बोरवा अड्डाक अखय बोर संस्मरण Borwaaddak Akhay Bor sansmaran khortha

 बोरवा अड्डाक अखय बोर संस्मरण Borwaaddak Akhay Bor sansmaran khortha 

khortha (खोरठा ) For JSSC JPSC 

KHORTHA (खोरठा ) PAPER-2 FOR JSSC

 साहित्य की अन्य विद्याएँ: संस्मरण 
KHORTHA sasmaran  FOR JSSC JPSC

शांति भारत  

  • 6 अप्रैल, 1965 में बोकारो इस्पात नगरेक चौफान्द गाँवें जनमल शांति भारत के माँयेक नाँव रतनी आर बापेक नाँव कुंजू महतो। बिदियारथी जिनगी सेही हिन्दी आर खोरथा में कबिता लिखेक रूचि। तोहर हिन्दी लेख कइगो “पत्र-पत्रिका” में छपल आइल हो। राँचिक ‘आदिबासी’ पतरिका में तोहर कइगो खोरठा कबिता परकासित भेल हो।

  • भारतजी एखन हिन्दी आर खोरठा में कबिता, कहानी, नाटक, लेख संस्मरन आर मानवबादी बिचारेक किताब लिख रहल हथा ‘जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग राँची के कइगो कितापेक सल्हाकार लागथा तोहर कबिता आर बारता आकासबानी राँची से परसारित हवइते रहल हो। सामाजिक आर सांस्कीरतिक कामें तोहर बड़ी मधुर सहयोग। एखन तोहें बोकारो खोरठा कमिटिक सचिव रूपें मातरीभासाक सेवा करल हा।

  • तोहर संपादने बेलंदरी’ नामक गीत संगरह तितुकी पतरिका छपल हो। माटिक घरें चाँद तोहर आपन कविता संगरह लागो। हियाँ खोरठा भासाक महान कबि श्रीनिवास पानुरी-क ऊपर लिखल तोहर संस्मरन दियल गेल हइ।

संस्मरन- बोरवाअड्डाक अखय बोर 

  • खोरठा में कुछ दिन आगु से लिखेक सुरू करल हलों। मेंतुक, अवइया दिनेक कोन्हों सफा-सुथर आसां मने नाइ हल। ताउ, मनेक संतोस खातिर बेसी भाभे कबिते लिखतलों। कखनों आकासबानी राँची बाट ले खोरठाक लोकगीत सुइनके मन गदगदाइ उठ-हला मनेक मदधे मधुर बिचार उठतल, जे खोरठाकी मान हइ। एतनाक बादो एखन तक खोरठाक कोन्हों कबि बा लेखक से परिचइ नाइँ भेल हला सइये ओसर, टावर-ठेकान करल खोरठा भासाक बिद्वान ए. के. झा बोकारो अइला। उनखर से पता चलल जे राँची बिस्वबिदियालये खोरठाक पढ़ायो चइल रहल हइ। तोहर बात सुइनके मने बड़ी खुसी भेलाखोरठाक परति मने जे एगो मइलछाइल रूप हल, सेटा धोवाइ गेल भाब एगो लिखवइया खातिर एकर ले आर गरबेक बात भला कि हवे पारे जे ओकर मातरीभासाक सम्मान कम नखइ।

  • झाजीक संपरेक आइकें खोरठा में साहित्य लिखेक एगो लउतन हुइब जागला ।मनेक भाव आर बिचार कबिता आर कहनी रूपें फुटे लागल। एहे लेताइरें खोरठाक सपुरना पतरिका ‘तितकी’ के माइधमें कइगो लिखवइयाक नाँव-गाँव जाने पइलों, जे सोब भासा परेमें मोहित भइकें खोरठाक सेवा कर-हला। तकरें मइथें एगो हला श्रीनिवास पानुरी, जे बीस-तीस बछर अगुले ले मातरीभासा खोरठाक बिकास खातिर समरपन भावें साहित्य लिख-हला। से सँवएक नाँवजइजका मानवबादी बिद्वान राहुल सांस्कृत्यायनेक संगे खोरठाक बिकासेक लेताइरें पानुरीजीक कईबेर चिठी-पतरी भेल हलइन। कई गो चिट्ठी तो तितकी पतरिके छपाइलों हइ, जकर में राहुल सांस्कृत्यान आपन संदेसे खोरठाक मधुर ममिसतेक कामना करल हथिन।

  • आब तो मने एगो बिचार हिलोर मारे लागल जे श्रीनिवास पानुरी से कधिया आर कइसें मिलब! मेंतुक, कुछे दिने एगो बेस मउका अइलइ। शिवानाथ प्रमाणिकेक संपादने ‘रूसल पुटुस’ नाँवेक एगो पइद-संगरह छपवेक बिचार उठलइ आर 1985 के दिसम्बर मासेक एकदिन प्रमाणिक जी आर बंशीजीक संगें पांडु लिपि लइकें हाम्हुँ बोरवाआड्डा पोहचलों। एगो दोकाने पुइछके हामिन पानुरीजीक घार तक गेली। उनखर बेटा के आपन परिचइ देलिए तो बइसेक जोगाड़ दइके कहला- “तोहनी बइसा, हाम बाबुजी के डाइक देहियों।”

  • हामिन बइसली। मने कते रकम बिचार उठे लागल आर छाती धड़के लागल एगो महान कबिक दरसन करके हुइ.! आर तनिए देरी में साइठ-पँइसठ बठरेक एगो बुजरूक लोक घार भीतर बाट ले बाहराइला मुंड़े काँचा आर पाकल चुइल्हेक मेसर। आँखी चसमा। टेंहना तक धोती। गातें गंजी आर तकर ऊपर एगो गामछ। माने खोरठा-कबि श्रीनिवास पानुरी।

  • हामिन तीनों झने उनखरा जोहाइर करलिअन। वइसने जबाबो पइली। हामनिके धारी पानुरीजी बइसला। बातें-बातें एक-दोसर के परिचइ भेल। पानुरीजी आवइक ओजह पुछला तो कहलिए जे तोहर दरसन करे आइलही। सइ सँवएक उनखर कहल बात एखनो मने आवेहे-“तोहनियो खोरठा साहितेक सेवा कराहा, इटा जाइनक बड़ी बेस लागलाहाम तो आपन जिनगी खोरठा भाषा खातिर समरपित कइर देलहिए। हामर रोपल खोरठाक, पोहाके जेइसें आपन कलम-करी पाटाइकें गाछ बनइहाक, एहटाइ हामर निबेदन।”

  • हामर मन, भावें भोइर गेल। सोंचलिए जे दिन खोरठा भासाक सेवा करलो बादे पानुरीजीक लउतन परिया से कते आसा हइन! आइझ-काइल तो दूगो कबिता लिखले परें लोक आपन के महाकबि से कम नाइँ बुझथ! आर हियाँ बीस-तीस बछर खोरठाक साहित्य लिखलों बादें पानुरीजीक कोन्हों गरब नाइँ हइन।

  • करमें – करमें बातचीत आगु बाढल। चा – पानी भेलइ। बोर गाछेक जुड़े बइसकें खोरठा साहितेक सागरें हामिन उबु- डुबु हवे लागलीं। कुछ सिखे खातिर आर कुछ जाने खातिर। हामराँ बुझाइल जइसें तीस बछरेक खोरठाक अतीत आइझ मानुस रूपे हामनिक नजीके परगट भेल हइ। ‘कबिजी’ के नाँवें परसिध पानुरीजी से पुछलिए-“कबिजी” तोहें कते दिन से खोरठाक सहित्य लिखाहा?”

  • तोहें ऊपर बाटें ताइककें कहल्हे – “देखा, हाम तो खोरठा में तखने से साहित्य लिखहों, जखन केउ सोंचलो नाइँ हल। खोरठाक कबिता लिखके जखन ककरो सुनउतलिए तो ऊ हामराँ एगो पागल लोक बुझतला माने, देसेक आजादिक आगुवे ले हामर कलम चल-हल।”

  • हामिन एक दोसर के मुँह ताके लागली। तकर बाद पानुरीजी घार भीतर गेला आर आपन डायरी आइनके आपन कुछ कबिता सुन लागला। कुछ में धरमेक गाथा तो कुछ में मजदूर-किसानेक जिनगिक दुख-दरद। कबिताक कुछ लाइन एखनों हामर मने है। मेंतुक, उगला लिखलें रचनाक बिसइ बदइल जाइत। मोटामोटी, पानुरीजी धरमेंक गाथा के कबिता रूपें बेसी लिखल हथा हामिन सुरूवे ले मानबबादी झारखंडी संस्कीरतिक चहइता ही। से-ले, भाइग-भगवानेक ऊपर लिखल पानुरीजीक रचना आझिक राँवएक मोताबिक ओते बेस नाइँ बुझाइल। मन नाइँ मानल, तखन उनखर से पुछलिए – “कबिजी, धरमेक बाटें तोहर एते टान काहे?” 

  • पानुरीजी तनी रागल रकम कहला-“बुझलियो, तोहनियो झाजीक डहरें डहरल हा। हामरो उनखर मानवबादी बिचार बड़ी बेस लागे। मेंतुक, जखन हाम साहित्य लिख-हलों, तखन केउ बिचार दिए वाला नाइँ हल। खोरठाक साहित्य भाँडार बढ़वे खातिर हाम ‘मेघदूत’ आर ‘उदबासल कन’ के खोरठा में उल्था करलों। आर खोरठा भासाक मान बढ़वे खातिर हरिबंश राय बच्चन’ जानकी बल्लभ शास्त्री, हंस कुमार तिवारी रखम नाँवजइजका कबिक मंचे खोरठा कबिता पाठ करलों। तावो, हामर बिचार कम्युनिट के हे। ई कबिता टा देखा

हे राम! दिए नॉए पारल्हे 

एक पियासल के 

एक बुंदा पानी 

आर चलल्हे राम 

जगत पिपासा मेटवे ले।”

  • तखन हामनिक मने भेल जे श्रीनिवास पानुरी एगो जनकबि लागथ, जे खामखयाली देता-भुता से मानुस के बोड़ मानथा सँवएक सोभाब जाइनके कुछ रचना करले कबि धरमभीरू नाइँ हवे पारे! आर फइर तोहर बादेक रचना में तो मानुस जिनगिक दरद छाड़ा आर कोन्हों हये नाइँ हो।

  • तीन-चाइर घंटा साहितेक चरचा में बीत गेलइ। तावो मनेक साध सिराइल नाँइ। हुंदे सरूज आपन आलों समइटके डूबे लागल। गोरखिया सोब गाय-गोरू ढुकवे लागला। हामनिर्के घार घुरेक हल। तखन पानुरीजी से आरो आवेक वादा दइकें बिदाइ. मांगलिअइन। आवेक सँवइ तोहर कहल बात एखनो आजा बुझा हे। खुसी मने तोहें कहल हल्हे – “देखा, खोरठाक ऊपर राजनीति चइल रहल हो। राँचिक छेतरीक भासा बिभागें खोरठाक बिकास देइखके कुछ लोकेक सइन छुटहलन। बड़ी दुखें खोरठा साहितेक बिकास भेल हइ। एकरा आगु बढ़वेक भार तोहनिक कांधे हो। सोभीन के जागल रहेक चाही।” एहे लेताइरें पानुरीजि डॉ. राम दयाल मुंडा के बड़ी नाँव करल हला। ‘एहे लेताइरें पानुरीजी डॉ. राम दयाल मुंडा के बड़ी नाँव करल हला। ‘रूसल पुटुस’ के पांडुलिपि देइखकें तोहर खुसिक ठेकान नाँइ हलो आर खुसी मने आपन सल्हा देल हल्हे।

  • जखन हामिन बोरवाआड्डा से चललों, तखन मधुर मने पानुरीजी बिदाइ देला। गोटे डहर हामिन आनंदेक लहरें मातल रहली आर मुँह-आँधरा ले घार घुरली।

  • हामराँ जखन फुरसइत मिलतल, श्रीनिवास पानुरी से भेंट करे चइल जितलों। सभेक खमर सुनके उनखर आनंदक कोन्हों सीमा नाँइ। एखन तक हाम उनखर से हसीन बेर मिल चूकल हलों। 1986 में खोरठाक रजत-जयंतिक अबसरें पानुरीजीक अभिनंदन करल गेलइ। सइ सँवएक कइगो फोटो हामनिक उनखर संगे हे।

  • कुछ दिन बादें, जखन शिवनाथ प्रमाएिक के मधुर खंड-काइब ‘दामुदेक कोराय ‘ छइप रहल हलइ, तो एकदिन पानुरीजीक थकेइक बानार पइलिए। हामर मन नाइँ मानल आर ताता-ताही बोरवाआड्डा पोहचलों। देखलिए जे उनखर गोड़-हाँथ फुइल गेल हइ। हालचाल पुछल बाद ‘दामुदरेक कोराञ’ के खभर देलिए। आनंद मने तोहें कहल्हे – “एखन हाम नाइँ मरबो। हल-दिल हवेक दरकार नाइँ! तोहनिक कीरति आर ‘दामुदरेक कोराय ‘ के छपाइल बादे हाम मरबो।”

  • एतना कहल बाद तोहर आँखी एगो अजगुत बिस्वास हाम देखे पइलों। आर सइ बिस्बासेक दू टिपका लोर तोहर आँइख ले भुंइएँ गिर पोरलइ। हामराँ बुझाइल जइसें कबिकं मने कोन्हों बिसाद हइन बा कोन्हों दुख। मेंतुक, हामर काँचा मन बुभे नाइँ पारल कबिक लोरेक मरम! 

  • सइदिन पानुरीजीक पासें हामराँ सोब ले बेसी सुख बुझाइला असुक गात रहलो बादें ऊ हामर कइगो कबिता सुनला। उनखर सोब ले बोड़ गुन हलइन, जे बुइरूक रहलो बादें ककरो लेकाइर नाइँ मारतल्थिन। गोटे दिन उनखर पासे रहल बाद जखन हाम घार आवे लागलों, तखन भाव-विभोर भइके हामराँ कहला-“पता नाइँ, तोहर से हामर एते परेस काहे! तोहे अइले हामर मन हलुक भइ जाइ।तोहर जखन मन करतों, हामर ठिन चइल अइहा। सभेक खभरो पाइब आर बातो हवता” तकर बाद हाम पार घुइर अइलों। के जाने जे कबिजाक संगें एहटाइ हामर निमराझारेक भेंट हल!

  • एकाएक, एकदिन अखबारें खभर देखलिए जे खोरठा भासाक गहान कबि श्रीनिवास पानुरी सिराइ गेला। हामराँ अइसन बुझाइलल जइसें खोरठा-साहितेक एगो जुग-जीतवा सुरूज पाहारेक पारे सोब दिन खातिर नुकाइ गेल। पानुरीजी आपन दिअल वादा बिसइरके ‘दामुदरेक कोराञ’ के छपाइल आगुवे चइल बइसला। तोहर निधन, से गोटे खोरठा सामाज टुअर भइ गेला 7 अक्टूवर 1986 के दिन हामिन कधियो भुले नाइँ पारब।

  • आइझ श्रीनिवास पानुरी हामनिक बीचे नाइँ हथ। मेतुक, हिन्दी आर खोरठा साहितेक उनखर सेवा अमर रहतइ। तोहर बारल सातितेक दीया जुग-जुग तक समाज के इंजोर करतइ।

बोरवा अड्डाक अखय बोर

  • खोरठा गईद पईद  संग्रह में   दो संस्मरण दिया हुआ है

    • बोरवा अड्डाक अखय बोर

    • उइड़ गेलक फुलवा रहइ गइल बास

  • “बोरवा अड्डाक अखय बोर” शान्ति भारत द्वारा लिखा गया है

  • इस संस्मरण में बोकारो के तीन खोरठा विद्वान शिवनाथ प्रमाणिक, बंसीलाल बंसी और शांति भारतश्रीनिवास पुरी जी के घरबरवड्डा  धनबाद पहुंचे थे 

  • वे पहली बार बोरवाअड्डादिसंबर 1985 को गए थे

  • यह सभी रुसल पुटुस  का पांडुलिपि लेकर उनके पास गए थे

  • उन्हीं के साथ बिताए गए समय को इस संस्मरण में वर्णन किया गया है

  • श्री निवास पुरी जी का निधन 7 अक्टूबर 1986 को हो गया था

1Q . ‘बोरवा अड्डाक अखय बोर पाठ केकर लिखल लागे ? शान्ति भारत

2Q . “बोरवा अड्डाक अखय बोर’ कइसन रचना लागे ? संस्मरण

3Q .लेखक ‘बोरवा अड्डाक अखय बोर’ केकरा कहल गेल हे ? श्रीनिवास पानुरी 

4Q .लेखक पहिल बेइर बोरवा अड्डा कहिया गेल रहथ? 1985,दिसम्बर’ 

5Q . शान्ति भारत केकर संग बोरवा अड्डा गेल रहथ? 

  • शिवनाथ प्रमाणिक आर  बंशीलाल ‘बशी’ संगे

Q . बोरवा अड्डा लेखक की ले गेल रहथ? रूसल पुटुस कर पांडुलिपि लइके 

Q .श्रीनिवास पानुरीजीक सिराइल तारीक हे ? 07.10.1986

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AUTHOR : MANANJAY MAHATO

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