मराठा साम्राज्य
शिवाजी ( मराठा साम्राज्य का संस्थापक)
- जन्म- 1627 ई. में शिवनेर के पहाड़ी दुर्ग,महाराष्ट्र में
- पिता- शाहजी भोंसले (बीजापुर के सुल्तान के यहाँ प्रथम श्रेणी के सरदार)
- माता- जीजाबाई
- संरक्षक- दादोजी कोंडदेव
- गुरु- रामदास
- राज्याभिषेक- 1674 ई.(रायगढ़ के किले में, महाराष्ट्र)
- राजधानी- रायगढ़ ,महाराष्ट्र
- मृत्यु- 1680 ई.
- शिवाजी ने सर्वप्रथम पूना की जागीर का कार्यभार स्वयं संभाला।
- 1646 ई. में शिवाजी ने स्थित तोरण के किले को जीता।
- 1648 ई. में पुरंदर के किले को जीता।
- 1656 ई. में मराठा सरदार चंद्रराव मोर से जावली का किला जीता।
- शिवाजी ने बीजापुर के सेनापति अफज़ल खाँ की हत्या कर दी और बीजापुर के कई क्षेत्रों को भी जीत लिया जैसे- ‘पन्हाला का किला’, ‘कोल्हापुर’ और ‘उत्तरी कोंकण‘।
- औरंगजेब ने मुगल गवर्नर शाइस्ता खाँ को भेजा ।
- शाइस्ता खाँ ने पूना, कल्याण और चाकन इत्यादि के किले पर अधिकार कर लिया।
- शिवाजी ने शाइस्ता खाँ के शिविर पर छापामार हमला किया तथा शाइस्ता खाँ को घायल कर दिया।
- फिर औरंगज़ेब ने शाइस्ता खाँ को वापस बुला लिया और आमेर के जयसिंह को भेजा ।
- 1665 में शिवाजी को पुरंदर में घेर लिया गया।
- शिवाजी को 1665 में पुरंदर की संधि करनी पड़ी।
पुरंदर की संधि
- शिवाजी को अपने 23 किले, मुगलों को सौंपने थे।
- 12 किले, शिवाजी को अपने पास रखने थे।
- शिवाजी के पुत्र शंभाजी को मुगल दरबार में रहना होगा । उसे 5 हज़ार का मनसब प्रदान किया गया।
- जयसिंह ने शिवाजी को औरंगजेब से मिलने के लिये आगरा भेजा, किंतु वहाँ शिवाजी को कैद कर लिया गया।
- 1666 में वे औरंगज़ेब की कैद से फरार हो गए।
- शिवाजी ने सूरत को तीन बार लूटा-1664,1670,1672
- शिवाजी ने 1674 में अपना राज्याभिषेक रायगढ़ के किले में किया।
- राज्याभिषेक की प्रक्रिया काशी के पंडित गंगा भट्ट द्वारा संपन्न की गई। इस अवसर पर शिवाजी ने ‘छत्रपति’, ‘हैंदव धर्मोद्धारक’, गौ-बाह्मण प्रतिपालक की उपाधि धारण की तथा अपने को ‘सूर्यवंशी क्षत्रिय‘ घोषित किया।
- 1677 में गोलकुंडा की सहायता से शिवाजी ने अपना अंतिम अभियान कर्नाटक में किया तथा जिंजी, वैल्लोर इत्यादि के क्षेत्र को जीता।
- 1680 में शिवाजी की मृत्यु हो गई।
शिवाजीकालीन प्रशासनिक व्यवस्था
केंद्रीय शासन
- शिवाजी के केंद्रीय प्रशासन में ‘अष्टप्रधान’ आठ मंत्रियों का समूह था
- ये सभी मंत्री केवल व्यक्तिगत रूप से शिवाजी के प्रति उत्तरदायी थे तथा उनकी भूमिका सलाहकारी थी।
नोट : पंडित राव एवं न्यायाधीश के अतिरिक्त सभी को सैन्य-सेवा देनी होती थी।
प्रांतीय प्रशासन
शिवाजी ने साम्राज्य को 3 भागों में बाँटा था।
- उत्तरी प्रांत- सूरत से पूना तक। इसके प्रमुख मोरोपंत पिंगले थे
- दक्षिणी प्रांत– इसमें समुद्र तटीय क्षेत्र एवं दक्षिणी कोंकण शामिल था। इसके प्रमुख अन्नाजी दत्तो थे
- दक्षिणी-पूर्वी प्रांत- इसमें सतारा, कोल्हापुर, इत्यादि आते थे। इसके प्रमुख दत्ताजी पंत थे।
नोट : शिवाजी के क्षेत्र को ‘स्वराज‘ भी कहा जाता था।
प्रांत का प्रशासनिक विभाजन
- महाल – राज्य
- परगना – प्रांत
- तरफ – ज़िला (गोलकुंडा और बीजापुर में)
- मौजा – गाँवों को समूह
नोट: ग्रामीण स्तर पर पटेल, कुलकर्णी के अतिरिक्त 12 अलूटे (सेवक), 12 बलूटे (शिल्पी) होते थे।
सैन्य व्यवस्था
- शिवाजी की सेना के प्रमुख अंग- पैदल सेना(‘पायक/पाइक’),अश्व सेना एवं नौसेना थे।
- अश्व (घुड़सवार) सेना
- पागा (शाही घुड़सवार सेना)/बारगीर- नियमित घुड़सवार
- सिलहदार-अनियमित सैनिक
पागा (शाही घुड़सवार सेना)/बारगीर- नियमित घुड़सवार
- 25 घुड़सवार को 1 हवलदार नियंत्रित करता था।
- 5 हवलदार को 1 जुमलादार नियंत्रित करता था।
- 10 जुमलादार को एकहज़ारी नियंत्रित करता था।
- 5 एकहज़ारी को पंचहज़ारी नियंत्रित करता था।
- ‘सर-ए-नौबत’ सेना का सर्वोच्च अधिकारी होता है।
- हवलदार < जुमलादार < एकहज़ारी< पंचहजारी< सर-ए-नौबत
- ‘हवलदार’ और ‘सर-ए-नौबत’ पद मराठों को दिया जाता था।
- ‘सबनिस’ का पद ब्राह्मणों को दिया जाता था।
सिलहदार– ये अनियमित सैनिक थे। ।
नौसेना
- 1658 में कल्याण विजय के बाद नौसैनिक अड्डा स्थापित किया गया।
- कोलाबा शिवाजी की नौसेना का मुख्य केंद्र बन गया।
- उनकी नौसेना में सबसे प्रमुख भूमिका आंग्रियों की थी।
- उस समय उस क्षेत्र में सबसे प्रमुख नौसैनिक शक्ति जंजीरा के सीदियों की थी।
भू-राजस्व व्यवस्था
- शिवाजी ने अन्नाजी दत्तो से भूमि सर्वेक्षण कराया तथा भू-राजस्व व्यवस्था को अहमदनगर के मलिक अंबर की व्यवस्था पर आधारित मापन प्रणाली को अपनाया।
- मापन की इकाई काठी/मूठा थी।
- 20 काठी = 1 बीघा
- 120 बीघा = 1 चावर
- भू-राजस्व की दर 33 प्रतिशत थी, जिसे बाद में बढ़ाकर 40 प्रतिशत कर दिया गया।
- राजस्व अनाज एवं नकद दोनों ही रूपों में लिया जाता था।
- शिवाजी ने लगान वसूली के लिये रैय्यतवाड़ी व्यवस्था को अपनाया। इसमें किसानों के साथ सीधी लगान वसूली की ।
- शिवाजी के समय देशमुखों (जमींदारों) के अधिकारों को समाप्त कर दिया।
- ग्रामीण स्तर पर भू राजस्व वसूली में पाटिल (पटेल) एवं कुलकर्णी थे ।
- पटेल का कार्य भू राजस्व की वसूली था।
- कुलकर्णीभूमि की माप एवं लेखे जोखे से संबंधित था।
मोकासा ( सरंजाम)
- ये जागीरें थीं, जो कि प्रमुख मराठा सरदारों को दिया जाता था। कुछ मराठा सरदारों को नकद में भी वेतन दिया जाता था।
शिवाजी के उत्तराधिकारी
शंभाजी (1680-89 ई.)
- मराठा सेनापति हमीर मोहिते की सहायता से शंभाजी शासक बन गया।
- शंभाजी ने मुगल सूबेदार दिलेर खाँ से समझौता कर लिया जिसमें शंभाजी को 7 हज़ार का मनसब मिला ।
- शंभाजी ने निलोपंत को अपना पेशवा बनाया और उज्जैन/कन्नौज के कवि कलश को मुख्य सलाहकार नियुक्त कर दिया।
- औरंगजेब के विद्रोही पुत्र अकबर द्वितीय को शरण दी ,जो मुगलों से संघर्ष का कारण बन गया।
- 1689 के संगमेश्वर के युद्ध में मुगल सेनापति मुबारक खाँ ने शंभाजी की हत्या करा दी ।
- शंभाजी की पत्नी येसूबाई और पुत्र शाहू को गिरफ्तार कर ली ।
- शंभाजी ने शिवाजी की प्रशासनिक व्यवस्था की रीढ़ ‘अष्टप्रधान’ को नष्ट कर दिया
- उसी के समय से मराठे युद्ध में भी स्त्रियों को साथ ले जाने लगे।
राजाराम (1689-1700 ई.)
- उसने एक नया पद ‘प्रतिनिधि’ का गठन किया और पहला प्रतिनिधि प्रह्लाद निराजी को बनाया।
- मुगलों के आक्रमण के डर से राजाराम इधर-उधर भागता रहा। इसलिये उसे कभी सिंहासन पर न बैठने वाला शासक कहा गया।
- उसने 8 वर्ष तक जिंजी (अर्काट) के किले में शरण ले रखी थी।
- राजाराम ने ‘सरंजाम’ प्रथा को पुनः शुरू कर दिया।
- राजाराम के पलायन का क्रम
- प्रतापगढ़ → पन्हाला → जिंजी → सतारा।
शिवाजी द्वितीय तथा ताराबाई (1700-1707 ई.)
- राजाराम की पत्नी ताराबाई ने अपने पुत्र शिवाजी द्वितीय की संरक्षिका बन शासन किया ।
- दक्षिण कर्नाटक में ताराबाई का प्रभाव बढ़ता चला गया।
- 1700 से 1707 का दौर ‘मराठा स्वतंत्रता संघर्ष’ के नाम से जाना जाता है।
शाहू (1707-1749 ई.)
- शाहू को मुगल कारावास में औरंगज़ेब की पुत्री जीनत-उल-निशा ने पाला था।
- 1707 ई. में बहादुरशाह के समय राजकुमार आजमशाह ने शाहू को कैद से रिहा कर दिया
- शाहू और ताराबाई में उत्तराधिकार का संघर्ष प्रारंभ हो गया।
- 1707 ई. में खेड़ा के युद्ध में ताराबाई को शाहू से पराजित होना पड़ा।
- कोल्हापुर में ताराबाई और उसके पुत्र का प्रभुत्व स्थापित हुआ तो सतारा में शाहू ने राज्याभिषेक करवाया।
- 1731 की वार्ना की संधि के द्वारा कोल्हापुर के शासक ने सतारा की अधीनता स्वीकार ली
- 1749 में शाहूजी की मृत्यु के बाद पेशवा ही राज्य का सर्वोपरि था।
मराठा शक्ति का विस्तार और पेशवा
बालाजी विश्वनाथ(1713-20 ई.).
- शाहू ने एक नये पद ‘सेनाकर्ते’ (सेना को संगठित करने वाला) का सृजन किया और बालाजी को पद सौंपा।
- मुगल शासक फर्रुखसियर के तख्त-पलट में बालाजी ने सैयद बंधुओं का साथ दिया। जिसके तहत एक संधि हुई, जिसमें प्रावधान था कि
- शाहू को शिवाजी का ‘स्वराज’ सौंप दिया जायेगा।
- मराठों द्वारा जीते गये प्रदेशों को भी शाहू को दे दिया जायेगा।
- दक्कन के क्षेत्रों में मराठों को चौथ व सरदेशमुखी का अधिकार होगा, जिसके बदले में 15000 मराठा घुड़सवार मुग़लों की सेवा में रहेंगे।
- कोल्हापुर में शंभु जी द्वितीय को शाहू परेशान नहीं करेंगे।
- मराठा प्रतिवर्ष सम्राट को 10 लाख रुपये खिराज देंगे।
- शाहू की माता एवं रिश्तेदारों को रिहा कर दिया जायेगा।
- तख्त पलट के बाद शासक रफी-उद्द-रजात ने इस संधि को स्वीकार लिया।
- रिचर्ड टेम्पल ने इस संधि को ‘मराठों का मैग्नाकार्टा‘ कहा है।
- 1720 में बालाजी विश्वनाथ की मृत्यु के बाद शाहू ने उनके बड़े पुत्र बाजीराव प्रथम को पेशवा नियुक्त किया।
बाजीराव प्रथम (1720-40 ई.)
- बाजीराव प्रथम ने शाहू से कहा कि “अब वक्त आ गया है कि जर्जर वृक्ष के तने पर प्रहार किया जाये तो हमारी सत्ता अटक से कटक तक स्थापित हो जायेगी“।
- इसी संदर्भ में उसने छत्रशाल बुंदेला की सहायता की और मुग़लों तथा रूहेलों द्वारा छीने गये उसके प्रदेशों को वापस दिलाया।
- इसी समय बाजीराव की मुलाकात मस्तानीबाई नामक युवती से हुई।
- 1724 में निज़ाम-उल-मुल्क ने ‘शकूर खेड़ा’ के युद्ध में मुगल सूबेदार मुबारिज़ खां को शिकस्त दी। संभवतः इसमें बाजीराव ने सहायता की, क्योंकि अभी निज़ाम के प्रति उसने तटस्थता की नीति अपनाई।
निज़ाम से संघर्ष
- ‘चौथ’ और ‘सरदेशमुखी‘ के प्रश्न पर हैदराबाद व बाजीराव के बीच, मुख्यत: 2 संघर्ष हुये:
- 1728 का पालखेड़ा का युद्ध, जिसमें निज़ाम पराजित हुआ और उसे ‘मुंगी शिवगांव की संधि‘ करनी पड़ी।
- 1737-38 का भोपाल का युद्ध, यहाँ भी निज़ाम को पराजित होकर ‘दुरई-सराय’ की संधि करनी पड़ी।
नोट: 1731 की वार्ना की संधि के द्वारा कोल्हापुर के शासक ने सतारा की अधीनता स्वीकार ली, जो बाजीराव-I की बड़ी उपलब्धि मानी जाती है।
- 1737 ई में बाजीराव ने बड़ी तीव्रता से मात्र 500 सैनिकों के साथ दिल्ली पर आक्रमण किया और मुहम्मद शाह रंगीला को दिल्ली छोड़नी पड़ी। गुजरात, मालवा, बुंदेलखंड पर भी मराठों ने प्रभुत्व की पताका लहराई।
- शिवाजी के बाद गुरिल्ला पद्धति का सर्वश्रेष्ठ संचालक।
- पुर्तगालियों से सालसेट व बसीन प्राप्त किया।
- संघीय ढाँचे की शुरुआत इसी के समय प्रारंभ होती है।
बालाजी बाजीराव (1740-61)
- नाना साहब के नाम से प्रसिद्ध।
- 1750 की ‘संगोला की संधि‘ से पेशवा मराठा साम्राज्य का वास्तविक शक्ति बन गया। इसे पेशवाओं के लिये ‘राजनैतिक क्रांति’ कहा जाता है।
- यह अपनी राजधानी सतारा से पूना ले आया।
- इसके शासनकाल में मराठा साम्राज्य का अधिकतम विस्तार हुआ। मालवा,बुंदेलखंड पर अधिकार को कायम रखते हुये इसने तंजौर को भी जीत लिया और सबसे बढ़कर राजपूत क्षेत्रों से भी चौथ वसूलने लगा।
- इसने ‘हिंदू पद पादशाही’ धर्म का उल्लंघन किया।
निजाम से संघर्ष
- 1752 में निजाम को शिकस्त दी और निजाम को ‘भलकी की संधि’ करनी पड़ी।
- 1757 में उसने निजाम को ‘सिंदरखेड़’ के युद्ध में हराया।
- 1760 में उदगीर के युद्ध में निजाम पुनः परास्त हुआ।
- इसने इमाद-उल-मुल्क को वजीर बनने में सहायता की।
पानीपत का तृतीय युद्ध (1761 ई.)
- पानीपत का तृतीय युद्ध अफगान शासक अहमद शाह अब्दाली एवं मराठों के बीच लड़ा गया।
- इस युद्ध का मुख्य कारण यह था कि अफगान शासक अहमद शाह अब्दाली ने पंजाब में राजकुमार तैमूर को अपना प्रतिनिधि नियुक्त किया था। किंतु, मराठों ने उसे हटाकर अपना प्रतिनिधि नियुक्त कर दिया, जिससे असंतुष्ट अब्दाली ने पुनः आक्रमण कर दिया।
- इस युद्ध में मराठों की पराजय हुई।
- इस युद्ध का नेतृत्व पेशवा बालाजी बाजीराव का चचेरा भाई सदाशिवराव भाऊ एवं पेशवा का पुत्र विश्वास राव कर रहे थे। मराठों की ओर से तोप खाने का नेतृत्व इब्राहिम गार्दी ने किया।
- इस युद्ध में अहमद शाह अब्दाली के साथ शुजाउद्दौला (अवध), नजीबुझौला रूहेला, हाफ़िज़ रहमत खाँ, दुदि खाँ एवं सादुल्लाह खाँ थे।
- इस युद्ध का आँखों देखा वर्णन काशीराज पंडित ने किया।
- मराठों की पराजय की सूचना पेशवा बालाजी बाजीराव को काशीराज पंडित ने इन शब्दों में भेजी, ” दो हीरे नष्ट हो गए,अर्थात् युद्ध के दौरान सदाशिवराव भाऊ एवं विश्वास राव तथा अनेक योग्य मराठा सरदार मारे गए।
माधव राव (1761-72)
- माधव राव (1761-72) 17 वर्ष की उम्र में पेशवा बना।
- 1771 में मुगल बादशाह शाहआलम द्वितीय को दिल्ली की गद्दी पर पुनः बैठाया ।
- मुगल बादशाह अब मराठों का पेंशनभोगी बन गया।
- 1772 में माधव राव का क्षय रोग से निधन हो गया।
- ग्रांट डफ के अनुसार- “पानीपत का युद्ध मराठा साम्राज्य के लिये इतना हानिकारक सिद्ध नहीं हुआ, जितना कि इस श्रेष्ठ शासक का असामयिक देहांत हानिकारक रहा।”
- उसकी मृत्यु के बाद पुणे में बालाजी बाजीराव के छोटे भाई रघुनाथ राव और माधवराव के छोटे भाई नारायण राव के मध्य सत्ता के लिये संघर्ष आरंभ हो गया।
नारायण राव (1772-73)
- माधव राव के बाद उसका छोटा भाई नारायण राव (1772-73) पेशवा बना, लेकिन 1773 ई. में उसके चाचा रघुनाथ राव ने उसकी हत्या कर दी।
- नारायण राव की हत्या कर रघुनाथ राव अंग्रेजों की शरण में भाग गया,जबकि नया पेशवा माधव नारायण राव अल्पवयस्क था।
माधव नारायण राव(1774-96)
- माधव नारायण राव को ‘बारा भाई परिषद्’ ने संरक्षण प्रदान किया। इस परिषद् में नाना फड़नवीस प्रमुख थे।
- इसी के कालं में प्रथम आंग्ल-मराठा युद्ध (1775-1782) हुआ।
- इस समय उत्तर के मराठा शासकों में सर्वाधिक शक्तिशाली महादजी सिंधिया थे। उसने आगरा के पास शस्त्र निर्माण के कारखाने स्थापित किये।
- महादजी की सलाह पर ही मुगल सम्राट शाहआलम द्वितीय ने पेशवा को ‘नायब-ए-गुनायब’ बनाया।
- माधव नारायण राव ने 1796 में आत्महत्या कर ली।
- इसी बीच अनेक मराठा सरदारों ने अर्द्ध-स्वतंत्र राज्य बना लिये, जिसमें प्रमुख थे-
- बड़ौदा के गायकवाड़
- इंदौर के होल्कर
- नागपुर के भोंसले
- ग्वालियर के सिंधिया
बाजीराव द्वितीय(1796-1818)
- माधव राव नारायण के पश्चात् रघुनाथ राव का पुत्र बाजीराव द्वितीय पेशवा बना।
- 1802 में बाजीराव द्वितीय से अंग्रेज़ों ने ‘बसीन की संधि’ की। इस संधि के कारण पेशवा कंपनी के प्रभुत्व में आ गया।
- बाजीराव द्वितीय के समय द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध (1803-1805) हुआ।
- द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध में अंग्रेजों की विजय हुई।
- तृतीय आंग्ल-मराठा युद्ध (1816-1819) में भी मराठा हार गए। इसके बाद पेशवा का पद हमेशा के लिये समाप्त हो गया। बाजीराव द्वितीय को अंग्रेज़ों ने वार्षिक पेंशन देकर कानपुर के निकट बिठूर भेज दिया।
- 1851 में बाजीराव द्वितीय की मृत्यु के बाद अंग्रेजों ने उसके पुत्र नाना साहब (धोंधू पंत) को पेंशन देने से इनकार कर दिया।
- नाना साहब ने 1857 के विद्रोह में भाग लिया। अंग्रेजों द्वारा दमन प्रक्रिया आरंभ होने पर वह नेपाल भाग गया।
आंग्ल-मराठा संघर्ष
- अंग्रेजों और मराठों के बीच तीन युद्ध हुई, जिसमें अंग्रेज़ अंतिम रूप से विजयी हुए।
- नारायणराव के पुत्र माधव नारायणराव को जब पेशवा घोषित किया
- रघुनाथ राव ने बंबई की अंग्रेजी सरकार से ‘सूरत की संधि’ (1775) की।जिसका कलकत्ता अंग्रेजी सरकार ने विरोध किया।
- सूरत की संधि (1775)
- पेशवा पद के बदले नज़राना अंग्रेजों को
- सालसेट, बसीन व थाणे का क्षेत्र अंग्रेजों को देना
- सूरत एवं भड़ौच का राजस्व भी अंग्रेज़ों को
- इसके बदले अंग्रेज़ रघुनाथ राव पेशवा बनाने पर सहमत हो गए।
प्रथम आंग्ल-मराठा युद्ध (1775-1782)
- सूरत की संधि के तहत कर्नल कीटिंग के नेतृत्व में 18 मई, 1775 को ‘आरस के मैदान , सूरत ‘ में अंग्रेजों और मराठा सेनाओं के बीच युद्ध हुआ, जिसमें मराठों की पराजय हुई। इसके बाद पुरंदर की संधि हुई।
पुरंदर की संधि (1776)
- कंपनी रघुनाथ राव का समर्थन नहीं करेंगी
- सालसेट व थाणे पर अंग्रेज़ों का प्रभुत्व बना रहेगा।
- पुरंदर की संधि कलकत्ता की अंग्रेज़ी सरकार और पूना दरबार के बीच हुई थी। बंबई की अंग्रेजी सरकार ने पुरंदर संधि का विरोध किया। पुनः युद्ध छेड़ दिया।
तालगाँव की लड़ाई,1779
- पश्चिमी घाट में स्थित तालगाँव की लड़ाई में अंग्रेजों को पराजय झेलनी पड़ी।
- बंबई सरकार को पूना दरबार से बड़गाँव की संधि करनी पड़ी।
बड़गाँव की संधि (1779)
- 1773 के बाद बंबई सरकार द्वारा विजित सारे मराठा क्षेत्र वापस करने पड़े।
- वारेन हेस्टिंग्स ने इसे मानने से इनकार कर दिया।
- बाद में अंग्रेज सरकार और पूना दरबार के बीच सालबाई की संधि हुई।
सालबाई की संधि (1782)
- सालसेट व एलफेंटा अंग्रेजों के पास
- कंपनी ने पेशवा को पेंशन देना स्वीकार कर लिया।
- फडनवीस को ‘मराठों का मैकियावेली‘ कहा जाता था
- पेशवा ने 1801 में जसवंत राव होल्कर के भाई की हत्या कर दी तो होल्कर ने पेशवा तथा सिंधिया की सम्मिलित सेना को ‘हदपसर’ नामक स्थान पर पराजित किया, पेशवा ने भाग कर बसीन में शरण ली। जहाँ उसने अंग्रेजों से बसीन की संधि की।
बसीन की संधि (1802)
- पेशवा ने अपनी स्वायत्तता अंग्रेज़ों को सौंप दी।
- पेशवा ने पूना में अंग्रेज़ी सेना को रखना स्वीकार किया।
- गुजरात तथा तुंगभद्रा नदी के दोआब क्षेत्र अंग्रेजों को सौंप दिये
- मराठों के विदेशी संबंध अंग्रेज़ों के अधीन हो गए।
- पेशवा ने सूरत नगर कंपनी को सौंप दिया।
बसीन की संधि (1802) द्वितीय-आंग्ल मराठा युद्ध का कारण बनी क्योंकि इस संधि के प्रावधान मराठा सरदारों को अपमानजनक लगे।
द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध (1803-1805)
- अंग्रेजों ने ऑर्थर वेलेजली के नेतृत्व में दक्कन में तथा जनरल लेक के नेतृत्व में उत्तर भारत में मराठों के विरुद्ध सफल अभियान किए।
- 23 सितंबर, 1803 को आर्थर वेलेजली ने सिंधिया और भोंसले की संयुक्त सेनाओं को पराजित किया।
- उत्तर भारत में जनरल लेक ने दिल्ली और आगरा पर कब्जा कर लिया।
- भोंसले और सिंधिया को विवश होकर अंग्रेजों से संधियाँ करनी पड़ी।
- बाद में होल्करों ने भी राजपुर घाट (1805) की संधि की।
तृतीय आंग्ल-मराठा युद्ध (1816-1819)
- तृतीय आंग्ल-मराठा युद्ध का तात्कालिक कारण गवर्नर जनरल लॉर्ड हेस्टिंग्स की दमनात्मक नीतियाँ भी थीं।
- हेस्टिग्स ने पिंडारियों के विरुद्ध अपने अभियान की शुरुआत की
पिंडारी (Pindari)
- पिंडारी मराठा सेना में अवैतनिक सैनिकों के रूप में अपनी सेवा देते थे। ये लूटमार करने वाले दलों के रूप में होते थे।
- इनकी नियुक्ति बाजीराव प्रथम के समय शुरू हुई थी। ये मराठों की ओर से युद्ध में भाग लेते थे, जिसके बदले उन्हें लूट से हिस्सा दिया जाता था।
- पिंडारियों के विरुद्ध हेस्टिंग्स की प्रत्यक्ष कार्रवाई से तृतीय आंग्ल-मराठा युद्ध शुरू हो गया।
पूना की संधि और पेशवा का अंत
- पेशवा का समस्त राज्य अंग्रेजी बंबई प्रेसिडेंसी में विलय ।
- संधि के बाद पेशवा का पद 1818 में समाप्त कर दिया गया और बाजीराव द्वितीय को कंपनी का पेंशनर बनाकर बिठूर (कानपूर, उत्तर प्रदेश) भेज दिया गया।
- पेशवा के सहायक त्रियंबकराव को आजीवन कारावास देकर बनारस के पास चुनार के दुर्ग में केद कर दिया गया।
- नाममात्र के छोटे से राज्य सतारा में छत्रपति शिवाजी के वंशज को राजा बनाया गया।
- इस प्रकार हेस्टिंग्स ने पेशवा का अंत कर दिया।