विद्या सम धन नहीं ‘
देखहु करि म नही गौर , विद्या सम धन न और भारो नहीं करे : भूपति पुनि चोरक दाव तनिको नहीं बनि परे सखि मुढ़ मनुज ताकहुँ परिहरे …। ‘
नागपुरी सिस्ट काब्य कर गौरव – सिखर जयगोविन्द मिश्र कर इ रचना में बिद्या कर महत उपरे जोर देवल जाह हय । गोटा दुनिया में कय मइधका कर धन आहे लगिन बिद्या धन कर अलावे दोसर सउब धन कर महत एकदमें कम | आहे । आपन गीत – कबिता कर माधयम से कवि हामरे से कहेक चाहँना कि इ बिद्या अइसन धन – दउलत हेके जेके ना तो कोइ दउलत वाला लुइट सकेला आउर ना तो चोर इके चोराय सकेला । कबि कहयँना कि ऐहे बिद्या धन से मनुख इ धरती में आदर आउर माइन पावेला । रचनाकार , कबि आपन इ कबिता कर माधयम से कहयँना कि । हामरेकर नींद ई संबंध में टूटेक चाही आउर बिद्या कर महत के जानेक चाही । ऐहे बिद्या कर अइसन असर आहे कि बिसधर सांप हों संगीत कर धुन में आपन सुध – बुध गंवाय बइठेला । सेले हामहेमन के बिद्या कर माइन करते | उकर उपारजन करेक चाही । इनकर रचनामन के देखल इ पता चलेला कि जयगोविन्द मिश्र हनुमान सिंह आउर बरजु राम कर समकालीन कबि रहयँ । नागपुरी गीत कर अलावा इनके | बंगला गीतमन में भी महारत हासिल रहे । इनकर रचनामन रस अलंकार से युक्त हय ।