सामाजिक सुधार हेतु उठाये गए कदम
सती प्रथा
लॉर्ड विलियम बेंटिक के समय में 1829 में सती प्रथा को प्रतिबंधित कर दिया गया। प्रारंभ में इसे बंगाल में लागू किया गया।
इस अधिनियम को पारित कराने में राजा राममोहन राय की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही।
बाल विवाह
ईश्वरचंद्र विद्यासागर तथा उनके समर्थकों के दबाव के कारण 1860 में लड़की की विवाह की न्यूनतम आयु 10 वर्ष कर दी गई, इससे कम आयु में विवाह को अपराध घोषित कर दिया गया।
ब्रिटिश सरकार ने बाल विवाह को प्रतिबंधित करने के लिये तीन अधिनियम पारित किये
(i) सिविल मैरिज एक्ट (Native Marriage Act), 1872
(ii) सम्पति आयु अधिनियम(Age Consent Act), 1891
(iii) बाल विवाह निरोधक अधिनियम, 1929/शारदा अधिनियम (Sharda Act)
(i) सिविल मैरिज एक्ट (Native Marriage Act), 1872
इस अधिनियम के द्वारा लड़कियों के विवाह की न्यूनतम आयु 14 वर्ष तथा लड़कों की 18 वर्ष कर दी गई।
इस एक्ट द्वारा बहुविवाह प्रथा को समाप्त कर दिया गया।
इसे ब्रह्म विवाह अधिनियम के रूप में भी जाना जाता है
(ii) सम्मति आयु अधिनियम(Age Consent Act), 1891
यह अधिनियम प्रसिद्ध भारतीय समाज सुधारक एवं बंबई के पारसी बहरामजी मालावारी के प्रयत्नों से पारित हुआ।
इसे 1891 में सम्मति आयु एक्ट काउंसिल द्वारा पारित कर दिया गया।
इस अधिनियम के द्वारा लड़कियों के विवाह की न्यूनतम आयु 12 वर्ष कर दी गई।
बाल गंगाधर तिलक ने इस अधिनियम का विरोध किया।
3. बाल विवाह निरोधक अधिनियम, 1929/शारदा अधिनियम (Sharda Act)
अजमेर के डॉ. हरविलास शारदा के प्रयत्न से बाल विवाह निषेध कानून बना।
‘बाल विवाह प्रतिबन्ध अधिनियम, 1929 28 सितंबर 1929 को इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल ऑफ इंडिया में पारित हुआ।
यह छह महीने बाद 1 अप्रैल 1930 को लागू हुआ था।
बाद में सन् 1949, 1978 और 2006 में इसमें संशोधन किए गए।
उन्हीं के नाम पर यह ‘शारदा एक्ट‘ कहलाया।
इस अधिनियम द्वारा विवाह की न्यूनतम आयु लड़कियों की 14 तथा लड़कों की 18 वर्ष निर्धारित की गई।
स्वतंत्रता पश्चात भारत सरकार द्वारा 1978 में बाल विवाह निरोधक अधिनियम को संशोधित किया गया और बालक के विवाह की आयु 18 वर्ष से बढ़ाकर 21 वर्ष तथा बालिका की 14 वर्ष से बढ़ाकर 18 वर्ष निर्धारित की गई।
बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006
केन्द्र सरकार ने 1929 के बाल विवाह निषेध अधिनियम को निरस्त करके और उसके स्थान पर 2006 में बाल विवाह निषेध अधिनियम पारित किया है।
इसके अंतर्गत उन लोगों के खिलाफ कठोर उपाय किये गये हैं जो बाल विवाह कि इजाजत देते हैं और उसे बढ़ावा देते हैं।
इस अधिनियम के अंतर्गत 21 वर्ष से कम आयु के पुरुष और 18 वर्ष से कम आयु की महिला के विवाह को बाल-विवाह के रुप में परिभाषित किया गया है।।
यह कानून नवम्बर 2007 में प्रभावी हुआ।
बाल विवाह निषेध (संशोधन) बिल, 2021
Jaya Jaitly की अध्यक्षता में बनाई गई केंद्र की Task Force द्वारा December 2020 में Niti Aayog से की गई इस सिफारिश के बाद Cabinet ने बेटियों की शादी की उम्र ( Marriage Age of Girls) बढ़ाने वाले संशोधन पर मुहर लगा दी है।
लोकसभा में 21 दिसंबर, 2021 को बाल विवाह निषेध (संशोधन) बिल, 2021 पेश किया गया।
बिल महिलाओं के विवाह की न्यूनतम आयु को बढ़ाने के लिए बाल विवाह निषेध एक्ट, 2006 में संशोधन करता है।
बिल महिलाओं के लिए विवाह की न्यूनतम आयु को बढ़ाकर 21 वर्ष करता है।
बिल विवाह संबंधी कुछ अन्य कानूनों में भी संशोधन करता है ताकि उन कानूनों में महिलाओं की न्यूनतम आयु को बढ़ाकर 21 वर्ष किया जा सके।
ये कानून हैं:
(i) भारतीय ईसाई विवाह एक्ट, 1872,
(ii) पारसी विवाह एवं तलाक एक्ट, 1936,
(iii) विशेष विवाह एक्ट, 1954,
(iv) हिंदू विवाह एक्ट, 1955, और
(v) विदेश विवाह एक्ट, 1969।
विधवा पुनर्विवाह आंदोलन
महाराष्ट्र में विधवा पुनर्विवाह आंदोलन का नेतृत्व विष्णु परशुराम पंडित द्वारा किया गया।
उन्होंने वर्ष 1850 में विडो रिमैरिज सोसायटी की स्थापना की थी।
1856 का विधवा पुनर्विवाह अधिनियम (Hindu Widow Remarriage Act)
ईश्वर चंद्र विद्यासागर के प्रयासों से यह अधिनियम लॉर्ड कैनिंग के समय में 16 जुलाई, 1856 1856 में पारित हुआ।
इस के तहत विधवाओं के पुनर्विवाह को कानूनी मान्यता मिली ।
ठगी प्रथा
लॉर्ड विलियम बेंटिक ने ठगी प्रथा का उन्मूलन किया।
शिशु वध
गवर्नर जनरल जॉनशोर के समय में 1795 में तथा वेलेजली के समय 1804 में शिशु वध को साधारण हत्या के रूप में माना जाने लगा।
नरबलि प्रथा
इस प्रथा को समाप्त करने का श्रेय हॉर्डिंग प्रथम को जाता है, इसके लिये उसने कैंपबेल की नियुक्ति की।
नरबलि प्रथा खोंड जनजाति में प्रचलित थी।
दास प्रथा
गवर्नर जनरल लॉर्ड एलनबरो ने 1843 में भारत में दास प्रथा को प्रतिबंधित कर दिया।
मध्यकाल मे फिरोजशाह तुगलक और अकबर ने दासों के व्यापार पर प्रतिबंध लगा दिया था।
नोटः 1833 के अधिनियम में निर्देश था कि दास प्रथा को समाप्त कर दिया जाए।