गाँधीजी ने जामाडोबा कोलियरी में टाटा कोलियरी वर्कर्स एवं हरिजन वर्कर्स को संबोधित किया तथा पुरुलिया व झालदा होते हुए राँची आए। इसी यात्रा के दौरान 1 मई, 1934 को गाँधीजी दूसरी बार राँची स्थित योगदा सत्संग ब्रह्मचर्य विद्यालय भी गये।
- 1 मई को गाँधीजी ने स्वराजवादी नेताओं के साथ बैठक किया। इस बैठक में चक्रवर्ती राजगोपालाचारी, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, अरुणा आसफ अली, सरोजिनी नायडू, भूलाभाई देसाई, जमनालाल बजाज आदि ने भाग लिया।
- 3 मई, 1934 को गाँधीजी ने राँची में हरिजन छात्र संघ को संबोधित किया।
- 4 मई, 1934 को गाँधीजी राँची से कार द्वारा चक्रधरपुर होते हुए जमशेदपुर (उद्देश्य – हरिजन आंदोलन) के लिए रवाना हो गये। लेकिन इस यात्रा के दौरान चक्रधरपुर के पास गाँधीजी की कार दुर्घटनाग्रस्त हो गयी जिसमें वे बाल-बाल बच गए।
- इस दुर्घटना के बावजूद गाँधीजी ने 4 मई, 1934 को चक्रधरपुर जाकर रेलवे कर्मचारियों की एक सभा एवं महिलाओं की एक सभा को संबोधित किया।
गांधी जी का ग्यारहवीं बार झारखण्ड आगमन
- गाँधीजी 1940 ई. में कांग्रेस के रामगढ़ अधिवेशन में भाग लेने हेतु झारखण्ड आए। वे 12 मार्च, 1940 को सेवाग्राम से चलकर 14 मार्च को रामगढ़ पहुँचे। 14 मार्च को रामगढ़ में उन्होनें खादी प्रदर्शनी का उद्घाटन किया।
- रामगढ़ अधिवेशन के बीच में ही 19 मार्च को गाँधीजी कार द्वारा राँची आए तथा यहाँ ठक्कर भवन और हरिजनों-आदिवासियों के लिए एक औद्योगिक गृह का उद्घाटन किया।
- गांधीजी इस दौरान राँची के निवारणपुर में अस्वस्थ निवारण बाबू से मिलने भी गये। यहाँ गाँधीजी ने एक जनसभा को भी संबोधित किया। शाम में गाँधीजी पुनः रामगढ़ लौट गए।
- रामगढ़ अधिवेशन की समाप्ति पर गाँधीजी 21 मार्च, 1940 को जमशेदपुर चले गए। इस दौरान जमशेदपुर में वे जहाँगीर मोदी के घर पर रुके थे। जमशेदपुर से गाँधीजी वर्धा के लिए रवाना हो गए। यह उनकी अंतिम झारखण्ड यात्रा थी।
- नोट- महात्मा गांधी की विभिन्न झारखण्ड यात्राओं से संबंधित तथ्यों एवं विवरण हेतु अनुज कुमार सिन्हा की पुस्तक ‘महात्मा गाँधी की झारखण्ड यात्रा’, महात्मा गाँधी के विभिन्न पत्र, समाचार पत्र एवं सरकारी दस्तावेजों का स्रोत के रूप में उपयोग किया गया है।
रॉलेट एक्ट का विरोध (1919)
- ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों द्वारा सरकार विरोधी गतिविधियों पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से सिडनी रॉलेट रिपोर्ट के आधार पर एक कानून पारित किया जिसका पूरे देश भर में व्यापक विरोध किया गया।
- झारखण्ड में इस कानून का विरोध किया। राँची में बारेश्वर सहाय एवं गुलाब तिवारी ने इस कानून के विरोध में सत्याग्रह का नेतृत्व किया।
- 6 अप्रैल, 1919 को पलामू के जिला स्कूल के शिक्षक रामदीन पाण्डेय ने 6 छात्रों के साथ उपवास भी रखा।
झारखण्ड में कांग्रेस कमिटी की स्थापना (1919-20)
- 1919 ई. में पलामू में जिला कांग्रेस कमिटी की स्थापना बिन्देश्वरी पाठक और भागवत पाण्डेय ने की थी।
- 1920 ई. में राँची तथा हजारीबाग में कांग्रेस कमिटी का गठन किया गया।
असहयोग आंदोलन (1920-22 )
- अहिंसक आंदोलन का प्रस्ताव पारित : 1920 में कलकत्ता में कांग्रेस के विशेष अधिवेशन में
- नेतृत्व – गाँधी जी को सौंपा गया।
- झारखण्ड में भी असहयोग आंदोलन प्रारंभ -1920 में
- असहयोग आंदोलन के समय गाँधी जी पुनः झारखण्ड आये।
- मोतीलाल नेहरू, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, मजहरूल हक आदि प्रमुख राष्ट्रीय नेताओं ने भी झारखण्ड की यात्रा की ।
- 1921 में इस आंदोलन में टाना/ताना भगतों ने भी उल्लेखनीय योगदान दिया ।
- ताना भगतों ने ब्रिटिश सरकार को कर देना बंद कर दिया, उनकी जमीनें नीलाम कर दी गयी।
- पहाड़िया जनजाति ने भी इस आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।
- इनका नेतृत्व जबरा पहाड़िया ने किया ।
- जाबरा पहाडिया को गिरफ्तार कर उन्हें सश्रम कारावास की सजा दी गयी
- उनके घर को कुर्क कर दिया गया।
- इस आंदोलन के दौरान राष्ट्रीय विद्यालय खोला गया – राँची, चतरा, गिरिडीह, धनबाद, पलामू व लोहरदगा में
- झारखण्ड में असहयोग आंदोलन का केन्द्र – राँची था।
- अन्य भागों में भी – पलामू, हजारीबाग, सिंहभूम आदि
राँची
- असहयोग आंदोलन के दौरान राँची एवं इसके आसपास के क्षेत्रों में कई सार्वजनिक सभाओं का आयोजन किया गया। इस आंदोलन में आदिवासियों ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।
- 1921 में राँची में आयोजित वार्षिक पिंजरापोल समारोह में भोलानाथ बर्मन, अब्दुर रज्जाक, पद्मराज जैन आदि ने भाषण दिया।
- इस आंदोलन के दौरान राँची एवं लोहरदगा में राष्ट्रीय विद्यालय की स्थापना की गयी।
पलामू
- पलामू के आदिवासी नेता धनी सिंह खरवार के नेतृत्व में इस आंदोलन के दौरान जंगलों को काटकर कपास की खेती शुरू की गयी (ऐसा करने को 1920 के कलकत्ता अधिवेशन में गांधी जी ने कहा था) तथा धनी सिंह खरवार को पलामू का राजा घोषित कर दिया गया।
- धनी सिंह खरवार के नेतृत्व में आदिवासियों का एक विशाल जुलूस डाल्टनगंज पहुंचा जिसे लाठी चार्ज करके खदेड़ दिया गया।
- इसी दौरान बिहार स्टूडेंट कांफ्रेंस का 15वाँ अधिवेशन 10 अक्टूबर, 1920 ई. को सी. एफ.एंड्रयूज की अध्यक्षता में डाल्टनगंज में संपन्न हुआ। इस अधिवेशन में मजहरूल हक, अब्दुल बारी, जी. इमाम, हसर आरजू, चंद्रवंशी सहाय एवं कृष्ण प्रसन्न सेन आदि ने भाग लिया।
- इसी आंदोलन के दौरान पलामू कांग्रेस ने डाल्टनगंज में राष्ट्रीय विद्यालय खोला जिसका प्रधानाध्यापक बिन्देश्वरी पाठक को बनाया गया।
- इस आंदोलन के दौरान पलामू में शेख साहब ने अपनी वकालत छोड़ दी थी।
हजारीबाग
- इस आंदोलन के दौरान हजारीबाग में कई छात्रों ने अपनी पढ़ाई तथा राम नारायण सिंह के साथ-साथ कई वकीलों ने अपनी वकालत छोड़ दी।
- हजारीबाग में आंदोलन के व्यापक होने पर आंदोलन के नेता बजरंग सहाय, कृष्ण बल्लभ सहाय, शालिग्राम सिंह, त्रिवेणी प्रसाद एवं सरस्वती देवी को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया।
- बिहार स्टूडेंट कॉन्फ्रेंस का 16वां अधिवेशन 5-6 अक्टूबर, 1921 को हजारीबाग में सरला देवी की अध्यक्षता में हुआ। इस कॉन्फ्रेंस को बजरंग सहाय, कृष्ण बल्लभ सहाय, राम नारायण सिंह आदि ने संबोधित किया।
सिंहभूम
- इस आंदोलन के दौरान सिंहभूम के चक्रधरपुर में राष्ट्रीय विद्यालय की स्थापना की गयी।
- जमशेदपुर के गोलमुरी मैदान में 5-9 फरवरी के बीच कई सार्वजनिक सभाओं का आयोजन किया गया। इन सभाओं की अध्यक्षता बी. जी. साठे (5 फरवरी), प्रभास चंद्र मित्र (6 फरवरी), के. के भट्ट (8 फरवरी) तथा अब्दुल गनी (9 फरवरी) ने की।
- इसी दौरान 8 मार्च को जमशेदपुर के गोलमुरी मैदान में एवं 13 मार्च को चाईबासा में जनसभा का आयोजन किया गया।
- 15 मार्च, 1921 को पूरे जमशेदपुर में हड़ताल का आयोजन किया गया।
- जून, 1921 में मजरूल हक का आगमन चक्रधरपुर में हुआ।
अन्य तथ्य
- गिरिडीह में असहयोग आंदोलन को नेतृत्व – पचम्बा के बाबू बजरंग सहाय ने
- असहयोग आंदोलन के दौरान साहेबगंज को अशांत क्षेत्र घोषित – जनवरी, 1922 में
- “देशेर कथा’ की रचना – सखाराम गणेश देउस्कर द्वारा की गयी थी।
- ‘तिलक स्वराज कोष’ हेतु धन एकत्र – कांग्रेस के गया अधिवेशन (37 वाँ अधिवेशन) से लौटकर राँची के पी. सी. मित्रा एवं देवकी प्रसाद ने
- ‘राष्ट्रीय सप्ताह’ के रूप में मनाया गया – 6 अप्रैल से 13 अप्रैल, 1923 के बीच
- 1 मई से 18 अगस्त, 1923 के बीच राष्ट्रीय ध्वज की रक्षा हेतु आयोजित नागपुर झंडा सत्याग्रह में झारखण्ड के टाना भगतों ने भी भाग लिया।
स्वराज पार्टी
- झारखण्ड के छोटानागपुर क्षेत्र में राम नारायण सिंह एवं देवकी प्रसाद सिन्हा के नेतृत्व में स्वराज पार्टी की प्रचार समितियों का गठन किया गया था।
- 1923 ई. में हुए विधान परिषद् के चुनाव में कृष्ण बल्लभ सहाय को हजारीबाग में स्वराज पार्टी का प्रतिनिधि चुना गया।
- कृष्ण वल्लभ सहाय को बिहार प्रांतीय स्वराज पार्टी में सचिव का पद प्रदान किया गया।
- सोनार सिंह खरवार को संथाल परगना क्षेत्र में स्वराज पार्टी का कार्यभार दिया गया।
- 1923 ई. में रामेश्वर लाल को दक्षिणी संथाल परगना में स्वराज पार्टी का प्रतिनिधि चुना गया।
खादी आंदोलन
- झारखण्ड क्षेत्र से विधायक नीलकांत चटर्जी ने 1924 ई. में बिहार विधान परिषद् में खादी से संबंधित एक प्रस्ताव रखा था।
- सिंहभूम के आदिवासियों ने 1924 ई. में विष्णु माहुरी के नेतृत्व में हाट कर न देने हेतु आंदोलन चलाया था।
- झारखण्ड में विभिन्न स्थानों पर चरखा आंदोलन को प्रसारित करने हेतु सरला देवी के नेतृत्व में खादी डिपो की स्थापना की गयी।
- अखिल भारतीय खादी बोर्ड के अध्यक्ष जमनालाल बजाज ने देवघर में खादी मेला का शुभारंभ किया था।
- जमशेदपुर में टम्पल नामक अंग्रेज द्वारा खादी प्रदर्शनी का उद्घाटन किया गया था।
साइमन कमीशन
- साइमन कमीशन 1928 ई. में झारखण्ड आया था।
- 1928 में श्याम कृष्ण सहाय की अध्यक्षता में एक सभा का आयोजन किया गया जिसमें साइमन कमीशन के विरोध का प्रस्ताव पारित किया गया था।
- राँची में साइमन कमीशन का मजबूती के साथ विरोध किया गया था। श्याम कृष्ण सहाय के नेतृत्व में राँची में ‘साइमन कमीशन वापस जाओ’ के नारे लगाए गए थे।
- पलामू निवासी कोहड़ा पाण्डेय के नेतृत्व में भी राँची में साइमन कमीशन का व्यापक विरोध किया गया था।
- हजारीबाग में देवकी नंदन लाल एवं पी. सी. मित्रा के नेतृत्व में लोगों ने काला झंडा दिखाकर साइमन कमीशन का विरोध किया था।
- 1928 ई. में छोटानागपुर उन्नति समाज द्वारा छोटानागपुर राज्य के गठन हेतु साइमन कमीशन को मांग पत्र सौंपा गया था।
मजदूर आंदोलन
- राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान समय-समय पर मजदूरों द्वारा भी अपनी दयनीय स्थिति से बाहर निकलने तथा स्वतंत्रता प्राप्ति हेतु व्यापक स्तर पर प्रयास किया गया जिसकी झलक झारखण्ड राज्य में भी दृष्टिगत होती है।
- इस क्रम में 1920 ई. में जमशेदपुर वर्कर्स एसोसिएशन की स्थापना की गयी जिसे एस. एन. हलधर तथा व्योमेश चक्रवर्ती ने नेतृत्व प्रदान किया।
- वर्ष 1920-22, 1925 तथा 1928 में टाटा आयरन एण्ड स्टील वर्कर्स तथा अन्य कई मिलों में व्यापक हड़ताल किया गया।
- 1928 ई. की टाटा आयरन एण्ड स्टील वर्कर्स की हड़ताल को समाप्त कराने में सुभाष चंद्र बोस का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उन्होनें मजदूरों तथा मिल प्रबंधक के बीच समझौता कराने में अग्रणी भूमिका अदा की।
- 18 अगस्त, 1928 को सुभाष चंद्र बोस का जमशेदपुर आगमन हुआ तथा 20 अगस्त, 1928 को उन्हें जमशेदपुर/ टाटा लेबर एसोसिएशन का अध्यक्ष चुना गया। वे 9 वर्षों तक इस यूनियन के अध्यक्ष पद पर रहे।
- सुभाष चंद्र बोस के प्रयास से ही 12 सितंबर को टाटा यूनियन के मजदूरों ने अपनी हड़ताल वापस ली तथा कंपनी के प्रबंधक और मजदूरों के बीच समझौता संभव हो पाया।
- वर्ष 1929 में जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में झरिया में भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस का अधिवेशन आयोजित किया गया।
- 1929 ई. में जमशेदपुर स्थित गोलमुरी के एक टिन प्लेट कंपनी के मजदूरों ने हड़ताल की थी। यह हड़ताल 1938 ई. में समाप्त हुयी।
- 1929 ई. में जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में झरिया में ‘भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस’ का अधिवेशन आयोजित किया गया था।
- 1938 ई. में अब्दुल बारी सिद्दीकी द्वारा ‘टाटा वर्कर्स यूनियन’ (टाटा वर्कर्स एसोसिएशन – 1920) की स्थापना की गयी थी।
सविनय अवज्ञा आंदोलन
- गाँधी जी ने प्रसिद्ध दांडी यात्रा से 12 मार्च, 1930 को सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ किया। इस क्रम में गाँधी जी अपने अनुयायियों के साथ साबरमती आश्रम से दांडी गाँव पहुंचे। 6 अप्रैल, 1930 को दांडी में सांकेतिक रूप से नमक कानून भंग किया गया।
- 26 जनवरी, 1930 को कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन (1929) में पारित पूर्ण स्वाधीनता प्रस्ताव के आलोक में पूरे देश में स्वाधीनता दिवस मनाया गया। झारखण्ड में भी पूरे उल्लास के साथ स्वाधीनता दिवस का आयोजन किया गया।
- झारखण्ड के लोगों ने सविनय अवज्ञा आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।
- गांधीजी द्वारा 6 अप्रैल, 1930 को प्रारंभ नमक आंदोलन में भी झारखण्ड के लोगों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया तथा 13 अप्रैल, 1930 झारखण्ड के लगभग 50 स्थानों पर नमक बनाया गया।
- झारखण्ड में सविनय अवज्ञा आंदोलन का प्रमुख केन्द्र राँची था। लेकिन राज्य के अन्य भागों में भी (हजारीबाग, पलामू, सिंहभूम, संथाल परगना आदि) में इस दौरान लोगों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।
राँची
- राँची में तरुण संघ द्वारा स्वाधीनता दिवस का आयोजन किया गया।
- 26 जनवरी, 1930 को डॉ. पूर्णचंद्र मित्रा ने राँची में स्वाधीनता दिवस मनाने के अवसर पर राष्ट्रीय ध्वज फहराया था। इस कार्यक्रम का आयोजन तरूण संघ नामक संगठन द्वारा किया गया था।
- इस आंदोलन के दौरान राँची व उसके आसपास के क्षेत्रों में कई सार्वजनिक सभाओं का आयोजन किया गया
- 8 अप्रैल, 1930 को चुटिया में नागरमल मोदी की अध्यक्षता में एक सभा का आयोजन किया गया जिसे पी. सी. मित्रा व देवकी नंदन लाल समेत कई व्यक्तियों ने संबोधित किया।
- 10 अप्रैल, 1930 को राँची में 1000 से अधिक लोगों की तथा हिनू में 100 बंगाली महिलाओं की सभा का आयोजन किया गया।
- 15 अप्रैल, 1930 को जिला स्कूल के छात्राओं ने विद्यालय का बहिष्कार किया तथा 16 अप्रैल, 1930 को बुंडू में पूर्ण हड़ताल का आयोजन किया गया।
- 17 अप्रैल, 1930 को सिल्ली में तथा 18 अप्रैल, 1930 को कुंडु में एक सार्वजनिक सभा का आयोजन किया गया। कुंडू की सभा में सरस्वती देवी एवं मीरा देवी ने भाषण भी दिया।
- 3 मई, 1930 को राँची बार एसोसिएशन की एक बैठक आयोजित की गयी जिसमें विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार एवं खादी के उपयोग का प्रस्ताव पारित किया गया।
- 4 मई, 1930 को मांडर में महादेव स्वर्णकार ने गिरफ्तारी दी तथा 12 मई, 1930 को पी. सी. मित्रा. नागरमल मोदी व देवकी नंदन लाल और 31 मई, 1930 को रवीन्द्र चंद्र व रामधनी दूबे को गिरफ्तार किया गया।
- 2 जून, 1930 को लगभग 40 टाना भगतों ने राँची में एक जुलूस निकाला जिसके बाद 8 टाना भगतों को गिरफ्तार कर लिया गया।
- ब्रिटिश हुकूमत से अपनी बातें मनवाने के लिए जगह-जगह पर व्यापक हड़ताल एवं प्रदर्शनों का आयोजन किया गया जिसके तहत ‘स्वदेशी सप्ताह’ (सितंबर, 1930) में तथा ‘जवाहर सप्ताह’ (नवंबर, 1930 में) मनाया गया।
- सविनय अवज्ञा आंदोलन का दूसरा चरण प्रारंभ होने के बाद 3 मार्च, 1932 को राँची के तरूण संघ नामक संगठन पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
- 27 जुलाई, 1932 को नागरमल मोदी, बुलु साहू व ख्वाजा नसीरुद्दीन को गिरफ्तार कर लिया गया।
- सविनय अवज्ञा आंदोलन के दूसरे चरण के दौरान भी महात्मा गाँधी राँची आए थे।
हजारीबाग
- हजारीबाग में भी सविनय अवज्ञा आंदोलन में लोगों ने पूरे उत्साह के साथ सहभागिता दर्ज की थी।
- 26 जनवरी, 1930 को हजारीबाग में लाठी चार्ज होने के बावजूद कृष्ण बल्लभ सहाय ने कचहरी पर झंडा फहराया था।
- झारखण्ड के कृष्ण बल्लभ सहाय ने भी हजारीबाग में खजांची तालाब के निकट नमक बनाकर इस आंदोलन को प्रसारित किया जिसके लिए उन्हें एक वर्ष के कारावास की सजा मिली।
- हजारीबाग में नमक सत्याग्रह में सीताराम दुबे, चक्र सिंह, मथुरा प्रसाद, सरस्वती देवी, मीरा देवी आदि ने भाग लिया। सरस्वती देवी हजारीबाग जिला कांग्रेस कमिटी की अध्यक्षा थीं।
- सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान कई पुरुषों के साथ-साथ सरस्वती देवी, मीरा देवी एवं साधना देवी को गिरफ्तार कर लिया गया। सितंबर, 1930 के तक हजारीबाग के 137 लोगों को गिरफ्तार किया गया था।
- बंगम माड़े (बंगम मांझी) के नेतृत्व में हजारीबाग में संथालों ने सविनय अवज्ञा आंदोलन में अपनी सहभागिता दर्ज की।
- आंदोलन के प्रचार-प्रसार के लिए हजारीबाग जेल में बंद रामवृक्ष बेनीपुरी ने ‘कैदी’ नामक हस्तलिखित पत्रिका निकाली।
- इसी क्रम में महामाया प्रसाद सिन्हा तथा भवानी दयाल सन्यासी ने भी हजारीबाग जेल में रहकर ‘कारागार’ नामक हस्तलिखित पत्रिका निकाली।
- इस आंदोलन के दौरान डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने हजारीबाग केंद्रीय कारागार में सूत कातकर कपड़ा तैयार किया था।
सिंहभूम
- नमक सत्याग्रह का नेतृत्व जमशेदपुर में ननी गोपाल मुखर्जी तथा पलामू में सोनार सिंह खरवार व चंद्रिका प्रसाद वर्मा ने किया।
- इस आंदोलन के दौरान सिंहभूम के आदिवासियों ने हाट कर देना बंद कर दिया।
- सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान 6 अगस्त, 1930 को चक्रधरपुर में कांग्रेसियों ने जंगल काटकर सरकार के प्रति अपना विरोध प्रकट किया। इसे जंगल सत्याग्रह के नाम से जाना जाता है। इसका नेतृत्व हरिसिंह हरिहर महतो तथा लालबाबू कर रहे थे। इन्हें सरकार ने गिरफ्तार कर लिया।
- 16 नवंबर को जमशेदपुर के गोलमुरी मैदान में झंडा फहराकर ‘जवाहर दिवस’ मनाया गया। इस कार्यक्रम के दौरान अंग्रेजों ने लाठीचार्ज कर दिया तथा कई लोगों को गिरफ्तार कर लिया।
- 19 नवंबर, 1930 को गोलमुरी में 3000 लोगों की एक सार्वजनिक सभा का आयोजन किया गया जिसमें सरकार के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पारित किया गया।
- भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरु को दी गयी फांसी के विरोध में 5 मार्च, 1931 को जमशेदपुर में हड़ताल किया गया।
- सविनय अवज्ञा आंदोलन के दूसरे चरण के शुरू होने के बाद महात्मा गाँधी व अन्य नेताओं की गिरफ्तारी के विरोध में 5 जनवरी, 1932 को गोलमुरी में एक सभा का आयोजन किया गया। इस सभा में 500 से अधिक महिला-पुरुषों ने भाग लिया। सभा की समाप्ति के बाद कई नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया।
- 24 जनवरी, 1930 को जी. महंती के घर से स्वाधीनता दिवस से संबंधित एक परचा मिलने के बाद 4 लोगों के साथ उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
- 26 जनवरी, 1930 को लोगों ने गोलमुरी मैदान में झंडा फहराने का प्रयास किया। पुलिस ने लाठीचार्ज किया तथा कई लोगों को गिरफ्तार कर लिया।
पलामू
- पलामू में चंद्रिका प्रसाद वर्मा एवं सोनार सिंह खरवार ने नमक सत्याग्रह का नेतृत्व किया। इस आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी की गिरफ्तारी की खबर मिलने पर डाल्टनगंज एवं गढ़वा में 8 मई, 1930 को तथा लातेहार में 11 मई, 1930 को लोगों ने हड़ताल की।
- डाल्टनगंज में कांग्रेस का दफ्तर बंद करवाने में सरकार की मदद करने हेतु भोला नाथ सिंह नामक व्यक्ति को सरकार द्वारा ‘रायबहादुर’ की उपाधि दी गयी।
- यदुवंश सहाय के नेतृत्व में सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान झारखण्ड में संपूर्ण किसान आंदोलन चलाया गया। (स्वामी सहजानन्द सरस्वती ने संथाल परगना क्षेत्र में किसानों की दशा सुधारने के लिए आंदोलन चलाया। वे 1938 में संथाल परगना आए थे।)
संथाल परगना
- सविनय अवज्ञा आंदोलन में राष्ट्रीय स्तर पर महिलाओं ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। इसी क्रम में संथाल परगना में शैलबाला राय के नेतृत्व में महिलाओं ने इस आंदोलन में अपनी उपस्थिति दर्ज करायी।
- संथाल परगना के कांग्रेसी नेता शशि भूषण राय को इस आंदोलन के सिलसिले में मुंगेर जाने के बाद वहाँ गिरफ्तार कर लिया गया।
अन्य तथ्य
- इस आंदोलन के दौरान झारखण्ड में चौकीदारी कर न देने हेतु आंदोलन चलाया गया, जिसका नेतृत्व निम्न लोगों ने किया
- जे. एल साव
- मथुरा सिह
- सीता राम दुबे
- सरस्वती देवी
- महादेव पाण्डेय
- चमन लाल
1935-39 के बीच झारखण्ड में प्रमुख गतिविधियाँ
- 1935 में पारित भारत शासन अधिनियम के अंतर्गत गवर्नरों को जनजातीय क्षेत्रों में बेहतर शासन प्रबंधन हेतु अधिक अधिकार प्रदान किये गये।
- 1936 ई. में उड़ीसा को बिहार-उड़ीसा संयुक्त प्रांत से अलग कर दिया गया तथा इसमें छोटानागपुर के कुछ हिस्से (जैसे – गांगपुर क्षेत्र आदि) को भी मिलाया गया।
- भारत शासन अधिनियम, 1935 के तहत जनवरी, 1937 में झारखण्ड में स्थित क्षेत्रीय विधायिका हेतु चुनाव कराये गये। इसमें आदिवासियों हेतु 6 सीट सुरक्षित थे। इस चुनाव में कांग्रेस, छोटानागपुर उन्नति समाज एवं किसान सभा ने भाग लिया, परंतु कांग्रेस के उम्मीदवारों की ही जीत हुई।
- इन चुनावों में इग्नेस बेक, बोनिफेस लकड़ा तथा देवेन्द्र प्रसाद सामंता (तीनों आदिवासी) को सामान्य सीटों पर विजय प्राप्त हुयी। इग्नेस बेक दिल्ली की संघीय विधायिका के जबकि बोनिफेस लकड़ा पटना की प्रांतीय विधानसभा के सदस्य बने।
- 30 मई, 1938 को रांची में छोटानागपुर उन्नति समाज की वार्षिक बैठक आयोजित हुयी, जिसमें छोटानागपुर उन्नति समाज के अलावा किसान सभा, छोटानागपुर कैथोलिक सभा, मुण्डा सभा एवं हो-मालतो मारंग सभा का एकीकरण करके छोटानागपुर-संथाल परगना आदिवासी सभा का गठन किया गया। 1939 में इस संगठन का नाम परिवर्तित करके छोटानागपुर आदिवासी सभा कर दिया गया। इस संस्था का गठन दिकुओं के खिलाफ संघर्ष करने तथा आदिवासियों के लिए पृथक राज्य की स्थापना के उद्देश्य के साथ किया गया था।
- 1939 ई. में गांगपुर क्षेत्र (1936 में इसे छोटानागपुर से उड़ीसा में शामिल कर लिया गया था) में भू-बंदोबस्त कानून व मालगुजारी बढ़ाने के खिलाफ निर्मल मुण्डा नामक आदिवासी के नेतृत्व में आंदोलन शुरू हो गया।
- निर्मल मुण्डा के नेतृत्व में 25 अप्रैल, 1939 को उड़ीसा के सुंदरगढ़ जिले के रायबोगा थानान्तर्गत आमको-सिमको गांव में आदिवासियों की एक विशाल जनसभा आयोजित की गयी। गांगपुर के पोलिटिकल एजेंट के आदेश पर ईस्ट इंडिया कंपनी के सैनिकों द्वारा इस जनसमूह पर जालियावाला बाग की तर्ज पर गोलियां चलाई गयी जिसमें लगभग 65 आदिवासियों की मौत हो गयी तथा 90 से अधिक लोग जख्मी हो गए। इस घटना को ‘सिमको हत्याकांड’ या ‘दूसरा जांलियावाला बाग हत्याकांड’ भी कहा जाता है। इस हत्याकांड के विरूद्ध छोटानागपुर में भी व्यापक प्रतिक्रिया हुयी।
कांग्रेस का रामगढ़ अधिवेशन
- कांग्रेस के 53वें अधिवेशन का आयोजन – रामगढ़ में , 19-20 मार्च, 1940 को
- झारखण्ड में कांग्रेस का पहला तथा एकमात्र अधिवेशन
- अधिवेशन के अध्यक्ष– मौलाना अबुल कलाम आजाद
- इस अधिवेशन के बाद 1941-45 तक कांग्रेस का कोई अधिवेशन आयोजित नहीं हुआ
- मौलाना अबुल कलाम आजाद लगातार 6 वर्षों तक (आजादी से पूर्व सबसे लंबे समय तक) कांग्रेस के अध्यक्ष बने रहे।
- अधिवेशन के मुख्य द्वार का नाम – बिरसा मुंडा द्वार (बिरसा मुण्डा के नाम पर)
- सभा स्थल का नाम – मजहर नगर (मजहर-उल-हक के नाम पर)
- अधिवेशन से पूर्व गाँधी जी द्वारा 14 मार्च, 1940 को रामगढ़ में खादी ग्रामोद्योग का शुभारंभ किया गया।
- 15-18 मार्च, 1940 को रामगढ़ में कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक संपन्न हुयी।
- 17-19 मार्च – कांग्रेस विषय निर्वाचनी समिति की बैठक आयोजित हुई।
- बैठक के पहले दिन डॉ. राजेन्द्र प्रसाद द्वारा भारत तथा विश्व संकट पर मुख्य प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया।
- प्रस्ताव का अनुमोदन – पं. जवाहर लाल नेहरू ने
- बैठक के पहले दिन डॉ. राजेन्द्र प्रसाद द्वारा भारत तथा विश्व संकट पर मुख्य प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया।
- सत्याग्रह का प्रस्ताव (कांग्रेस का एकमात्र प्रस्ताव) प्रस्तुत – जवाहर लाल नेहरू द्वारा
- अनुमोदन – जे. बी. कृपलानी द्वारा किया गया।
- इस प्रस्ताव में 27 संशोधन प्रस्तुत किये गए
- जिसमें से 14 संशोधनों को वापस ले लिया गया
- तथा 13 संशोधन भारी बहुमत से गिर गए।
- स्वागत भाषण – डॉ. राजेन्द्र प्रसाद द्वारा
- अनुमोदन – जे. बी. कृपलानी द्वारा किया गया।
- अध्यक्षीय भाषण – अबुल कलाम आजाद द्वारा
- पूर्ण स्वराज की प्राप्ति का लक्ष्य तय किया गया
- वयस्क मताधिकार पर आधारित निर्वाचित संविधान सभा द्वारा देश के संविधान निर्माण
- इस अधिवेशन में टाना भगतो ने रामगढ़ में महात्मा गाँधी को 400 रुपये की एक थैली भेंट की थी।
- इस सम्मेलन में अन्य प्रमुख लोगों ने भागीदारी की।
- बिजली का प्रबंध – गया कॉटन मिल्स द्वारा
- अभियंत्रण का कार्य – रामजी प्रसाद वर्मा द्वारा
- खादी प्रदर्शनी का आयोजन – लक्ष्मी नारायण (चर्खा संघ के सचिव)
- बिहार की प्राचीन धरोहर पर आधारित स्मारिका का वितरण – जयचंद्र विद्यालंकर द्वारा
- बिहार की ऐतिहासिक घटनाओं पर केन्द्रित चित्रावली का वितरण, – ईश्वरी प्रसाद वर्मा द्वारा
अखिल भारतीय समझौता विरोधी सम्मेलन
- रामगढ़ के कांग्रेस अधिवेशन के दौरान ही सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में अखिल भारतीय समझौता विरोधी सम्मेलन का आयोजन रामगढ़ के निकट बिहिटा में किया गया। इस सम्मेलन में स्वामी सहजानंद सरस्वती ने मुख्य प्रस्ताव प्रस्तुत किया जिसका अनुमोदन सरदार शार्दुल सिंह कवीश्वर ने किया।
- अखिल भारतीय समझौता विरोधी सम्मेलन में कांग्रेस की नीतियों की कड़ी आलोचना की गयी तथा पूर्ण स्वराज की प्राप्ति हेतु जनता के अधिकार को प्रमुखता प्रदान की गयी।
- फारवर्ड ब्लाक का निर्माण इसी अधिवेशन के दौरान सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में किया गया।
- प्रसिद्ध नेता एम. एन. राय (मानवेंद्र नाथ राय) ने इसी अधिवेशन में रेडिकल डेमोक्रेटिक पार्टी की आधारशिला रखी।
व्यक्तिगत सत्याग्रह
- भारत की आजादी के लिए गाँधी जी द्वारा ब्रिटेन पर नैतिक दबाव बनाने हेतु व्यक्तिगत सत्याग्रह प्रारंभ किया गया जिसमें विनोबा भावे प्रथम सत्याग्रही तथा जवाहरलाल नेहरू दूसरे चुने गये।
- इसी सत्याग्रह के दौरान गाँधी जी का अंतिम बार 1940 ई. में झारखण्ड आगमन हुआ।
- इस सत्याग्रह के दौरान कई लोगों को झारखण्ड में गिरफ्तार किया गया।
- जमशेदपुर में माइकल जॉन के साथ कुछ अन्य लोगों को भी गिरफ्तार कर लिया गया जिसके बाद जय प्रकाश नारायण, बसावन सिंह एवं शिवनाथ बनर्जी ने जमशेदपुर के गोलमुरी मैदान में एक जनसभा को संबोधित किया। इस सभा के बाद जयप्रकाश नारायण को भी गिरफ्तार कर लिया गया।
- इस सत्याग्रह के दौरान संथाल परगना में महादेवी केजरीवाल (जिला कांग्रेस कमिटी के अध्यक्ष मोतीलाल केजरीवाल की पत्नी) ने स्वयं को गिरफ्तार करने हेतु प्रस्तुत किया, परंतु उपायुक्त ने उन्हें गिरफ्तार न करके उनकी गतिविधियों पर नजर रखने का आदेश जारी किया।
भारत छोड़ो आंदोलन
- 8 अगस्त, 1942 को बंबई में अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटी की बैठक में ‘भारत छोड़ो’ प्रस्ताव पारित किया गया जिसके बाद गांधी जी के नेतृत्व में एक अहिंसक आंदोलन चलाने का निर्णय लिया गया।
- झारखण्ड में भी भारत छोड़ो आंदोलन में लोगों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। इस आंदोलन के दौरान विभिन्न स्थानों पर सभाओं का आयोजन, जुलूस प्रदर्शन, आवागमन व संचार साधनों को बाधा पहुँचाने जैसी गतिविधियां संचालित की गयीं।
राँची
- 9 अगस्त, 1942 को राँची में हड़ताल रखा गया तथा 10 अगस्त, 1942 को नारायण चंद्र लाहिरी को राँची में गिरफ्तार कर लिया गया।
- 14 अगस्त, 1942 को राँची जिला स्कूल के पास जुलूस निकाल रहे छात्रों को गिरफ्तार कर लिया गया। इसके अतिरिक्त राँची के प्रमुख नेता जानकी बाबू, गणपत खंडेलवाल, मथुरा प्रसाद सहित कई नेताओं को भी गिरफ्तार किया गया।
- 17 अगस्त, 1942 को राँची में एक विशाल जनसभा का आयोजन किया गया जिसे अंग्रेज सैनिकों ने खदेड़ दिया तथा जिला कांग्रेस कमिटी के कोषाध्यक्ष शिवनारायण मोदी को गिरफ्तार कर लिया गया।
- 18 अगस्त, 1942 को टाना भगतों ने विशुनपुर के निकट एक थाने को जला दिया।
- 22 अगस्त, 1942 को राहे में हड़ताल आयोजित किया गया तथा इटकी व टांगरबसली के बीच रेल पटरी को लोगों ने उखाड़ दिया। अंग्रेजों ने 22 अगस्त को पी. सी. मिश्रा को गिरफ्तार कर लिया।
- 28 अगस्त, 1942 को राँची की बिजली काट दी गयी तथा 30 अगस्त, 1942 को बालकृष्ण विद्यालय के रजिस्टर जला दिए गये।
- इस आंदोलन के दौरान नवंबर, 1942 तक राँची में 200 से अधिक लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया था जिनमें आंदोलन में सक्रिय भागीदारी निभाने वाले विमल दास गुप्ता, केशव दास गुप्ता, सत्यदेव साहू, किशोर भगत आदि शामिल थे।
- आंदोलन के दौरान लोहरदगा के नदिया उच्च विद्यालय में छात्रों द्वारा राष्ट्रीय झंडा फहराया गया था तथा गुमला में हड़ताल का आयोजन व जुलूस प्रदर्शन किया गया।
हजारीबाग
- भारत छोड़ो आंदोलन के प्रारंभ होते ही 10 अगस्त, 1942 को हजारीबाग के नेता राम नारायण सिंह व सुखलाल सिंह को बंदी बना लिया गया। इन दोनों को हजारीबाग जेल में रखा गया था।
- 11 अगस्त को हजारीबाग में सरस्वती देवी के नेतृत्व में एक जुलूस निकाला गया। सरस्वती देवी को अंग्रेजों द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया।
- इस आंदोलन के दौरान सरस्वती देवी की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनके गिरफ्तारी के बाद विद्यार्थियों ने 12 अगस्त, 1942 को हजारीबाग से भागलपुर जेल ले जाते समय धावा बोलकर उन्हें पुलिस के हिरासत से मुक्त करा लिया। परन्तु 14 अगस्त, 1942 को एक जनसभा को संबोधित करने के दौरान पुनः गिरफ्तार की गयीं।
- 14 अगस्त को हजारीबाग के उपायुक्त कार्यालय पर से यूनियन जैक उतारकर राष्ट्रीय झंडा फहराया गया।
- इस आंदोलन के दौरान जयप्रकाश नारायण 9 नवंबर, 1942 को हजारीबाग सेंट्रल जेल से अपने पांच साथियों (शालिग्राम सिंह, गुलाबी सोनार, रामानंद मिश्र, सूरज नारायण सिंह तथा योगेन्द्र शुक्ल) के साथ फरार हो गये।
- हजारीबाग जेल से जयप्रकाश नारायण व उनके साथियों के फरार होने के बाद जेल में बंद राम नारायण सिंह. कृष्ण बल्लभ सहाय तथा सुखलाल सिंह को भागलपुर जेल स्थानांतरित कर दिया गया।
पलामू
- 10 अगस्त, 1942 को ब्रिटिश सरकार ने डाल्टनगंज (मेदिनीनगर) स्थित कांग्रेस कार्यालय पर कब्जा कर लिया।
- 11 अगस्त, 1942 को लोगों ने पलामू में जुलूस निकाला तथा जपला मजदूर संघ के सचिव मिथिलेश कुमार सिंह के नेतृत्व में जपला में मजदूरों ने हड़ताल रखी।
- 13 अगस्त, 1942 को पलामू में छात्रों ने एक विशाल जुलूस निकाला जिसके बाद नंदलाल प्रसाद व दशरथ राम समेत कई लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया।
- 17 अगस्त, 1942 को डाल्टनगंज डाकघर के निकट तोड़फोड़ की गयी जिसके बाद तोड़फोड़ में शामिल कई लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया।
- 18 अगस्त, 1942 को लातेहार में एक जुलूस निकाला गया तथा डाल्टनगंज में विष्णु प्रसाद एवं गनौरी सिंह को एक वर्ष की सजा दी गयी।
- 19 अगस्त, 1942 को लेस्लीगंज थाने में कई लोगों ने धनुष प्रसाद सिंह के नेतृत्व में पहुँच कर तोड़फोड़ की जिसके बाद धनुष प्रसाद सिंह के साथ कई लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया।
- इस आंदोलन के दौरान अक्टूबर, 1942 तक पलामू के विभिन्न क्षेत्रों में लोगों ने व्यापक स्तर पर उत्पात मचाया जिसके बाद कई नेताओं को गिरफ्तार किया गया।
- पलामू में कुमारी राजेश्वरी सरोज दास भी इस आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की तथा उन्होनें मजदूरों एवं किसानों को संगठित किया।
सिंहभूम
- 10 अगस्त, 1942 को जमशेदपुर में पूर्ण हड़ताल रखा गया। 14 एवं 16 अगस्त को चक्रधरपुर एवं चाईबासा में ही हड़ताल का आयोजन किया गया।
- 15 अगस्त, 1942 को जमशेदपुर के प्रमुख नेता एम. के. घोष, एन. एन. बनर्जी, त्रेता सिंह सहित कई नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। 17 अगस्त को यहाँ एम. डी. मदन को गिरफ्तार किया गया।
- 30 अगस्त, 1942 की रात को कई लोगों को गिरफ्तार करने के साथ-साथ लोगों पर गोलियाँ चलायी गयी, जिसके विरोध में 31 अगस्त, 1942 को पूर्ण हड़ताल का आयोजन किया गया।
- रामानंद तिवारी के नेतृत्व में सिपाहियों ने जमशेदपुर में विद्रोह किया तथा इन्होनें जमशेदपुर में 60 सदस्यों की ‘इन्कलाबी सिपाही दल’ का गठन किया। ब्रिटिश सरकार ने कई लोगों व विद्रोह करने वाले 33 पुलिसकर्मियों को गिरफ्तार करके हजारीबाग जेल भेज दिया।
- 3 से 11 सितंबर, 1942 तक रामचंद्र पालीवाल तथा नैयर के नेतृत्व में सफाई कर्मियों ने हड़ताल की।
- 15 सितंबर, 1942 को मुसाबनी में सी. पी. राजू, कमलानंदन व बस्टिन सहित कई मजदूर नेताओं को बंदी बना लिया गया।
- 17 सितंबर, 1942 को घाटशिला में मद्रासी व उड़िया मजदूरों द्वारा जुलूस निकाला गया।
मानभूम
- 9 अगस्त, 1942 को मानभूम क्षेत्र के नेता विभूति भूषण दासगुप्ता, वीर राघवाचार्य तथा पूर्णेन्दु भूषण मुखर्जी को गिरफ्तार कर लिया गया।
- 10 अगस्त, 1942 को पी. सी. बोस, बैजनाथ प्रसाद व मुकुटधारी सिंह समेत कई नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया।
- 13 अगस्त, 1942 को अतुल चंद्र घोष को तथा 16 अगस्त, 1942 को समरेन्द्र मोहन राय सहित कई लोगों को गिरफ्तार किया गया।
- इस आंदोलन के दौरान मानभूम क्षेत्र में विरोध प्रदर्शन, सभाओं का आयोजन, जुलूस प्रदर्शन, यातायात व संचार साधनों को अवरुद्ध करने जैसी गतिविधियां आंदोलनकारियों द्वारा की गयी। सरकार द्वारा स्थिति को नियंत्रित करने हेतु कतरास, झरिया व धनबाद में कर्फ्यू लगाने का निर्णय भी लिया गया।
संथाल परगना
- 11 अगस्त, 1942 को विनोदानन्द झा के नेतृत्व में देवघर में जुलूस निकाला गया। पुलिस ने इन्हें भिखना पहाड़ी से गिरफ्तार करके भागलपुर केन्द्रीय कारागार भेज दिया।
- 13 अगस्त को गोड्डा कचहरी पर राष्ट्रीय झंडा फहराया गया।
- 13-14 अगस्त, 1942 को आंदोलनकारियों ने विभिन्न स्थानों पर आवागमन व संचार साधनों को नष्ट कर दिया तथा सरकारी भवनों को नुकसान पहुंचाया। इसके बाद भारत सुरक्षा अधिनियम के तहत मोतीलाल केजरीवाल, रामजीवन व हिम्मत सिंह सहित कई नेताओं को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया।
- इस आंदोलन के दौरान देवघर के सरवण में आंदोलनकारियों द्वारा समानांतर सरकार बनायी गयी।
- दुमका में जांबवती देवी एवं प्रेमा देवी के नेतृत्व में 19 अगस्त, 1942 को विशाल जुलूस का आयोजन किया गया।
- दुमका में कृष्णा प्रसाद ने इस आंदोलन का नेतृत्व किया तथा इनके नेतृत्व में यहां ‘पहाड़िया जत्था’ का गठन किया गया। यह पहाड़िया जत्था 5 भागों में विभाजित था।
- 21 अगस्त, 1942 को गोड्डा जेल से लगभग 60 कैदी भाग गए।
- इस आंदोलन के दौरान प्रफुल्ल चंद्र पटनायक ने पहाड़िया सरदारों के सहयोग से आदिवासियों को बड़ी संख्या में आंदोलन में शामिल किया। इन्होनें गोड्डा, पाकुड़ व दुमका के बीच स्थित डांगपाड़ा को अपना मुख्यालय बनाया।
- प्रफुल्ल चंद्र पटनायक से प्रभावित होकर एक परिवार का एकमात्र पुरूष सदस्य बादलमल पहाड़िया नामक एक युवक इस आंदोलन में शामिल हो गया। उसे पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया तथा गोड्डा जेल में दी गयी यातनाओं के कारण उसकी मृत्यु हो गयी।
- 25 अगस्त, 1942 को संथाल एवं पहाड़िया जनजातियों ने अलुवेरा स्थित डाक बंगला तथा वन विभाग के भवनों को जला दिया, जिसके बाद सरकार द्वारा विभिन्न स्थानों पर सैनिकों को भेजा गया।
- इस आंदोलन के दौरान अंग्रेज सरकार ने प्रफुल्ल चंद्र पटनायक और उनके तीन साथियों के ऊपर 200 रुपये का इनाम घोषित किया था। 7 नवंबर, 1942 को प्रफुल्ल चंद्र पटनायक को गिरफ्तार करके अगले दिन राजमहल जेल भेज दिया गया। इन्हें 16 वर्ष कैद की सजा सुनायी गयी थी।
- इस आंदोलन के दौरान संथाल परगना में लगभग 900 लोगों को गिरफ्तार किया गया था।
- इस आंदोलन के दौरान हरिराम गुटगुनिया ने देवघर से ‘साइक्लोस्टाइल बुलेटिन’ नामक पत्रिका का प्रकाशन किया गया।
- इस आंदोलन के दौरान वाचस्पति त्रिपाठी गिरफ्तार होने वाले संभवतः अंतिम नेता थे। इनकी गिरफ्तारी 22 अगस्त, 1943 को की गयी थी।
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य
अबुल कलाम आजाद की नजरबंदी
- ब्रिटिश सरकार ने होमरूल आंदोलन के दौरान मौलाना अबुल कलाम आजाद को राँची में नजरबंद करके रखा था।
- ब्रिटिश सरकार ने कोलकाता से अबुल कलाम आजाद को लाकर 31 मार्च, 1916 ई. से 27 दिसंबर, 1919 ई. तक राँची में नजरबंद रखा।
- प्रथम विश्व युद्ध में तुर्की की हार पर सरकारी जश्न के विरोध में मौलाना अबुल कलाम आजाद ने लोगों से काला बिल्ला लगाने की अपील की थी।
- 8 जुलाई, 1916 को ब्रिटिश प्रशासन की ओर से मौलाना आजाद को प्रतिदिन थाने में हाजिरी लगाने का आदेश दिया गया था।
- मौलाना अबुल कलाम आजाद ने 1917 में राँची में अंजुमन इस्लामिया और मदरसा इस्लामिया की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
- मौलाना अबुल कलाम आजाद ने अपने अलबेलाग प्रेस को बेचकर उससे प्राप्त राशि को मदरसा की स्थापना में लगा दिया था।
- पटना से राँची आने पर महात्मा गांधी ने मौलाना अबुल कलाम आजाद से मिलने हेतु सरकार से इजाजत मांगी थी जिसे सरकार ने अस्वीकृत कर दिया था।
- 27 दिसंबर, 1919 को मौलाना आजाद को रिहा कर दिया गया जिसके बाद 3 जनवरी, 1920 को वे राँची से कलकत्ता के लिए प्रस्थान कर गए।
- रवीन्द्रनाथ टैगोर की नोबेल पुरस्कार प्राप्त रचना ‘गीतांजलि’ में झारखण्ड की सांस्कृतिक एवं प्राकृतिक पृष्ठभूमि का भी चित्रण किया गया है। साथ ही इस पुस्तक के कुछ हिस्सों की रचना राँची में की गयी थी।
- समग्र देश के साथ-साथ झारखण्ड में भी रॉलेट एक्ट तथा जालियांवाला बाग हत्याकांड का व्यापक विरोध किया गया। झारखण्ड में इसको गुलाब तिवारी ने नेतृत्व प्रदान किया।
- कृष्ण बल्लभ सहाय को 1923 ई. में प्रांतीय लेजिस्लेटिव काउंसिल के प्रतिनिधि के रूप में चुना गया।
- राष्ट्रीय आंदोलन के दो प्रमुख नेताओं – विनोदानन्द झा (1961-63 तक बिहार के मुख्यमंत्री) तथा कण वल्लभ सहाय (1963-67 तक बिहार के मुख्यमंत्री) को भारतीय स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात बिहार के मुख्यमंत्री पद पर आसीन होने का अवसर प्राप्त हुआ।
मानभूम झण्डा सत्याग्रह
- 6-13 अप्रैल, 1945 को राष्ट्रीय सप्ताह घोषित किया गया था। मानभूम में कांग्रेस के नेता अतुल चंद्र घोष को राष्ट्रीय सप्ताह के दौरान कांग्रेसी झण्डा फहराने का आरोप लगाकर गिरफ्तार कर लिया गया। इसके परिणामस्वरूप लोगों ने झण्डा सत्याग्रह शुरू कर दिया।
- इसी प्रकार मई, 1945 में कांग्रेसी झण्डा फहराने का आरोप लगाकर 3 महिलाओं सहित 5 लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया।