हामिन के संस्कृति और तकरे ऊपर संकट खोरठा निबन्ध डॉ बीएन ओहदार HAMIN KE SANSKRITI KHORTHA NIBANDH

 

HAMIN KE SANSKRITI,  KHORTHA NIBANDH 

Dr. B.N. Ohdar FOR JSSC JPSC

khortha (खोरठा ) For JSSC JPSC 
KHORTHA (खोरठा ) PAPER-2 FOR JSSC

हामिन के संस्कृति और तकरे  ऊपर संकट (विचारात्मक)

खोरठा निबन्ध डॉ0 बी0एन0 ओहदार

(ग) खोरठा निबन्ध  

  • लेखक – डॉ0 बी0एन0 ओहदार

  • प्रकाशण वर्ष (प्रथम संस्करण) -1990

    • प्रकाशकजनजातीय भाषा अकादमी, राँची,बिहार सरकार

  • प्रकाशण वर्ष (द्वितीय संस्करण) – 2017 (अन्य में – 2016) 

  • निबंधों की संख्या – 12  

निबंध संख्या 10 : हामिन के संस्कृति आर तकर उपरे संकट

शीर्षक का नाम : हमारी संस्कृति और उसके संकट 

भावार्थ

  • यह एक वैचारिक निबंध है। 

  • इस निबंध में झारखण्ड की श्रम, समता, सहअस्तित्व, सहयोगात्मक, सरलता और प्रकृतीअभिमुखता जैसे प्राणवान तत्व वाली संस्कृति आज संकट के दौर से गुजर रही हैं। 

  • लोग अपनी संस्कृति से, बाहरी संस्कृतियों के दबाव में अपनी संस्कृति से विमुख हो रहे हैं। 

  • यह एक चिंतनीय विषय है। लेखक ने झारखण्डी संस्कृति के संकट पर चिंता व्यक्त की है और झारखण्ड के लोगों से अपनी मूल संस्कृति को बचाये रखने का आग्रह किया गया है।


 

1Q. अभी झारखंड में कौन सा पुनर्जागरण का समय चल रहा है  ? सांस्कृतिक पुनर्जागरण

  • सभ्यता और संस्कृति दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं

सभ्यता

  • वह सारी भौतिक वस्तु है जो हमारे पास हैं- उदाहरण स्वरूप मोटर रेल तार बिजली इत्यादि जिन्हें हम अपने भौतिक सुख के लिए आविष्कार किए हैं यह सभ्यता है

संस्कृति

  • संस्कृति लोगों का विचार है लोगों का चाल चलन, काम करने का ढंग,  जिंदगी के प्रति दृष्टिकोण, जीवन दर्शन, इन सभी से संस्कृति का निर्माण होता है

भारत को मुख्य रूप से सांस्कृतिक दृष्टि से दो भाग में बांटा जा सकता है 

  1. नदी – समुद्र किनारे की संस्कृति 

  2. दूसरा अरण्य संस्कृति या जंगल की संस्कृति

सांसइत का मतलब  – संकट    

2Q. लेखक जब मुजफ्फरपुर में पढ़ाई करते थे तब उन्हें किस उपनाम से उनके दोस्तों के द्वारा बुलाया जाता था ? जंगली

3Q. बिहार के किस पुल के निर्माण में झारखंड से बड़ी मात्रा में मजदूर(महिलाओं के साथ) गए  थे ? गांधीसेतु 

4Q.इस निबंध में लेखक बिहार का कौन सा जिला एक बार शादी का न्योता में गए थे ? मुजफ्फरपुर

  • लेखक का मानना है कि झारखंड की महिलाएं , सभी जगहों की महिलाओं से ज्यादा एडवांस है  क्योंकि इन्हे  सभी समानता मिला हुआ है यहां की महिलाये  सभी काम करती है, सभी से खुलेआम मिलती है, पर्दा प्रथा नहीं है, हाट बाजार जाती है, खेत खलियान में काम करती है, यहां तक की औरतें बारात तक जाती है, इस दृष्टि से झारखंड की महिलाएं ज्यादा एडवांस से अन्य राज्यों की महिलाओं से


झारखंड की सामाजिक व्यवस्था में तीन मुख्य चीजें पाया जाता है   

  1. कठोर परिश्रम 

    1. यहां के सभी लोग मेहनत मजदूरी करके खाते हैं चाहे वह महिला हो या पुरुष

  2. समानता 

  3. सह  अस्तित्व 

झारखंड की संस्कृति की दूसरी जो विशेषता है वह है – समानता की  भावना

  • झारखंड में प्रत्येक व्यक्ति को बराबर का अहमियत तो मिलता ही है साथ ही जानवरों को भी बराबर भाग किसी भी चीज में मिलता है

  •  लेखक इसका उदाहरण देते समय कहते हैं जब झारखंड में लोग शिकार के लिए जाते हैं और जब शिकार का बंटवारा होता है तब कुत्ता को भी एक हिस्सा व्यक्ति के समान ही दिया जाता है

  • झारखंड में कुछ वर्ष पहले पुरुष और महिला में भेदभाव नहीं देखा जाता था लेकिन अब झारखंड में भी महिला को पर्दा के पीछे रखा जाने लगा यानी की इज्जत बेज्जती का भार अब सिर्फ महिला पर थोपा जाने लगा है पुरुष पर नहीं

झारखंड की संस्कृति की तीसरा विशेषता है – सह अस्तित्व की भावना

  • मतलब जियो और जीने दो 

  • सभी जाति सभी लोग का अपना अपना अस्तित्व है सभी को समान रूप से जीने का अधिकार है

झारखंड की संस्कृति की चौथी विशेषता है-  यहां की भाषा 

  • भाषा संस्कृति का वाहन है

  • यदि भाषा की मृत्यु होती है तो उस देश की संस्कृति को कोई नहीं बचा सकता 

  • लेखक यहां  यह भी कहते हैं कि जिस भाषा को हम अपनी मां की गोद से सुनते आए हैं सीखते हैं उसी भाषा को हमें कहीं दूसरे जगह प्रयोग करने में शर्मिंदा महसूस होता है 

5Q. ‘हामिन के संस्कृति आर तकर उपरें संकट’ पाठ केकर लिखल लागे? डॉ. बी.एन. 

6Q. ‘हामिन के संस्कृति आर तकर उपरें संकट’ कोन किताबे सामिल हे ?खोरठा निबंध  

7Q. ‘हामिन के संस्कृति आर तकर उपरें संकट’ कइसन रचना लागे ? विचार प्रधान 

8Q. लेखकेक अनुसारे दुनिया में सोवले परिये दोन पदम (सभ्य) हेल हे.? मुंडा समूह

9Q. लेखकेक अनुसारे मुंडा समूहेक लोक केकर वंशज लागथ? आस्ट्रो – एसियाटिक  

10 Q. झारखंड भासा संसकीरतिक ‘पुनर्जागरण’ खातिर की करल गेल? 

  • राँची विश्वविद्यालये आई.ए. से एम.ए. तइक हियांक (हामिन कर) भासाक पढ़ाइ सुरू हेल 

11Q. मारल शिकार के बाँटा-बखरा करे में कुकुरो के बराबइर हिसा देल जाहे। ई बात (कथन) कोन कोन पाठे आइल हे ? 

  • एगो कुकुरेक आत्मकथा 

  • हामिन के संस्कृति आर तकर उपरें संकर 

12 Q.हामिन के संस्कृति तकर उपरें संकट पाठे लेखक की कहे खोजल हथ?

  • झारखंडेक संस्कृति सबसे बेस संस्कृति हे

  • हामिन के आपन संस्कृति पर अभिमान हेवेक चाही 

  • एकरा बचाइ राखेक दरकार हे 


हामिन के संस्कृति तकर उपरें संकट

  • एखन झारखंड“सांस्कृतिक पुनागिरण’ के पहर चइल रहल है । सइले “संस्कृति” संबदेक चरचा एखन बड़िये जोर। तो संस्कृति” की लागे ईटा फुरछाइ के बुझेक दरकार । जखन-जखन संसंकिरतिक बात उठे है तखन-तखन एगो आरो सबद “सइभता” (सभ्यता) के चरचा  चले हे। मकिन लोक प्राय-प्राय ई दुइयो सबदेक एक संगे चरचाक बेरा गड़बड़ाईये जाहथ । मेनेक दुइयो के अरथ अलग-अलग फुरछावे में कटि धुकचुकाय लाग हथः। अइसे तो संसकिरति आर सइभताक मइधे  ढांगा फरक नखे, रीचि फरक़ हइ। मेनेक एगो गोटिना सिक्काका दुइगो पीठ । एक पीठ सइभता लागे तो दोसर पीठ संसकिरति ।

  • एकरा दोसर भाभे ई तइर फुरछावल जाइ पारे कि जे कोन्ही चीज वा जिनिस हामिन ठीन हे सेटा लागे सइभता वा जे कोन्हो चीज के अदमी आपन सुखेक लागिन खोजले (आविस्कार) हे सइटा सइभता। पटतइर  रुपे मोटर, रेल, तार, बिजली, उड़ा जहाज, पानीक जहाज, लुगा, टेरलीन, कम्प्यूटर आरो-आरो। लो ई सबके मनुख आपन सुखेक लागिन आविस्कार करले है । ई भेलक सइभता । मेनेक सभे भौतिक जिनिस गुला सइभता लागे । सइले कोन्हो-कोन्हो विदवान सइभता के भौतिक संसंकिरतियो कहल हथिन । दोसर वाठे जे कुछ हामिन हकी सेटा भेलक  संसंकिरति । आब हामिन की लागी सेटा जानेक दरकार। ई तो बड़ी ओरगोझाइल सवाल, मकिन ओर भेंटालेवड़ि ये आसान । एकरा खांटे खुटे ई भाभे बुझा जे हामिन के विचार, हामिन के चाइल-चलन, हामिन  के काम करेक ढर्रा, जिनगिक प्रति हामिन के “दृष्टिकोण”, हामिन  के “जीवन-दर्शन”, हामिन के विसुवास आरो-आरो जे संब हामिन  परिया परियाले, खुटी दर, खुटी, पुसुत, दर पुसुत बाप दादा से सीखले । आईलहि ई सब चीजवइन के मेसर-कोसर के “हामिन’ वा ‘हाम’ (मै -हम )के ढांचा  डंडाव है। सइटा हामनिक संसकिरति । 

  • ई तो भेलक सइभता आर संसकिरति के फरक-फरक फुरचाइल अरथः। ई दुइयोक मइधे की फरक हइ सेटा जानेक दरकार । हिया एगो पटतइर दइके ई बात के हाम फुरछाव हों — “आइग” लाने मानुखेक आविस्कार, मानुखेक खोज़, एकर गुन टा सोव केउ जानहय। एकर से गोटे दुनियाइ के पोंडाइ के छार-छार करल जाइ पारे आर एहे , आइगें गोटे दुनियाइ के भोजनो राँधा है। तो आइगेक परजोग कोन भाभे  करल जाए ? ‘दुनियाइ के पोड़वेक लागिन ना भात रांधेक लागिन।।जोदि एकर से पोडवेक काम लेल जाए तो ऊटा संसकिरति नाय विकृति । जोदि मनुखेक हितें परजोग करल जाए तो संसकिरति । ई भाभे  कहल जाए पारे कि संइभताक परजोग टा संसकिरति लागे । अणुवम, परमाणु बम मनुखेक आवगा आविष्कार । एकर से गोटे दुनियाइ के आइख  झपकाउथयी  जराई के खाख करल जाइ पारे आर नांय तो गोटे दुनियाय लागिन शक्ति (उर्जा) मिले पारे । एहव टा जाइन लिएक दरकार कि बिगियान के पइत काम वा खोज बा आविष्कार मानुखेक हित खातिर होव है। एहे बिगियानेक जोरें आइझ मनुख गोटे दुनियाइयेक मालिक । तो खराप परजोग टा नाय विचकुन बेस परजोग, मेनेक मनुखेक हित लागिन परजोग टा संसकिरति।

  • हामिन के संसकिरतिक झलक हामिन के परव-तिहारें, हामिन के नेगे-चाउरें, हामिन के रीझ रंग टांय, हामिन के गीते-नादें, हामिन के चाइल -चलने, हामिन के उठन बइठने, हामिन के बातें-चितें, हामिन के पींधना ओढनाय, हामिन के काम करेक ढर्राय, हामिन के नियम कानून हामिन के बेबहारें मेनेक पइत कामें देखा है।

  • झारखंडी संसकिरति –हामिन भारतेक लोक । भारत हामिन के देस । 

गोटा भारत देस के मुइख रूपे संसकिरतिक नजइरें दू भागे बांटल जाय पारे।

  1. एक तो बड़का-बड़का नदी आर  समुंदर धाइरेक समतल पइदगर मैदान आर तहीं वइसल माडल सहर । 

  2. दोसर वाटे बंड़का-बड़का नदी आर समुदरेक माझे-मांझेक खूब ढांगा, चाकार आर. ओसार तर जहाँ वोन, पहार, छोटे-छोटे नदी-नाला आर झरना वोहे है । 

  • ई बोन पहारें रहवश्या लोकवइन के एगो फरके किसिम के संसकिरति ‘हइन जकरा बोनेक संसकिरति वा “अरण्य संस्कृति’ कहल जाय पारे।

  • ई छेतरेक नाम झारखंड कहल गेल है। मेनेक धरतीक अइसन खंड वा टुकरा जहाँ बोन-झार मुइख रूपे  पावा  है। झारखण्ड नाम कोन्हों नांवा नाय, विचकुन एकर बरनन बौद्ध साहितें आर वेद पुरानों में मिल है। ई छेतर हे मइध परदेस, बंगाल, बिहार, उड़ीसा से संटल आर वोन पहार से छेकाइल जघऽ जहां भारतेक सोब ले वेसी अनुसूचित ‘जाइत, अनुसूचित जनजाइत आर कतै-कते किसिम के पिछड़ी जाइत,सदान रह हथ । हिया  मुंडा समूह (अग्नेय-आष्ट्रिक) के अनेक जाइत मुडा, संताल, हो, खड़िया, महली, भूमिज रह हथ ।, एखिन गोटे दुनियाइयेक सवले पहिल सइभ भेल जाइत आर दखिन-पुरुब (दक्षिण-पूर्व) एशिया के आस्ट्रो-एशियाई जाइत के वंशज लागथे। ई भाभे कहल जाय पारे कि मुण्डा    समुहेक लोक गोटे दुनियाइयें सबले पहिल सइभ भेला तकर पाछु वाकी दुनियाइ। ई बात सुइन के केउ हइचोक हेवे पारे आर एहव सवाल करे पारे कि ई मुण्डा जाइतेक लोक एखन तो बेस से लुगा फाटा पिधे-ओढे क सीखल नखथ तो एखिन दुनियाइयेक सोव ले पहिल सइभ भेल जाइत कइसे कहा हथ ? मकिन हियां एगो बात ज़ाइन लिएक दरकार है कि कोन्हो जाइतेक लोक ठीन जोदि भौतिक सुख सुविधाक सोभे जिनिस हे बडका-बड़का घार दूरा, गाड़ी-मोटर, रेल जहाज आदि हे आर जोदि विचार ठीक नखे, शोषणकारी समाज बेवस्था है, सहअस्तित्व के भावना नखे, एक दोसर के हित-अहित के धेयान नखे मनुखेकः पइत करम  मनुखेक हित खातिर नखे, तो ऊ जाइत सइभ नाय ! सइभ माने सोझे बेस-बेस पींधना-ओढ़ना, गाडी-मोटर चघना चीकन-सुथर आर सुख से रहनांय नाथ हव है। सइभ तो तब जब ई सुविधा टा सोब के बराबइर भेंटाइ जाहे तब। ई भाभे मुंडा जाइत आर ई झारखंड छेतरें रहवइया लोक बेसी संइभ लागथे की ले ना कि हिआंक समाज बेबस्था समतावादी है, मानवतावादी है । सह-अस्तित्व के भावनाय सनाइल हे भोथाइल है। झारखंडी संसकिरति अइसन – अइसन खूबी है, बा जे चाइल हामिन ठीन हजारो बछर आगुवे ले हलक, से चाइल वा कांदून कायदा के दोसर समाजेक लोक एखन आपनाई के आपन के सइभ आर एडवांस मान हथ । 

  • मकिन एखन हामिन के ई सइभता संसकिरति आव गते गते भेसताइ रहल है, बेडाइ रहल है, दोसर छेतरेक संसकिरतिक परभाव से हिआंक लोक आपन संसकिरति के बेस चीजवइन के विसंइर के दोसर संसकिरति के अपनाई रहल हथ। एकर पाछू बड़ी जबरं कुटचाइल चइल रहल है। ई छेतर के ‘उपनिवेश’ बनाइ के चसल जाइ रहल है। ई भाभे ई छेतरे  रहवइंया ‘लोकेक हालइत ठीक ओइसने हे जइसनें कि हारल मारलं लोक (विजित) । आर शोषक सव’ “विजयी’ जइसन अतियाचार करहय एखिन उपर। हियांक भाखा संसकिरति से घीन. करहथ, एकर विकासें रोकावट करहय। ई भाभे  एखन हिंआंक संसकिरति उपर सांसईत (संकट) के वदरी घटघटाइ रहल है।। 

हामिन के संसकिरतिक उपर की रूपे  संकट भइ गेल हइ  सेटा हाम  एगो उदाहरण दइ के पुरछावेक जिगिस्ता कर हों। ई हामर  एगो आया अनुभव ।

  • आइझ से दस बछर आगू हाम मुज्जफरपुरै पढ़ हलों । हमर संगी जानला कि ई छोटानागपुर के हो तो हागरा जंगली, बोनइया कइह के चिडाव हलथ । ओखिन हमरा ई बात कइह के बराबइर चिढावय कि एकर बाठे जनी बेपरद हाटे-बजारे घुरहथ, खेतें खरइये गरू-काड़ा आर मरद लेखे खटहथ । हाम पुछियइन “तो एकर में खराप की हइ भला ! अरे ओकर ठीन पेट हइ, भूख हुइ आर तकरा पुरवे लागिन दूगो हाथ गोड़ हइ, जोदि खटहइ, मेहनइतेक जोरे पेट भोर हइ, तो बुराई की  ?” एतना सुनते ओखिन भभाइ के हंसथ आर कहथ-“बेवकूफ तुमलोग ‘जंगली’ हो, असम्य’ हो, औरतों को मर्दो की , तरह अपरद सहर-बाजार घुमने देते हो, खेत-खलिहान में काम कराते हो ? औरत इस काम के लिए तो नहीं होती न ! औरत होती है गृह की शोभा, औरत होती है पुरूष को सुख पहुँचाने के लिए। औरत के उपर कुल खानदान की इज्जत होती है। इज्जत  ही सरे बाजार खेतों खलिहानों में घुमती फिरे तो कुल खानदान की, घर की और स्वयं हमारी क्या इज्जत रह जायगी ? पुरूष का धर्म है औरत का भरण-पोषण करना, उसकी इज्जत की रखवाली   करना।” 

  • वे फिर आगे कहते -“जानते हो हमारी बहु वेटियां, हमारे घर की स्त्रियां, घर का देहरी तक नही लांघती । स्त्रियां गांव के लोगों, टोले मुहल्ले के लोगों तक को ठीक से नहीं पहचानती।”

 

  • हामं ई संब बात सुनतलों तो बड़ी हइचक बुझा हल। हाम सौंचे लाग हलों एखिन के सोचना तो हामिन से ठीक उलटा हइन । कभू-कभू तो हाम सोंच हलों कि सायंथ ठीके ने हामिनं असइभ लागी आर एखिने सइभ । तखन गांधी सेतु बनहल आर हुआं खटे लागिन छोटानागपुर ले बड़ी रेजा गेल हलथे। ऊ रेजा सब के देइख के हामर संगी गुला के हामरा चिंढ़ावेक लागिन मसाला मिल गेलइन । ओखिन कहथे—“देखो रे जंगलिया के गांव की इज्जत सरे आम घुम रही हैं। देखो तो सर में  टोकरी लेकर कैसे काम कर रही है ? अजीव जंगली देश है छोटानागपुर भी भाई।”हाम सुनतलों तो बड़ी हइचोंके पइर जा हलों। आपन के कभू कभू छोट आर नीच बुझे लाग हलों ।

  • एक बईर मुजफ्फरपुरेक एगो गाँवे बिहा धारे नेउता खाइक जोगाड़  बइस गेलक । हाम्हु गेलों आर हमर संगे आरो कते साथी गेला । हम देखलों ऊ खुब पढेल-लिखलं परिवार रहे। ओकर घारें की वेटी छउवा  आर की वेटा छऊआ सभे खुलेआम, विनं परदा के घुइर वुलथ । कनियाइ के हामिन सब पोहना से भेंट मुलाकाइत करावल गेलक । हमरा बड़ी वेंस बुझाइलक संगे-संगे हइचको बुझइलक, की ले कि सुनइत रह हलों कि हिने बड़ी परदा सिसटम है । हाम आपन एगो संगी के पुलियइ- क्या जी तुम तो कहते थे कि हमारे इधर की औरतें खुले आम घुमती फिरती नहीं हैं, किसी गैर से बोलती नहीं हैं, परन्तु यहाँ तो देख रहा हूं इस परिवार की सभी औरतें वड़े खुले तौर पर घुमती-फिरती हैं, क्या गैर, क्या अपने सवों से मिलती हैं, बात करती हैं; ये क्या माजरा हैं ?”

  • तखन ऊ तड़तड़उले कहलक “अरे नहीं जानते ! बड़े हाइसोसाइटी वाले हैं ये लोग। वड़ा एडवांस परिवार है। बहुत उचे उंचे पोस्ट पर ये लोग काम करते हैं। इनके घर की सभी औरतें सर्विस करती हैं-विभिन्न सरकारी ऑफ़िसों में । देखते नहीं इनका रहन-सहन । ” तखन हाम दन्न से कहलिया–“क्या जी ! जब हमारे यहा की सभी औरतें काम करती हैं, सभी से खुले आम मिलती हैं, पर्दा नहीं करती है ,हाट-बाजार जाती हैं, खेतों-खलिहानों में काम करती हैं, यहांतक कि औरते बारात तक जाती हैं, तो हम तो इस फैमिली से भी एडवांस  हुए हैं कि नहीं ! हमारे यहाँ किसी खास परिवार नहीं बल्कि सारे झारखण्ड में ऐसा रिवाज है, तो हमारा पुरा झारखंड ही एडवांस हुआ ! फिर हमे  किस तरह तुम सब जंगली और और असभ्य कहते हो ?

  • एतना सुनयीं सोबके माथा चकराइ गेलान । 

झारखंडे समाज व्यवस्था तीन मुइख गुन पावा हे । ई है

  1. श्रम (मेहनत  )

  2. समता (समान) 

  3. सह-अस्तित्व (जीएक बराबईर अधिकार)।

और ई तीन गुन टा दुनियाइयेक सोब ले विकसित, सबले सुसंस्कृत आर  सोबले सइभ समाजेक गुन । मकिन बढी दुखेक बात, आइझ  हामिन आपन ई गुन के भुलाइ रहल ही आर धिनधिनिया चाइल के अपनाह रहल ही।

  • झारखण्डेक लोक खइट के खा हथ, चाहे जनी होवो वा मरद, बिना खटले खाइक जानवे नी करहय । कामचोरी आर वइमानिक नाम तक नाय जानहथ । ई खटी खाइक गुन टा हामिन के संसकिरतिक आया गुन। आर एहे चलते झारखंडेक लोक बड़ी सुखी रहाहथ । मकिन माइझ देखा अइसन परिस्थिति पइदा भइ गेल हे कि झारखांडेक लोक के सोंचे परे लागल हइन कि सांयत खटनाय टा वेकार चीज, की ले कि झारखंठेक लोक खट हा आर मजा मार हे दोसर कोई। जे नायं खट हे से है चरक चीकन देखा हे आर मलकल बुल है। मकिन जे खट हे ओकर दुखेक अंत नाय । तो आइझ झारखांडेक लोक के अइसन बुझाइ. लागल हइन कि ठकिहारी, कामचोरी आर बइमानिये टा वेस। जखन कोई झारखंडी अइसन काम करहथ तो लोक कहहथ-“अब झारखंडी लोगों को अक्ल आ रही है।”

  • मकिन नाय’ ई टा हामिन के विकास नांय बिनास ।’ हामिन के सांसकिरतिक उपरें घात – संकट । ई गुन टा सिराले झारखांड सिराइ जइतक। खटी खाइक गुन टा के पंचवेक आया दरकार । 

  • हामनिक संसकिरितिक ,दोसर बोड़ खुबी ई हे कि हिया समानता  के भावनाक बड़ी जोर। अदमी-तो अदमी कुकुरो विलाइर के बराबर हिसा हिया देल जाहे । एकरा एगो पटतइरें ई भाभे बुझा । झारखंडेक लोक जखन बोन झारें शिकार खेले जा हथ तो ओखिन के संगे कुकरो जा हथिन। मारलं शिकार के जखन बांटा-बखरा करे लाग हथ  तखन कुकरो  के बराबइर हिंसा देल जाहे। ई पटतइर टा गोटे दुनियाइये कहीं नाय पइभें झारखंडेक छोडाइ के । सइले देखा गोटा झारखंडेक एको गो अईसन  आदमी नाय पइभे जकर आपन घर-दूरा नाय, दु चाइर टुकरी जमीन नाय। सबके जीए  खाई भइर जोगाड़ है। मंकिन आइझ हियांव लोक घार-दूराक दुखें टापर. गावथ । तो ई हामिन के सांसकिरतिक सॉकट। झारखांडी संसकिरतिक संकट । 

  • “हियांक लोक आपन परवतिहार के मिली-जुली के मैनावहथ । करम सरहूल, सोहराइ, बाउडी वा पूस परंवें देखा। सोब परबेक सामूहिक रुपे  मनावहथ । जनी मरद सभे एके संगे नाचहथ डेगहथ ।गीत-नाधे जतरा सेंदरा जा हथ । बेटा छउआक दल गावे हे तो बेटी छउआक दल संखाव है। जनी-मरद के मांझें भिन-भदवा विचार नाय रहेक चलते जइसन लड़काकं माइनं तइसने लड़कीक माइन । सइले हिआं दहेज के नाम निशान नाय । मकिन आइझ झारखंडे ‘जनी-मरदेक मांझे ‘भिन-भेदवा  विचार जनइम रहल हे। जनी के परदाक भीतर राखेक सूरू कइर देले हथ । जनी के घार भीतरै राखेक सुरु कइर दैले हथ। इंजइत-बेइजइत के ठीका ओकर माथाय बांईध रहलं हथ । सइले हियांव दहेज सुरु भइ रहल है, बहु पोडावेक तंइयारी चइल रहल है । तो होमनिक संसकिरतिक, उपरें हिआँ सांसइत है, संकट है। ई संकट के एखन भगावेक दरकार। आपन बेस सांसकिरतिक बचवेक जिगिस्ताक-चेस्टाक एखन टटका दरकार । आइझ गोटे दुनियाइये जनी के मरदेक बरावइर असथान दिएक बात कर हथ  आर दिएक कोसिस कर के ‘प्रगतिशील’ आर सइभकहायक जिगिस्तान कर हथ । मकिन हामिन झरखंडिया-समाज तो जनी आर मरदेक मांझे भेद नाय । जनी आर मरदेक असथान बराबइर आइझे नाय; हजार बछर आगुवे ले हे। ई भाभे  तो हामिन सोवले बेसी सइभ आर सुसंसकिरित।

  • झारखंडेक संसकिरतिक तेसरका बिसेसता  हे “सह अस्तित्व के भावना ।” सह अस्तित्व के माने सब जाइतेक वा सभे लोकेक आपनआपन अस्तित्व है। सभे के जीएक अधिकार है, ई.माइन के चलेक चाही । मेनेक “जीओ और जीने दो।” ई भेलक सह अस्तित्व । अइसन “जीवन दिरिसटी” हामनिक संसकिरतिक आया विसेसता । एखन्हु झारखंडेक गाँवें कोई भूइल के देइख सके है। कभू-कभू तो ‘बड़िए हइचक हइजाइ परे हे कि कहूं-कहूं एके मुधना माचांय, कुरमी आर रविदासो के घार है। एक अंगनवारी हरिजन आर ‘सवर्ण’ रह हथ । दुनियाइयेक कोन्हों जघे  सह-अस्तित्व के अइसन पटतइर भेंटाना दूर्लभ हतो। दुइयो जाइत आपन-आपन जाइतेक पेशा-धंधा कर हथ, हजारो वछर ले एके संगे रहल आइल हथ । मुसलमान, ‘कुरमी; मुंडा गोटे झारखंडेक गाँवें मेसर-कोसर ‘बइसल माडल हथ । जाइत पिछु टोला नाय पइभे । एखनो हमर आपन गाँवे मुसलमानेक घारेक मांझे कुरमी आइझ सैकडो वछर से संगे रइह रहल हथ । आजादीक आगू झारखंडे केउ  “संम्प्रदायिक दंगाक’ बात सुनले हलाय ? एकदम नाय । मकिन एखन झारखण्डे सुरू भइ रहल है। झारखण्डे हरिजनेक घार, गांव ले बाइहरे सरकार वनाइ रहल है। हिन्दू, मुसलमान आर.आदिवासीक मइधैं भिनभेदबा विचार पइरचावल जाइ रहल हे। हामिन के संसकिरतिक आया गुनटा बरबाद भइ रहल है, तो हामिन के संसकिरतिक संकट हिया है।

  • चउथा चीज हे भासा। भासा संसकिरतिक वाहन लागे। मेनेक हामिन के संसकिरति बा कोन्हो  संसकिरति भासा के माघियमें परसफुट  होव है। भासाय नाय रहतक तो ससकिरतिक परसार की भाभे हताई ? गुन-दोखेक बखान की भाभे हतइ । जोदि भाखा मोरतक तो संसकिरति के कोई बचावे नांय पारतक। मकिन आइझ हामिन के मने आपन  भाखा आर संसकिरतिक प्रति एतना हीन भावना भोईर देल गेल है कि आपन माइयेक कोरें-कांखे सीखल भासा बइचके ने लाज़ बुझा है। फल कि भेलक ? फल भेलक कि  हामिन के आपन ‘भासा-संसकिरतिक उपर टान कम भई गेलक। हामिन आपन भासा जोदि बोल ही तो जंगली कहा ही आर ओखिन मेनेक गैर झारखंडिया गुलइन तड़तड़उले आपन भाखा कि घारे, कि बाइहरे, सगरो धरी बोलहय। तो हिंया हामनिक संसंकिरतिक उपरें ‘सांसइत है। आइझ भाखा-संसकिरतिक “पुनर्जागरण” के बेराय रांची विश्वविद्यालये हामिन के भाखाक पढाई भइ रहल हे आई० ए० से एम० ए० तइक । मकिन एखन हामिन के भाखा के कोर्ट-कचहरी, बैंक, आरोआरो जंघे  माइनता मिलेक दरकार हइ । एक बात तो साफ हइ कि जोदि आपन भाखा आर संसकिरति के बचावे’ ले गोटा झारखंडेक लोक किरियां खाइलेहथ तो कोन्हो अइसन  ताकत नखे जे एकरा बेंडावे पारतक। 

  • आोइसे  ताो  हामिन के संसकिरतिक संकटेक उपरें एगो पोथी लिखल जाए पारे, मकिन ओते वात के ई छोट रचनाए, अटावना टा तनी कस्टेक काम।  तइयो खांटे-खुटे हिया  जइर बात के उखरावेक चेसटा करल हो ।


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