छॉइहर(कहानी संग्रह/गोछ )
लेखक – चितरंजन महतो “चित्रा’
प्रकाशक -खोरठा भाषा साहित्य संस्कृति अकैडमी, रामगढ़
लेखक परिचय – बासुदेव महतो
मंतव्य – गिरिधारी गोस्वामी ‘आकाशखूंटी
एक बात : ‘गोविन्द महतो ‘जंगली’ ,ए.के. झा
समर्पित = माता पिता को
प्रकाशन वर्ष -2007
कहानी संग्रह – 10
2 – बोनेक लोर(वन के आंसू )
जाड़ सिराइल जा हेलई। भिनसोर-भिनसोर विहान तनी जाड़ लागे हेलई। महुजाड़ा रहई। बोने जाहाँ महुआ केन्दुआ रहइ, छोट-मोट टुंगरीञ, बोड़-बोड़ पहाड़ेक हेंठे आइग. लागलहीं रहइ । पइंत बछर अइंसने आइग लागे हेलइ आर छोट-मोट गाछ विरीछ लर-पाल्हा जइर–पोइड़ जा हेलई। ई जरन-पोड़न अपसुखिये आपने-आपने हेवे हेलई कि कोनो आदमीजन आइंग लगाय दे हेल्थी तकर चलते सगरे आइंग लागी जा हेलई आरं अठवारा. पन्द्रहियों ले जलते धंधकते रहतलइ। बेसी से बेसी आदमी सोचतला महुआ. फोर बीछे खातिर गाछ तरेक लर-फर काँटा कुसा साफा करेले आइग जोरले हथ। आदमी जन एकर खातिर हाला काइन नी हेतला कोनो झगड़ा झंझट नी हेतलइन। कोनो कोनो समये लोकजन आपन सुइवधा देखी के काठो बाँसो, धरना खातिर परिआ खातिर, कांड खातिर, ठाठ खातिर आनवे. करे हेला। एखनो आनइते हथ। ईटा कोनो दुखेकं बात नाञ। आदमी जन कर सुइवधा खातिर, ओखिन के फल-फुल दीए खातिर, जलावन बेंच-डेस्क, कुरसी-टेबुल. खपरा घार, छात घार बनावे. खातिर हाम आपन बोनक काठ बांस देबे करे हेलिओन, देबेकरहिओन, हियाँ तइक कि आपन बोनेक छोट-मोट काठ-कटुआ कांड-बांस लइके एखनो कते-कते घारक चुल्हा धरहईन, कते-कते. घारक खाइन–पीअन चलहइन, कते-कते घारक आमदनी हेवहइन। आपन जीविका चलवे खातिर जे सोब कांड कोरवा लेगहथ ओखिन कर तो खमा हइन, मगुर जखिन कर खायेक पीयेक चलहइन औखिन चोराय लुकाय के बेस-बेस वाढ़े ओला गाछ के काटी के, कटवाय के बाजारे बेइच आपन संपइत (सम्पति) बढ़वे ले लागल रह हथ, ओखिने से हामरचीढ़ है। ओखिने के हाम फुटले नजइरे देखहिइन| एखन जोदि हामरा कांदाय के कल्पाय के ओखिन चोराइ लुकाइ के हामर सुन्दर घार, हामर सुन्दर बगैचा, हामर सुन्दर फूलवारी उँचराई के लेगहथ, तकर चलते हामरा अमनख हे। बोनआपन भाखान बोलते रहल जे बुझे पारला ओखिन कसम खाला- ‘हे बोन राजा! तोर गिरल-परल डहुरा-पात डाइर-पात, सुखल-मोरल, झाड़-फूड, टहनी-टोइया लानवे करबइ आखिर हामिनों तो. तोर बेटा-बेटी लागिउ, जावल-जनमल लागिउ, तोरे आसराञ तो हामिनो तोर आगू-पाछू, हिन्दे-हून्दे, बाँव-दहिन रहहिओ, . हामिन के तोंय कहाँ फेकवें?’
आदमी जन कहे लागला- ‘तोहें जतना दुखी हाय ओकर ले हामीन कम दुखी नेखी। जइसने तोहर लोर कोंयनी देखहउ, बुझहउ ओइसने हामीनों कर लोर ना तो सरकार आर ना ओकर नोकर चाकर बुझहथी।
अन्धरी सरकार कर बईमान नोकर-चाकर (जंगल विभाग के सिपाही एवं वन-पाल) हामीन के सतावहथ, चुल्हा जोरेक काठी लाने में हामोन कर बहु-बेटी के बेइज्जतं करहथीन, जवान बेटी छउआ के तो आरो डेरायधमकाय के ‘ईज्जत लुटेक कोरनिस करहथीन, मगुर एखिन दस-पाँच कर जमाइत में रहहथ तखन ओखिन कर खराब नेइतओलाकाम नी हेवे पारहइन तखन लकड़ी-चोरीक दोस देखाय के, ओखिन से पइंसा रूपया अँइठहथीन । आर तनी तेज बोलले (विरोध करले) जनीओ बेटी के माइर पीट करहथीन । हामीन जोदि आपन घारक कोनो जरूरी काठेक खातिर एकोगों डांगो लाने गेले तो सिपाही धारबथु, मारबथु आर फइर केसो कइर देवथु। थाना ओला पकइड़ के जेहल में डाइल देव हथ। हामीन कर आदमी जिनगी भइर जेहले में सड़इत–मोरइत रह हथ। बोलते-बोलते.थाकी गेल रहे सेले तनी ठहइर के फइर बोले लागल- ‘हामीन कर केस कहियो खतम नी हेवे हे। हामीन के छोड़वे जमानत लीए कोइयो नी जाहे। हामीन कर जिनगी का तोहे नीं देखाहाय, बोनराजा ? ‘
‘अरे हाम तो सोब देखहियोन, सोब बुझहियोन, सोब लेखे मन-मंसुआइ के रही जाही।’ बोन कहे लागल ।’
जखन बोनेक राजाक आँइखेलोर देखला तखन आरो कोइयो कुछो नीं बोले पारला । ओखिन के चुप देखी के फंइर बोन बोले लागल – ‘तोहिन आपन दुखे दुखी हइके काँदे लागल हाय । तोहिन के ईटा एगो परिवारेक दुख लागोन, आदमीक दुख। एकरले वेसी तोहिन सोंचहें नीं पारवाय, काहेकि तोहिन आपन सवारथ ले वेसी सोंचहों नी पारवाय एतना दूर दृष्टि तोहिन के नेखोन । आदमी भगवान कर सोबले ‘श्रेष्ट’ (ऊँच-बोड़, बुद्धिमान, चालाक) बनावले लागाय कि दोसर जीव रेंगेओला, बिना रेंगेओला, उड़े ओला, पैरेओला सोब के काबू में करीलेहान । आपन सवारथ खातिर बचावबो करा हाय, खाइको पीयको देहाय पालबो पोसबो करा हाय आर जे नी करेक से सोब तोहिने करा हाय ।’ बोन राजा जोर-जोर बाले लागल।
जोर-जोर बोलते-बोलते बोनक राजाक आँइखे लोर डबडबाय लागलइ। आकर मुँहले कोनो बकार नीं फूटे पारे लागलइ। सेले ऊ तनी थिराइ लेल । फइर बोले लागल।
‘मंत्री, ओफिसर, पदाधिकारी, सिपाही हामर नाम लइके हामरा बचवेक नामें कते-कते योजना बनव हथ, आर सोब खाय-पी जाहथ । नवाँ-नवाँ बोन लगवे खातिर अरबों खरबों कर योजना बनवहथ। हजार दू हजार पाँच हजार, दस हजार कि लाखों खर्चा देखाय के सोब गबन करी ले हथ। का हाम ई सोब नीं. जानहिअई ? का हाम एतना अचेत ही जे तोहिन के पोरोगराम कर जानकारी हामरा नी हेवहे ? हामरो शरीरे लहू हे, हामरो शरीरे पानी कुदे हे, हाम्हूँ हवा पावही, हामरो तोहिने जइसन सूरूज कर रोशिनी मिलें हे, हाम्हूँ ओहे माटी ऊपर निर्भर ही जकर में तोहिनो हाय ।’ बोनक राजा फइर काँदा कुँदी हईगेल।
आदमी जन बोनेक राजाक संवाल कर कोनो जबाव नी दीए पारला। आदमी जन हइचोक, मुँह-हेट करी लेला। बोनेक राजाक सवालेक ओखिन ठीन कोनो जंबावो नी रहइन। .
बोनेक राजा फइर बोले लागल – तोहिन हामर सुन्दर बाग-बगैचा जे उजड़ावलाय, जवानो नी हेली आर काटलाय, सर सिपाही मोटाला, फोरेस्टर – माला-माल हेला, हामरा बचवे खातिर रकम रकम कर नाटक करलाय । मगुर हामरा बचवेक तो ढईर धूर, धूर-धूर ले हामरा उजाइंड़ देलाय। हामर सोब गाछ पाल्हा, लर–फर काइट के लइ गेलाई। हाम उजाड़ हई गेली। हामर संग रहवइयन शेर, बाघ, हाथी, लाकरा, सियार, खेरहा, मूसा-चिड़रा सोब खतम हइ गेला। साँप विछ्. जे हामर दोसर छोट-मोट रखवाला रहथ ओखिनो खतम हइ गेला। नाना रकम कर पंछी चील्ह, कौआ, सुग्गा-मैना, पंडकी-गुंडरी सोब सिराय गेला। पानीक दिने नाचे गावे हेली जकर संग ऊ मोर-मोरनी हेराय-विसराय गेला। कोयल कर कूको जाने नी पारी कहाँ-कहाँ सुना हे।
झर-झर लोर बोहे लागलइ बोन राजा कर आँइख ले। ऊ फईर कहे लागल-‘हामर सोब ले बेसी शुभ-चिन्तक हाथी कर घार तोहिन उजाइड़ देलाय, से ले तो ओखिन खायले, रहे ले, छीपे ले हिन्दे-हुन्दे कुंदी भूल हथ। खेत बारी खुदले रौंदले, खाले, उजाड़ले घारो-बस्तियो में दुकी जाहथ । हामर ले कम दुख ओखिन के नेखइन, बेसिये हइन। जखन तोहिन ओखिन कर घार-मकान उजाड़ाहान ओखिनो तो जीवे लागथी। तोहिन जइसन चिन्तनशील,
मननशील, भाव पूण, भाखा-पूर्ण ओखिनो कर समाज हइन, सेले जखन ओखिन के कूसट देहान ओखीनो तो बदला लेबथुन। जकर सोबले आगू पूजा कराहाय औकरे घार उजाड़वाय तो के भोगतई ?’
बोनेक राजा ढईरे भावुक हइ गेल रहे। काँदते-काँदते ओकर ऑइखेक लोर सुखी गेल. रहइ। मने-मने सोचल आदमी बड़ा चालाक हेवहथ, छलाय-फुसलाय के सोब जीव-निर्जीव, चल-अचल के आपन काबू में करी ले हथ, आपन सवारथ खातिर मगुर आदमी के एक दिन बुझे में अइतइन जखन हामर दरकार पड़तइन । हाम नी रहले पानी बिनु तरसता, हाम नी रहले शुद्ध हवा नी पावता। नाइट्रोजन आर कार्बन-डाई-ऑक्साइड एतना बढ़तइन कि बिना हामर गोड़ तर गिरल कोनो उपाय नी चलतइन । एतना कही के बोनेक राजा चुपहइ गेल।
2 – बोनेक लोर(वन के आंसू )
- इस कहानी में वन के दुख के बारे में बताया गया है कि किस तरह व्यक्ति अपने स्वार्थ के लिए वनों को नष्ट कर रहा है जिस कारण से वन को रोना पड़ रहा है
- किस तरह से सरकारी तंत्र वनों के रक्षा के नाम पर वन अधिकारियों की नियुक्ति करता है और उन्हीं अधिकारियों के द्वारा जंगल काटने की योजना बनाया जाता है और जंगल को काटा जाता है
- इस तरह से इस कहानी का निष्कर्ष पर्यावरण सुरक्षा है
1. बोनेक लोर कहनी केकर लिखल लागे? चितरंजन महतो चित्रा
2. बोनेक लोर कोन कहनी किताबे संकलित है? छाँहईर
3. बोनेक लोर कहनी में ककर मानवीकरण करल गेल हे? बोन कर
4. बोनेक लोर कहनी मे केकर बेथा कथा हे?
- बोन कर
- गाँवेक लोक कर
- बोनेक जीव जन्तु कर
5. बोने आइग कोन लगाव हे? महुआ बिछुवइया लोक
6. बोनेक बचवे खातिर सरकार की करल हे?
- बोन विभाग बनवल हे
- बोन रक्षक सिपाही बहाल करहे
- गाँवेक लोक के प्रोत्साहित कर हे
7. बोनेक हाथी गाँवे की ले ढूक हथ?
- बोन उजरल से
- बोने खाएक नाञ मिलल से
- गाँवे खाएक मिलल से
8. बोन के बरबाद कोन कइर रहल हे?
- भ्रस्ट वन सिपाही आर अफसर
9. बोनेक लोर कहनी में बोनेक दुसमन ककरा कहल गेल हे?
- भ्रस्ट वन सिपाही आर अफसर
10. बोनेक लोर कहनीक मूल भाव की हे?
- पर्यावरण सुरक्षा
- बोन बचवेक
- अवैध कटाइ रोकेक