नवाँचाँद आउर गोपीचाँद (navachand aur gopichand)

        

       नवाँचाँद आउर गोपीचाँद ( हिन्दी )

      navachand aur gopichand

      nagpuri lok katha

       ‘ नवाँचाँद आउर गोपीचाँद ‘ लोककथा ‘ नगपुरिया – सदानी साहित्य ‘ नामक लोककथा से ली गयी है । यह नागपुरी लोककथा का पहला संग्रह है । इसके संग्रहकर्ता हैं फॉ . पीटर शांति नवरंगी । बाद में इस लोककथा का प्रकाशान ‘ अंगना ‘ में किया गया है ।


      ‘ नवाँचाँद आउर गोपीचाँद ‘ लोककथा एक सामाजिक कथा है , जिसमें एक बहुत ही अमीर राजा , जो गरीब हो कर मर जाता है और उसके दोनों बेटे टूवर टापर हो जाते हैं । लखपति राजा के गरीब होकर मर जाने के पशचात् उसकी सुंदर रानी भी अपने पति के चिता में सती होकर मर जाती है । दोनों भाईयों नवाँचाँद और गोपीचाँद अकेले बच जाते जाते हैं । उनके सामने जीवन जीने और खाने पीने की समस्या उत्पन्न हो जाती है । इस समस्या से निजात पाने के लिये दोनों भाई अपना राज्य छोड़ कर कमाने खाने के लिये निकल पड़ते हैं । तीन महीनें लगातार चलने के पशचात् वे दोनों भाई दूसरे राज्य में पहुँच जाते हैं जहाँ एक वक्त भयानक राकक्ष का आतंक फैला हुआ था । शाम को  वे उस गांव में पहुँचते हैं और अपने रहने के लिये किराये का मकान ढूंढ़ते हैं । परन्तु कोई भी उन्हें मकान देना नहीं चाहते । सभी इंकार कर देते थे । छोटा भाई बहुत थक चुका था । उसकी स्थिति ऐसी हो गयी थी कि वह एक और एक कदम चलने के लायक नहीं था । बड़ी मुशिकल से वे एक बिधवा बुढ़िया के घर पहुँचते हैं और डेरा माँगते हैं । बुढ़िया उन दोनों ही भाईयों को उस भयानक राक्षस के बारे में बताती है और उन्हें वहाँ से चले जाने के लिये कहती है । वहाँ के राजा के द्वारा पूरे राज्य में ऐलान करवाया गया था कि जो उस भयानक राक्षस को मारेगा | उसके साथ वह अपनी बेटी की विवाह और अपना आधा राज्य देगा । उस राक्षस का आतंक बहुत जबरजस्त था । शाम होते ही वह पूरे राज्य में आतंक फैला देता था । जो भी व्यक्ति उसे बाहर मिल जाता उसे वह मार कर खा जाता था । दोनों भाई ये सारी बातें जानने के बाद और बुढिया के मना करने के बाद भी वे दोनों भाई बुढिया के घर के बाहर ही पींडा में अपना डेरा जमा लेते हैं । धीरे धीरे शाम ढलने लगी थी । चारों तरफ अंधेरा पसरने लगा था । रात । होते ही वह भयानक राक्षस गांव में आता है परन्तु उन दोनों भाईयों को खा नहीं पाता है , क्योंकि उनके पास एक प्रकार का जड़ी बुटि और मंत्र था , जिसके प्रभाव से वह राक्षस उनका कुछ भी नहीं बिगाड़ नहीं पाता था । सुबह जब गांव वाले दोनों भाईयों को पींडा में सही सलामत देखा तो आशचर्यचकित रह गये । इसी तरह से चार पांच दिन बित जाता है । दोनों भाई आपस में बात करते हैं कि यदि राजा ने ऐलान किया है तो वे उस राक्षस को जरूर मारेंगे और वे गांव वाले से राजा की बातों की सत्यता को जानते हैं । गांव वाले उन्हें राजा द्वारा किया गया ऐलान को सही बताते हैं । उधर बड़ा भाई सभी जड़ी बुटी और दवाईयों को जमा करता है और गांव के सीमान में जिधर से राक्षस गांव में प्रवेशा करता था उसी रास्ते में बनाये हुये दवाईयों को गाड़ देता है । दवाईयों को गाड़ने के बाद वे दोनों भाई अपने हथियारों को ठीक ठाक करने लगते हैं । रात को राक्षस उसी रास्ते से आता है जिस रास्ते में वे जड़ी बूटी का गाड़े थे । जब राक्षस उसी रास्ते से गांव में प्रवेश करना चाहता है तो जड़ी बुटी और दवाईयों के प्रभाव से उस राक्षस का आँख धुँधला होने लगता है । राक्षस की बिगड़ती स्थिति को देख कर नवाँचाँद जोर जोर से चिल्लाकर मंत्र पढ़ने लगता है – 

      ” एक तार पतर एक ढाबइर खाँड़ा से ठसन मारों रे राकस कि तीन खँड़ा होए जाबे । ” 

      जैसे ही राक्षस उस जड़ी बुटी और दवाईयों को सुंघता है तो |उसका होंश उड़ जाता है । वह जोर जोर से चिल्लाने लगता ! है और छटपटा छटपटा कर मर जाता है । राक्षस के मरने के बाद दोनों भाई राक्षस का आँख , कान , नाक , हाथ और पैर की अंगुलियों को काट कर अपने पास रख लेते हैं । उधर जिस रास्ते में राक्षस मरा पड़ा था उसी रास्ते से एक कुम्हार सुबह – सुबह अपने मिट्टी के बर्तनों को बेचने के लिये बाजार जाता है , तो रास्ते में उस भयानक राक्षस को मरा हुआ देखकर बर्तन बोहे हुये बहिंगा से उसके पूरे शरीर में मार – मार कर गुलगुला कर देता है । यह बात पूरे राज्य में आग की तरह फैल जाता है कि कुम्हार ने उस भयानक राक्षस को मार डाला । 


      राजा को जब कुम्हार के द्वारा राक्षस के मारने की बात का पता चलता है तब राजा उस कुम्हार को महल बुलवाता है । राजा के बुलावे पर कुम्हार राजमहल पहुँचता है और राजा के सामने |बात बना बना कर बताने लगता है कि वह किस तरह से राक्षस को मार डाला । वादे के मुताबिक कुम्हार राजा को उसकी राजकुमारी बेटी से विवाह करने और आधा राज्य मांगता है । राजा अपने वादे के मुताबिक उस कुम्हार अपनी राजकुमारी बेटी की विवाह का ऐलान करता है और पूरे राज्य में विवाह की तैयारियां शुरू हो जाती है । 


      जब यह बात नवाँचाँद और गोपीचाँद को पता चलता है तो वे राजमहल पहुँच कर कुम्हार से राक्षस को मारने का प्रमाण प्रस्तुत करने की बात करते हैं लेकिन राक्षस को मारने से संबंधित कोई भी प्रमाण कुम्हार उन दोनों भाईयों को नहीं दे पाता है । तब वे राजा को राक्षस को मारने से संबंधित प्रमाण राजा के सामने प्रस्तुत करते हैं । राक्षस के काटे हुये , अंगो को झोला से निकालकर दिखलाते हैं ,राजदरबार में मौजूद लोगों को यह सब देखकर बहुत आशचर्य होता है । कुम्हार वहाँ से चुपचाप नौ दो ग्यारह हो जाता है । राजा उन  दोनों भाईयों की बातों को मान लेता है और कहता है कि तुम दोनों भाईयों ने मिलकर राक्षस को मारा है , लेकिन मैं अपनी बेटी का विवाह तो एक ही से करूंगा । इस बात पर बड़ा भाई नवाँचाँद आपने छोटे भाई गोपीचाँद को विवाह करने के लिये तैयार कर लेता है और तब राजा अपनी बेटी का विवाह छोटा भाई गोपीचाँद के साथ कर देता है । गोपीचाँद सुंदर राजकुमारी के साथ विवाह कर के बहुत ही आनंद के साथ रहने लगता है । इसी बीच राजा और महारानी को पता चलता है कि ये दोनों भाई राजपरिवार से ही हैं तो वे बहुत खुश होते हैं । राजा अपने बेटी और दमाद के लिये एक नया महल बनवा देता है । बड़ा भाई नवाँचाँद भी सामने दूसरे महल में रहने लगता है । अब दोनों ही भाईयों का सुख का दिन वापस लौट आया था । समय बीतने लगा । एक दिन अचानक बड़ा भाई अपने छोटे भाई के महल में जाता है जहाँ छोटे भाई की पत्नी चारपाई में अपने लम्बे व घने बालों को सुखा रही थी । बड़ा भाई उसकी लम्बी बालों और चाँद सी सुंदर पत्नी को देखकर उसकी सुंदरता पर मोहित हो जाता है और मोहित होकर चकरा कर धड़ाम से जमीन में गिर जाता है । छोटा भाई उसे उठाकर पलंग में सुला देता है ।  जब बड़े भाई को होश आता है तो छोटा भाई मूर्क्षित होने का कारण पूछता है तो बिना कुछ कहे बड़ा भाई वहाँ से बहाना बना कर वापस चला जाता है । हर समय उसके दिलों दिमाग में सिर्फ उसी सुंदर राजकुमारी की छवि दिखाई देने लगता है । अब बड़े भाई को उस राजकुमारी से विवाह नहीं करने का पछतावा होने लगता है । वह अपने छोटे भाई की पत्नि को पाने के लिये उपाय सोचने लगता है । एक दिन वह अपने छोटे भाई को शिकार खेलने के लिये जंगल जाने की बात कहता है । इस पर उसका छोटा भाई तुरंत तैयार हो जाता है । शिकार खेलने के बहाने बड़ा भाई अपने छोटे भाई को मार डालता है । छोटा भाई अपनी पत्नि को समझा कर गया था कि तुलसी बुदा के पास  लोटा में रखा दूध लाल हो जायेगा तो समझ लेना मेरा जीवन अब इस दुनिया में नहीं है । सचमुच तुलसी का पौधा मुरझा गया था और लोटा में रखा हुआ दूध लहू के समान लाल हो गया था । यह देखकर वह समझ जाती है कि अब उसका पति इस दुनिया में जीवित नहीं है । छोटे भाई की पत्नी अपने पति के चिता में सती हो जाती है । दोनों चिता में जल कर राख हो जाते हैं । इससे बड़ा भाई नवाँचाँद पगला जाता है और वह वापस महल नहीं लौटता बल्कि दोनों प्राणी के राख को अपने पूरे शरीर में भभूत की तरह लगा लेता है और रो – रो कर गीत गाने लगता है – । 

       ” नवाँचाँद गोपीचाँद दुइयो भाई रही आनक तिरिया बदे भाई मोर के मारलों हो राम , सेइयो तिरिया आपन न भेलक हो राम ॥ ” 


      इसके बाद वह महल नहीं लौटता बल्कि साधु बन कर एकतारा बजा बजा कर वही गीत का गांव गांव में गाता और भीख मांगकर जीने लगा । उस जंगल से जब माता पार्वती गुजर रही थी तब उस राख का भेद को जान कर वह भगवान शिव से उन दोनों प्राणी को जीवित करने का हठ करने लगती है । तब शिव भगवान उन दोनों को जीवित कर देते हैं । महादेव और पार्वती की कृपा से उस जंगल में एक सुंदर सा नगर बन जाता है । वे दोनों वहाँ सुख व शांति के साथ रहने लगते हैं । एक दिन बड़ा भाई नवाँचाँद भीख मांगते के क्रम में सुना कि जंगल में एक नया राज्य और नया नगर बना है । वहां का राजा और रानी बहुत दानी हैं । यह सुन कर वह एक दिन भीख मांगने के लिये उस महल में पहुँचता है और गाना गाने लगता है –

       “ नवाँचाँद गोपीचाँद दुइयो भाई रही आनक तिरिया बदे भाई मोर के मारलों हो राम , सेइयो तिरिया आपन न भेलक राम ॥ ” 


      यह गीत सुनकर राजा बहुत व्याकुल हो उठता है । और फिर उस साधु से राजा उसकी साधु बनने की आपबीती जानता है । साधु के रूप में अपने बड़े भाई को पाकर वह उससे लिपट जाता है और फिर वे लोग शांति पूर्वक सुख के साथ महल में रहने लगते हैं । 



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