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नागवंशी शासन व्यवस्था
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नागवंशी शासन व्यवस्था का प्रारंभ प्रथम शताब्दी में हुआ तथा राजा फणी मुकूट राय इस शासन व्यवस्था के प्रथम शासक थे।
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यह शासन व्यवस्था मुण्डा राज के बाद स्थापित किया गया। फणी मुकुट राय ने सुतियाम्बे को अपनी राजधानी के रूप में स्थापित किया।
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नागवंशी शासकों ने मुण्डा शासन व्यवस्था में अनुकूल परिवर्तन करते हुये इसे अधिक विस्तारित करने का प्रयास किया। इसके शासनकाल में पूर्व की भू-व्यवस्था, कर-व्यवस्था तथा शासन व्यवस्था का संचालन होता रहा।
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लंबे समयांतराल के पश्चात् मुगलों के आक्रमण के कारण नागवंशी शासन व्यवस्था में परिवर्तन परिलक्षित होता है। इस परिवर्तन के परिणामस्वरूप मुगल सेना द्वारा नागवंशी राजाओं से नजराना (एक प्रकार का कर) लिया जाने लगा जो बाद में एक नियमित व्यवस्था के रूप में स्थापित हो गयी तथा इसे मालगुजारी के नाम से जाना जाने लगा।
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इस शासन व्यवस्था में आम रैयतों से कर वसूली नहीं की जाती थी। परिणामतः संपूर्ण राज्य के कर का भार नागवंशी शासन पर पड़ने लगा। इस भार को कम करने हेतु नागवंशी राजाओं ने आम जनता से कर (मालगुजारी) वसूलना प्रारंभ किया तथा इसे वसूलने की जिम्मेदारी पड़हा के प्रमुख मानकी को दिया गया। इन मानकियों को नागवंशी शासन में भूईहर कहा जाने लगा।
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बाद में नागवंशी राजाओं द्वारा मालगुजारी वसूलने के लिए अलग से जागीरदार रखे गये। इनके द्वारा मुगल बादशाहों द्वारा मांगे जाने पर ही मालगुजारी दी जाती थी। इस अनियमित मालगुजारी को नजराना/पेशकश कहा जाता था।
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नियमित मालगुजारी नहीं देने के कारण नागवंशी शासक दुर्जनशाल को ‘मुगलों द्वारा कैद कर लिया गया था।
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1765 ई. में ईस्ट इण्डिया कंपनी को बिहार, बंगाल एवं उड़ीसा की दीवानी मिलने के बाद नागवंशी शासक पटना काउंसिल के प्रति उत्तरदायी हो गए।
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अंगेजी शासनकाल में कर की नियमित वसूली के लिए 1793 ई० में स्थायी बंदोबस्त प्रणाली लागू की गयी तथा नागवंशी राजाओं को जमींदार बना दिया गया। इस प्रकार पूर्व की जागीरदारी व्यवस्था जमींदारी व्यवस्था में परिणत हो गयी।
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इस व्यवस्था के लागू होने के साथ ही नागवंशी शासन व्यवस्था समाप्त हो गयी तथा इसके स्थान पर नवीन प्रकार की अंग्रेजी शासन व्यवस्था स्थापित हुयी।
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