10 : कोयलिक गीत कविता
तातल-हेमाल (कविता संग्रह ) का कवि – शिवनाथ प्रमाणिक
कोयलिक गीत कुँजबोने कारी कोइली बोले । बोनतुरियाक जिनगिक भेउ खोले ।। फागुन मासे आमेक फूटे मंजर बोरेक डारहीं ढेलुवा झूके बांदर सुगा सुगीनिक संगे , उड़ल जाहे मनेक रंगे तुरू – रूरू बांसिक तान बोले । रीझे – रंगे सरहुल चैत मासें सरइ के पात नजीकें खसें – खसें फुललो कोना – कोना , माइत गेलों बीजू बोना कोने – कोने सरई के पात दोले । भादर मार्से करमा के संगजोरी आखरात्र झुमइर लागे झींकाझोरी फिंग फूटे इंजोरिया , गीत चले झींगफुलिया धितांग – धितांग , माँदइर बोल बोले । घर – घर सोहराइ पइत बछर आबे गरू – डांगर के जगरना होवे आगनात्र चांचइर चले , नाचेक संगे गीत चले घने – घने घांटी – घुंघूर बोले । पारसनाथेक बँउड़ी जातरा मेला हियाखलास हांसेहे मुड़मा भेला सदानी – आदिबासी , नटूवा नाचे बनबासी झर – झर हूँडरू दहेक राग बोले ।
शीर्षक का अर्थ – कोयल के गीत
भावार्थ-कोयल के बीत के बहाने इस कविता में झारखण्ड में मनाये जाने वाले सरहुल (चैत), करम (भादो), सोहराई (कार्तिक), बंउड़ी-मकर संक्रांति (अगहन) त्योहारों में झारखण्डी जनता के आनंद की अभिव्यक्ति का वर्णन किया गया है। ये पर्व-त्योहार, नृत्य-गीत ही झारखण्डी जनता के जीवन-दर्शन के रहस्य को खोलते हैं।
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