बौद्ध वास्तुकला (Buddhist Architecture)
- बौद्ध धर्म से प्रभावित वास्तुकला
- इनमें मुख्य स्तूप के रूप में चैत्य, विहार, गुफा तथा स्तंभ आदि शामिल हैं।
- बौद्ध और जैन नास्तिक मत हैं, जबकि ब्राह्मण हिंदू धर्म आस्तिक मत हैं।
- मौर्यकाल (323–184 B.C) भारतीय स्थापत्य एवं वास्तुकला का दूसरा चरण माना जाता है।
- मौर्यकालीन स्थापत्य की प्रमुख विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं
- निर्माण कार्य में पत्थरों का इस्तेमाल
- लौह अयस्कों का सधा हुआ उपयोग
- चमकदार पॉलिश (ओप) का प्रयोग
- भवन निर्माण में लकड़ी का विशेष प्रयोग
- मौर्यकालीन स्थापत्य की प्रथम कृति राजधानी पाटलिपुत्र में अवस्थित चंद्रगुप्त मौर्य का राजप्रासाद तथा उसका दुर्गीकरण है, जिसकी चर्चा कौटिल्य के ‘अर्थशास्त्र’ एवं मेगस्थनीज की ‘इंडिका’ में है।
- पाटलिपुत्रगंगा एवं सोन नदियों के संगम पर स्थित था।
- मेगस्थनीज के अनुसार, “पाटलिपुत्र में चंद्रगुप्त मौर्य का महल समकालीन ‘सूसा’ साम्राज्य के प्रासाद को भी मात देता है।”
- वर्तमान में 80 स्तंभ युक्त चंद्रगुप्त मौर्य के महल का पुरातात्त्विक अवशेष पटना के ‘कुम्हरार’ नामक जगह पर प्राप्त हुआ है।
स्तंभ
अशोक के एकाश्म स्तंभ
- धम्म प्रचार के लिये देश के विभिन्न भागों में स्थापित किये थे।
- इनकी संख्या लगभग 30 हैं
- ये चुनार (वाराणसी के निकट) के लाल बलुआ पत्थर से बने हुए हैं।
- इन स्तंभों पर एक खास तरह का पॉलिश की गई है, जिसे ‘ओप’ कहते हैं।
- इससे इनकी चमक धातु जैसा हो गई
- ये एक ही शिला को काटकर बनाए गए हैं. जिसमें कोई जोड़ नहीं है
- स्तम्भ के मुख्य भाग को‘लाट’कहते हैं
- स्तम्भ के ऊपरी हिस्से को ‘शीर्ष कहते हैं
राष्ट्रीय चिह्न
- सारनाथ का अशोक स्तंभ है।
- इसके शीर्ष पर चार सिंह हैं जो एक-दूसरे की ओर पीठ किये हुए हैं।
- इसमें केवल तीन सिंह दिखाई पड़ते हैं, चौथा दिखाई नहीं देता।
- इसके नीचे एक हाथी, एक घोड़ा, एक साँड तथा एक सिंह की उभरी हुई आकृतियाँ हैं और इनके बीच-बीच में चक्र बने हुए हैं।
- एक ही पत्थर को काटकर बनाए गए है।
- इस सिंह स्तंभ के ऊपर ‘धर्मचक्र’ रखा हुआ है।
- भारत सरकार ने यह चिह्न 26 जनवरी, 1950 को अपनाया।
- फलक के नीचे मुण्डकोपनिषद् का सूत्र ‘सत्यमेव जयते’ देवनागरी लिपि में अंकित है, जिसका अर्थ है- ‘सत्य की ही विजय होती है।
- पिपरहवा बौद्ध स्तूप, पटना की यक्ष प्रतिमाएँ, लोहानीपुर से प्राप्त जैन तीर्थंकरों के धड़ आदि सभी में चमकीली पॉलिश लगाई गई है।
- यह पॉलिश राजगीर के समीप स्थित ‘सोनभंडार’ गुफा में दिखाई देती है, जो मौर्य काल से पहले की है।
मौर्यकालीन महत्त्वपूर्ण स्तंभ
- लौरिया नंदनगढ़ का स्तंभ:
- रामपुरवा के स्तंभः
- दिल्ली का टोपरा स्तंभः
- दिल्ली में मेरठ स्तंभ:
- लौरिया अरराज स्तंभः
- इलाहाबाद स्तंभः
- रूम्मिनदेई स्तंभ:
लौरिया नंदनगढ़ का स्तंभ:बिहार के पश्चिमी चम्पारन जिला में
रामपुरवा के स्तंभः बिहार के पश्चिमी चम्पारन जिला में
- लौरिया नंदनगढ़ के समीप रामपुरवा में
- अशोक के समय में निर्मित धर्म स्तंभों पर धर्म की शिक्षाएँ उत्कीर्ण की गई हैं।
दिल्ली का टोपरा स्तंभः
- यह फिरोज़शाह की लाट के नाम से प्रसिद्ध है।
- पहले यह स्तंभ अंबाला जिले में यमुना के किनारे टोपरा में था।
- फिरोजशाह तुगलक द्वारा इसे दिल्ली लाया गया।
- अब यह दिल्ली दरवाजे पर फिरोज़शाह कोटला के नाम से प्रसिद्ध है।
दिल्ली में मेरठ स्तंभ:
- इसे भी फिरोजशाह तुगलक द्वारा मेरठ से दिल्ली लाया गया था।
- 1713-1719 में बादशाह फर्रुखसियर के बारूदखाने में आग लग जाने के कारण यह स्तंभ गिरकर ध्वस्त हो गया था, किंतु बाद में इसी ध्वस्त स्तंभ को पुनः प्रतिष्ठित किया गया।
लौरिया अरराज स्तंभः बिहार के पश्चिमी चम्पारन जिला में
- बिहार के चंपारण जिले में लौरिया में यह स्तंभ खड़ा है।
- इस पर अशोक के लेख उत्कीर्ण हैं।
इलाहाबाद स्तंभःइलाहाबाद
- इस पर अशोक के दो लेख उत्कीर्ण हैं, इस पर समुद्रगुप्त की प्रशस्ति भी खुदी हुई है।
रूम्मिनदेई स्तंभ: नेपाल
- नेपाल के रूम्मिनदेई नामक स्थान पर अशोक का एक प्राचीन स्तंभ मिला है और इस पर लिखा है, “यहाँ भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था।”
- रूम्मिनदेई स्तंभ के उत्तर-पश्चिम में निग्लीवा झील के समीप निग्लीवा ग्राम में यह स्तंभ खड़ा है।
- इस पर उत्कीर्ण लेख में अशोक द्वारा कनकमुनि बुद्ध के स्तूप की मरम्मत कराने का संकेत मिलता है
स्तूप
- ‘स्तूप’ समाधिनुमा भवन है, जिसे बुद्ध के स्मृति-अवशेष को सुरक्षित रखने हेतु बनाया गया।
- स्तूप का निर्माण प्रेरणा एवं पूजा के उद्देश्य से किया गया, ताकि लोग बौद्ध धर्म से प्रेरित हो सकें और बुद्ध के पद-चिह्नों पर चल सकें।
- ‘साँची का स्तूप’ – मध्य प्रदेश
संरचना
- स्तूप अर्द्धवृत्ताकार संरचना है
- इसके शीर्ष पर हर्मिका नामक संरचना होती है, जहाँ बुद्ध या किसी शिष्य के अवशेष रखे जाते हैं।
- यह स्तूप का सबसे पवित्र भाग है। इसे देवता का निवास स्थान माना जाता है।
- चबूतरे के चारों ओर घूमने के लिये प्रदक्षिणा पथ होता है।
- यह पूरी संरचना एक वेदिका से घिरी होती है, जहाँ तोरण द्वार या प्रवेश द्वार बनाया जाता है।
- हर स्तूप में एक छोटा-सा कक्ष होता है, जिसमें बौद्धों, बौद्ध संतों अथवा भिक्षुओं के पार्थिव शरीर रखे जाते हैं।
साँची का स्तूप – विदिशा ,मध्यप्रदेश
- यह विदिशा के निकट एक पहाड़ी है, जिसे प्राचीन साहित्य में ‘काकनाड’ (ककनाड) या ‘चेतीय गिरि’ कहा गया है।
- साँची में तीन स्तूप हैं, जिन्हें क्रमशः स्तूप-I, स्तूप-II और स्तूप-III कहते हैं।
- स्तूप-Iका संबंध – मौर्य काल से
- स्तूप-II और स्तूप-III का संबंध – मौर्योत्तर काल से
- मौर्यकालीन स्तूप में वेस्टिनी (रेलिंग) नहीं है, लेकिन मौर्योत्तर काल में वेस्टिनी है।
- स्तूप पेटिका में सारीपुत्र और महामोग्गलन (बुद्ध के शिष्य) के राख और अस्थि अवशेष मिले हैं, वे
भरहुत स्तूप (सतना- मध्य प्रदेश)
- यह मध्य प्रदेश के सतना नगर के दक्षिण में स्थित है।
- अशोक के काल में निर्माण तथा शुंग काल में इसका विकास किया गया।
- इसमें पॉलिशदार लाल बलुआ पत्थर का प्रयोग किया गया है।
- स्तूप तथा वेदिका के बीच प्रदक्षिणा पथ है।
- वेदिका में कुल 80 स्तंभ हैं।
नागार्जुनकोंडा स्तूप
- आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले में स्थित है।
- यह स्थल प्राचीन भारत में इक्ष्वाकु राजा की राजधानी, विजयपुरी के नाम से जाना जाता था।
- यह स्थल नल्लामलाई की पहाड़ियों तथा कृष्णा नदी से घिरा हुआ है।
अमरावती स्तूप,
- अमरावती स्तूप आंध्र प्रदेश में कृष्णा नदी के किनारे बसे शहर अमरावती के मुख्य आकर्षणों में से एक है।
- प्राचीन साहित्य में अमरावती को ‘धान्यकटक’ कहा गया है।
- उत्खनन में यहाँ से हीनयानी स्तूप का ढाँचा प्राप्त हुआ ।
- यहाँ स्तूप के सामने एक खड़ा स्तंभ भी है, जिसे ‘आयक स्तंभ’ कहा जाता है।
सारनाथ स्तूप
- सारनाथ वाराणसी (उत्तर प्रदेश) में स्थित प्रमुख बौद्ध तीर्थस्थल है।
- वाराणसी का प्राचीन नाम ऋषिपत्तन था।
- यहीं बुद्ध ने अपना प्रथम प्रवचन दिया था।
- इस जगह से तीन स्तूपों का प्रमाण प्राप्त हुआ है।
- 1. चौखंडी स्तूप
- 2. धर्मराजिका स्तूप
- 3. धमेख स्तूप
1. चौखंडी स्तूप
- बुद्ध ने अपना प्रथम प्रवचन दिया था ।
- यह गुप्त काल में बनाया गया होगा।
2. धर्मराजिका स्तूप
3. धमेख स्तूपः
- यह गुप्तकालीन स्तूप है, जिसका निर्माण सारनाथ में हुआ था।
- भगवान बुद्ध ने ज्ञान की प्राप्ति के बाद अपन शिष्यों को पहला उपदेश दिया था।
- यहीं पर उन्होंने अष्टांग मार्ग का अवधारणा को बताया था, जिस पर चलकर व्यक्ति मोक्ष की प्राप्ति कर सकता है।
बैराट स्तूप
- राजस्थान में स्थित है।
- इसका निर्माण तृतीय शताब्दी ईसा पूर्व में हुआ था।
गुम्फा या गुफा स्थापत्य
- यह चट्टानी वास्तुकला का एक रूप है।
- पहाड़ों को काटकर उसमें कोठरी का निर्माण किया जाता था तथा उसका उपयोग जैन और बौद्ध भिक्षुओं के आवास के रूप में होता था।
- मौर्य काल में बराबर और नागार्जुनी पहाड़ी (जहानाबाद ज़िला, बिहार) में आजीवकों के निवास हेतु अनेक गुफाओं का निर्माण करवाया गया।
महत्त्वपूर्ण मौर्यकालीन गुफाएँ
बराबर पहाड़ी की गुफाएँ : (जहानाबाद ज़िला, बिहार)
- अशोक महान् ने बराबर पहाड़ी में चार गुफाओ का निर्माण कराया
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- लोमश ऋषि गुफा
- सुदामा गुफा
- कर्णचौपर
- विश्व झोपड़ी गुफा
- ई. एम फोर्स्टर की पुस्तक, ‘ए पैसेज टू इंडिया‘ इसी क्षेत्र को आधार बनाकर लिखी गई है।
नागार्जुनी पहाड़ी की गुफाएँ ( गया ,बिहार)
- अशोक के पौत्र दशरथ ने नागार्जुनी पहाड़ी में तीन गुफाओं का निर्माण करवाया।
- दशरथ द्वारा निर्मित गुफाओं में गोपिका गुफा उल्लेखनीय हैं।
अशोककालीन अन्य गुफाएँ
(i) खपराखोडिया गुफा – जूनागढ़ में
(ii) बावा प्यारी की गुफा – ‘दागश्वरी द्वार’,गिरिनार पर्वत ,जूनागढ़ में
- अशोककालीन गुफाएँ दो प्रकार की होती थीं – चैत्य व विहार
उदयगिरि तथा खंडगिरि की गुफाएँ (भुवनेश्वर , ओडिशा)
- ओडिशा में भुवनेश्वर में शैल गृहों का निर्माण साधुओं के निवास के लिये किया गया।
- उदयगिरि की पहाड़ी में 19 गुफाएँ तथा खंडगिरि में 16 गुफाएँ हैं।
- उदयगिरि की मुख्य गुफाएँ
- रानी गुफा, रवि गुफा, मंचपुरी गुफा, गणेश गुफा, हाथी गुफा तथा व्याघ्र गुफा
- रानी गुफा (राणी गुफा) सबसे बड़ी है। दूसरी बड़ी गुफा गणेश गुफा है।
- हाथी गुफा
- कलिंग के जैन शासक खारवेल का जीवन-चरित्र तथा उसकी उपलब्धियाँ विस्तार से वर्णित हैं।
- खारवेल के पूर्व मगध के नंद राजाओं द्वारा बनवाई गई नहर की मरम्मत खारवेल ने करवाई तथा उसका विस्तार अपनी राजधानी तक करवाया।
- खारवेल ने शासन के तेरहवें वर्ष में कुमारी पर्वत (उदयगिरि- खंडगिरि का प्राचीन नाम) पर जैन साधुओं के लिये शैल गृह बनवाए।
- खंडगिरि की मुख्य गुफाएँ
- नवमुनि गुफा, देवसभा, अनंत गुफा
गुप्तकालीन गुफाएँ
- अजंता गुफा – बौद्ध धर्म से संबंधित
- एलोरा गुफा – संबंध ब्राह्मण धर्म, बौद्ध एवं जैन धर्म से
- उदयगिरि गुफा – संबंध भागवत धर्म से
- बाघ गुफा – बौद्ध धर्म से संबंधित
उदयगिरि की गुफाएँ – विदिशा ,मध्यप्रदेश
- उदयगिरि गुफाओं का निर्माण चंद्रगुप्त द्वितीय और कुमारगुप्त प्रथम के समय में हुआ।
- यहाँ कुल 20 गुफाएँ हैं।
- ये ब्राह्मण धर्म से संबंधित हैं।
- उदयगिरि पहाड़ियों का पत्थर बलुआ हैं।
बाघ की गुफाएँ – मांडू ,मध्यप्रदेश
- बाघ की गुफाएँ विंध्य श्रृंखला में नर्मदा की सहायक नदी बाघ नदी के किनारे स्थित है।
- इन गुफाओं का संबंध बौद्ध धर्म के महायान संप्रदाय से है।
- ये सभी विहार हैं।
- बाघ गुफा में 9 गुफाएँ हैं, इनमें गुफा संख्या 4 का विहार ‘रंग महल’ कहलाता है।
अजंता की गुफाएँ
- अजंता महाराष्ट्र में औरंगाबाद के निकट है।
- इसमें 29 गुफाएँ हैं
- विहार या आवासीय गुफा – 25
- चैत्य या प्रार्थना स्थल – 4
एलोरा की गुफाएँ
- अजंता की तुलना में ये अधिक नवीन हैं।
- यह 32 गुफाओं का समूह है
- 16 गुफाएँ ब्राह्मणीय शैली, 12 बौद्ध शैली और 4 जैन शैली की हैं।
चैत्य-गृह
- चैत्य स्थापत्य का संबंध बौद्ध धर्म से है।
- चैत्य-गृह पहाड़ों को काटकर बनाए गए ।
- चैत्य-गृह को प्रायः ‘गुहा मंदिर’ से भी संबोधित किया जाता है।
- पूजार्थक स्तूप को संभवतः चैत्य कहा जाता है।
- चैत्य-गृह प्रायः दो प्रकार के होते हैं
- 1. संरचनात्मक चैत्य – ईंट-पत्थरों की सहायता से बनाया गया
- 2. शैलकृत चैत्य- पहाड़ों को काटकर
- 1. हीनयान परंपरा से संबंधित चैत्य गृह
- 2. महायान परंपरा से संबंधित चैत्य गृह
चैत्य-गृह :
- मौर्य काल में चैत्य निर्माण की शुरुआत नहीं हुई थी।
- वस्तुतः चैत्य मौर्योत्तर काल की देन है।
प्रमुख चैत्य-विहार
भाजा चैत्य विहार/गृह
- यह महाराष्ट्र के भोरघाट क्षेत्र में स्थित है।
- इस जगह का संबंध बौद्ध धर्म से है।
- यहाँ चैत्य और विहार दोनों देखने को मिलते हैं।
- यहाँ के समस्त चैत्य, विहार हीनयानी हैं।
- हीनयानी चैत्य निर्माण की शुरुआत यहीं से हुई है।
कार्ले चैत्य विहार/गृह
- महाराष्ट्र के भोरघाट क्षेत्र में स्थित बौद्ध धर्म से संबंधित है।
- इसे ‘महाचैत्य’ भी कहा जाता है।
- कार्ले चैत्य का निर्माण नहपान के दामाद पुषावदत्त ने करवाया, जिसे अजमित्र नाम के व्यक्ति ने पूर्ण किया।
अजंता चैत्य विहार/गृह
- यह महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में जलगाँव बाघोरा के निकट अवस्थित है।
- इसका संबंध मौर्योत्तर काल, गुप्त काल और गुप्तोत्तर काल से है
- धर्म के हिसाब से इस स्थल का संबंध बौद्ध धर्म से है।
- इसकी ख्याति का प्रमुख कारण यहाँ की पेंटिंग है
- गुफा संख्या 7, 11 और 15 में चैत्य हॉल का निर्माण भी हुआ है।
एलोरा चैत्य विहार/गृह
- महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में वेरूल (एलोरा) नामक स्थान पर 7वीं से 9वीं शताब्दी के बीच 34 शैलकृत गुफाएँ बनाई गईं।
- इनमें 1 से 12 तक बौद्धों की, 13 से 29 तक हिंदुओं की और 30 से 34 तक जैनों की गुफाएँ हैं।
- एलोरा की गुफा में 10 चैत्य गृह हैं, जो शिल्प देवता विश्वकर्मा को समर्पित हैं।
- एलोरा गुहा मंदिर का निर्माणराष्ट्रकूटों के समय में किया गया।
- इनके निर्माण कार्यों में एलोरा का कैलाश मंदिर सर्वाधिक उत्कृष्ट है, जिसका निर्माण राष्ट्रकूट शासक कृष्ण प्रथम ने कराया था।
- इसे यूनेस्को द्वारा 1983 में विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया।
तेर चैत्य (Ter Chaitya)
- आंध्र प्रदेश में स्थित यह चैत्य ईंट तथा प्लस्तर से निर्मित है।
नासिक चैत्य (Nasik Chaitya)
- महाराष्ट्र के नासिक में स्थित यह चैत्य भद्रपालक द्वारा निर्मित है।
- इस चैत्य को ‘पांडुलेण’ भी कहा जाता है।
पीतल खोड़ा चैत्य (Pital Khoda Chaitya)
- महाराष्ट्र के औरंगाबाद के निकट पीतल खोड़ा में स्थित है।
मौर्य कालीन स्तूप
- तक्षशिला की धर्मराजिका वेदिका
- सारनाथ की एकाश्म वेदिका
सातवाहन कालीन स्तूप
- आँध्रप्रदेश – अमरावती ,नागार्जुन कोंडा , गुड़ीवाड़ा ,जगईपेट ,भट्टीप्रोलु
कुषाण कालीन स्तूप
- पाकिस्तान – चारसद्दा ,माणिक्यला ,पेशावर ,सुई विहार ,पुष्कलावती
- अफगानिस्तान – नगरहार
- भारत – कनिष्कपुर(कनिसपुर )
गुप्त कालीन स्तूप
- राजगृह स्तूप बिहार (जरासंघ की बैठक)
- सारनाथ – धमेख स्तूप
- सिंध मीरपुर खास स्तूप