धरती माञ कविता
तातल-हेमाल (कविता संग्रह ) का कवि – शिवनाथ प्रमाणिक
धरती माञ ई धरती माञ हकी मिलके साजाइके राखा धने – जने भोरल जंगल के जोगाइके राखा । नदी – नाला से भोरल बन धरतिक हे साड़ी लतें – पातें हरिहर बन के बांचाइके राखा । कुल्ही डांडी डहरें प्रेमेक धार बोहे चाही काटे खातिर कांटा के टंइगला पाजाइ के राखा । जन – जंगल में नाना जाइत के ई रूप देखा प्यार के बांटे खातिर मांदइर बाजाइ के राखा लूट – फूट – गुट के रगदा जोरहक सभीन मिलके गाली गुचाइ ‘ शिव ‘ के मगज मांजाइके रखा ।
20 : धरती माञ कविता
तातल-हेमाल (कविता संग्रह ) का कवि – शिवनाथ प्रमाणिक
भावार्थ-धरती हमारी मां है। मां की रक्षा करना हमारा कर्तव्य है। इस धरती मां में उग आये उनीत, भ्रष्टाचार, शोषण आदि कांटों को काटकर धरती मां को निस्कगुष बनाना हमारा दायित्व है।
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