बन हिरनी कर बेटा , नागपुरी लोक कथा , Ban hirani kar beta

 

बनहिरनी कर बेटा ( हिन्दी )

‘ बनहिरनी कर बेटा ‘ लोककथा ‘ नगपुरिया सदानी साहित्य ‘ नामक लोककथा से ली गयी है । यह नागपुरी लोककथा का पहला संग्रह है । इसके संग्रहकर्ता हैं फॉ . पीटर शांति नवरंगी । बाद में इस लोककथा का प्रकाशन सन 2012 ई . में कल्याण विभाग द्वारा प्रकाशिात ‘ नागपुरी लोक साहित्य गोछा ‘ में किया गया है । 

बन हिरनी कर बेटा , नागपुरी लोक कथा , Ban hirani kar beta

यह लोककथा सौतेली माँ के चरित्र को उजागर करती है । राजा विक्रमादित्य राय शिकार क्रीड़ा के बड़ा शौकिन थे । वे शिकार क्रीड़ा के लिये अपने आदमियों के साथ अखंड वन में जाते हैं । शिकार खेलते खेलते राजा को  पेशाब लगता है । राजा विक्रमादित्य राय के पेशाब को एक हिरण पी जाती है जिससे वह गर्भवती हो जाती है । कुछ दिनों के बाद वह हिरण एक पुत्र को जन्म देती है । जब तक वह दूध पीता है तब तक वह उसे अपने साथ रखती है । बड़ा होने के पशचात हिरणी अपने बेटे को भिक्षाटन करने की शिक्षा देती है और एक गीत सीखाते हुये उसे दक्षिण दिशा में जाने से मना करती है । पूरब , पशिचम , उतर दिशा में उस लड़के के भीख मांगने का गीत सुन कर लोग अपनी इच्छानुसार धन , खाने – पीने का सामान , कपड़ा देते हैं जिससे वह और उसकी हिरणी माँ बहुत खुश होती  हैं । एक दिन भिक्षाटन के क्रम में वह लड़का दक्षिण दिशा में उसी राजा के यहाँ पहुँच जाता है और अपनी माँ के द्वारा सीखाये गये गीत को गाता है 

‘ आइयो मोर बन के हरिनिया बाबा मोर बिकरम दित राय । भीख दे गे बहिनिया भीख दे गे माँय बहिनिया । ‘ 


राजा विक्रमादित्य राय उस हिरणी के बेटे को अपने साथ रखता है लेकिन राजा की रानियाँ उस बालक से ईष्या करने लगती है । वे सोचने लगतीं हैं कि एक दिन इस लड़के के चलते उनके बच्चों को राज – पाट से हाथ धोना पडेगा । यह सोचकर वे बीमारी का बहाना बनाकर राजा से उस लड़के का खून मांगती है । इससे राजा को रानियों पर संदेह होता है और वे हिरणी के बेटे को जेल में छिपा कर बंद करवा देते हैं । उधर बेटे के वापस नहीं लौटने की वजह से हिरणी काफी परेशान हो जाती है । बेचैन व व्याकुल हो कर इधर उधर दौड़ती फीरती है । वह रातों रात कभी पर्व दिशाा तो कभी पशिचम दिशा तो कभी उतर दिशा की ओर जाती । परन्तु कहीं भी बेटे का पता नहीं चलता । वह अनुमान लगाने लगती है कि कहीं उसका बेटा दक्षिण दिशा की ओर नहीं चला गया । क्योंकि जो गीत उसने बेटे को सीखायी थी उसमें विक्रमादित राजा जोड़ दी थीं । यह सोच कर वह एक रात अपने सींघ में दीपक जलाकर आउर सिर में खाने पीने का सामान बोहकर बेटे को ढूढ़ने निकलती है । संयोग से हिरणी नगर के बाहर जेल के पास पहुँच कर रोते हुये अपने बेटे को पुकारती 

‘ कने बेटा , का भेले रे , का कारने बेटा नी घुरले रे ।। ‘ अपनी की आवाज सुनकर बेटा कहता है – ‘ इहाँ आहो आइयो , रेहल रे । बिना कारने आइयो बंधालो रे ।। 

अपने बेटे की आवाज सुन व पहचान कर हिरणी रोने लगती है – 

 ढेंगुर तरे जनमालो पूता , मुसा डांड़े पोसलो रे । कवन मुदइ बेटा बेरी देल ।। 

हिरणी का बेटा जेल के अंदर रोते हुये जवाब देता है । 

‘ मोसी आयो कहल निहीं माने । बाबा आइयो गे बेरी देल । 

हिरणी अपने बेटे के पास पहुँचती है जहाँ जेल में उसका बेटा कैद था और जेल के दरवाजे को जोर से  अपने पैरों के सहारे लात मारती है , दरवाजा खुल जाता है । हिरणी अपने बेटे के पास जाती है और बेटा – बेटा कहकर रोने लगती है , उसके बाद खाना का थाली उसके सामने रख देती है । बेटा अपने साथ घटी घटनाओं को विस्तार से बता देता है । हिरणी अपने बच्चे को दिलासा दिलाती है कि वह इसी तरह प्रत्येक दिन उससे मिलने आया करेगी और वह वहाँ से चली जाती है । हिरणी जिस रास्ते से आया करती थी उसी रास्ते में एक अहीर छपरी बना कर अपने जानवरों को रात में पहरा दिया करता था । हिरणी को उस रास्ते से रात में आते – जाते देखकर बहुत ताज्जुब करता है और उसका पीछा करता है । उस हिरणी को जेल के अंदर बंद उसके बेटे से मिलते और उसे खाना खिलाते , दुलार करते देखा । सुबह होते ही वह अहीर महल की ओर दौड़ पड़ता है और राजा से मिलकर रात में घटी सारी घटनाओं को सविस्तापूर्वक बता देता है । उसकी बातों को  सुनकर राजा अहीर की छपरी में रात बिताने की बात कहता है । जिससे कि वह उसकी बातों की सच्चाई को जान सके । राजा रात के समय हिरणी को उसी रास्ते से आते देखता है जैसा कि अहीर ने उसे बताया था । हर रोज की तरह हिरणी जेल में अपने बेटे से मिलकर , उसे खीला पिलाकर और प्यार दुलार करने के पशचात जैसे ही वह जाने लगती है वैसे ही राजा उसे पकड़ लेता है । राजा के पकड़ते ही हिरणी एक सुंदर रानी में बदल जाती है । आखिर राजा विक्रमादित्य राय के समक्ष हिरणी का राज खुल जाता है और राजा विक्रमादित्य राय उसे रानी के रूप में अपना लेता है । अपनी सभी रानियों को राजा कुआँ चुमावन के बहाने बुलवाकर मरवा डालता है । इसके बाद हिरणी रानी से जो नारी के रूप में श्राप से मुक्त हो जाती है । वह फिर से उसके साथ अपने दाम्पत्य जीवन शुरू करता है । 

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