सरंची कमल सर्ग Saranchi Kamal Damuderak Koran Shivnath Pramanik FOR JSSC JPSC

       सरंची कमल सर्ग  Saranchi Kamal Damuderak Koran  Shivnath Pramanik FOR JSSC JPSC

      Damuderak Koran  Shivnath Pramanik FOR JSSC JPSC

      दामुदेरक कोराञ्  शिवनाथ प्रमाणिक

      khortha (खोरठा ) For JSSC JPSC 
      KHORTHA (खोरठा ) PAPER-2 FOR JSSC

       सरंची कमल सर्ग,दामुदेरक कोराञ्

      दामुदर नदी की गोद में 

      अध्याय-2 : सरंची-कमल 

      • इस अध्याय में संरची और कमल की प्रेम कथा कही गई है।

      • संरची एक आदिवासी (घटवार) कन्या है और कमल केतु उमादित्य का बेटा कालकेतु का पुत्र है अर्थात राजकुमार है। 

      • एक बाघ को मारने के लिए कमलकेतु स्वयं अपने साथियों के साथ वन में जाता है और भटक जाता है। वह अकेला रह जाता है। 

      • दूसरी ओर सोहराई अवसर पर काड़ा जंगल की ओर भाग जाता है। सरंची उसकी तलाश में वन में जाती है। 

      • बाघ कमलकेतु पर हमला करता है। ऐन वक्त पर  सरंची बाघ पर अपना भाला चला देती है। बाघ मर जाता है। लेकिन कमलकेतु घायल हो जाता है। 

      • संरची उसकी सेवा करती है। कमलकेतु से आंखे चार होती है। 

      • कमलकेतु तन से तो घायल था ही मन से भी घायल हो जाता है। 

      • कमलकेतु के बिछड़े साथी उसे खोजते हुए आते आते हैं और घायल कमलकेतु को घोड़े पर लादकर राजमहल ले जाते हैं। 


      सरंची-कमल


      के लागे ऊ हमर जिनगिक डहरें चलल जाइ, 

      डारी-डारी हम चलों ऊ पातें उड़ल जाइ। 

      हमरा कोऽड़ बड़ी मिलल ओकर लुगाक आँचरें, 

      मेंतुक आँचरा भींज गेल निजेक आँखिक लोरें। 

      ताड़िक कुंबे गुड़िया रसें

      मन हमर गमगमियाँ, 

      चुका आर दोने हेरों

      . रूप ओकर चनफनियाँ 

      फुकटलों हमें बाँसी

      टुगरिक उपरें,

       हरिनेक मोहड़े देखा देली

      गाछेक ओड़े-ओड़ें। 

      आघा अंग पुरा भेल

      बिहाक हमर रातीं, 

      राइत जे बीतल हमर

      सुहागेक खाटीं। 

      खाटी गतलें हमरा

      ऊ जरी-बुटी खिवे, 

      चेठा घुरवे खातिर

      ऊ दूध-पानी पिवे। 

      पहार चढइते संगी

      ऊ डाँग बइन जाइ, 

      हड़पा बानें बोहइतें,

      ऊ फानसी बइन जाइ। 

      नाना रंगें, नाना रूपें

      नाना छंदे नाना धंधे, 

      परकीरतिक अडगुड़ जुगुत

      मरद बइसल जनिक कांधे । 

      समाजेक घाड़ें मरद बइसला

      नारिक देला जेहल, 

      लगाम आपन मने कसला

      निजें लेला रंगमहल । 

      समाजें परल बिपइत भारी

      कइली-सिनगी-चंपा नारी, 

      आपने खइला माइर-गारी

      सहीद भेला तथं अइसन नारी। 

      नारिक सँवारल समाज, संझुवाइल-सरजुताइल | 

      सरगताइल, सलसलिया समाज सगरठे सोझाइल | 

      नारी नरेक कुलुप काठी

      नारी मरदेक मोच, 

      नारी नरेक जीनगिक साथी

      महुवाक जइसन खोंच। 

      नारी बेटी, नारी बहिन

      नारी संगी, नारी मात्र, 

      तनेक नारी, मनेक नारी

      नारिक पटतइर केउ नाञ।

      एक नारिक जनम भेइल बोन महुवारें। 

      कमल फूलेक कोंढ़ी नियर, जनमली घटवाहा घरें ।। 


      सरंची नावे बोन बालिका

      खेले हरिनेक जोरें, 

      कोकिल तरी मधुर कंठे

      गाँव मधुर सुरे। 

      काँड़-धेनुक हाथें लइकें

      आदिबासी बाला, 

      खेरहा-तितीर माइर बुले,

      डेगें गाढ़ा-नाला। 

      लाल टहटह गातेक रंग

      टेसु फूल अइसन, 

      रूओकर अइसन चमके

      चाँद चमके जइसन ।

       मधुमासें महुवाक फुल

      रसें टलमल करे, 

      सरंचिक फुटल गात टा रे

      अन्तर टा हेमाल करे। 

      सलसलिया सोहल्या सरइ

      नावाँ कड़िला रकम, 

      सगरठ सिआड़ी गादर

      बरइ, फरल रकम । 

      जइसन रूप वइसन गुन

      पइली सरंची बोने, 

      नाँव करथ दामुदरेक लोक

      गाँवेक जने-जने। 

      नजइर गाब्चाइ भाइल देखइ

      घटवाहा कुवाँरी, 

      लेभरा-लेरगाक लार चुवे

      देइखके सुन्दरी।


      सेनाक रंगे धान भेल, अधन-पुसेक मासें ।

       महमहाइ गेली धरती, झइर बरिसाक सेसें ।। 


      सोहाइ गेल घर-दुवाइर

      सोहराइ परबें, 

      मोहाइ गेला सयान छउवा

      सँवइ के गरबें। 

      आरना काड़ा खुंटाइ गेल

      सरंचिक दुवाइरें, 

      हेले-डुडु खेले लागला

      कुल्हिक माँझारें। 

      खुइन डबके लागल काड़ाक

      ढाकेक झोकारी, 

      अँडरें लागर आरना

      खुंटाक धारी-धारी। 

      उखराइ झुटा आरना काड़ा

      पिदकल महुवारी, 

      चोकाइ गेलि सरंची

      हाइ ! कि भेल माइरी! 

      काँड-धेनुक, पइना हाथें

      धरली बीर कुँवारी, 

      पेछु-पेछु काड़ाक रगदे

      जोरियाक धारी-धारी। 

      झोंकाइल काड़ा इँडइक देल

      पिंडराक गाजार-बोने, 

      हइरलाक बोन डेंगल-फांदल

      थिरइले लकराक खंदे। 

      सरंचिक पीठे काँड़-धनुक

      हाथें सोझ पइना, 

      गाछेक ओड़े-ओड़े नले


      आपन काड़ा आरना। 

      “आव, आव रे ! हमर अरना

      घर घुइर आव, 

      आर नात्र झोंकइबो तोरा

      नाञ खेलबो घाव ।” 

      कान पाइत जइसे सुनले

      बोनेक जनावर, 

      सिहइर गेल अरनाक गात

      इँडकल जइसन साँवर । 

      थकल अरना बाघजोबरें

      हेमाल पानी जोबरल, 

      बोने-बोनें टावा करे

      सरंचिक गात घामें चोभरल। 

      कुसुम, तेंतइर, भेंडरी पाल्हा

      पुटुस झारे नुकाइल, 

      बाघजोबरा, जोरियाक मुँह

      गाजार-बाने तोपाइल | 

      बाघेक सुंइध बाघजोबरा

      बाघिन जहाँ बिआइ, 

      जहाँ मानुसेक नाँव-चिंता नाज

      काड़ा हुवाँ नुकाइ। 

      कुचकुचिया अंधार राइतें

      हेराइल हीरा जेरम खोजे, 

      बोनक भीतर सरंची रानी

      आपन आरनाक सेरम खोजे । 

      सइ सँवइ बाघजोबराक बाघ

      मानुसखोर भेल हल, 

      राजाक बेटा कमलकेतू

      बोने बाघ खोजऽहल।

      काँड़-धनुक, बलम-टाँगी

      लइके घोड़े चढ़ल, 

      एकाइ घुरे कमलकेतू ओकर

      बोनें संगी छुटल। 

      सप्-सप घाम चुवे

      कमलकेतुक गातें, 

      मानुसखोरेक टावा करइ

      बोनेक डाइर-डोहरा पातें। 

      आदिवासिक (होड़ेक) संगे जय भेल

      सइ बोन जयाकोचा, 

      पुरखाक माटीं पहुँचल

      केतुक लागल नात्र खोंचा। 

      पुरान डीड़ाञ नाइभ गेल

      अंकसरेक बीर पूत, 

      माटिक पियारा राजाक बेटा

      खेयाले पुरखा-बापुत । 

      हिन्दे थइक सरंची नुनी

      लारू-पातु भेल हली, 

      आमेक जुड़े सीतल बतासें

      निरभयें सुतल हली। 

      कुहु-कुहु मधुर कंठे

      कोकिला, सरंचिक जगावे, 

      पिउ-पिउ बोन-पपीहा

      अमरीत सुख पावे।

      कमलकेतुक नजइर परे, बन बालिकाक उपर 

      धुक धुक जीउ धक-धक छाती, मुँहें बात नाज उसरल ।


      पिधल-ओढ़ल सिंगार भेसें

      साजइ बन कुँवारी, 

      उपरनी तो घसइक गेल

      सीतल बयारी। 

      डरडरान राजाक बेटा

      डेरा तनी उठावल, 

      नले लागल तिरियाक भेउ

      बोने ई कि पावल! 

      हाइचक भइ गेल कमलकेतू

      आँइखे मिटिक नाञ मारइ, 

      नारी गाछेक फूलल कोंढ़ी

      तइनको थिर नात्र रहइ ! 

      संवइ-जघऽ भुइल गेल

      कमकेतू काम सूरे, 

      बनबालाक रूपेक मधु

      नयने सेवन करे। 

      मालिनिक फूलेक माला

      मह-मह-मह-महाइल, 

      मोहाँइ गेल महाँजनेक बेटा

      बतर सिरे अइसन कि

      हिछे लागलइ घोड़ा, 

      कमलकेतू थनवे घोड़ा

      कखनु सरंचिक मोहड़ा। 

      हड़बड़ाइल उइठ सरंची

      छाती हाथ धरी, 

      सइरवे लागली आपन विंधना

      नजइर हुन्दे करी।


      कइसके कमर, धरती काँड

      बोनेक बीर बालिका, 

      लखे अनचिन्हार जुवान मुँह

      सरंची रन चंडिका । 

      चनफन रूप-रंग राजाक बेटा

      सरंची मने भाभइ, 

      मानुस लाइ ने मुदइ लाइ !

      कखनु दिकु मने करइ। 

      झाड़ गुने झींगा

      आर धिया गुने पुता, 

      परदेसी दिकुक आटा-पाटा

      सरंची से कथिक नाता।

       “डेग बढ़उलें मार बो काँड

      फाँफर करबों करजी, 

      हाथेक बलम फेंइक दे पापी

      ने तो देख। सरंचिक मरजी।” 

      भय, सिरिंगार, अड़गुड़, राग

      करून, सांत, बीर, 

      सातो रसेक सरेची बाला

      कबिक माथा थीर। 

      हाथें बलम नजइर कर

      मुँयें बलम फेंइक देल, 

      हाथ जोइर कमलकेतू

      बीचें तनी डाँडाइ गेल। 

      तुडुप-तुड़प करइ छाती

      अन्तरें मन सरल, 

      डरें-डरें राजाक बेटा

      कमलकेतू नेहोर करल

      हे बनबाला! के लागे तो?


      या बनराखी, बनदेबी तोय ? 

      या बनमाला या बनमाया?

      कि जोगनी भैरवी तो? 

      कि आदिकुल के बोंगी तोज?

      या मगधदेब के संगी तो? 

      या सक्ति माञ चंचला देबी?

      कि दामुदर के डोंगी तो? 

      कि बिहार के बिहारिनी?

      या गौतम बुद्धक पुजारिनी

      धरतीक झारखण्डी देबी

      कि उमादित्येक बरूनी

      कि चाँद के इंजोरी लागें?

      ने ललुहन रंफ झलफलिया? 

      के लागे  तनी कह चंडिके?

      ने भादरेक सोभा झींगफुलिया? 

      कि लिखवइयाक पांडुलिपि?

      ने कबिक निरबंध छन्द? 

      धुराञ लोटोहियो देबी

      भेलों हम तोर पाइबन्दा 

      चहँइट गेल कमलकेतू

      टेहुनागादा गाड़ार-गुडुर,

       “खबरदार हबड़िहें नाइ!”

      सरंची गरजे, नले टाकार-टुकुर। 

      कमलकेतुक चनफन रूप

      सरंचिक अंतरें, 

      हेमाल पानी हिलोर मारे

      भयेक समुदरें। 

      टाटक करे लागली सरंचि

      कामलकेतुक चँहटे नात्र देल,


      “तोत्र के लागें? बताव पहिले”

      रागरसें पुछल गेल।

       “बाप हमर राजा कालकेतू

      उमादित्य हमर पुरखा, 

      नाँव कमलकेतू हमर

      काम बनबासिक रइखा।” 

      राजाक बेटा ! चिन्ह-चाइन्ह

      सरंचिक गातें आइग लागल,

       ‘बनबासिक रइखा’ बात सुइनके

       मुँह से आइग बाहराइ लागल

      “चेचगाँव गढ़ेक राजाक राजाक बेटा

      जंगली जीवेक रखवइया,? 

      तोर बापें जंगल काइट देल

      माटिक पइरधन उघरवइया!

       “माय  माटिक नंगट कइर देल

      उमादित्य तोर पुरखा, 

      बन मानुसेक माँस नोंचल

      तोञ अब करबें रइखा! 

      हीरा-सोना-चंदन हरल

      अंकसरेक राजाक गोड़ी, 

      बापेक चाप दाढ़ी भेलें

      बेटाको हवइ थोड़ा-थोड़ी। 

      गाँइठ बाँइध ले हमर बात

      नजइर नाय  लगइहें, 

      घटवाहाक बेटी हम लागी

      अगिन काँड़ देइख लिहें। 

      फूल अइसन मन हमर

      बज्जर अइसन गात 

      फूलवें गेलें हम नात्र फूलबो


      देखबें हमर एखने घात? 

      माटिक मुरूत-भूत पूजे

      तोर माय -बहिनें, 

      भुतनिक बेटा तोय लागें

      टरकिए जो हमर दहइने ।”


      बकिता बंद कइर बाला, मने-मन कुरचे लागली । 

      कमलकेतुक रूप-रसें, मेतुक से नात्र मातली ।।


      ‘भुतनिक बेटा’ सुइन केतुक

       गोड़ेक लहइर चांदी फुटलइ,

       “ऐ फेटाइन ! मुँह सम्हार

      ने तऽ हमर काँड छुटलइ।”

       “बक-बक ना कर दिकुक बेटा

      साँढ़ जनमल फेटाइन सें, 

      जनिक गरमें मरद रहे

      तनी सरम कर फेटाइन से।

      ” फिंगाठी आलिंगाक संगे

      कटनउसी अड़गाही, 

      उलखना सरगबिंधा पटतइर

      इंगित मार फेंचाही।

       झींगाफूल फुइट गेल

      चिलुम फूल झमइर गेल, 

      सँवइ आर ने जघक धइयान

      फूल सुंदरिक बेरा भेल। 

      सइरजुतवे लागला काँड़-धनुक

      दुइयो बाटें तानातानी, 

      डाँडाइ गेली सरंची बाला

      देखवे खातिर करदानी।


      सइ बतरें पुटुस धुंधे

      सुखल पात खरबराइल, 

      कमलकेतुक घोड़ा तखन

      जोऽर से हिनहिनाइल 

      बन के बहादुर बेटी


      हिन्दे-हुन्दे थनवे, 

      राजाक बेटा कमलकेतू

      काँड़-धनुक लइ ओनवे। 

      लउतन डर लउतन भेउ

      बोनेक भितर खटक भेल, 

      कमलकेतू मने भाभे

      आयाँ मुदइ देखा देल। 

      साड़ा देला चेर-चुनगुनी

      बइन गेल डरडरान भाव, 

      पुटुस झार लइख काँड़

      सरंची-केतू करला घाव | 

      परान-चित्कारं अँडराइ उठल

      बाघजोबराक आदमखोर, 

      झाँप्देल केतुक उपर

      चंडिक छुटे काँड़ेक जोर। 

      मारू बाजा बजवे लागला

      चेरइ-चुनगुन घोड़ा, 

      केतुक बलम लइकें बाला

      फारे बाघेक जबड़ा । 

      गोंथा-गोंथी, पटका-पटकी

      डोले लागती धरती, 

      गरइज-गरइज के सरग काँपे

      तीनोक एके गति। 

      झालाक-झुलुक आंधार राइतें

      बाघेक आँइख अइसन चमके, 

      आसाढ़-सावन सासेक राइतें

      बदरिक ठेर जइसन चमके । 

      पारसनाथ-लुगु जे नियर

      बलगरी देखावे, पोड़लमुँह बीर बांदर

      दुगो धुराँइ-माटी होवे। 

      छल-छल बोहे खुइन

      तीनों जीवेक घेचा से, 

      कल-कल झरना बोहे

      पहारी कोचा सें। 

      कलकेतुक छोइड़ बाघ

      झपटे सरंचिक ओर, 

      फाइर देल गातेक पइरधन

      खुइनहारा आदमखोर। 

      बिन पइरधन के भइ गेलि

      बोनेक बीर बाला, 

      बज्जर-बलम माइर देली

      बीर घटवाहा बाला। 

      अँडराड़ के बाघ मोरल

      जंगल चंडिक हाथें, 

      राजाक बेटा कमलकेतुक

      हावा मिलल गातें।


      छाना-छिटका बदरी मिलल

      घटा घनघोर, 

      सरंची-केतुक आँइख मिललइ

      ढरके लागलइ लोर। 

      मरू बाजा बंद भेल

      बोनेक भीतरें, 

      हेमाल पानी बइरसे लागल

      आनन्देक लहरें।

      राग-रसेक घावेक खुइन

      तनेक उपरें, 

      सांत-रसेक हेमाल पानी

      मनेक भीतरें।

      बिसइर गेला संवइ-जघऽ

      बिसरला जगतेक साड़ा, 

      दिकू-होड़ ‘बात’ बिसरला नाकि

      बिसइर गेला बाघ-काड़ा।

      दुवो मानला दुवोक उपगार

      दुवोक राग थिर भेलइ, 

      थिर मने सरंचिक अबे

      तन के खेयाल भेलइ।

      फाटल-फुटल साड़िक टुकराँइ।

      नारी लइजा ढाँइप लेलइ, 

      आपन देहिक फाटल झुला

      खोइल केतू सरचिक देलइ। 

      मुँहें एको बात नाय  फुटल।

      मेंतुक आँइखें बात भेल, 

      उताउल भइ गेल कमलकेतू

      बिसम बेदनाञ मुरझाइ गेल ।


      लारू-पातु कमलकेतू

      गिर गेल सरचिक कोराय , 

      हाइचक भेली घटवाहा बाला

      झरऽ-बरऽ रकत धाराञ ।


      कि जे भेलइ, कि जे हतइ ?

      हाइ रे ! अब किया भेल? 

      नावा जुगुत करे नारी

      नारिक जियें मया भेल।


      मायेक कोरा ले नाभल मानुस

      पहिल कोऽड़ मायेक कोरा, 

      कोराय  फुटल बोली-भाखा

      मरदेक जिनगी नारिक कोरा। 

      करें-करें कर काइट के

      कोरा ले नंभवलइ बीर नुनी, 

      कुल गुप्तेक कलंके जइसे

      कलंकित ना हवे बनबासिनी।

      सुखल पुटुसेक डाँटी लइ

      जोर से सरंची रागइड़ देली, 

      आइग फुइट तितकी भेलइ

      सुखल झारे लागाइ देली। 

      बोनेक भीतर आइग लागल

      हद हद हदके लागल, 

      अंधार भेल, सरंचिक जिया

      खद-खद खदके लागल।


      चहटे नाय  कोनो खुइनहारा

      लुआठी-तितकिक डरें, 

      बोनेक भीतर सरंचिक डर

      भागल धीरे धीरे।

      घोंघ पातेक दोना हाथें

      आन हाथें लुआठी, 

      पानी आइन पिवे केतुक

      बोनेक बीर बेटी।

      दुब घाँसेक रस बनाइ

      चुउवे लागली केतुक गातें, 

      रसे-रसे घावेक खुइन

      बन्द भइ गेल गतें-गतें।

      महुवा बोरेक पातें सेकइ

      गोड़ ले मुड़ राजाक बेटा, 

      खरंगे लागल गात ओकर

      घुरे लागल केतुक चेठा।

      दुध-मुँहा चेंगइर जइसन

      केतुक तइसन तन सेंकाइ, 

      सलसँत भेल गाछ-पाता

      सरंचिक वइसन मन सेंकाइ । 

      नारी नर के बल देली

      बुइध दइ जान राखे, 

      दइ जान मरइ खातिर

      नारी आपन मान राखे।


      आसतें-आसतें चेठा घुरलइ

      नारिक चोइज पाइके, 

      मगध कुलेक दीया बरल

      सनेहेक-रस पाइके।

      नजइर खुलल कमलकेतुक

      नारिक राग-चोइज पाइकें, 

      थनवे लागल सरंचिक मोहड़ा

      भगजागनिक राइत जाइनकें ।

      आँकुर ले फुनगी फुटल

      परमेक कुसुम बोने, 

      जेठेक आँधी झइरेक परें

      सरइक पोहा जनमें।

      झनझनाइ लागल झींगुर बोने

      दनदनाइ लागल सरंचिक मन, 

      भिनसरियाज चाँद उगलइ

      झलफलाइ लागलइ केतुक मन ।

      जीर्यंत चाइर आँदखें हेरे

      मुदइ रूपें बाघेक लास, 

      मरल दुइयो आँखी थनवे

      जम रूपें दुइयोक बास। 

      पहिले चाबुक बादें चुमा

      परिया ले आइल पिरीत, 

      पिरीत भेल कुलाजी-पूजा

      पुरखा ले बनबासिक रीत।


      बिहान बेराय  कमल फुट

      सिरिंगार रस छलइक गेलइ, 

      सालुक फूलेक मुँह नुकाइ

      रौद्र-रस मलइक गेलइ।

      घोड़ाक उपर केतुक संगी

      बोने-बोने करथिन बानार, 

      राइत बीतल गाजार बोने

      ताव पावाइ नाञ ओखनिकयार |

      मेकामेकी करल आवथ

      डहर बाटे डोवाँहथ, 

      कमलकेतू-सहिया बिनु

      झार-बाने बोवाहथ ।

      केतुक घोड़ा राव पहिचाइन

      सइ बोहोने सोझाइ गेला, 

      आम-बागाने धनुक-धार

      सभे संगी जुट भेला।

      सरंचिक कोराञ सुतल केतुक

      आँइखें ढर-ढर लोर, 

      सिसके नाय  सरंची बाला

      ठाँउहीं मरल मानुसखोर। 

      मुँह ककरो बाइक नाय फुट

      आँइखेक जोरे बात भेल, 

      भेल बिपइत के मोटामोटी

      केतुक संगी भाँइप गेल।


      संजोग अइसन कि नटुवा-धार

      राव सुइन पहुँइच गेला, 

      मानुस, मानुसखोरेक संग

      हेइर सरंचिक, 

      हाइचक भेला।

      फहम फुराइल दुइयो बाटें

      एक ठीने बात भेला, 

      चड-माँड़ घोड़ाक उपर

      कमलकेतुक लादाइ लेला।

      दोसर घोड़े खुनीहारा बाघ

      मरल परें घोड़ाञ चढ़ल, 

      धधर-पिछर राजाक सिपाही

      दुइयोक लइ गढ़ पहुँचल ।

      घरे घुइर सरंची गेलि

      सुपट कलपना संग, 

      मइस लेली आँखिक लोर

      मने आइल बेस उमंग ।।

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