ताना/टाना भगत आंदोलन Tana Bhagat Andolan

ताना/टाना भगत आंदोलन (1914) /Tana Bhagat Andolan

  • उपनाम – उरांव आंदोलन , कुरूख धर्म आंदोलन 
    • कुरूख धर्म – उरांव जनजाति का मूल धर्म
  • प्रारंभ –  21 अप्रैल, 1914 ई. में गुमला से,
  • नेतृत्वजतरा भगत  
    • अन्य लोग 
      • मांडर – शिबू भगत, 
      • घाघरा – बलराम भगत, 
      • बिशनपुर – भिखू  भगत ,
      • सिसई – देवमनिया (महिला)
  • इस आंदोलन को बिरसा मुण्डा के आंदोलन का विस्तार माना जाता है। 
  • स्वरुप – संस्कृतिकरण आंदोलन 
    • प्रमुख उद्देश्य –  स्वशासन की स्थापना करना
    • एकेश्वरवाद को अपनाना 
    • मांस-मदिरा के त्याग 
    • आदिवासी नृत्य पर पाबंदी 
    • झूम खेती की वापसी 
  • 1916 में जतरा भगत को गिरफ्तार 
    • एक वर्ष की सजा के बाद जेल से रिहा होने के दो माह बाद ही जतरा भगत की मृत्यु
  • टाना भगत वर्ग का दो भागों में विभाजन 
    • ‘जुलाहा भगत’ – मांस खाने वाले वर्ग 
    •  ‘अरूवा भगत’  – शाकाहारी वर्ग

अन्य नेता 

  • 1919 में गिरफ्तार 
    • शिबू भगत, देविया भगत, सिंहा भगत, माया भगत व सुकरा भगत 
  • चौकीदारी कर एवं जमींदारों को मालगुजारी नहीं देने का आह्वान 
    • दिसंबर, 1919 ई. में तुरिया भगत एवं जीतू भगत ने 
  • पहला आदिवासी अहिंसक आंदोलन 
  • 1921 के महात्मा गाँधी के असहयोग आंदोलन में ताना भगतों का  योगदान
  • ताना भगत ने कांग्रेस अधिवेशन में भाग लिया था
    • 1922 के गया अधिवेशन (37th ) 
    • 1923 के नागपुर अधिवेशन में 
    • 1940 के रामगढ़ अधिवेशन में (53 rd – मौलाना अबुल कलम आजाद  )
  • ताना भगतों द्वारामहात्मा गाँधी को 400 रूपये उपहार
  • ‘राँची जिला ताना भगत पुनर्वास परिषद्’ अधिनियम पारित1948 में 

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