8. बोन रक्षा जीवन रक्षा
अनीता कुमारी, बिसुनगढ़, हजारीबाग
भावार्थ 👍
इस कविता के माध्यम से लेखिका और गीतकार पर्यावरण की रक्षा के लिए सबको आह्वान कर रहे हैं। कहती है कि सभी मिलकर विचार करें कि जंगल कैसे बचाया जाए। गांव-गांव में यह प्रचार करें कि जंगल की रक्षा बहुत जरूरी है। पर्यावरण में नकारात्मक बदलाव के चलते पानी का स्रोत सूखता जा रहा है। पानी का स्तर भी जमीन के बहुत नीचे चला गया है। माघ महीने में ही जेठ महीना जैसा प्रतीत होता है। वर्षा भी कमजोर होता जा रहा है। आद्रा नक्षत्र मानो खोते जा रहा है। सूर्य का ताप तेज और तीखी होकर हमें झुलसा रही है। जंगल और झाड़ धरती के श्रृंगार है। पेड़ पौधे रहेंगे तभी शुद्ध ऑक्सीजन मिलेगा और हम लंबी उम्र तक जीवित रहेंगे। ऑक्सीजन के बिना जीव जगत जिंदा नहीं रह सकता। जंगल झाड़ नहीं रहेंगे तो जंगली जीव जंतु कहां जाएंगे, पंछी कहां शरण लेंगे, घोसले कहां बनाएंगे। इसीलिए बेजुबान जीव जंतु के आश्रय स्थल जंगल को नहीं उजड़े, विनाश ना करें। सभी यह उपाय करें कि सभी जीवो के जीवन का आधार जंगल- झाड़ ,पेड़ – पौधे हैं, उन्हें कैसे बचाया जा सके ?
कइसें बाँचतइ बोन-झार
सभिन मिली करा अब बिचार… ए भाइ !
कइसें बाँचतइ बोन झार
गाँव-गाँवे करा सब परचार… ए भाइ !
बोन हय बचावे के दरकार… ए भाइ!
पानि’क सोवा हेठ गेलइ, माघ मास’ हीं जेठ भेल ।
बदरी आब नाञ मँडराइ, आदरो अब हेराइ गेल |
तीख रउद झोला अपार… ए भाइ!
सब मिली करा आब बिचार… ए भाइ !
कइसें बाँचतइ बोन झार… ए भाइ !
झूर-झार गाछ -पात, धरतीक सिंगार हइ,
गाछेक हवा रहल से, जीवन अपार हइ,
हवा बिनु साँस ने संसार… ए भाइ !
माँ के घुघा नाञ उघार… ए भाइ!
कइसे बाँचतइ बोन झार… ए भाइ !
किना खइता हाँथी – बाँदर, कहाँ जइता खेरहा सियार
पंछी कहाँ खोंधा करता, कहाँ उड़ता पाँइख पसाइर
बिरिछ खोजइत लेता जान माइर… ए भाइ!
निमुँहाक घार नाञ उजार.. ए भाइ!
कइसें बाँचतइ बोन झार… ए भाइ !
- पानि’क सोवा – पानि’क स्तर , हेठ – नीचे
Q. वोन रक्षा जीवन रक्षा के लिखबइया के लागथीन ? अनीता कुमारी
Q. अनीता कुमारी के जन्मथान हकय ? बिसुनगढ़, हजारीबाग