भारत की मंदिर वास्तुकला Temple Architecture of India

 भारत की मंदिर वास्तुकला/ Temple Architecture of India 

  • अति प्राचीन काल में मंदिर वेदी के रूप में खुले आकाश के नीचे बनाए जाते थे, जिसे ‘यान’ या ‘चौरण’ कहा जाता था। 
    • इसके ऊपर देव प्रतीक रखकर पूजा-अर्चना की जाती थी। 
  • मंदिर निर्माण के दूसरे चरण में वेदी के चारों ओर बाड़ बनाने की प्रथा प्रारंभ हुई, इसे ‘प्राकार’ कहा गया। 

 

प्राचीनतम मंदिर संरचना मंदिर

स्थल

कालखंड 

गोलाकार ईंट व इमारती लकड़ी का मंदिर

बैराट (राजस्थान)

तृतीय शताब्दी ईसा पूर्व

पूर्व साँची का मंदिर- 40

साँची (मध्य प्रदेश)

तृतीय शताब्दी ईसा

पूर्व 

साँची का मंदिर-18

साँची (मध्य प्रदेश)

द्वितीय शताब्दी ईसा पूर्व

प्राचीन संरचनात्मक मंदिर

ऐहोल (कर्नाटक)

चौथी शताब्दी ईसा पूर्व

साँची का मंदिर-17

साँची (मध्य प्रदेश

चौथी सदी ई. सन्

लडखन का मंदिर 

ऐहोल (कर्नाटक)

पाँचवीं सदी ई. सन्

दुर्गा मंदिर

ऐहोल (कर्नाटक)

550 ई. सन्

 

  • स्थापत्य के विकास की दृष्टि से गुप्त काल को प्राचीन भारत के इतिहास का ‘स्वर्ण युग’ कहा जाता है। 
  • गुप्तकालीन मंदिरों की विशेषताएँ 
    • मंदिरों का निर्माण ऊँचे चबूतरों पर होता था। 
    • मंदिरों के चबूतरों तक पहुँचने के लिये सीढ़ियाँ बनाई जाती थीं। 
    • मंदिर के भीतर एक चौकोर अथवा वर्गाकार कक्ष बनाया जाता था, जिसमें मूर्ति रखी जाती थी, इसे ‘गर्भ-गृह’ कहते थे। 
    • गर्भ-गृह के चारों ओर प्रदक्षिणा-मार्ग बना होता था। 
    • मंदिर की सपाट छत पर शिखर बनाने की शुरुआत हुई।
  • गुप्त काल के अधिकांश मंदिर पाषाण निर्मित हैं। 
    • केवल भीतरगाँव तथा सिरपुर के मंदिर ही ईंटों से बनाए गए हैं। 
    • पंचायतन’ शैली – जब मुख्य मंदिर चार सहायक मंदिरों से घिरा हुआ होता है तो इसे ‘पंचायतन’ रचना शैली का मंदिर कहते हैं। 

गुप्तकालीन मंदिर

मंदिर

स्थल

साँची का मंदिर

तिगवा का विष्णु मंदिर

जबलपुर (मध्य प्रदेश)

भूमरा का शिव मंदिर

सतना (मध्य प्रदेश

नचना कुठारा का पार्वती मंदिर

पन्ना (मध्य प्रदेश)

सिरपुर के लक्ष्मण मंदिर

छत्तीसगढ़ महासमुंद जिले

भीतरगाँव का मंदिर

कानपुर (उत्तर प्रदेश)

देवगढ़ का दशावतार मंदिर

  • पंचायतन शैली का मंदिर 

झाँसी (उत्तर प्रदेश)

 

  • चट्टानों को काटकर बनाए गए मंदिर मद्रास (वर्तमान चेन्नई) में 5वीं शताब्दी ईसवी में बनाए गा थे। स्थानीय भाषा में इसे ‘रथ’ कहते हैं 
    • इनका नाम पाँच पांडवों और द्रौपदी के नाम पर रखा गया है। 

 

हिंदू धर्म मंदिरों के निर्माण में तीन प्रकार की शैलियों का प्रयोग किया गया।  

  1. नागर शैली
  2. द्रविड़ शैली
  3. बेसर शैली 

 

नागर शैली 

  • विस्तारहिमालय से लेकर विंध्य क्षेत्र तक 
  • आकर – आयताकार 
  • उत्तर भारतीय मंदिर शैली में मंदिर एक वर्गाकार गर्भ-गृह, स्तंभों वाला मंडप तथा गर्भ-गृह के ऊपर एकरेखीय शिखर से संयोजित होता है। 
  • कभी-कभी वह पंचायतन प्रकार के होते हैं, जिसमें एक जगती के ऊपर मध्य में मुख्य मंदिर होता है और उसके चारों कोनों पर चार छोटे देवालय होते हैं। 
  • मंदिर एक ऊँचे चबूतरे पर स्थापित होता है, जिसे ‘जगती’ कहते हैं
    •  जिस पर चढ़ने के लिये सीढ़ियाँ बनी होती हैं। 
  • नागर शैली में बने मंदिरों के गर्भ-गृह के ऊपर एकरेखीय शिखर होता है। 
    • यह प्रायः तीन उभारों से संयोजित होता है, जिसमें सबसे मध्य के उभार को ‘भद्ररथ‘ कहते हैं तथा सबसे किनारे वाले उभार का ‘कर्नरथ’ कहा जाता है। 
    • भद्ररथ तथा कर्नरथ के मध्य के उभार को  ‘प्रतिरथ’ कहा जाता है। 
    • शिखर का सबसे  महत्त्वपूर्ण भाग सबसे ऊपर लगा आमलक (अम्लसारक) होता है ।

 

 

नागर स्थापत्य की विशेषताएं: 

  • नागर शैली में शिखर अपनी ऊँचाई के क्रम में ऊपर की ओर क्रमशः पतला होता जाता है। 
  • मंदिर में सभा भवन और प्रदक्षिणा पथ भी होता था। 
  • शिखर पर आमलक की स्थापना होती है। 
  • वर्गाकार तथा ऊपर की ओर वक्र होते शिखर इसकी विशेषता है। 

 

नागर शैली के मंदिर की संरचना

  • संपूर्ण मंदिर का भार जिस पर रहता है, उसे ‘पाद-अधिष्ठान’ या ‘जगती पीठ’ कहते हैं। 
    • इसे सामान्य भाषा में ‘चबूतरा’ कहते हैं। 
  • मंदिर का भीतरी गुप्त क्षेत्र ‘गर्भ-गृह’ कहलाता है। 
  • मंदिर के आंतरिक विस्तृत क्षेत्र को ‘विमान’ कहते हैं। 
  • मंदिर के बाह्य विस्तृत  क्षेत्र को ‘शिखर’ कहते हैं।
  • मंदिर का ऊपरी गोलाई वाला भाग ग्रीवा या शुकनासिका है। 
  • मंदिर का सबसे ऊपरी हिस्सा ‘आमलक स्तूप’ है।

 

नागर शैली की उप-शैलियाँ

 

  • क्षेत्रीय शैलियों में बने मंदिरों के उपनाम 
    • ओडिशा में ‘कलिंग’
    • गुजरात में ‘लाट’ 
    • हिमालयी क्षेत्र में ‘पर्वतीय’ 

बुंदेलखंड का स्थापत्य 

  • इसे ‘खजुराहो उपशैली’ भी कहा जाता है। 
  • यह उपशैली 10वीं से 13वीं शताब्दी के बीच रही, जिसे चंदेल शासकों ने संरक्षण प्रदान किया।
  • मंदिर निर्माण में प्रयुक्त सामग्री 
    • पन्ना खदान से गुलाबी व मटमैले ग्रेनाइट एवं लाल बलुआ पत्थर का इस्तेमाल 
  • खजुराहो उपशैली के मंदिरों में परकोटा का अभाव है
    • यानी मंदिर चहारदीवारी में नहीं है। 
  •  ‘उरूशृंग’ व ‘अंतराल’ बुंदेलखंड स्थापत्य की अपनी पहचान/विशेषता  
  • शिखर के ऊपर निकली हुई मीनारनुमा आकृति को ‘उरूशृंग’ कहते हैं। 
  • गर्भ-गृह और बरामदे के बीच के लंबे गलियारे को ‘अंतराल’ कहते हैं। 

 

  • खजुराहो के पश्चिमी समूह 
    • लक्ष्मण, कंदरिया महादेव, मतंगेश्वर, लक्ष्मी, जगदंबा, चित्रगुप्त, पार्वती तथा गणेश के मंदिर और वराह व नंदी के मंडप हैं
  • खजुराहो के पूर्वी समूह
    •  ब्रह्मा, वामन, जवारी व हनमान मंदिर 
    • जैन मंदिरों में आदिनाथ, पार्श्वनाथ, आदिनाथ घंटाई मंदिर हैं। 
  • 1986 में खजुराहो के मंदिरों को यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में स्थान प्राप्त हुआ।
  • खजुराहो के मंदिरों में  कामसूत्र से संबंधित कामुक प्रतिमाओं का भी चित्रण है

 

कंदरिया महादेव का मंदिर (मध्य प्रदेश)

  • खजुराहो के मंदिरों में सबसे श्रेष्ठ कंदरिया महादेव का मंदिर है। 

 

लक्ष्मण मंदिर

  • 930-950 ईसवी के मध्य, चंदेल वंश के शासक यशोवर्मन द्वारा निर्मित यह मंदिर हिंदू तथा जैन धर्म को सम्मिलित रूप से समर्पित है। 
  • भगवान विष्णु की त्रिमुखी प्रतिमा गर्भगृह में स्थापित की गई है। 
  • यह मंदिर लाल बलुआ पत्थर द्वारा निर्मित है। 
  • मंदिर मुख्यतः नागर व उड़िया शैली की वास्तुकला द्वारा निर्मित है। 
  • लक्ष्मण मंदिर खजुराहो शैली के मंदिर में शामिल है।

 

गुजरात का स्थापत्य 

  • गुजरात के स्थापत्य को ‘सोलंकी उपशैली, चालुक्य उपशैली’ या  ‘मंडोवार उपशैली‘ भी कहा जाता है। 
  • इसके तहत हिंदू मंदिरों के साथ-साथ जैन मंदिरों का भी निर्माण हुआ। 
  • अर्द्धगोलाकार पीठ और ‘मंडोवार’ गुजरात उपशैली की प्रमुख विशेषता है। 
  • गुजरात शैली के प्रमुख उदाहरण
    • माउंट आबू का आदिनाथ मंदिर
    • तेजपाल मंदिर
    • सोमनाथ मंदिर – गुजरात
    • मोढेरा का सूर्य मंदिर 
    • पालिताना के मंदिर 
  • माउंट आबू पर बने कई मंदिरों में संगमरमर के दो मंदिर हैं
    • दिलवाड़ा का जैन मंदिर
      • पाँच मंदिरों का एक समूह है। 
    • तेजपाल मंदिर (अर्बुदगिरि के बगल में) 
  • कुंभरिया के पार्श्वनाथ मंदिर 
    • इसमें राजस्थान के मकराना के काले और सफेद संगमरमर का इस्तेमाल किया गया है। 
  • सोमनाथ मंदिर को सोलंकी शासकों की देन न मानकर गुर्जर-प्रतिहारों की देन माना जाता है। 

 

दिलवाड़ा मंदिर समूह 

  • निर्माण:-11वीं-से13वीं. शताब्दी
  • निर्माता:-वास्तुपाल एवं तेजपाल दो भाई
  • स्थित – माउंट आबू , सिरोही जिला , राजस्थान 
    • माउंट आबू को ‘अर्बुदरान्य’ भी कहा जाता है | 
    • जिसका नाम नाग देवता ‘अर्बुदा’ के नाम पर पड़ा। 
  • दिलवाड़ा जैन मंदिर परिसर में पांच मंदिर है। 
    1. विमल वसाही मंदिर
    2. लुना वसाही मंदिर
    3. पीथालहर मंदिर
    4. खरतार वसाही मंदिर
    5. श्री महावीर स्वामी मंदिर।
  • विमल वासाही मंदिर “प्रथम  र्तीथकर(आदिनाथ/ऋषभदेव)’ को समर्पित सर्वाधिक  प्राचीन है जो 1031 ई. में बना था। 
  • बाईसवें र्तीथकर  नेमीनाथ को समर्पित ‘लुन वासाही मंदिर’  1231 में वास्तुपाल और तेजपाल नामक दो भाईयों द्वारा बनवाया गया था।

 

माउंट आबू में अन्य स्थल

  • 1. नक्की झील ( Nakki lake)
  • 2. सनसेट पॉइंट (Sunset point)
  • 3. टोड रोक (Tod rock) (मेंढक के आकार का चट्टान )
  • 4 . गुरु-शिखर (Guru shikhar)
    • गुरु शिखर अरावली पर्वत शृंखला की सबसे ऊँची चोटी है। 
    • जिसकी ऊँचाई 1722 मीटर है
    •  गुरू दत्तात्रय मंदिर एक प्राचीन मंदिर है जो इस पर्वत के ऊपर स्थित है।
  • 5 .अचलगढ़ (Achalgarh) (अचलगढ़ की पहाड़ियों)

 

गुजरात शैली 

राजस्थानी शैली 

आबू पर्वत पर विमलशाही मंदिर

  • राजस्थान का यह मंदिर आबू पर्वत पर बना है।
  • माउंट आबू के मंदिरों का निर्माण सोलंकी शासक भीम सिंह प्रथम के मंत्री दंडनायक विमल शाह ने करवाया था। 
  •  यह राजस्थान के जैन मंदिरों में अद्वितीय है। 
  • यह श्वेत संगमरमर पत्थर का बना है। 
  • इसके सामने पूरब की ओर 6 स्तंभों का मंडप है। इसके बीच में जैनियों के पवित्र पर्वतों का दृश्य बना है, जिसे समोसण कहा जाता है। उसके आगे विमल शाह का परिवार अंकित है।
  • इसके तीन मुख्य अंग हैं
    • 1. द्वारमंडप
    • 2. अंतराल 
    • 3. गर्भ-गृह 

 

ओसिया का जैन महावीर मंदिर – जोधपुर

  • इन मंदिरों का निर्माण गुर्जर प्रतिहार शासकों द्वारा करवाया गया था।
  • गुर्जर सम्राट वत्सराज प्रतिहार (778-794 ईस्वी) के समय निर्मित 
  • इसका निर्माण 8वीं शताब्दी में हुआ था, लेकिन 10वीं शताब्दी में इसकी मरम्मत करानी पड़ी
  •  यहाँ सीढ़ीनुमा आकृति पर मंडप बनाया गया, जिसे नलमंडप की संज्ञा दी गई। 
  • निर्माण शैली में नल का अर्थ ‘सीढ़ी’ होता है। 

 

ओडिशा का स्थापत्य 

  • प्रचलन – 8वीं से 13वीं शताब्दी तक 
  • इसे ओडिशा के विभिन्न शासक वंशो  शैल, सोम, भौम, पूर्वी गंग या चेदि गंग आदि वंशों से संरक्षण मिला । 
  • ओडिशा के मंदिर मुख्यतः भुवनेश्वर, पुरी और कोणार्क में स्थित हैं। 
  • ओडिशा वास्तुकला की विशेषता
    • देउल (गर्भ-गृह के ऊपर उठता हुआ विमान तल)
    • जगमोहन (गर्भ-गृह के बगल का विशाल हॉल)
    • नटमंडप (जगमोहन के बगल में नृत्य के लिये हॉल)
    • भोगमंडप 
  • परकोटा तथा ग्रेनाइट पत्थर का इस्तेमाल शामिल है।

 

  • भुवनेश्वर का लिंगराज मंदिर
  • भुवनेश्वर का राजरानी मंदिर
  • पुरी का जगन्नाथ मंदिर
  • पुरी का कोणार्क का सूर्य मंदिर 
  • कोणार्क के ब्लैक पैगोडा (सूर्य मंदिर) 
  • कटारमल सूर्य मंदिरउत्तराखंड के अल्मोड़ा में
  • अनंत वासुदेव मंदिर – 1278 में स्थापित ,भुवनेश्वर में 

 

प्रमुख मंदिर 

कोणार्क का सूर्य मंदिर – पुरी जिले में

  • कोणार्क का सूर्य मंदिर सूर्य देवता के रथ के आकार में बनाया गया है। 
  • इस मंदिर का निर्माण  गंग वंश के शासक  राजा नरसिंह देव ने 13वीं शताब्दी में करवाया था। 
  • इसे यूनेस्को की विश्व विरासत स्थल की सूची में 1984 में  रखा गया है।
  • इसे ‘ब्लैक पैगोडा’ भी कहा जाता है। 
  • मंदिर को रथ का स्वरूप देने के लिये मंदिर के आधार पर दोनों ओर एक जैसे पत्थर के 24 पहिये बनाए गए।
  •  पहियों को खींचने के लिये 7 घोड़े बनाए गए। 
  • कुछ स्थानों पर खजुराहो की तरह कामातुर आकृतियाँ है।
  • मंदिर की ऊँचाई 70 मी है। 

 

लिंगराज मंदिर – भुवनेश्वर,ओडिशा

  • लिंगराज मंदिर का निर्माण ययाति केसरी द्वारा 7वीं शताब्दी में किया गया था
  •  ययाति केसरी ने अपनी राजधानी जयपुर से भुवनेश्वर स्थानांतरित की।
  • लिंगराज मंदिर भुवनेश्वर का सबसे बड़ा मंदिर है। 
  • गुलाबी बलुआ पत्थर से निर्मित मंदिर

पुरी का जगन्नाथ मंदिर

  • यह 1110 ई. में बनाया गया था। 
  • मंदिर के ठीक सामने “एकाश्म गरुड़ स्तम्भ”  को कोणार्क सूर्य मंदिर से लेकर गाड़ा गया है 

मुक्तेश्वर मंदिर

  • इसे ओडिशा वास्तुकला का रत्न कहा जाता है। 

 

परशुरामेश्वर मंदिर – ओड़ीसा के भुवनेश्वर में

कश्मीर शैली तथा मार्तंड मंदिर 

  • मार्तंड मंदिर – अनंतनाग ,कश्मीर 
    • निर्माणकर्ता – ललितादित्य मुक्तापीड़ 
    • यह सूर्य मंदिर है

 

पालकालीन स्थापत्य 

  • विक्रमशिला विहार
  • ओदंतपुरी विहार
  • जगद्दल विहार 
  • सोमापुर महाविहार (बांग्लादेश) – धर्मपाल द्वारा निर्मित 
    • सबसे बड़ा बौद्ध विहार 
    • 1985 में यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल 
  • नालंदा महाविहार – कुमारगुप्त द्वारा निर्मित

 

बेसर शैली 

  • नागर और द्रविड़ शैलियों के मिले-जुले रूप को बेसर शैली कहते हैं। 
  • विस्तार – विंध्याचल पर्वत से कृष्णा नदी तक 
  • बेसर शैली को चालुक्य शैली’ भी कहते हैं। 
  • बेसर शैली के मंदिरों का आकार 
  • आधार से शिखर तक गोलाकार (वृत्ताकार) या अर्द्धगोलाकार 
  • बेसर शैली का उदाहरण 

    • वृंदावन का वैष्णव मंदिर, जिसमें गोपुरम बनाया गया है। 
    • होयलेश्वर मंदिर – हेलेबिड ,मैसूर
  • कालखंड – 8वीं से 14वीं शताब्दी तक

  • क्षेत्र विशेष  

  • सबद्ध शासक/वश –

    • मान्यखेत के राष्ट्रकूट

    • कल्याणी के चालक्य 

    • देवगिरि के यादव

    • वारंगल के काकतीय

    • द्वारसमुद्र के होयसल

चालुक्यकालीन स्थापत्य 

  • यह नागर और द्रविड़ शैली की विशेषताओं से युक्त बेसर शैली है। 
  • यहाँ के मंदिरों में चट्टानों को काटकर मंदिरों का निर्माण देखने को मिलता है। 
  • ऐहोल में 70 से अधिक मंदिर हैं, जिनमें रविकीर्ति द्वारा बनवाया गयामेगुती जैन मंदिरतथा लाढ खाँ का सूर्य मंदिर बहुत प्रसिद्ध है। 
  • बादामी में मिली चार गुफाएँ
    • शिव, विष्णु, विष्णु अवतार व जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथ से संबंधित हैं। 
  • बादामी के भूतनाथ मंदिर 
  • बादामी के मल्लिकार्जुन मंदिर
  • बादामी के येल्लमा के मंदिर 
  • पट्टदकल के विरूपाक्ष मंदिर 
  • संगमेश्वर  मंदिर
  • पापनाथ मंदिर 
  • पटटदकल के मंदिर
    • इसे 1987 में यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल किया गया।

 

 ऐहोल का मंदिर

  • यह कर्नाटक के बीजापुर जिले में स्थित है। 
  • ऐहोल मंदिर वास्तु में बौद्ध चैत्य का हिंदू मंदिर पर प्रभाव दिखता है। 
  • यहाँ का विशिष्ट मंदिर दुर्गा मंदिर है। 

 विरूपाक्ष मंदिर – हम्पी,कर्नाटक

  • विरुपाक्ष मंदिर हम्पी में अवस्थित है। 

 

राष्ट्रकूटकालीन स्थापत्य 

  • राष्ट्रकूट के स्थापत्य में महाराष्ट्र के औरंगाबाद में एलोरा नामक स्थल और मुंबई के निकट एलिफेंटा द्वीप पर स्थित एलिफेंटा की गुफाएँ महत्त्वपूर्ण हैं।
    • एलिफेंटा में बनी त्रिमूर्ति है, जो शिव के ही तीनों रूपों की है। 
    • कोंकणी मौर्यों के समय में एलिफेंटा द्वीप को ‘घारापुरी कहा जाता था। 
    • बाद में हाथी की एक विशाल प्रतिमा मिलने के कारण पुर्तगालियों ने इसे एलिफेंटा नाम दिया। 
  • ‘रॉक कट आर्किटेक्चर’ का बेहतरीन उदाहरण है -एलोरा की गुफाएँ।
    • इन्हें 1983 में यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत की सूची में शामिल किया गया है। 
  • कैलाश गुहा मंदिर (गुफा संख्या-16) 
    • इसका तुलना एथेंस के प्रसिद्ध मंदिर ‘पार्थेनन’ से की गई है। 
  • एलिफेंटा की गुफाएँहिंदू (शिव) और बौद्ध धर्म को समर्पित हैं
  • एलोरा की गुफाएँहिंदू, बौद्ध व जैन तीनों को समर्पित रहा है।

 

एलोरा का कैलाश मंदिर

  • Aurangabad District, Maharashtra, India
  • चालुक्यों के बाद राष्ट्रकूट उनके उत्तराधिकारी हुए। 

होयसल शासकों का स्थापत्य 

  • होयसल शासकों की कला को कर्नाटक-द्रविड़ कला कहा जाता है। 
  • विस्तार – ऐहोल, बादामी और पट्टदकल के प्रारंभिक चालुक्यकालीन मंदिरों में 
  • होयसलों की स्थापत्य कला 
  •  इस शैली के मंदिर मैसूर में बने हैं। 
  • मंदिर योजना के चार अंग हैं
    • 1. गर्भ-गृह (कोष्ठ) 
    • 2. अंतराल (सुखानसी)
    • 3. स्तंभयुक्त वृहद् कक्ष (नवरंग) 
    • 4. स्तंभयुक्त खुला मंडप (मुख्य मंडप) 

 

हेलेबिड का होयसलेश्वर मंदिर – कर्नाटक

  • यह होयसल नरेश नरसिंह द्वारा 12वीं सदी में अपनी राजधानी ‘द्वारसमुद्र’ में बनवाया गया था। 
  • यह शिव मंदिर है। 

लकुदी का काशी विश्वेश्वर मंदिर

 

 द्रविड़ शैली 

  • द्रविड़ शैली की शुरुआत7वीं शताब्दी में 
  • विस्तार – कृष्णा नदी से लेकर कन्याकुमारी तक 
  • द्रविड़ मंदिरों का निचला भाग वर्गाकार और मस्तक गुंबदाकार होता है। 
  • द्रविड़ शैली की पहचान संबंधी विशेषता
    • प्राकार (चहारदीवारी)
    • गोपुरम (प्रवेश द्वार)
    • वर्गाकार या अष्टकोणीय गर्भ-गृह (रथ) 
    • पिरामिडनुमा शिखर
    • मंडप (नंदी मंडप)
    • अष्टकोणीय मंदिर संरचना 
  • द्रविड शैली का प्रारम्भ – पल्लवों ने
    • चोल काल द्रविड शैली कास्वर्णयुग 
    • विजयनगर काल में द्रविड शैली कापतन सुरु । 

 

  • तंजौर का बृहदेश्वर मंदिर (चोल शासक राजराज-I द्वारा निर्मित) 
  • द्रविड़ शैली के अंतर्गत नायक शैली के उदाहरण 
    • मीनाक्षी मंदिर (मदुरै)
    • रंगनाथ मंदिर (श्रीरंगम, तमिलनाडु)
    • रामेश्वरम् मंदिर 
  • कालखंड – 7वीं से 18वीं शताब्दी तक 
    • तीनों शैलियों में द्रविड़ ही सबसे ज्यादा दीर्घकालिक रही
  • क्षेत्र विशेष –  सुदूर दक्षिण भारत की शैली
  • सबद्ध शासक/वश –
    • पल्लव काल
    • महान् चोल
    • पांड्य
    • विजयनगर 
    • नायक वंश

द्रविड़ शैली के चरण 

चरण

कालखंड 

शासक 

प्रथम चरण

7वीं- 10वीं  शताब्दी

पल्लव + चोल  काल

द्वितीय चरण

10वीं- 12वीं  शताब्दी

चोल काल

तृतीय चरण

13वीं- 14वीं  शताब्दी

पांड्य काल 

चतुर्थ चरण

14वीं- 16वीं  शताब्दी

विजयनगर काल 

पांचवा चरण

16वीं- 18वीं  शताब्दी

नायक काल 

 

द्रविड़ शैली के विभिन्न मंदिर 

कैलाशनाथ मंदिर 

कांचीपुरम (तमिलनाडु)

8वीं शताब्दी, राजसिंह उप-शैली

बैकुंठ पेरूमल मंदिर

कांचीपुरम (तमिलनाडु)

8वीं शताब्दी, राजसिंह उप-शैली

मुक्तेश्वर मंदिर

कांचीपुरम (तमिलनाडु)

9वीं शताब्दी, नंदीवर्मन-अपराजित वर्मन शैली

मंगलेश्वर मंदिर

कांचीपुरम (तमिलनाडु)

9वीं शताब्दी, नंदीवर्मन-अपराजित वर्मन शैली

चोलेश्वरम् मंदिर

नार्थामलाई (तमिलनाडु)

9वीं शताब्दी, विजयालय

नागेश्वर मंदिर

कुंबकोनम (तमिलनाडु)

9वीं-10वीं शताब्दी, आदित्य-I

तिरुवालेश्वर मंदिर

ब्रह्मदेशम, 

तीनवेल्ली जिला 

(वर्तमान तिरुनेलवेली)

10वीं-11वीं शताब्दी, राजराज-I

राजराजेश्वर मंदिर उर्फ बृहदेश्वर मंदिर

तंजौर (तमिलनाडु)

10वीं-11वीं शताब्दी, राजराज-I

वैद्यनाथ मंदिर

तिरूचिरापल्ली (तमिलनाडु)

10वीं-11वीं शताब्दी, राजराज-I

उत्तर कैलाश मंदिर

तंजौर (तमिलनाडु)

10वीं-11वीं शताब्दी, राजराज-I

शिव देवालय

पुलुन्नरूबा (श्रीलंका)

10वीं-11वीं शताब्दी, राजराज-I

ऐरावतेश्वर मंदिर

दारासुरम (तमिलनाडु)

12वीं शताब्दी राजराज-II

त्रिभुवनेश्वर मंदिर या कंपहरेश्वर मंदिर

त्रिभुवनम (तमिलनाडु)

12वीं-13वीं शताब्दी कुलोतुंग-III

वैष्णव मंदिर

नेल्लोर (आंध्र प्रदेश)

12वीं शताब्दी, बुक्का प्रथम

पंपावती का मंदिर

विजयनगर (कर्नाटक)

15वीं शताब्दी, देवराय-II 

पार्वती मंदिर 

चिदंबरम (तमिलनाडु)

15वीं शताब्दी, देवराय-II 

वरदराज पेरूमल मंदिर

कांचीपुरम (तमिलनाडु)

15वीं शताब्दी, देवराय-II 

जलगढ़ेश्वर मंदिर

बेल्लूर (तमिलनाडु)

15वीं शताब्दी, देवराय-II 

विट्ठलस्वामी मंदिर

विजयनगर (कर्नाटक)

16वीं शताब्दी, कृष्णदेव राय

हजारा राम मंदिर

विजयनगर (कर्नाटक)

16वीं शताब्दी, कृष्णदेव राय

मीनाक्षी मंदिर

मदुरई (तमिलनाडु)

नायक वंश

 

पल्लवकालीन स्थापत्य 

  • पल्लव काल के विकास की विभिन्न  शैलि
  1. महेंद्र शैली (610-640 ई.)
  2. मामल्ल शैली (640-674 ई.)
  3. राजसिंह शैली (674-800 ई.)
  4. नंदिवर्मन-अपराजित वर्मन शैली (8वीं-9वीं शताब्दी)
  5. द्रविड शैली 
  • पल्लव शासक महेंद्रवर्मन के समय वास्तुकला में ‘मंडप’ निर्माण प्रारंभ हुआ। 
  • महाबलीपुरम् उर्फ मामल्लपुरम् नगर की स्थापना–  राजा नरसिंहवर्मन ने की
    • चिंगलपेट में समुद्र किनारे 
    • ‘रथ’ निर्माण का शुभारंभ किया। 
  •  राजसिंह शैली के उदाहरण 
    • महाबलीपुरम के तटीय मंदिर
    • अर्काट का पनमलाई मंदिर
    • काँची के कैलाशनाथ
    • बैकुंठ पेरूमल का मंदिर (भगवान विष्णु)

 

महाबलीपुरम् के रथ मंदिर (तमिलनाडु)

  • इन मंदिरों का निर्माण नरसिंह वर्मन द्वारा 630ई. से 658 ई. के बीच चिंगलपेट,मद्रास में हुआ था।
  • ये रथ मंदिर पर्वत को काटकर बनाए गए हैं। 
  • इनकी संख्या आठ हैं। 
    • 1. धर्मराज, 2. भीम, 3. अर्जुन, 4. सहदेव, 5. गणेश, 6. द्रौपदी, 7. पिंडारी. 8. वलैयंकटटै
    • इन आठ रथों में द्रौपदी रथ एकमंज़िला और छोटा है
    • बाकी सातों रथों को ‘सप्त पैगोडा’ कहा गया। 
  • ये मंदिरएकाश्मक रथ कहे जाते हैं। 
  • ये आग्नेय चट्टान से निर्मित हैं।

 

कांजीवरम् का वैकुंठ पेरूमल मंदिर (तमिलनाडु

  • पल्लवों के अधिकांश मंदिर शैव धर्म से संबंधित हैं। 

कांजीवरम् का कैलाश मंदिर – Tamil Nadu

  • राजसिंह ने राजसिंहेश्वर या कैलाशनाथ मंदिर की रचना कांजीवरम् में कराई। 
  • मुख्य मंदिर के पूरब में नारदेश्वर मंदिर है, जिसे महेंद्र वर्मन तृतीय व उसके पुत्र ने बनवाया था। 
  • यह शैव मंदिर योजना में शोर मंदिर के समान है।
  • यह ग्रेनाइट का बना मंदिर है। 

 

शोर मंदिर

  • Mahabalipuram,Tamil Nadu, 
  • Creator: Narasimhavarman I, Pallava dynasty

चोलकालीन स्थापत्य 

  • द्रविड़ वास्तुकला या वास्तुशैली का प्रारंभ –  पल्लव काल में हुआ
    • द्रविड़ वास्तुकला का चरमोत्कर्ष चोल काल में देखने को मिला। 
    • इस काल को दक्षिण भारतीय कला का स्वर्णयुग कहा जा सकता है।
  • चोल शासकों ने द्रविड़ शैली के अंतर्गत ईंटों की जगह पत्थरों और शिलाओं का प्रयोग  किया। 
  • चोल इतिहास के प्रथम चरण (विजयालय से लेकर उत्तम चोल)
    • श्री सुंदरेश्वर मंदिरमदुरै 
    • बालसुब्रह्मण्यम मंदिरकन्नूर (Kannur) भारत के केरल 
    • विजयालय चोलेश्वर मंदिरतमिलनाडु में पुदुकोट्टई जिले
    • कुंबकोनम का नागेश्वर मंदिर 
    • कदंबर मलाई मंदिर 
  • तंजावुर (तंजौर) में बृहदेश्वर मंदिर 
  • गंगैकोंडचोलपुरम् का शिव मंदिर-  (राजेंद्र प्रथम का) 
  • दारासुरम का ऐरावतेश्वर मंदिर
  • त्रिभुवनम का कंपहरेश्वर मंदिर 
  • चोलयुगीन मूर्तियों में नटराज की कांस्य प्रतिमा(तमिलनाडु में चिदम्‍बरम में) सर्वोत्कृष्ट है।

 

बृहदेश्वर मंदिर या राजराजेश्वरम् मंदिर – तंजौर, तमिलनाडु के

  • शैव मंदिर
  • दक्षिण मेरू के नाम से जाना जाता है
  • चोल सम्राट राजराज चोल  प्रथम  (985-1012 ई.) ने बनवाया था है। 
  • मंदिर ग्रेनाइट से बना हुआ है। 
  • इसका शिखर गुमटीदार गुंबद के रूप में है, जो कि अष्टकोणीय है। 
  • 1987 में इसे विश्व विरासत सूची में शामिल किया गया। 

विजयनगर 

  • विजयनगर काल (1336-1646 ई.) के स्थापत्य पर चालुक्य, चोल, पांड्य और होयसलों, का प्रभाव दिखता है। 
  • विजयनगर (हंपी)तुंगभद्रा नदी के किनारे बसा है। 
  • विजयनगर दौर में एक नवीन मंडप का चलन आया, जिसे ‘कल्याण मंडप’ कहा गया। 
  • यहाँ मुख्य मंदिरों के साथ-साथ सहायक मंदिरों की श्रृंखला को जोड़ा गया, जिसे ‘अम्मनशिरीन’ कहा गया। 
  • लेपाक्षी मंदिर – आँध्रप्रदेश 
  • वीरभद्र मंदिर – आँध्रप्रदेश
  • विजयनगर के मंदिर में इस्तेमाल हुए स्तंभ, संगीत का गुण रखते थे, इसलिये इसे संगीतात्मक स्तंभ भी कहा गया। 
    • प्रसिद्ध विजय विठ्ठल मंदिर(कर्नाटक) इसका उदाहरण है।
  • विजयनगर काल में मंदिरों में मूर्ति प्रतिष्ठापन में शासकों और उनकी पत्नियों की भी मूर्ति लगाई जाने लगी। 
    • हजाराराम मंदिर – हम्पी, कर्नाटक 
    • विरूपाक्ष मंदिर- कर्नाटक राज्य के हम्पी में तुंगभद्रा नदी के किनारे 
    • रघुनाथ मंदिर-
    • नरसिम्हा मंदिर-
    • सुग्रीव गुफा- हम्पी, कर्नाटक
    • विट्ठल मंदिर-
    • कृष्ण मंदिर-
    • संगमेश्वर मंदिर – पट्टदकल, कर्नाटक
    • महानवमी डिब्बाहम्पी, कर्नाटक
  • विजयनगर शासकों के दौर में  नगरों की स्थापना
    • विजयनगर उर्फ ‘हम्पी’ – 
      • हरिहर-बुक्का द्वारा स्थापित यह नगर कर्नाटक में है। 
      • ग्रेनाइट एवं क्लोराइट पत्थर से निर्मित शहर
    • विद्यानगर
    • नगलापुरम
    • वेल्लोर 

 

विजयनगर साम्राज्य के कलात्मक योगदान 

  • विजयनगर की कला को द्रविड़ कला कहा गया है
  • एक हज़ार स्तंभों वाले मंडपों का निर्माण विजयनगर मंदिर कला का आदर्श स्वरूप था। 
  • स्तंभों का अत्यधिक इस्तेमाल विजयनगर शैली की अपनी विशेषता है, जिसे ‘बोदिगेई’ कहते हैं।
  • हम्पी शहर (वर्तमान कर्नाटक) के ध्वंसावशेषों में अभी भी विजयनगर के सौंदर्य एवं कलात्मक तत्त्व को देखा जा सकता है
    • विट्ठल एवं हज़ारा राम मंदिर इसके उदाहरण हैं। 

 

मीनाक्षी अम्मन मंदिर तथा नायक शैली – मदुरई

  • मीनाक्षी मंदिर को विश्व के सात अजूबों में नामित किया गया है।
  • इसका निर्माण 17वीं शताब्दी के मध्य में तिरूमलाई नायक के काल में हुआ था। 
  • इस विशाल मंदिर में दो मंदिर भवन हैं 
    • सुंदरेश्वर मंदिर –  शिव को समर्पित
    • मीनाक्षी मंदिर  – शिव की पत्नी समर्पित
  • मीनाक्षी मंदिर को आदर्श मानकर श्रीरंगम (तिरूचिरापल्ली), तिरुवरूर, रामेश्वर तथा चिदंबरम् इत्यादि मंदिरों का निर्माण किया गया। 
  • दक्षिण भारतीय विकसित मंदिरों के तीन प्रमुख अंग हैं
    • 1. गोपुरम् 
    • 2. स्तंभ तथा स्तंभयुक्त विशाल मंडप 
    • 3. पुष्कारिणी या स्नानागार 

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