बुढा बुढी आर सात पीठा (Budha Budhi Aar Sat Pitha)

3. बुढा बुढी आर सात पीठा – दिनेश दिनमणि

  • पुस्तक – खोरठा लोकसाहित्
  • प्रकाशक – झारखण्ड जनजातीय कल्याण शोध सस्थान ,मोरहाबादी ,रांची ,कल्याण विभाग झारखण्ड सरकार 
    • प्रथम संस्करण – 2012   “©www.sarkarilibrary.in”
  • संपादक – 
    • प्रधान संपादकए. के. झा
    • अन्य संपादक
      • गिरिधारी गोस्वामी आकाशखूंटी 
      • दिनेश दिनमणि
      • बी एन ओहदार
      • श्याम सुन्दर महतो श्याम 
      • शिवनाथ प्रमाणिक
      • चितरंजन महतो “चित्रा’
  • रूपांकनगिरिधारी गोस्वामी आकाशखूंटी
  • मुद्रक – सेतु प्रिंटर्स , मोरहाबादी ,रांची 

KeyPoints – निपूतिया बुढा-बुढ़ी,  “©www.sarkarilibrary.in”

एक गांव में एक बूढ़ा बूढ़ी रहते हैं।  जिनका इस दुनिया में कोई नहीं है।  यह दोनों ही अकेले हैं।  एक दिन उनको पीठा खाने का मन होता है।  रात में  सात पीठा बनाते हैं।  जब खाने का बारी आता है तो वे एक दूसरे से झगड़ा करने लगते हैं कि हम 4 पीठा खाएंगे  तुम 3 पीठा खाओ।  अगर 8 पीठा बनाते  तो यह झगड़ा ही नहीं होता ,बराबर बंटवारा हो जाता।  लेकिन यह 4:3 के चक्कर में लड़ने लगते हैं। 

फिर यह निर्णय करते हैं कि जो व्यक्ति पहले मुंह से आवाज निकालेगा उसे 3 पीठा मिलेगा और जो पीछे मुंह से आवाज निकालेगा उसे चार पीठा मिलेगा।  और इसी के चक्कर में वे दोनों अलग-अलग खटिया में सो जाते हैं।  अगले दिन सुबह सो कर  उठने के बाद भी कोई पहले बोले नाँय।  

देखते ही देखते सुबह से दोपहर हो जाता है।  दोनों बूढ़ा बूढ़ी में से कोई खटिया से उठता नहीं  है और घर का दरवाजा पूरा दिन भर बंद रहता है।  आस-पड़ोस के लोगों में यह चर्चा होने लगता है कि बूढ़ा बूढ़ी को कुछ हो गया होगा।  इसी कारण से दरवाजा नहीं खोल रहे हैं।  लोगों के द्वारा दरवाजा खटखटाया जाता है।  लेकिन दोनों बूढ़ा बूढ़ी में से कोई भी पहले आवाज देने को तैयार ही नहीं है।  गांव वालों को पक्का यकीन हो गया है कि कुछ अनहोनी घट चुका है, नहीं तो दोनों में से कोई जरूर आवाज देता।  “©www.sarkarilibrary.in”

गांव के लोगों ने मिलकर दरवाजा तोड़ा, तो देखते हैं कि दोनों बूढ़ा बूढ़ी अभी तक सोए हुए हैं और चूल्हा पर पीठा ढक कर रखे हैं।  दोनों को हिला डुलाकर लोग देखते हैं लेकिन कोई भी आवाज नहीं देता है।  गांव के लोगों का समझ में आ गया कि दोनों का निधन हो चुका है।  फिर गांव वालों ने मिलकर चंदा पानी इकट्ठा किया और अंतिम क्रिया कर्म करने लगे।  गांव वालों ने मिलकर बूढ़ा बूढ़ी को एक ही खटिया में सुला कर कफन उड़ाया और श्मशान घाट जलाने के लिए ले गए।  दोनों को एक ही चिता में जलाने के लिए रखकर ऊपर लकड़ी रख दिया जाता है। 

इतना होने के बाद भी बूढ़ा बूढ़ी में से कोई उठने को तैयार नहीं।  जब चिता में आग लगाया जाता है तब बूढ़ा बूढ़ी को समझ में आ गया है कि, अब बचने का कोई उपाय नहीं है।  अगर अब चुपचाप रहे, तो जल के मर जाएंगे।  तब दोनों बूढ़ा बूढ़ी एक साथ चिता से उठते हैं और एक ही साथ कहते हैं जाओ तुम चार गो खाओ हम 3 को खाएंगे।  बूढ़ी भी कहती  हैं तुम 4 को खाओ हम 3 को खाएंगे।  और यह सब सुनकर गांव वाले डर जाते हैं कि बूढ़ा बूढ़ी 7 लोगों को खाना चाहते हैं।  और आश्चर्य से श्मशान में उनको जलाने के लिए भी 7 लोग ही गए थे।  गांव वालों को लगा कि बूढ़ा बूढ़ी भूत बन गए हैं और वह हमको खाना चाहते हैं।  और इसीलिए यह दूसरे से झगड़ा कर रहे हैं कि हम 3 को खाएंगे तुम चार गो।  और यह हम सातों को खाना चाहते हैं।  यह सब सुनकर सातों लोग जो जिधर सका उधर भाग लिया।  लोगों के भागने के बाद बूढ़ा बूढ़ी अपने घर घूमते हैं, फिर गांव के लोग को पता चलता है कि बूढ़ा बूढ़ी का असल झगड़ा सात पीठा को खाने को लेकर था।  “©www.sarkarilibrary.in”

एगो गाँवें निपूतिया बुढा-बुढ़ी रहऽ हला। दूइयो झन एकर ओकर हुआ काम कइर कोन्हों रकम गुजर कर हला। ढेइर दिन परें एक दिन दूइयोक पीठा खायेक मन भेलइन। दूइयो बुढा-बुढ़ी पीठाक जिनिस पतर जोगाड़ कइर राइतें पीठा बनवला मोटें सात गो पीठा बनलइ । आब खायेक घरी के चाइरगो लेइ आर के तीन गो एकरे में दुइयो लइर गेला । ऊ सभेक झगरा मेटाइक नाम नाय । सेसें दूइयो एक मत भेला जे दुइयो चुप रहता। जे आगु बइजकत से पाइत तीन पीठा आर जे पाछू बइजकत से पाइत चाइर पीठा। एहे बिचार कइर दूइयो भिनु–भिनु खाटीं ओइढ़-पोइढ़ सुतला ।

 

बिहान भइ गेलइ मेंतुक केउ उठे नाँय । काहे कि जे आगु उठत आर बइजकत सेहे पाइत तीन पीठा सइ लेल दुइयो जागल बादो केउ बोले नाँय। देखइत-देखइत दिन दुपहर भइ गेलइ ताव केउ उठला नाँय आर बुढा-बुढ़ीक घारेक केंवाइर नाँय खुलल। “©www.sarkarilibrary.in”

 

आस-परोस गाँवेक लोक चरचा करे लागला जे आखिर एखन तक बुढा-बुढ़ी उठला काहे नाय? पासेक लोक लगवला केंवाइर ढेढ़वे मेंतुक ताव ने बुढ़ा राव देलइ ने बुढ़ी कुछ कहल्हुँ दूइयो सुगुम माइर रहला । हिंदे गाँवेक लोक बुझला जे जरूर कोन्हों बिपइत घटल हे नॉय लें दूइयोक मइधें केउ आवाज काहे नाँय दे हे। सब मिल बिचार कइर केंवाइर तोइड़ देला तो देखलथ जे दू खाटीं बुढा-बुढी सुतल हथ । ओइढ़-बोइढ़ आर चुल्हा तर पीठा ढाँइप राखल हथ । लोकें दूइयोक हिलाइ-डोलाइ देखला ताव केउ राव नाँय देला । गाँवेक लोक एहे बुझला जे दूइयो मोइर गेल हथ। हाय-हाय बेचारा बुढ़ा आर बुढ़ी राइतें बिन खइले सुइत गेला पीठा ढाँपले हे। गाँवेक लोक हाय चोक करे लागला । आब की। सब बिचार करला आर चंदा-पानी कइर दूइयोक अंतिम किरया करेक उता-सुता करे लागला ।

 

गाँवेक लोक दूइयो बुढा-बुढ़ीक एके खाटी सुताइ देला कफन ओढ़ाइ देला आर लइ गेला सोसान पोड़वे ।। दुइयो झन के एके साराई (चिता में) राइख काठ-झुरी राखे लागला । एतना धुर भेल वादो केउ कोन्हों बइजके नाँय । “©www.sarkarilibrary.in”

 

जखन साराई आइग लगाइ देला आर ऊ सभक झरक लागे लागलइन तखन दूइयो बुझे पइला जे आर उपाय नाय। ऊ सब जखन बुझे पइला जे आब चुपचाप रहलें पोइड मोइर जाइब तखन आब की दूइयो एक संगें साराई से उठल हथ आर एके बेइर कही उठल बुढा, ” जउ साली तोहीं चाइर गो खउ हामें तीने गो खाइब!” तखनी बुढ़ीयो कहली, “ जउ बुढ़ा तोहीं चाइर गो खउ हम्हीं तीन गो खाइब!”

 

बुढ़ा-बुढ़ीक ई रकम अचक्के उइठ गेला पर सब चमइक गेला जे ई सब भूत भइ गेला आर सब ले बेसी चिंताक कारन भेल जे सोसाने  गाँवेक साते लोक गेल हला । ऊ सब बुझला जे ई दूइयो भूत भइ गेल हथ आर हामिन के खाइ खोजो हथ । हूंदे बुढा-बुढ़ी दूइयो एके बतिया कही झगड़ा करे लागला जे “तोहीं चाइर गो खोउ हामें तीन गो खाइब” अब सकेक कोन्हों गुंजाइस नाँय । ठिके ई सब भूत भइ हथ आर हामिन सातोक खाय खोजो हथ । अब की भागे लागला जे जोन्दे पारला । सब गाँवेक लोक पाराइ घार घूरला तकर बाद बुढ़ा – बुढ़ी लड़ले-झगड़ले घर घुरला। घर दुकल बाद आस-परोसेक लोक कान ओनाइ ऊ सभेक झागड़ाक बात सुन बुझे पइला जे ई सभेक असल झगड़ा पीठाक जालाई हलइ । “©www.sarkarilibrary.in”

 

  • Q.धरम करम कहनी के लिखवइया हथ ? दिनेस कुमर दिनमणि 
  • Q.बुढा बुढी आर सात पीठा  लोककथा के लेखक है ? दिनेश दिनमणि  
  • Q.बुढा बुढी आर सात पीठा  लोककथा कौन किताबे छपल है ? खोरठा लोकसाहित्
  • Q.खोरठा लोकसाहित् के प्रकाशक लगे ? झारखण्ड जनजातीय कल्याण शोध सस्थान
  • Q.खोरठा लोकसाहित् के प्रथम संस्करण कौन बछर छपले है ? 2012 
  • Q.खोरठा लोकसाहित् के प्रधान संपादक लगे ? ए. के. झा
  • Q.खोरठा लोकसाहित् के मुद्रक लगे ? सेतु प्रिंटर्स , मोरहाबादी ,रांची “©www.sarkarilibrary.in”
  • Q.निपूतिया कर माने लागे ? निसंतान
  • Q.बुढा बुढी आर सात पीठा  लोककथा कर पात्र लागे ? बुढा बुढी
  • Q.बुढा बुढी आर सात पीठा  लोककथा में बुढा बुढी क खायेक मन भेलइ ? पीठा 
  • Q.बुढा बुढी आर सात पीठा  लोककथा में कौन समय पीठा बनवला ? राइतें
  • Q.बुढा बुढी आर सात पीठा  लोककथा में कई गो पीठा बनवला ? सात गो पीठा
  • Q.बुढा बुढी आर सात पीठा  लोककथा में जे आगु बइजकत से कई गो पीठा पाइत  ? तीन पीठा
  • Q.बुढा बुढी आर सात पीठा  लोककथा में जे पाछू बइजकत से कई गो पीठा पाइत  ?  चाइर पीठा
  • Q.बुढा बुढी आर सात पीठा  लोककथा में दुइयो लइर गेलेक बाद कहा सुटला ?  भिनु–भिनु खाटीं
  • Q.बुढा बुढी आर सात पीठा  लोककथा में बिहान सबसे पहले के उठलै ? कोई नाय 
  • Q.बुढा बुढी आर सात पीठा  लोककथा में औखनि कर कई गो बेटा है ? एको नाय “©www.sarkarilibrary.in”
  • Q.बुढा बुढी के के सोसान पोड़वे लगला ? गाँवेक लोक
  • Q. साराई के मतलब की हवे है ? चिता 
  • Q.बुढा बुढी के के सोसान पोड़वे गाँवेक कई लोक लगला ? सात 
  • Q.बुढा बुढी आर सात पीठा  लोककथा में बुढा कई गो पीठा ख्याल ? नाही पता 
  • Q.बुढा बुढी आर सात पीठा  लोककथा में बुढी कई गो पीठा ख्याल ? नाही पता

दिनेश कुमार “दिनमणी”  

  • जन्म – 13 Sept 1969
  • जन्म स्थानबाराडीह ,जैनामोड ,जरीडीह , बोकारो  
  • पिता का नाम – महेश्वर महतो (सेवानिवृत शिक्षक )
  • माता का नाम –  फूलु  देवी
  • शिक्षा –
    • BA – हिंदी में 
    • MA (KHORTHA) – First Div , TRL,RANCHI University,
    • UGC NET
    • MA (HINDI) – First Div , VBU Hazaribagh
  • पेशा – लेखक ,चित्रकार 
  • अध्यापन – RTC कॉलेज ओरमांझी 
  • सहायक प्राध्यापक (अनुबंध )– जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग ,रांची यूनिवर्सिटी 
  • दिनेश कुमार “दिनमणी” द्वारा लिखित कहानी
    • फुल कोबिक झोर
    • धरम करम
    • पगली मोइर गेली
    • जीत
  • दिनेश कुमार “दिनमणी” द्वारा लिखित कविता
    • ए मानुस 
    • सोंचो उपाय  
    • आइग आर धुंगा
    • इंजोरियाक बांटा
  • दिनेश कुमार “दिनमणी” द्वारा लिखित नाटक
    • जिनगिक संगी
    • गुरू बाबाक दाढ़ी
    • सम्बूक वध
  • दिनेश कुमार “दिनमणी” द्वारा सम्पादित पत्र पत्रिका 
    • खोरठा लोकसाहित् (सह संपादक )
    • तितकी पत्रिका
    • करील  पत्रिका
    • हिंदी पत्रिका युद्धरत आम आदमी (सह संपादक )
      • संपादक – रमणीक गुप्ता , हजारी बाग से प्रकाशित  
  • दिनेश कुमार “दिनमणी” को मिले सम्मान 
    • खोरठा रत्न – बोकारो खोरठा कमिटी द्वारा

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