आंधार जहां, आलो बारा तहां कविता तातल-हेमाल (कविता संग्रह ) का कवि – शिवनाथ प्रमाणिक
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आंधार जहां, आलो बारा तहां कविता

तातल-हेमाल (कविता संग्रह ) का कवि – शिवनाथ प्रमाणिक

अंधार जहाँ , आलो बारा तहाँ अंधार जहाँ , डहर गामाइ कहाँ ? भटइक बुले मानुस हियां हुवां झगरा झाँटी , लुटा – लुटी दिने राइतें देखा कुकर काठी गाँव – गाँवे , घरें – घाटें अज्ञानेक अंधार चाइरो बाटे निपटकाना जहाँ , आलो बारा तहाँ । जाइतें पाइतें घरे पानी घाटाइल पोखइर घाटें उकसा- उकसी , रेसा – रेसी मंदिर – महजिदें दुसा दुसी मानुस चिन्हा , मानुसबादी चिन्हा नदी – नाला , माटिक जाला गाछ फाटाइ बोन उज्जर भेला हवा – पानी , देखा तनी चुवाँ डाड़ीघाट भइगेल मलीन निरठ हवा जहाँ , जिनगानी हुआ । ठेपा दिआइ , मोद पिआइ चॅइट लेहथ टाका जुआ खेलाइ चोरी – चोरी , सीना जारी

मानुस मोरे जुहा मोदेक मारी , सादा जहाँ , आखर लिखा तहाँ । दान दहेज , बिहा में तेज लोरे भींजी गेल सुहागक सेज सोनाक थारी , तिलक बेटा बेचाइ काड़ा – गरू तरी नारी जहाँ , जगसृजन हुवाँ । ज्ञानेक सागर , लउतन लहर खोइजलेल मानुस चाँदेक बेनेक बाँदर , बोका आँधर कुवाँक बेंग कुछ मानुस थेथर आलों जहाँ , लोक जागल हुवाँ

22 : आंधार जहां, आलो बारा तहां कविता

तातल-हेमाल (कविता संग्रह ) का कवि – शिवनाथ प्रमाणिक

शीर्षक का अर्थ – जहां अधेरा हो, दीप वहीं जलाओ

भावार्थ – समाज में फैली विभिन्न मानव अहितकारी कार्य-व्यापारों-ऊंच-नीच, छोटे-बड़े, धर्म-सम्प्रदाय, नारी-पुरूष के भेदभाव जाति-पाति के भेद तथा अशिक्षा ईर्ष्या द्वेष आदि सामाजिक अंधकार है। इस अंधकार को भगाने के लिए ज्ञान की रौशनी दिवेक की रौशनी, तर्क की रौशनी से समाज को रौशन करने की जरूरत है। तभी मानव समाज का सही विकास होगा। 

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