उपनिषद् काल के महान ऋषि याज्ञवल्क्य राजा जनक की सभा के प्रधान दार्शनिक,
यजुर्वेद सहित शतपथ ब्राह्मण, बृहदारण्यक व याज्ञवल्क्य स्मृति के रचयिता तथा योगदर्शन के आरंभकर्ता थे । याज्ञवल्क्य ऋषि वैशम्पायन के प्रमुख शिष्यों में एक थे ।
पहली शताब्दी में मिथिला के ब्राह्मण कुल में जन्मे याज्ञवल्क्य के पिता का नाम ब्रह्मराज था ।
महावीर (540-468 ई० पू० )
महावीर को जैन धर्म का वास्तविक प्रवर्तक माना जाता है। इनके पाँच मुख्य उपदेश थे— अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य ।
बिम्बिसार के राजकाल में कुण्डग्राम में (वैशाली के निकट ) इनका जन्म हुआ था और पावापुरी में इन्होंने शरीर त्याग किया ।
उन्होंने 30 वर्ष की अवस्था में गृहत्याग किया, 12 वर्षों तक कठिन तप किया और फिर ज्ञान प्राप्त किया। उसके बाद 30 वर्षों तक देशभर में धर्मोपदेश दिया ।
महात्मा बुद्ध (563-483 ई० पू० )
बौद्ध धर्म के प्रवर्तक महात्मा बुद्ध ने बोधगया में ज्ञान प्राप्त किया और बिहार में अत्यधिक सक्रिय रहे। उन्होंने चार आर्य सत्यों और अष्टांगिक मार्ग का प्रतिपादन किया ।
वृहद्रथ
29 वर्ष की आयु में किये गये गृहत्याग के 6 वर्ष बाद गया में बुद्धत्व प्राप्त किया ।
45 वर्ष तक उत्तर प्रदेश तथा बिहार के विभिन्न क्षेत्रों में पद यात्रा करके धर्मोपदेश देते रहे । प्रथम धर्मोपदेश सारनाथ में दिया । मगध के प्रसिद्ध शासक बिम्बिसार ने उनसे दीक्षा ली थी ।
वृहद्रथ मगध के प्राचीनतम राजवंश वृहद्रथ वंश का संस्थापक था । चेदिराज वसु के पुत्र वृहद्रथ ने गिरिव्रज को राजधानी बनाकर मगध में अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित किया । उसे ही मगध साम्राज्य का संस्थापक माना जाता है । मगध सम्राट् जरासंध उसी का महापराक्रमी पुत्र था ।
जीवक
जीवक बौद्धकाल का उत्कृष्टतम वैद्य एवं चिकित्सक था । हर्यक वंशीय मगध के शासक बिम्बिसार के पुत्र अभय ने उनका लालन-पालन किया । उन्होंने वैद्य की शिक्षा तक्षशिला में ग्रहण की । गिलगिट से प्राप्त पांडुलिपि के अनुसार जीणक के गुरु तक्षशिला के प्रसिद्ध वैद्य आत्रेय पुनर्वसु थे ।
घोषा
पाटलिपुत्र की विख्यात नर्तकी थी । वह 1000 सुइयों की नोक पर नृत्य करती थी ।
विष्णुगुप्त और कौटिल्य के नाम से विख्यात यह महान कूटनीतिज्ञ चंद्रगुप्त मौर्य के राजनीतिक गुरु और पथ-प्रदर्शक था । उनकी सुविख्यात रचना ‘अर्थशास्त्र’ मौर्यकालीन राजनीतिक व्यवस्था संबंधी एक मानक रचना मानी जाती है ।
पाणिनि
मौर्यकालीन प्रसिद्ध व्याकरण शास्त्री और ‘अष्टाध्यायी’ के रचयिता पाणिनि, जो तक्षशिला के विद्यार्थी रह चुके थे, को कुछ लोग जहाँ मनेर (पटना) का निवासी मानते हैं, वहीं कुछ इतिहासकार उन्हें उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रान्त के शलातुर नामक स्थान का निवासी मानते हैं ।
उनकी प्रसिद्ध रचना ‘अष्टाध्यायी’ प्राचीन भारतीय इतिहास को जानने का एक महत्वपूर्ण स्रोत है । इसमें आठ अध्याय एवं 3863 सूत्र हैं ।
आर्यभट्ट (पाँचवीं शताब्दी ई०)
आर्यभट्ट का जन्म 476 ई० में प्राचीन कुसुमपुर (पाटलिपुत्र या आधुनिक पटना ) में (वर्तमान खगौल में ) हुआ था ।
आर्यभट्ट दशमलव प्रणाली का आविष्कार करने वाले गणितज्ञ के रूप में जाने जाते हैं ।
आर्यभट्ट ने बीजगणित की प्रारंभिक आधारशिला रखी। वह महान गणितज्ञ होने के साथ-साथ महान खगोलविद् भी थे । इन्हीं के नाम पर भारत के प्रथम उपग्रह का नाम आर्यभट्ट रखा गया ।
आर्यभट्ट ने कॉपरनिकस से 1000 वर्ष पूर्व सिद्ध कर दिया था कि पृथ्वी गोल है और यह अपनी धुरी पर घूमती है । इस विद्वान् ने 499 ई० में मात्र 23 वर्ष की उम्र में गणित व खगोलशास्त्र पर एक शोध ग्रंथ ‘आर्यभटीयम्’ लिखा था । इनकी विद्वता से प्रभावित होकर ही तत्कालीन गुप्त सम्राट ने इनको अपने दरबार में रखा था ।
इनके द्वारा पृथ्वी का अपने कक्ष पर घूमने का समय 23 घंटे 56 मिनट 4.1 सेकेण्ड निकाला गया, जो कि आधुनिक यंत्रों के माध्यम से निकाले गये समय से मात्र 1 सेकेण्ड के दसवें हिस्से की भिन्नता रखता है ।
आर्यभट्ट ने संस्कृत में ‘आर्यभटीयम’ के अलावे ‘दशगीति सूत्रम’ तथा ‘आर्याष्टिशत’ नामक ग्रंथ लिखा ।
सबसे पहले आर्यभट्ट ने ही बताया कि सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण क्यों होते हैं ।
अश्वघोष
अश्वघोष महान संगीतज्ञ, नाटककार, कवि, दार्शनिक एवं धर्मज्ञ थे। अपने ‘महायान श्रद्धोत्पाद संग्रह’ नामक ग्रंथ में इन्होंने शून्यवाद का प्रतिपादन किया है। माना जाता है कि ऐतिहासिक चरित ग्रंथ लेखन विद्या की शुरुआत अश्वघोष के ‘बुद्धचरित’ से हुई ।
पुष्यमित्र शुंग
पुण्यमित्र शुंग ने 38 वर्षों तक मगध पर शासन किया । उसने दीर्घ अंतराल के बाद अश्वमेध यज्ञ करवाया, हिन्दू धर्म को पुनर्जीवित किया तथा संस्कृत को राजभाषा बनाया ।
वाणभट्ट
बाणभट्ट का जन्म बिहार में सोन नदी के किनारे बसा प्रीतिकूट नामक नगर में एक समृद्ध वात्स्यायन गोत्रिय ब्राह्मण परिवार में हुआ था । उनके पिता का नाम चित्रभानु और माता का नाम राज्यदेवी था ।
संस्कृत के विश्वविख्यात कवि बाणभटूट ने ‘हर्षचरित’ और ‘कादम्बरी’ जैसी कालजयी कृतियों के साथ-साथ ‘दुर्गासप्तक’ और ‘सूर्यसप्तक’ की भी रचना की ।
सातवीं सदी के पूर्वार्द्ध में हुए बाणभट्ट हर्षवर्द्धन के समकालीन थे। उन्हें मौखरी वंश एवं पुष्यभूति वंश का प्रामाणिक इतिहासकार माना जाता है।
सरहपाद
भारतीय जनमानस को अद्भुत रूप से प्रभावित करने वाले सरहपाद 84 सिद्धों में सबसे अधिक समादृत हुए । महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने इन्हें हिन्दी काव्य का प्रथम जनक माना है ।
शांतरक्षित
पाल शासकों के काल में 8वीं शताब्दी में नालंदा महाविहार के आचार्य और बौद्ध विद्वान शांतरक्षित ने तिब्बत जाकर वहाँ बौद्ध धर्म का प्रचार किया ।
अतिश दीपांकर श्रीज्ञान
वह विक्रमशिला के प्रसिद्ध आचार्य थे, जिन्हें ग्यारहवीं शताब्दी में तिब्बत के शासक के निमंत्रण पर वहाँ भेजा गया । बौद्ध धर्म के तांत्रिक रूप के प्रचार-प्रसार में इनका विशेष योगदान रहा ।
धीमन एवं बिठपाल
वे पालकालीन सुप्रसिद्ध मूर्तिकार थे, जो नालंदा के निवासी थे । पालकालीन कांस्य प्रतिमाओं की रचना और चित्रकला के विकास में उनका अविस्मरणीय योगदान रहा ।
मंडन मिश्र
पं० मंडन मिश्र 9वीं सदी में मिथिला क्षेत्र के प्रसिद्ध विद्वान एवं दार्शनिक थे, जिन्होंने न्याय, मीमांसा तथा वेदान्त दर्शन की समृद्धि एवं प्रचार-प्रसार में उल्लेखनीय योगदान दिया । आदि शंकराचार्य के साथ उनके शास्त्रार्थ की चर्चा अनुश्रुतियों में मिलती है ।
पं० मंडन मिश्र पूर्व मीमांसा के साथ-साथ वेदान्त के महान ज्ञाता थे । उनकी प्रसिद्ध रचनाओं प्रमुख ‘नैष्कर्म सिद्धि’ में बौद्ध धर्म पर करारा प्रहार किया गया था । उनकी अन्य रचना है ‘विधि विवेक’ । उनकी शादी कुमारिल भट्ट की बहन की पुत्री सरस्वती या भारती से हुई थी ।
इनकी पत्नी भारती परम विदुषी थी, जिसने शंकराचार्य को शास्त्रार्थ में निरुत्तर कर दिया था ।
वाचस्पति मिश्र
वाचस्पति मिश्र का जन्म मधुबनी जिलान्तर्गत ठाढ़ी गाँव (अन्धरा ठाढ़ी) में हुआ था ।
शंकर भाष्य की टीका ‘भाष्य भामती’ के रचयिता वाचस्पति मिश्र प्रकाण्ड विद्वान व दार्शनिक थे ।
भारतीय दर्शन की प्रत्येक शाखा पर समान रूप से अधिकार करने के कारण उन्हें षड्दर्शन वल्लभ के नाम से भी जाना जाता है । उन्होंने मंडन मिश्र की पुस्तक ‘विधि-विवेक’ पर ‘न्याय कण्डिका’ नामक प्रसिद्ध टीका के अतिरिक्त ‘ब्रह्मतत्व समीक्षा’ नामक टीका भी लिखी जो वेदान्त दर्शन को समझने में सहायक सिद्ध हुई ।
मोहसिन फानी
जहाँगीर का समकालीन इतिहासकार मोहसिन फानी ने पटना में अपनी प्रसिद्ध रचना ‘दबिस्ताने-मजाहिब’ लिखी। इसमें विभिन्न धर्मों का तुलनात्मक वर्णन है । इसी पुस्तक में पहली बार अकबर के ‘दीने – इलाही’ को एक नये मार्ग की संज्ञा दी गयी ।
दाऊद खाँ करारानी
वह बिहार एवं बंगाल के स्वतंत्र अफगान राज्य का अंतिम शासक था, जिसे 1578 में पराजित कर अकबर ने बिहार को अंततः मुगल साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया ।
विद्यापति
शृंगार रस के प्रसिद्ध मध्यकालीन कवि विद्यापति का जन्म दरभंगा ( अब मधुबनी) जिले के विस्फी ग्राम में 1368 या 1377 ई० में हुआ । मैथिली भाषा में रचित उनकी ‘पदावली’, अवहट्ट में ‘कीर्तिलता’ और ‘कीर्तिपताका’ सुविख्यात हैं ।
उनकी संस्कृत रचनाओं में ‘भूपरिक्रमा’, पुरुष परीक्षा’, ‘लिखनावली’, ‘दुर्गाभक्ति तरंगिणी’, ‘पुराण-संग्रह’, ‘विभासागर’ और ‘गंगा काव्यावली’ प्रमुख हैं ।
विद्यापति की 200 कविताओं का अनुवाद योगी अरविन्द ने अंग्रेजी में किया है । यह यूनेस्कोसे प्रकाशित हुआ है ।
वह महाराज शिव सिंह के समकालीन थे। उनकी मृत्यु 1475 ई० में हुई ।
मख्दुम शर्फुद्दीन याहया मनेरी
वह 13वीं शताब्दी के प्रसिद्ध सूफी संत थे, जिन्हें बिहार में सूफी आंदोलन का सर्वश्रेष्ठ प्रतिनिधि माना जाता है । उनका जन्म 1263 ई० में हुआ था । इनका संबंध फिरदौसी सम्प्रदाय से था। वह सूफी संत शेख निजामुद्दीन फिरदौसी के शिष्य थे तथा 1332 ई० में उनकी मृत्यु के बाद उनके उत्तराधिकारी बने ।
सूफी मत की व्याख्या में इनके पत्रों का संकलन ‘मकतूबाते – सदी’ प्रसिद्ध है ।
मोहम्मद शाह नूहानी
मोहम्मद शाह नूहानी लोदी शासकों के काल में बिहार का महत्वपूर्ण अफगान सामंत था ।
उसने पानीपत की लड़ाई (1526 ई०) के बाद बिहार में प्रथम स्वतंत्र अफगान राज्य का निर्माण किया। उसी के संरक्षण में बिहार में शेरशाह का उत्कर्ष हुआ
शेरशाह (1486-1545)
भारत के सर्वश्रेष्ठ अफगान शासक शेरशाह का जन्म 1486 में हुआ था । उसका राजनैतिक उत्कर्ष बिहार में सहसराम (सासाराम) के क्षेत्र से आरंभ हुआ । यहीं पर उसने अपने प्रशासनिक सुधारों, विशेषकर लगान – संबंधी सुधारों का प्रयोग किया ।
उसने जनकल्याण के वृहत उपाय किये तथा संचार और यातायात का व्यापक विकास किया । उससे संबद्ध जानकारी का महत्वपूर्ण स्रोत अब्बास खाँ सरबानी की रचना ‘तारीखे – शेरशाही’ है। सन् 1539 में बक्सर के निकट चौसा युद्ध में उसने हुमायूं को बुरी तरह हराया ।
शेरशाही सूरी सन् 1539 से सन् 1545 तक भारत का बादशाह रहा । प्रसिद्ध ग्रैंड ट्रंक रोड का निर्माण इसी ने करवाया । कला के प्रति उसकी उत्कृष्ट देन सासाराम स्थित मकबरा है । गौतम मुनि
गौतम मुनि न्यायशास्त्र के विख्यात आचार्य तथा ‘न्यायसूत्र’ के लेखक थे ।
गुरु गोविन्द सिंह जी (1666-1708)
पटना सिटी में 26 दिसम्बर, 1666 ई० को जन्म लेनेवाले गोविन्द सिंहजी सिक्खों के 10वें एवं अंतिम गुरु थे, जिन्होंने मुगल शासकों से संघर्ष के लिए सिक्ख सम्प्रदाय को संगठित किया और उनके धार्मिक एवं सामाजिक जीवन में महत्वपूर्ण सुधार लाये ।
दशमेश पिता / गुरु के नाम से भी विख्यात गुरु गोविन्द सिंह जी का 350 वाँ प्रकाश पर्व 1 से 5 जनवरी, 2017 तक पटना में बड़ी धूम-धाम से मनाया गया ।
वह सिक्खों को एक सैन्य शक्ति बना देने वाले प्रथम गुरु के रूप में समादृत हैं । इन्होंने ही पाहुल (दीक्षा) प्रथा शुरू की तथा पाँच ककार का नियम बनाया। उन्होंने सिखों में पाँच ‘क’ (केश, कृपाण, कंघा, कच्छा व कड़ा) की परंपरा की शुरुआत की एवं ‘खालसा पंथ’ की स्थापना की । गुरु गोविन्द सिंह उच्च कोटि के कवि भी थे ।
वह अपने पिता गुरु तेग बहादुर की गद्दी पर 1675 ई० में बैठे तथा 1708 ई० में नान्देड़ में एक अफगान द्वारा मारे जाने तक इस पर विराजमान रहे ।
गुलाम हुसैन तबातबाई
वह पटना के निवासी और अठारहवीं शताब्दी के विख्यात इतिहासकार थे । उनकी रचना ‘सीयरूल मुताखेरीन’ ब्रिटिश सत्ता के बिहार और बंगाल में प्रसार और उससे उत्पन्न हानिकारक प्रभावों का विस्तृत विवरण प्रस्तुत करती है ।
वीर कुंवर सिंह
बिहार के शाहाबाद (वर्तमान भोजपुर) जिले के जगदीशपुर ग्राम में 23 अप्रैल, 1777 ई० को जन्मे बाबू कुँवर सिंह ने 1857 के गदर में बिहार के क्रांतिकारी देशभक्तों का नेतृत्व करते हुए अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिये ।
वह परमार राजपूत या उज्जैनी राजपूत वंश के महान सम्राट विक्रमादित्य के वंशज थे । 7 फीट लम्बे कुंवर सिंह ने 49 वर्ष की अवस्था में जगदीशपुर की जमींदारी सम्हाली ।
वीर अमर सिंह
शाहाबाद (बिहार) में जन्मे अमर सिंह वीर कुँवर सिंह के सबसे छोटे भाई थे । कैमूर पहाड़ियों में स्थित अड्डे का नेतृत्व करने वाले अमर सिंह अँग्रेजों के साथ गुरिल्ला युद्ध में माहिर तथा नेपाल में ‘नाना सेना’ के गठन के सूत्रधार थे ।
जुलाई, 1857 में वीर कुँवर सिंह के साथ दानापुर विद्रोह में शामिल हुए तथा अप्रैल, 1858 में कुँवर सिंह की मृत्यु के बाद उन्होंने बिहार में स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व किया । अक्टूबर, 1858 में अँग्रेज सेनापति डगलस के साथ उनका भयानक युद्ध हुआ । दिसंबर, 1859 में वे गिरफ्तार हुए तथा 5 जनवरी, 1860 को गोरखपुर जेल में अतिसार रोग से इनकी मृत्यु हो गयी । जगदीशपुर और कैमूर की पहाड़ियों से लेकर नेपाल तक इनका कार्य-क्षेत्र था ।
विलायत अली (1791 – 1852)
वह बिहार में वहाबी आंदोलन के अग्रणी नेता थे। उन्होंने 1826 में पश्चिमोत्तर सीमान्त में वहाबी आंदोलन को संगठित किया । 1836 के बाद वह सिताना के वहाबी राज्य के प्रधान रहे । इनायत अली (1793-1858)
विलायत अली के अनुज इनायत अली ने 1852 से 1858 के बीच पश्चिमोत्तर सीमांत के वहाबी राज्य के प्रधान का पद ग्रहण किया और ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध वृहत विरोध को संगठित किया ।
पीर अली
पीर अली पटना सिटी के पुस्तक विक्रेता थे, जिन्होंने पटना में 1857 के आंदोलन का नेतृत्व करते हुए अंग्रेजों से संघर्ष किया। अंगरेज ऑफिसर डॉ. लायल की हत्य के आरोप में 7 जुलाई, 1857 को पटना के कमिश्नर एम. टेलर के आदेश पर इन्हें पटना में फाँसी दे दी गयी । उस समय वे 37 साल के थे ।
1857 के प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन के शहीदों में एक शेख भिखारी भी थे, जिन्हें अंग्रेजों द्वारा फाँसी दी गयी थी ।
मौलाना मजहरूल हक (1866-1930)
शेख अहमदुद्दौला के इकलौते पुत्र के रूप में मजहरूल हक का जन्म पटना से 25 किमी
पश्चिम में स्थित बाहपुरा में 22 दिसम्बर, 1866 ई० को हुआ था ।
इंग्लैंड से बैरिस्टरी की पढ़ाई के बाद 1891 में उन्होंने पटना में वकालत की शुरुआत की । इसके बाद कुछ समय के लिए उत्तर प्रदेश न्यायिक सेवा में मुंसिफ के रूप में कार्यरत रहे । 1915 में वे मुस्लिम लीग के बम्बई अधिवेशन के अध्यक्ष बनाये गये । 1916 में वे होम रूल आंदोलन से जुड़े |
बिहार के राष्ट्रवादी नेताओं में अग्रणी मौलाना मजहरूल हक खिलाफत आंदोलन और असहयोग आंदोलन में काफी सक्रिय रहे। पटना में इन्होंने सदाकत आश्रम की स्थापना की (1920)। वह बिहार विद्यापीठ के संस्थापक – कुलाधिपति रहे ।
इनके द्वारा प्रकाशित समाचार पत्र The Motherland’ राष्ट्रीय एकता का प्रबल समर्थक रहा । गाँधीजी इन्हें ‘देशभूषण’ कहते थे। 2 जनवरी, 1930 को उनका निधन हो गया ।
डॉ० सच्चिदानन्द सिन्हा
सच्चिदानन्द सिन्हा का जन्म 10 नवम्बर, 1871 को आरा में हुआ था । उनके पिता रामयाद सिन्हा आरा के प्रसिद्ध वकील और डुमराँव राज के स्थायी अधिवक्ता थे ।
विख्यात बुद्धिजीवी डॉ० सच्चिदानन्द सिन्हा का पृथक् बिहार के निर्माण के प्रयास में अग्रणी भूमिका रही । प्रसिद्ध पत्रकार के रूप में ख्याति प्राप्त सच्चिदा बाबू विख्यात विधिवेत्ता थे । वे बिहार एवं उड़ीसा सरकार के प्रथम भारतीय वित्तमंत्री तथा बिहार विधान परिषद् के प्रथम भारतीय अध्यक्ष रहे । वे पटना विश्वविद्यालय के कुलपति भी रहे ।
पटना स्थित विख्यात सिन्हा लाइब्रेरी के संस्थापक डॉ० सिन्हा भारत की संविधान सभा के प्रथम अध्यक्ष नियुक्त हुए । उन्होंने राधिका देवी से लाहौर में विवाह किया ।
9 दिसम्बर, 1946 को इन्हीं की अध्यक्षता में हमारे देश के संविधान सभा का अधिवेशन प्रारंभ हुआ था । उनकी मृत्यु (6 मार्च, 1950) के बाद डॉ० राजेन्द्र प्रसाद ने यह पद ग्रहण किया ।
हसन इमाम (1871-1933)
वरिष्ठ बैरिस्टर और राष्ट्रवादी नेता हसन इमाम 1912 में कलकत्ता हाईकोर्ट के प्रथम बिहारी जज नियुक्त हुए । 1921 में वह बिहार एवं उड़ीसा विधान परिषद् के प्रथम उपाध्यक्ष निर्वाचित हुए।
राष्ट्रसंघ की सभा में भारतीय शिष्टमंडल के सदस्य बने । कालान्तर में वह भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के अध्यक्ष भी बने ।
होमरूल आन्दोलन से सविनय अवज्ञा आन्दोलन तक उनकी सक्रिय भूमिका रही । बिहार के पृथक्करण में उल्लेखनीय योगदान के साथ-साथ बिहार में शिक्षा और पत्रकारिता के विकास में भी इनकी देन काफी महत्वपूर्ण है ।
सर सुल्तान अहमद (1880-1963)
वे सुप्रसिद्ध विधिशास्त्री थे, जिन्हें पटना विश्वविद्यालय के प्रथम भारतीय कुलपति होने का श्रेय प्राप्त हुआ। 1937 में वह वायसराय की कार्यकारी परिषद् के सदस्य भी रहे ।
1941 में वे भारत सरकार में विधि सदस्य नियुक्त हुए। वे राष्ट्रसंघ में भारतीय शिष्टमंडल के सदस्य के रूप में भी सक्रिय रहे ।
डॉ० राजेन्द्र प्रसाद (1884–1963)
डा० राजेन्द्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर, 1884 को सारण (वर्तमान सीवान) जिले के जीरादेई नामक गाँव में हुआ था । इनके पिता महादेव सहाय फारसी एवं संस्कृत के विद्वान होने के साथ-साथ आयुर्वेद के भी ज्ञाता थे ।
1906 में इन्होंने बिहारी छात्र सम्मेलन की स्थापना की । सन् 1916 में उन्होंने ‘बिहार लॉ’ नामक एक साप्ताहिक का प्रकाशन शुरू किया था । 1919 में रॉलेट ऐक्ट के विरुद्ध सत्याग्रह से लेकर 1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन तक राष्ट्रीय आन्दोलन में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण रही ।
वे भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के तीन बार अध्यक्ष निर्वाचित हुए । 1947 में संविधान सभा के अध्यक्ष और 1950 में संविधान लागू होने के पश्चात् देश के प्रथम राष्ट्रपति बने । उन्होंने ‘इंडिया डिवाइडेड’ नामक पुस्तक की रचना की ।
उनकी मृत्यु 28 फरवरी, 1963 को पटना स्थित सदाकत आश्रम में हुई ।
खान बहादुर खुदाबख्श खाँ (1842-1908)
> खान बहादुर खुदाबख्श खाँ पांडुलिपियों के प्रसिद्ध संग्रहकर्ता थे। इनके द्वारा पटना में स्थापित पुस्तकालय खुदाबख्श लाइब्रेरी को 1891 में बंगाल की तत्कालीन सरकार ने अपनी देख-रेख में ले लिया । 1969 में संसद ने इस पुस्तकालय को राष्ट्रीय महत्व की संस्था घोषित कर दिया ।
अली इमाम
हसन इमाम के ज्येष्ठ भ्राता और प्रसिद्ध बैरिस्टर अली इमाम राष्ट्रीय आंदोलन के सक्रिय सदस्य रहे । उनका जन्म 11 फरवरी, 1869 को पटना जिला के नेउरा में हुआ था । > विख्यात विधिवेत्ता अली इमाम सन् 1908 में भारत सरकार के स्थायी विधि परामर्शद नियुक्त किये गये । इतने बड़े पद पर पहुँचने वाले वे प्रथम बिहारी थे। बाद में वह विधि सदस्य भी बनाये गये ।
1917 में उन्हें पटना हाइकोर्ट का जज और 1919 में हैदराबाद राज्य का मुख्यमंत्री नियुक्त किया गया । उनकी मृत्यु 27 अक्टूबर, 1932 को राँची में हो गयी ।
बैकुंठ शुक्ल
सन् 1910 में जलालपुर गाँव, लालगंज थाना (वैशाली) में जन्मे बैकुंठ शुक्ल का 1930 में नमक सत्याग्रह में महत्वपूर्ण योगदान रहा। नमक आंदोलन के दौरान उन्हें छह माह की सजा हुई ।
पूर्णिया से इनके क्रांतिकारी जीवन की शुरुआत हुई । काशी से लेकर हाजीपुर तक इनका कार्यक्षेत्र था। देशभर में सरकार विरोधी पर्चे तैयार कराने तथा उसे देशभर के विभिन्न हिस्सों में पहुँचाने की व्यवस्था करनेवाले बैकुंठ शुक्ल हाजीपुर ( बिहार ) स्थित गुप्त अड्डे सूत्रधार थे ।
सरदार भगत सिंह को फाँसी के मामले में मुखबिरी करनेवाले गद्दार फणीन्द्र घोष की 23 मार्च, 1932 को बेतिया में इन्होंने सरेआम हत्या कर दी । 14 अप्रैल, 1934 को गया जेल में इन्हें फाँसी दे दी गयी !
फणीन्द्र नाथ घोष
बेतिया निवासी फणीन्द्र नाथ घोष 1916 से ही बिहार में बंगाल अनुशीलन समिति के सदस्य के रूप में सक्रिय था । 1925 में उसने ‘हिन्दुस्तान सेवा दल’ की स्थापना की तथा हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी की दिल्ली सभा में बिहार क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया ।
बाद में वह लाहौर षड्यंत्र कांड, पटना षड्यंत्र कांड आदि में क्रांतिकारियों के विरुद्ध गवाही दे कर मुखबिर बन गया। चंद्रमा सिंह की सहायता से बैकुंठ शुक्ल ने उसकी हत्या कर दी ।
1896 ई० में लालगंज (वैशाली) में जन्मे योगेन्द्र शुक्ल एक महान देशभक्त और स्वाधीनता सेनानी थे, जिन्होंने 1942 के आन्दोलन में सक्रिय योगदान दिया था ।
वे 1931 के तिरहुत षड्यंत्र कांड और मोतिहारी षड्यंत्र कांड में अभियुक्त थे, जिसमें उन्हें 20 वर्ष के कठोर कारावास का दंड दिया गया था । वर्ष 1932 में पहले उन्हें गया जेल में रखा गया, परन्तु बाद में श्यामदेव नारायण और केदार मणि शुक्ल के साथ अंडमान भेज दिया गया । 1937 में 46 दिन तक भूख हड़ताल करने के बाद इन्हें हजारीबाग जेल में डाल दिया गया ।
1938 में वे कॉंग्रेस के सदस्य तथा 1940 में अखिल भारतीय किसान सभा केंद्रीय कमेटी के सदस्य चुने गये। 1940 में उन्हें गिरफ्तार किया गया तथा 9 नवम्बर, 1942 को वे जयप्रकाश नारायण के साथ हजारीबाग जेल से फरार हो गये। बाद में मुजफ्फरपुर में गिरफ्तार करके उन्हें 7 दिसम्बर, 1942 को पटना लाया गया, जहाँ से उन्हें बक्सर जेल भेज दिया गया । 1946 में छूटे ।
1958 से 1960 तक बिहार विधान परिषद के सदस्य रहे योगेन्द्र शुक्ल का निधन 19 नवंबर1960 को हो गया ।
जगत नारायण लाल
वे एक प्रसिद्ध स्वाधीनता सेनानी तथा जयप्रकाश नारायण के सहयोगी थे।
1942 के आन्दोलन में उन्होंने सक्रिय योगदान दिया था । 13 सितम्बर, 1942 को जगत आंदोलन नारायण लाल को गिरफ्तार करके बांकीपुर जेल (पटना) लाया गया ।
अप्रैल, 1946 में जयप्रकाश नारायण की रिहाई के लिए पटना के बांकीपुर मैदान में आयोजित विशाल जनसभा को संबोधित करते हुए उन्होंने डॉ० श्री कृष्ण सिंह आदि वक्ताओं के साथ मिलकर राजनैतिक बंदियों को जेल में रखने की सरकारी नीति की आलोचना की तथा जयप्रकाश नारायण की रिहाई की मांग की।
रामप्यारी देवी
प्रख्यात स्वाधीनता सेनानी श्रीमती रामप्यारी देवी देशभक्त जगत नारायण लाल की पत्नी थीं ।
उन्होंने भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान बिहार के बांकीपुर (पटना) में एक सभा को संबोधित करते हुए लोगों से सरकारी नौकरियाँ छोड़ने का आह्वान किया ।
सिताब राय
सिताब राय बिहार के एक प्रतिष्ठित व्यक्ति थे जिन्हें ‘राजा’ की उपाधि मिली थी। > ईस्ट इंडिया कम्पनी को बिहार की दीवानी मिलने के उपरान्त राजा सिताब राय को दो उप
नायबों में से एक के पद पर द पर नियुक्त करके उन्हें बिहार में भूमि कर एकत्र करने का कार्य सौंपा गया। बाद में कम्पनी के गारेक्टरों की आज्ञा से वारेन हेस्टिंग्स ने सिताब राय को पद मुक्त कर दिया। बंदी बनाकर गुबन के आरोप में उन पर अभियोग भी चलाया गया । परंतु निर्दोष सिद्ध होने पर उन्हें छोड़ दिया गया ।
रामचन्द्र शर्मा
बिहटा (पटना) के निकट अमराहा गाँव के निवासी रामचन्द्र शर्मा बिहार में फॉरवर्ड ब्लॉक के एक प्रमुख नेता थे। स्वाधीनता संग्राम में उनका काफी महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
श्री नरसिंह नारायण
श्री नरसिंह नारायण एक समाजवादी नेता एवं स्वतंत्रता सेनानी थे । भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान जेल से फरार होने के पश्चात् 14 नवम्बर, 1942 को उन्हें गया में गिरफ्तार किया गया ।
प्रो० अब्दुल बारी का जन्म शाहाबाद जिला के कोइलवर में 1896 को हुआ। 1919 में उन्होंने पटना विश्वविद्यालय से एम. ए. किया। खिलाफत आंदोलन में उन्होंने सक्रिय भूमिका निभायी। उन्हें बिहार विद्यापीठ में प्रोफेसर के पद पर नियुक्त किया गया ।
1923 में उन्हें स्वराज पार्टी की बिहार शाखा का सचिव तथा 1930 में