उत्तरी भारत का विशाल मैदान (Great Plain of Northern India)
- उत्तर भारत के मैदान का निर्माण मुख्यतः सिंधु, गंगा व ब्रह्मपुत्र नदी तथा इनकी सहायक नदियों द्वारा लाए गए अवसादों के निक्षेपण से हुआ है।
- इन्हें गंगा व ब्रह्मपुत्र का मैदान भी कहते हैं।
- यह मैदान पश्चिम में सिंधु नदी से लेकर पूर्व में ब्रह्मपुत्र नदी तक फैला हुआ है। यह एक समतल मैदान है. तथा इसके उच्चावच में बहुत कम अंतर है। यह मैदान पूर्व से पश्चिम तक लगभग 3,200 किलोमीटर लंबा तथा लगभग 150 से 300 किलोमीटर चौड़ा है।
- इस मैदान की समुद्र तल से ऊँचाई लगभग 50 से 150 मीटर तक है। इस क्षेत्र की उपजाऊ मिट्टी, उपयुक्त जलवायु तथा पर्याप्त जलापूर्ति कृषि कार्य के विकास में बहुत सहायक है।
- उत्तरी मैदान को उच्चावच व भौतिक लक्षणों के आधार पर पाँच महत्त्वपूर्ण प्रदेशों में विभाजित किया गया है- भाबर, तराई, बांगर, खादर और डेल्टा।
भाबर
- उत्तर भारत में शिवालिक के गिरिपद प्रदेश में सिंधु नदी से तीस्ता नदी तक के क्षेत्र को ‘भाबर’ कहा जाता है। यह भू-भाग हिमालयी नदियों द्वारा लाए गए पत्थर, कंकड़, बजरी आदि के जमाव से बना है।
- इसकी चौड़ाई सामान्यतः 8 से 10 किमी. है।
- इस भू-भाग में छोटी नदियाँ पत्थर, कंकड़, बजरी के ढेर के नीचे से प्रवाहित होने के कारण अदृश्य हो जाती हैं।
- यह क्षेत्र कृषि के लिये उपयुक्त नहीं होता है।
तराई
- यह क्षेत्र भाबर प्रदेश के दक्षिण का दलदली क्षेत्र है तथा बारीक कंकड़, पत्थर, रेत तथा चिकनी मिट्टी से बना है। इसकी चौड़ाई सामान्यतः 10 से 20 किमी. है।
- भाबर क्षेत्र में जो नदियाँ अदृश्य हो जाती हैं, वे तराई क्षेत्र के धरातल में पुनः दृश्यमान हो जाती हैं। वर्षा की अधिकता के कारण तराई का विस्तार पश्चिम की अपेक्षा पूर्व में अधिक पाया जाता है।
- इस क्षेत्र में ढाल की कमी के कारण पानी बिखरा हुआ बहता है, जिससे इस क्षेत्र की भूमि सदैव नम रहती है एवं कृषि के लिये विशेषकर-गन्ना, चावल एवं गेहूँ हेतु अधिक उपयुक्त है।
बांगर
- यह उत्तरी मैदान की उच्च भूमि है जो पुरानी जलोढ़ मिट्टी से निर्मित है।
- इसका विस्तार मुख्य रूप से पंजाब व उत्तर प्रदेश के मैदानी भागों में पाया जाता है।
- इसमें कंकड़ भी पाए जाते हैं। शुष्क क्षेत्रों में इसमें लवणीय एवं क्षारीय उत्फुल्लन देखे जाते हैं, जिन्हें ‘रेह’ अथवा ‘कल्लर’ कहा जाता है।
- बांगर क्षेत्र नदियों के बाढ़ वाले मैदान के तल से ऊपर स्थित होता है इसलिये यहाँ नदियों के बाढ़ का जल नहीं पहुंच पाता।
- यह क्षेत्र कृषि कार्य हेतु कम उपयोगी होता है एवं इसमें भूमिगत जलस्तर की गहराई अधिक होती है।
- बांगर प्रदेश में अपक्षय के कारण भूमि के ऊपर की मुलायम मिट्टी नष्ट हो गई है और वहाँ अब कंकरीली भूमि मिलती है। ऐसी भूमि को ‘भूड़’ कहते हैं।
खादर
- यह उत्तरी भारत के मैदानों की निचली भूमि है जो नवीन जलोढ़ मिट्टी द्वारा निर्मित है। इसमें काँप मिट्टी भी पाई जाती है।
- इसका विस्तार पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार एवं पश्चिम बंगाल में है।
- खादर क्षेत्र नदियों के निचले हिस्से में स्थित होती है, जिस पर बाढ़ के समय जलोढ़ की नई परत जम जाती है।
- यह क्षेत्र कृषि कार्य हेतु बहुत उपजाऊ होता है। इसमें भूमिगत जलस्तर ऊँचा होता है।
- खादर भूमि की मृदा में ‘चीका’ की अधिकता होती है, जो इसे नमी धारण करने की क्षमता प्रदान करती है।
- यह क्षेत्र/मिट्टी चावल, जूट, गेहूँ, गन्ना, दलहन, तिलहन आदि की कृषि हेतु प्रसिद्ध है।
डेल्टा
- यह खादर मैदान का ही बढ़ा हुआ भाग है।
- इसका विस्तार निचली गंगा घाटी (पश्चिम बंगाल) में पाया जाता है।
- इसमें पुराना व नया पंक तथा दलदल सम्मिलित हैं।
- यहाँ उच्च भूमि को ‘चार’ (Chars) कहते हैं।
उत्तरी भारत के विशाल मैदान को प्रादेशिक आधार पर मुख्यतः चार उपवर्गों में विभाजित किया जाता है
पंजाब का मैदान
- सिंधु तथा इसकी सहायक नदियों-झेलम, चेनाब, रावी, व्यास तथा सतलुज के द्वारा निर्मित मैदान को ‘पंजाब का मैदान’ कहते हैं। उसका भौगोलिक विस्तार भारत एवं पाकिस्तान दोनों देशों में है, लेकिन सर्वाधिक विस्तार पाकिस्तान में है।
- भारत में पंजाब के मैदान के अंतर्गत ‘बारी’ और ‘बिस्त’ दोआब के क्षेत्र आते हैं, जो कृषि की दृष्टि से भारत का एक विकसित क्षेत्र है।
- पंजाब की पुरानी जलोढ़क भूमि (बांगर) को ‘बैड लैंड’ (Bad land) या ‘अनुर्वर भूमि’ कहते हैं।
- पंजाब के पर्वतपदीय मैदान में नदियों के द्वारा अपरदन से निर्मित भूमि को ‘चॉस’ (Choss) या ‘चोस’ (Chos) कहते हैं। इस प्रकार के चोस (Chos) होशियारपुर जिले में सर्वाधिक पाए जाते हैं।
दोआब
- दो नदियों के बीच स्थित भूमि को ‘दोआब’ कहते हैं। इसका सबसे अच्छा उदाहरण उत्तर भारत में सिंधु नदी तंत्र के दोआब हैं
गंगा का मैदान
- ऊपरी गंगा का मैदान
- रूहेलखंड का मैदान
- अवध का मैदान
- मध्य गंगा का मैदान
- पूर्वी उत्तर प्रदेश का मैदान
- बिहार का मैदान
- सारण का मैदान
- मगध का मैदान
- मिथिला का मैदान
- निम्न गंगा का मैदान
- पश्चिम बंगाल का मैदान
- इसका विस्तार उत्तर प्रदेश, बिहार एवं पश्चिम बंगाल तक है।
- गंगा तथा उसकी सहायक नदियों के द्वारा निर्मित मैदान को मुख्यतः तीन मैदानी प्रदेशों में सीमांकित किया गया है
- ऊपरी गंगा का मैदान;
- मध्य गंगा का मैदान;
- निम्न गंगा का मैदान।
- गंगा के मैदान की रचना एक ‘अग्रगर्त’ (Foredeep) में हुई है। जब प्रायद्वीपीय भूखंड ने हिमालय के दक्षिणी प्रसार को रोका तो हिमालय के उच्च वलनों के समक्ष एक अग्रगर्त निर्मित हो गया, जो धीरे-धीरे हिमालय से निकलने वाली नदियों द्वारा लाए गए अवसादों से भर गया, जिससे अंततः गंगा के विशाल मैदान का निर्माण हुआ।
- गंगा के मैदान में पूर्व से पश्चिम की ओर जाने पर बंगाल की खाड़ी की शाखा के द्वारा होने वाली वर्षा की मात्रा में समुद्र से दूरी बढ़ने के कारण कमी आती जाती है।
- मध्य गंगा का मैदान बाढ़ से सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्र है।
- मध्य गंगा के मैदान में ‘गोखुर झील’ (Oxbow Lake) अधिक पाई जाती हैं क्योंकि इस भाग में नदियाँ विसर्प के रूप में बहती हैं।
- गंगा के मैदान में यत्र-तत्र गर्त पाए जाते हैं, जिसे पटना के निकट ‘जल्ला’ तथा मोकामा के निकट ‘टाल’ कहते हैं। पश्चिम बंगाल में जल से भरे ऐसे गर्त को ‘बील’ (Beel) कहा जाता है।
- जलपाईगुड़ी तथा दार्जिलिंग जिले का पर्वतीय तथा तराई का क्षेत्र ‘दुआर’ (Duar) कहलाता हैं।
राजस्थान का मैदान
- इसका विस्तार पश्चिम में अरावली पर्वत से लेकर भारत-पाकिस्तान की सीमा तक, उत्तर में पंजाब-हरियाणा के मैदान तक तथा दक्षिण में गुजरात के मैदान तक है।
- राजस्थान का मैदान तथा केंद्रीय उच्च भूमि के बीच अरावली पर्वत एक विभाजक रेखा का कार्य करता है।
- 25 सेमी. समवर्षा रेखा राजस्थान के मैदान में ‘राजस्थान बांगर’ और ‘थार मरुस्थल’ की विभाजक रेखा है। राजस्थान बांगर की उर्वर भूमि को ‘रोही’ (Rohi) कहते हैं।
- राजस्थान के मैदान में थार मरुस्थल खनिज तेल, जिप्सम और नमक के भंडार की दृष्टि से भारत का एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है। यहाँ कृषि हेत जल संसाधन के लिये ‘इंदिरा गांधी नहर’ का विकास किया गया है।
- राजस्थान के मैदान में ‘सांभर झील’ भारत की सबसे बड़ी अंत:स्थलीय ‘खारे पानी की झील’ है तथा ‘लूनी’ इस मैदान की एक प्रमुख नदी है।
- इस क्षेत्र में पहाड़ियों से घिरे अभिकेंद्रीय अपवाह वाले विस्तृत समतल गर्त को ‘बॉलसन’ कहते हैं। चौरस तथा प्रवाहित द्रोणी वाली छोटी झीलों को ‘प्लाया’ (Playa) कहते हैं।
- सांभर झील ‘बॉलसन’ (Bolson) का अच्छा उदाहरण है। डीडवाना, कुचामन, सरगोल तथा अन्य झीलें ‘प्लाया’ के उदाहरण हैं।
- समस्त मरुस्थलीय प्रदेश में रेतीले टीले तथा बरखान पाए जाते हैं। राजस्थान मैदान का एक बड़ा भाग बालुका स्तूपों से ढंका है।
ब्रह्मपुत्र का मैदान
- यह मैदान ब्रह्मपुत्र एवं उसकी सहायक नदियों द्वारा अपवाहित किया गया विशाल मैदान का सुदूर पूर्वी भाग है।
- मैदान का सामान्य ढाल दक्षिण-पश्चिम की ओर बंगाल की खाड़ी की तरफ है। ढाल प्रवणता के कम होने के कारण इस क्षेत्र में कई नदी द्वीप बन गये हैं, जैसे- माजुली द्वीप।
- असम घाटी के उत्तरी किनारों का ढाल खड़ा परंतु दक्षिणी किनारे का ढाल मेघालय की तरफ मंद पाया जाता है।
- यह मैदान भारत के सबसे उपजाऊ मैदानों में से एक है तथा यहाँ मुख्य रूप से चावल तथा पटसन की खेती की जाती है।
- ब्रह्मपुत्र मैदान के कुछ भागों में सहायक नदियों द्वारा निर्मित शंकुओं के निर्माण से प्रवाह मार्ग अवरुद्ध हो जाने के कारण गोखुर झील, बील, दलदल एवं तराई क्षेत्र बन गए हैं।
- चापाकर या गोखुर झील: मैदानी भागों में प्रवेश करने के उपरांत नदी क्षैतिज अपरदन के कारण कई घुमावदार मोड़ों से होकर प्रवाहित होती हैं। ये मोड़ ‘नदी विसर्प’ कहे जाते हैं। इन घुमावदार मोड़ों के विस्तृत होने के उपरांत नदी अपने विसर्प को छोड़कर सीधे मार्ग से प्रवाहित होती है। इन विसर्पों में जल भर जाने से निर्मित झील को गोखुर या चापाकार झील कहते हैं।
Points to Remember :
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