पशुपालन एवं कीट विज्ञान Animal Husbandry & Entomology

पशुपालन एवं कीट विज्ञान

Animal Husbandry & Entomology

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 गौवंश

  • विश्व के दुग्ध-उत्पादक देशों में प्रथम स्थान – भारत 

  • सबसे ज्यादा गोवंशीय जनसंख्या –  भारत 

गौवंशीय नस्लें (Cattle Breeds)

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प्रजाति

उत्पत्ति स्थल

गिर

गुजरात के काठियावाड़ के गिर जंगलों 

सिरी

प. बंगाल के दार्जिलिंग, भूटान

कांकरेज

गुजरात के कच्छ एवं राजस्थान

थारपारकर

पाकिस्तान, राजस्थान

हरियाणा

हरियाणा के रोहतक, हिसार जिले

बरगुर

तमिलनाडु

कांगायम

आंध्रप्रदेश

खिल्लारी

महाराष्ट्र

अमृतमहल

हल्लीकार 

कर्नाटक

साहीवाल

अविभाजित भारत के मांटगोमरी क्षेत्र

पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में

रेड सिंधी

पाकिस्तान के कराची, हैदराबाद

अन्य नस्लें 

  • दुधारू (Milch): ये नस्लें सबसे ज़्यादा दूध का उत्पादन करती हैं। उदाहरण-साहीवाल, गिर, रेड सिंधी, देवनी। 

  • भारवाही (Draught): भार ढोने वाली नस्लों को इसके अंतर्गत रखा गया है। उदाहरण-हल्लीकार, अमृतमहल, कांगायम, बरगुर, नागौरी, बछौर, खिल्लारी, मालवी, सिरी

  • द्विकाजी (Dual Purpose): दूध देने एवं भार ढोने, दोनों कार्यों हेतु प्रयुक्त नस्लों को इसके अंतर्गत रखा जाता है। 

  • उदाहरण – थारपारकर, कांकरेज, कृष्णाघाटी, मेवाती, गोओलाओ। 

  • गायों की (भारत में) सबसे भारी नस्ल कांकरेज है। 

  • होलस्टीन फ्रीजियन गायें विश्व में सबसे ज़्यादा दुग्ध उत्पादन करती हैं।

  •  विदेशी गायों का दूध उत्पादन भारतीय गायों की अपेक्षा अधिक होता है, परंतु यूरोपीय गायों (आइसलैंड की गायों के अतिरिक्त) की तुलना में भारतीय गायों का दूध श्रेष्ठ माना जाता है।

  • विदेशी नस्ल की गायजरसिंध भारतीय जलवायु के प्रति सबसे उपयुक्त मानी गई है। 

  •  गर्नशी गाय के दूध में 5.0% तक वसा मापी गई है।

संकर प्रजातियाँ (hybrids)

  • करन स्विस एवं करन फ्राइज भारत में विकसित संकर प्रजातियाँ हैं। 

  • इन दोनों ही प्रजातियों का विकास राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान, करनाल (हरियाणा) द्वारा किया गया है।

ब्राउन स्विस तथा साहीवाल के संकरण से

करन स्विस

थारपारकर एवं होलस्टीन (फ्रीजियन) के संकरण से

करन फ्राइज

कुछ महत्त्वपूर्ण दुधारू विदेशी नस्लें

  • जर्सी (यूनाईटेड किंगडम), होलस्टीन फ्रीजियन (नीदरलैंड), ब्राउन स्विस (स्विट्ज़रलैंड); गर्नशी (फ्राँस), आयरशायर (स्कॉटलैंड)

भैंस

भारत में भैंसों को दो वर्गों में रखा जाता है

1. भारतीय भैंस: इन्हे ‘जल भैंस’ भी कहा जाता है। 

2. विदेशी भैंसः इन्हें ‘दलदली भैंस’ भी कहा जाता है। ये दक्षिण-पूर्वी एशिया में पायी जाती हैं। 

7 मान्यता प्राप्त भारतीय भैसों की नस्लें 

  1. मुर्रा (हरियाणा

  2. सूरती (गुजरात)

  3. मेहसाना (गुजरात

  4. जाफारावादी (गुजरात

  5. नागपुरी (महाराष्ट्र

  6. भदावरी (उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश

  7. तराई (उत्तराखंड

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  • इनके अलावा –  नीली-रावी (पंजाब), मंडा, टोडा (नीलगिरी पहाडियाँ) आदि भी भारत में पाई जाती हैं। 

  • भारत में सर्वाधिक दूध देने वाली भैसें मुर्रा (विश्व की सर्वश्रेष्ठ भैंस नस्ल) और सबसे भारी भैंस जाफरावादी है। 

  • भदावरी देश में सर्वाधिक वसा प्रतिशत (14% तक) वाले दूध का उत्पादन करती है। 

  • केंद्रीय भैंस अनुसंधान संस्थान (हिसार)  

  • विश्व में क्लोन द्वारा उत्पादित दूसरा भैंस का बच्चागरिमा, करनाल (हरियाणा)

भेड़ की नस्लें

भारतीय भेडों की विभिन्न नस्लें 

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दूध हेतु 

ऊन हेतु 

माँस हेतु

कालीन ऊन हेतु

लोही 

बीकानेरी

जालौन

मागरा (बीकानेरी)

नुरेज 

दक्कनी

शाहवादी

चोकला

कूका 

भाकरवाल

हसन

मालपुरा

चोकला

वजीरा

मारवाड़ी

मारवाड़ी

नेल्लोर

गद्दी

विदेशी भेड़ की नस्लें 

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बलूची

मेरिनो

हैम्पशायर

डारसेट

ऑक्सफॉर्ड

साउथ डाउन

रेम्बुले

लिसिस्ट

केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थानःअविकानगर (टोंक, राजस्थान)

भेड़ की अन्य नस्लें 

भारत में 

  • लोही: सर्वाधिक दूध उत्पादन 

  • लोही एवं कच्छीः द्विकाजी नस्लें हैं 

  • चोकला: सबसे महीन कालीन ऊन 

  •  मांड्याः सबसे बढ़िया माँस प्रदान करने वाली नस्ल

विदेश में 

  • मैरिनो (स्पेन): सर्वाधिक, ऊन प्रदाता नस्ल 

  • लिसिस्टर (इंग्लैंड): सबसे लंबी ऊन 

  • मैरिनो एवं रेबुले नस्लें अत्यंत महीन ऊन का उत्पादन करती है। 

बकरी

  • इसे निर्धनों की ‘कामधेनु’ भी  कहा जाता है। 

  • बकरी को रेगिस्तान का चलता-फिरता (रनिंग) डेयरी भी कहते है। 

    • विपरीत परिस्थितियों में जीवित रह पाने के कारण

  • बकरी के दूध के पोषक तत्त्वःआयरन (गाय की अपेक्षा अधिक), पोटैशियम 

बकरी की नस्ले 

भारत में 

  • दुधारू: जमुनापारी, बीटल, ओसामावादी, झकराना, बारबरी, सुरती 

  • माँसः सिरोही, ब्लैक बंगाल, ओसामावादी, गंजाम 

  • ऊनःपश्मीना, चेंगू

  • खालः ब्लैक बंगाल, मालावरी

  • जमुनापारीःआकार में सबसे बड़ी एवं द्विकाजी नस्ल की बकरी  ये मुख्यतः दुध उत्पादन हेतु पाली जाती हैं। 

  • सोजतःसिरोही एवं जमुनावारी के मध्य क्रॉस द्वारा विकसित 

    • (मुख्यतः माँस देने वाली नस्ल) 

  • पश्मीना (कश्मीर): बकरी के ऊन हेतु विश्व प्रसिद्ध प्रजाति 

  • द्विकाजी नस्लें: सिरोही, मेहसाना, मालाबरी, झालावाड़ी, सुरती

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विदेश में 

  • सानेन बकरी (स्विट्ज़रलैंड): विश्व की दूध की रानी कही जाती है। 

  • अंगोरा बकरी (मध्य एशिया): मोहेयर ऊन हेतु प्रसिद्ध 

  • एग्लों नुबियन (इंग्लैंड): बकरी जगत में ‘जर्सी’ कही जाती है। 

    • (भारत से आयातित जमुनापारी एवं जरैबी के मध्य क्रॉस द्वारा विकसित) 

  • बलुची: माँस हेतु सर्वश्रेष्ठ प्रजाति 

  • नूरी: विश्व की प्रथम पश्मीना बकरी की क्लोन

अन्य पशु 

सूअर

  • सूअर, सूस (Sus) वर्ग का जानवर है। 

भारत में सुअर की नस्लें 

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नस्ल

गृह क्षेत्र

घुंघरू 

पश्चिम बंगाल 

डूम

असम 

जोवॉक

मिजोरम 

नियांग मेघा

मेघालय

टेनेई वो

नागालैंड  

अगोंडा गोअन

गोवा

विदेश में 

  • टैमवर्थ (इंग्लैंड): सबसे अच्छी किस्म का माँस 

  • सफेद यार्कशायर (इंगलैंड): माँस तथा अधिक बच्चा देने हेतु प्रसिद्ध 

  • अन्य विदेशी नस्लें: सफेद यार्कशायर, बर्कशायर, हैम्पशायर, चैस्टर व्हाइट आदि।

 मुर्गियों की नस्लें 

  • एशियाई नस्लें: असील, ब्रह्म (भारत), लेग्शान, कोचीन (चीन

  • अंडा उत्पादन करने वाली नस्लें: मिनोर्का , व्हाइट लेगहार्न 

  • माँसोत्पादन करने वाली नस्लें: कोचीन, न्यू हैम्पशायर 

  • मनोरंजक नस्लें: असील (मुर्गे की लड़ाई हेतु) 

  • मुर्गी के अंडे का खोलकैल्शियम कार्बोनेट का बना होता है। 

  • लेगहानसंसार में सर्वाधिक अंडा देने वाली मुर्गी है।

मुर्गियों के प्रमुख रोग 

  • रानीखेत (वायरस)

  • बर्ड फ्लू ( वायरस)

  • फाउल पॉक्स (वायरस)

  • पुलोरम (जीवाणु)

मत्स्य पालन (Pisciculture/Fish Farming)

समद्री मछलियाँ

ताजे जल की मछलियाँ

खुले समुद्री सतह पर पाई जाने वाली

  • मैकरेल,टयना, सारडाइन, हेरिंग सामन  

सागर नितल पर पाई जाने वाली

  • हैलोबट, कॉड (Cod)

कतला,रोहू,मृगला ,मांगुर ,लांची, सिंधी

वेलापवर्ती मछलियाँ (Pelagic Fish)

  • समुद्र सतह के समीप पाई जाने वाली मछलियों को वेलापवर्ती मछलियाँ कहते हैं

अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य  

  • रोहू(टापरा या रूइ)-  भारत में पायी जाने वाली सबसे स्वादिष्ट मछली

  • देश में सबसे ज्यादा मात्रा में उत्पादित की जाने वाली मछली – कतला 

  • लांची: 

    • एक शल्क विहीन मछली (Scaleless fishes)

    • IUCN के Red list में Near Threatened में शामिल 

  • मृगला: 

    • नदियों के तेज बहाव में अंडे देने वाली मछली 

    • सिर्फ कावेरी नदी में 

    • IUCN द्वारा Vulnerable का दर्जा 

  • मागुरः 

    • वायु में श्वसन करने वाली ताजे जल की कैट फिश 

    • IUCN की Red List में Endangered में 

  • विश्व में झींगा का सर्वाधिक उत्पादन – भारत में 

  • शव को को अधिक समय तक ताजा बनाए रखने में प्रयोग 

    • फॉर्मेलिन  या फॉर्मेल्डिहाइड का 

      • कपड़ा, प्लास्टिक, कागज, पेंट निर्माण तथा शव(मछली) को संरक्षित रखने आदि में 

      • एक कैंसरजन्य कारक भी है।

एक्वाकल्चर (Aquaculture)

  • जलीय उत्पादों की कृषि करना 

सागरीय कृषि (Mariculture) 

  • एक्वाकल्चर की शाखा 

  • सिर्फ समुद्री जीवों की कृषि 

रेशम कीट पालन (Sericulture)/सिल्क फार्मिंग

  • कच्चे रेशम (प्राकृतिक रेशम) के उत्पादन के लिये रेशमी कीड़ों का पालन करना 

    • प्राकृतिक रेशम, कीट रेशा (Insect Fiber) होता है

    • इसे रेशम के कीड़े के कोकून (Cocoon) से प्राप्त किया जाता है। 

      • कीट के प्यूपा (Pupa) द्वारा धागे को स्वयं के शरीर पर लपेटने से कोकून का निर्माण होता है। 

  • भारत रेशम की सभी पाँचों वाणिज्यिक किस्मों का उत्पादन करने वाला अकेला देश है।

    •  मलबरी, ट्रॉपिकल टसर, ओक टसर, इरी और मूंगा 

रेशम क

प्रकार 

कीट

आहार 

वृक्ष

मूल स्थान

उत्पादन करने

वाले राज्य

1

मलबरी

बॉबिक्स मोरी

मलबरी (शहतूत)

चीन

कर्नाटक

आंध्रप्रदेश

पश्चिम बंगाल तमिलनाडु

2

इरी रेशम

फिलोसेमिया  रीसिनी

कैस्टर

भारत

असम एवं अन्य

उत्तर-पूर्वी राज्य

ओडिशा 

3

मूगा रेशम

एथेराइया

असामेनसिस

सोम 

सुवालु 

भारत

असम

4

टसर रेशम

ओक टसर 

एथेराइया प्रौथली

ओक

भारत 

(चीन

प्रमुख   उत्पादक)

मणिपुर हिमाचल प्रदेश 

उत्तर प्रदेश

असम मेघालय

5

टसर रेशम

ट्रॉपिकल  टसर

एथेराइया माइलीटा

असन 

अर्जुन

भारत

झारखंड 

ओडिशा महाराष्ट्र

छत्तीसगढ़

  • मलबरी रेशम के अलावा रेशम के अन्य तीनों प्रकार ‘वन्य सिल्क’ कहलाते हैं। 

  • भारत में सर्वाधिक उत्पादनमलबरी रेशम का होता है। 

  • मूगा रेशम का उत्पादन सिर्फ भारत में होता है। 

  • देशी टसर का संस्कृत नाम कोसा सिल्क है। 

  • बाफ्टाटसर एवं कॉटन का मिक्स है। 

  • रेशम का धागा एक प्रोटीन संरचना है, जो ताप का कुचालक होता है।

  • कपास एवं जूट प्राकृतिक बहुलक (Polymer) सेल्यूलोज से बने होते हैं।

  • प्राकृतिक रेशम के  उत्पादन एवं खपत में भारत का दूसरा स्थान है।

  • रेशमी वस्त्र उत्पादक शीर्ष राज्यकर्नाटक तथा असम है। 

  • इरी एवं मूगा का सर्वाधिक उत्पादन असम में होता है। 

  • भारत में सबसे अधिक शहतूत रेशम कीट (Bombyx mori) का पालन किया जाता है।

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मधुमक्खी पालन (Apiculture

  • मधुमक्खी पालन ‘शहद’ के उत्पादन हेतु किया जाता है। 

  • मधुमक्खी के परिवार में रानी (Queen)-1, नर (Drones)-10% एवं श्रमिक (Worker Bees) करीब 90% होते हैं। 

    • रानी मक्खी केवल अंडे देने का कार्य करती है। 

    • नर मक्खी का कार्य अंडों का निषेचन करना है। 

    • श्रमिक मक्खियाँनपुंसक होती हैं एवं ये ही नेक्टर इक्ट्ठा करने तथा परागकण का कार्य करती है। 

  • रानी मक्खी के शरीर से निकलअल्फा कीटोग्लूटैरिक अम्ल के प्रभाव से श्रमिक मक्खियाँ नपुंसक हो जाती है। 

मधु (Honey) = 82% शर्करा तथा 18% जल 

  • मधुमक्खी में प्राकृतिक अनिषेकजनन (अलैंगिक जनन का प्राकृतिक रूप) पाया जाता है। 

    • इसे ‘वर्जिन बर्थ’ के नाम से भी जाना जाता है। 

      • निषेचित अंडे से मादा मक्खी का विकास होता है

      • अनिषेचित अंडे से नर मक्खी का विकास होता है। 

    • मादा मक्खी, मादा श्रमिक मक्खी बन जाती है एवं अगर लार्वा को पर्याप्त पोषण दिया गया तो वो रानी मक्खी बन जाती है। 

  • मधुमक्खी की भाषा (Beedance) की खोज हेतु प्रो. कार्ल वॉन फ्रिश को नोबल पुरस्कार मिला था।

लाख कीट पालन (Lac Culture) 

  • लाख एक प्राकृतिक राल है, जो केरिया लेका कीट/लेसीफेरा लेक्का  कीट द्वारा पैदा की जाती है. 

    • यह मादा कीट के शरीर से लिक्विड के रूप में निकलती है और हवा के संपर्क में आने पर सख्त हो जाती है.

  • भारत में पाई जाने वाली प्रजातियाँ: लेसीफेरा एवं पैराटेकारडिना। 

  • भारत में दो प्रकार की लाख फसल होती है. 

    • कुसुमी लाखःकुसुम के पौधों पर का 

    • रंगीनी लाखःपलाश, बेर के पौधों पर

  • लाख उत्पादन की दृष्टि से विश्व में सर्वप्रथम – भारत 

    • भारत विश्व के 80% लाख का उत्पादन करता है।

  • भारतीय लाख अनुसंधान संस्थान (राँची) 1924 में स्थापित किया गया।

दूध से संबंधित तथ्य  

  • दूध एक कोलाइडल पदार्थ है

  • सफेद रंग  – केसीन प्रोटीन के कारण 

  • दूध का पीला रंगकैरोटिन (Carotene) के कारण

  • दूध में पाए जाने वाले अन्य प्रोटीनएलब्यूमिन एवं ग्लोब्यूलिन 

  • दूध में उपस्थित पोषक तत्त्व 

  • दूध में पाया जाने वाला मिठास  – लैक्टोज शर्करा के कारण 

  • दूध खट्टे के कारणलैक्टिक एसिड 

    • स्ट्रैप्टोकोकस लैक्टिस और कोलाई फार्म जीवाणु दूध के लैक्टोज को लैक्टिक अम्ल में  बदल देते हैं। 

  • दूध के प्रोटीन का किण्वनदही  का निर्माण 

    • बैसिलस सबटिलिस एवं स्यूडोमोनास फलुऑरेसेन्स जीवाणु 

  •  देसी घी की महक के कारण

    •  लैक्टोन्स, मिथाइल किटोन्स, डाइएसीटाइल एवं डाइमिथाइल सल्फाइड 

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दूध में मिलावट (Adulteration) का पता लगाने वाली परीक्षण विधियाँ 

  1. हंसा परीक्षण, प्रेसीपीटिन परीक्षण: 

  • गाय के दूध में भैंस, बकरी, भेंड़ आदि दूध की मिलावट का पता करने हेतु। 

  1. वैनेडियम (III): 

  • दूध में नाइट्रेट की उपस्थिति का पता लगाने हेतु 

  1. पिकरिक अम्ल परीक्षण: 

  • दूध में लैक्टोज का वर्णमति (रंग) परीक्षण किया

पाश्च्यु रीकरण (Pasteurization) 

  • 72°C तापमान पर 15 सेकेंड तक दूध को गर्म करने (पुनः 5°C तक ठंडा करने) पर उसके जीवाणु नष्ट हो जाते है एवं दूध के गुणों का ह्रास नहीं होता। यही ‘पाश्च्युरीकरण’ कहलाता है।

होम पाश्च्यु रीकरण (Home Pasteurization) 

  • यह 63°C तापमान पर 30 मिनट तक दूध को गर्म कर जीवाणुओं की नष्ट करने की प्रक्रिया है। 

निर्जीवीकरण (Sterilization) 

  • इसमें दूध को बंद कंटेनर में लगातार 15 मिनट के लिये 115°C तापमान पर या कम से कम 1 Sec के लिये 130°C पर गर्म करते है। 

  • इससे दूध के गुणों में कमी आ जाती है। 

  • प्रजनन के तुरन्त बाद प्राप्त दूध –  खीस (Colostrum) 

    • प्रतिजैविक (Antibiotic) गुण 

    • इसमें केसीन की अपेक्षा एलब्यूमिन एवं ग्लोब्यूलिन प्रोटीन अधिक मात्रा में पाए जाते हैं। 

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  • दुग्ध उत्पादों में सबसे अधिक वसा 

    • घी (सबसे ज्यादा 99.5%) >क्रीम > मक्खन > दही(सबसे कम) 

  • दुग्ध उत्पादों में सबसे अधिक प्रोटीनचीज़ (सर्वप्रमुख) तथा पनीर में पाया जाता है। 

  • दूध के खराब होने का कारणलैक्टोबैसीलस जीवाणु है। 

  • दुग्ध परिरक्षक (Milk Presersative): 

    • बेंजोइक अम्ल(Benzoic Acid)

    • फार्मलीन (Formalin)

    • सैलिसीलिक अम्ल (Salicylic Acid)

  • दूध स्रावण हेतु आवश्यक हार्मोनऑक्सीटोसिन

    • ऑक्सीटॉसिन एक हार्मोन है जो मस्तिष्क में अवस्थित पिट्यूटरी ग्रंथि(pituitary gland) से स्रावित होता है।

    • मनुष्य के व्यवहार पर पड़ने वाले प्रभाव के कारण ऑक्सीटॉसिन को लव हार्मोन (Love Harmone) के नाम से भी जाना जाता है।

    • ऑक्सीटॉसिन के इंजेक्शन का उपयोग आमतौर पर दूध देने वाले पशुओं से अतिरिक्त दूध प्राप्त करने के लिये किया जाता है। इसका इंजेक्शन लगा देने से पशु किसी भी समय दूध दे सकता है।

    • ऑक्सीटॉसिन का इस्तेमाल प्रसव पीड़ा शुरू करने और रक्तस्राव नियंत्रित करने के लिये किया जाता है।

  • दूध का हिमांक (Freezing point):– 0.53 एवं -0.56°C के बीच 

  • दूध से क्रीम निकालने की दो विधियाँ प्रचलित हैं

    • गुरुत्वाकर्षण विधि(gravity method)

    • अपकेंद्रीय विधि  (centrifugal method)

  • दुधारू पशुओं में दूध कूपिका (Alveoli) कोशिकाओं में बनता है। 

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फसल

रोग

कारक

धान

पत्ती का भूरा धब्बा 

(कवक द्वारा)

जीवाणु झुलसा

खैरा रोग

मिट्टी में जस्ते की कमी

गेंहू 

करनाल बन्ट

(कवक द्वारा)

सेहूँ 

(सूत्र कृमि द्वारा)

अनावृत कंडुआ

गेरुई (रतुआ) तथा झुलसा

बाजरा

अर्गट 

हरित बाली

मूंगफली

टिक्का या पर्णचित्ती रोग

तिल

फाइलोडी 

फाइटोप्लाज्मा जीवाणु 

अरहर

उकठा (विल्ट) 

कवक 

बांझ रोग

विषाणु 

पीला चित्रवर्ण या पीला मोजेक रोग 

सफेद मक्खी 

राई-सरसों 

सफेद गेरूई 

Fungus

एल्ब्यूगो कैंडिडा

Albugo candida  

  • कवक विज्ञान का जनक (Mycology)माइकेली को  

  • गेहूँ एवं विभिन्न फसलों जैसे ओट्स, बार्ली आदि हेतु बीजोपचार(seed treatment)  के रूप में विटावैक्स (Vitavax) का प्रयोग किया जाता है।

  • Pesticides(कीटनाशक)

  1. Herbicides (शाकनाशी)

  2. Insecticides (कीटनाशक)

  3. कवकनाशी( fungicide)

  • Carbendazim

  • जैविक कवकनाशी(organic fungicide) – प्लांट वैक्स (Plantvax) 

पशुओं के प्रमुख रोग

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रोग

कारक

प्रभावित पश/उपचार

खुरपका एवं मुँहपका (Foot and Mouth disease)

वायरस

सभी पालतू पशुओं में

 ( गाय, भैंस, ऊँट, बकरी सुअर आदि में), 

पोलीवेलेंट वैक्सीन कारगर।

पोंकनी 

(Pokani)

वायरस

गाय, भैंस, सुअर, भेड

थनौला 

(Mastifis)

जीवाणु

सभी पालतू पशुओं के थन प्रभावित

गिल्टी रोग 

(Anthrax)

जीवाणु

गाय, भैंस, भेड़, बकरी, घोडा

लँगड़ा बुखार 

(ब्लैक क्वार्टर)

जीवाणु

गाय एवं भैंस 

(प्रोकेन पेनिसिलीन प्रभावी)

सेप्रोलेग्रीया रोग

कवक

मछली में

गलराट (Gill-rot)

कवक

मछली में

अफारा रोग

(Tympany)

दूषित आहार

जुगाली करने वाले पशु

मिल्क फीवर

कैल्शियम कमी

गाय में

संक्रमण गर्भपात

(ब्रुसिल्लोसिस)

Brucellosis

जीवाणु 

गाय, भैंस, सुअर और बकरी

गलघोंटू (Hemorrhagic Septicemia)

जीवाणु

गाय, भैंस

पंख और पूँछ सड़न रोग 

जीवाणु

मछली

  • काउपॉक्स एक संक्रमणकारी बीमारी(contagious disease) है जो काउपॉक्स वायरस के कारण गाय जैसे जानवरों में होता है, परंतु स्वस्थ मनुष्य में संचारित होने के उपरांत यह स्मॉलपॉक्स के प्रति रोगप्रतिरोधक क्षमता(immunity) विकसित कर लेता है। 

विविध 

फेरोमोंस (Pheromones)

  • इन रसायनों का प्रयोग अंतर जातीय संचार हेतु किया जाता है। 

  • इन्हें इक्टो हार्मोन भी कहते हैं। 

  • इनकी सहायता से नर कीटों को आकर्षित कर उन्हें पकड़ने में मदद मिलती है।

  • भारत सरकार द्वारा प्रतिबंधित  कीटनाशक(insecticide) 

    • DDT – dichloro-diphenyl-trichloroethane

    • BHC – Benzene hexachloride 

    • Aldrin (एल्ड्रिन)

  • ऐजोला(Azolla) का उपयोग जैव उर्वरक(biofertilizer) के रूप में किया जाता है

    • जैव उर्वरकप्राकृतिक उर्वरक हैं

कृषि में हरी खाद (green manure) 

  • हरी खाद एक  सहायक फसल को कहते हैं जिसकी खेती मुख्यत: भूमि में पोषक तत्त्वों को बढ़ाने तथा उसमें जैविक पदाथों की पूर्ति करने के उद्देश्य से की जाती है। 

उदाहरण – हरी खाद के लिए दलहनी फसलों में सनैइ (सनहेम्प), ढैंचा, लोबिया, उड़द, मूंग, ग्वार आदि

  • पर्णीय छिड़काव(Foliar plant spray) हेतु सबसे प्रचलित उर्वरक यूरिया है। 

  •  जिप्सम का प्रयोग क्षारीय मृदा को सुधारने में होता है। 

  • भारतीय मृदाओं में जस्ता तत्व की सर्वाधिक कमी होती है। 

  • मणिपुर के लोकटक झील में फँडी (Phumdi) नामक तैरती ठोस भूमि पायी जाती है। 

  • भारत में अवनालिका अपरदन से सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्रचंबल घाटी (मध्य प्रदेश) है। 

  • पाइराइटस(pyrites) को झूठा सोना कहा जाता है। 

  • सूरजमुखी का तेलहृदय रोगियों के लिये लाभकारी होता है।

  • बहुभ्रूणीयता (Polyembryony) जामुन, आम तथा सिट्रस फलों मे पायी जाती है। 

  • आम एवं केला क्लाइमेटिक (Climatic) फलों का जोड़ा कहलाते हैं। 

  • गोबर गैस का प्रमुख दहनशील गैस मीथेन लगभग 50-60 प्रतिशत होता है। 

  • दलहनी फसल जो वायुमंडल के नाइट्रोजन का स्थिरीकरण नहीं करती। 

    • फ्रेंचबीन,राजमा

  • पौधों पर कीटनाशकों का हानिकारक प्रभाव उनमें उपस्थित एंजाइम के कारण नहीं पड़ता है।

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