8 . मेढ़ आर मानुस :- श्री शिवनाथ प्रमाणिक
भावार्थ : मेढ़ (मूर्ती ) आर मानुस
इस कविता के माध्यम से शिवनाथ प्रमाणिक मनुष्यों का मूर्ति के प्रति समर्पण और मनुष्य के प्रति कोई लगाव ना होने जैसे समाज में व्याप्त विसंगतियों पर व्यंग्य/फिंगाठी करते नजर आ रहे हैं। साथ ही अंतिम पंक्तियों के माध्यम से वे लोगों में सुधार एवं बदलाव लाने पर भी जोर दे रहे हैं।
पहले पंक्ति में कवि कहते हैं हमेशा मनुष्य का भलाई या सेवा करें क्योंकि मानवता से बड़ा कोई मीत नहीं तथा मानवता की सेवा से बड़ा कोई सेवा नहीं है। परंतु आज का मनुष्य मानवता से ज्यादा उस मूर्त का सेवा और सम्मान में लगा है जिसे वह स्वयं मिट्टी को अपने हाथो और पैरों से सान और गांज कर बनाया है। मनुष्य मूर्ति के पूजा के लिए सुबह-सुबह नहा कर, धूप दिया जलाकर, कर्ज करके, पैसा खर्च करके, नित सुबह से उपवास रखकर, बकरों का बलि देकर मूरत के सामने अपने मनोकामना पूरा होने का कामना करता है। “©www.sarkarilibrary.in”
आगे कहते हैं जिस मूरत को तुमने अपने हाथों से बनाया है, भला उसके सामने इतना सब करने के बाद क्या मांगते हो- क्यों मूर्ख बन रहे हो, किसके घर मृत्यु, हानि बीमारी और लड़ाई झगड़े नहीं होते हैं। यह सभी चीजें आम बात है सभी के घरों में होते हैं।
एक बात जान लो, मेरी बात मान लो, आंख बंद करके धर्म शास्त्रों के अनुसार रीति-रिवाजों, नियमों पर चलना नहीं। भूत देवता को मानना नहीं। अगर मानना ही है तो पहले इनका रहस्य और अर्थ जानो। इसे तुम्हारे बुद्धि विवेक बढ़ेंगे। तुम्हें मनुष्य की सेवा करनी चाहिए। डरपोक लोग भगवान की पूजा करते है। जो गलत करते हैं वह डरते हैं, निडर लोग नहीं डरा करते हैं। अगर भगवान का सेवा करना चाहते हो तो मानव जाति का सेवा करो, जिसको पेट भर खाना नहीं मिलता, जिसको पहनने को कपड़ा नहीं मिलता, उनकी सेवा करना ही भगवान का सेवा है। इस धरती में मनुष्य के सेवा करने से बढ़कर दूसरा कोई सेवा नहीं है। उनकी सेवा करने से ही ईश्वर मिलेंगे। “©www.sarkarilibrary.in”
नित करा मानुसेक हित
मानुस ले बड़ नखे मित ।
मुदा,
साइन के आर गॉइज के
माटिक मेढ़ बनाइ के
झलफले बिहाने नहाय के
धुप दिया बाइर के
टाका करजा कइर के
पइसा खरचा कहर के
उपासे पांठा काइट के
कांइद के आर मेंमाइ के
भला कि तोय मांगे हैं ?
मेढ़ से कि खोजे हैं ?
काहे मेढ़ बने है।
मेढेक खातिर मोरे हैं।
ककर घरै मोरी नाञ ?
ककर घरै हेरी नाञ ?
कहाँ बीमारी नाञ ?
कहाँ फोदारी नाञ ?
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एक बात जाइन ले
हमर बात माइन ले
पुरानेक रीती चलिहे नाञ
भूत देताक मानिहॅ नाञ
मानेक पहिले भेउ जान
वाढतो तोर बुध गियान |
तोञ कर मानुसेक मान
डर पुलकाक भागवान
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जे डरे सेहे मोरे
निडर लोकनाही हरे
जकर पेटे भात नाञ
लुगे लेपटाइल गात नाञ
पइवें तोय हुवा इमान
ई धरतिक भगवान
सेवा कर मानुस मांय
मानुस ले बड़ केउ नाञ
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