नाच बान्दर नाच रे आंखिक गीत NACH BANDAR NACH RE ANKHIK GEET KHORTHA
नाँच बाँदर नाँच रे
नाँच बाँदर नाँच रे
मोर चाहे बाँच रे
तोर खातिर सुसनी साग
हमर खातिर माछ रे
नाँच बाँदर नाँच रे
मोर चाहे बाँच रे
हमर खातिर सोना चाँदी
तोर खातिर काँच रे
नाँच बाँदर नाँच रे
मोर चाहे बाँच रे
हमर खातिर दलान घर
तोर खातिर गाछ रे
नाँच बाँदर नाँच रे
मोर चाहे बाँच रे ।
कविता का भावार्थ – यह एक यथार्थवादी कविता है। इस कविता में बंदर झारखण्डी जनता का प्रतीक है जिसकी नियति ही शोषित होने की है। बाहर के लोग झारखण्डी जनता का हर तरह से तन, मन, धन का शोषण करते हैं।
1. ‘नाच बाँदर नाच रे’ कविता केकर लिखल लागे ? श्री निवास पानुरी
2. नाच बांदर नाच रे ई कविता पाँतात्र बाँदर केकर प्रतीक लागे ? झारखंडी लोक
3 . ‘नाच बाँदर नाच रे’ कोन किताब से लेल गेल हे ? आँखीक गीत