बिरहोर
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  • बिरहोर जनजाति (Birhor Tribe) का भाषा –  बिरहारी 
  • प्रजातीय समूह –  प्रोटो ऑस्ट्रेलायड 
  • भाषायी समूह – ऑस्ट्रो एशियाटिक 
  • नोट : (बिरहोर का अर्थ – जंगल का आदमी
  • यह जनजाति स्वयं को सूर्यवंशी मानती है।
  • यह जनजाति मूलत: झारखण्ड राज्य में ही पायी जाती है। 
  • बिरहोर शब्द (मुण्डारी भाषा से उत्पन्न ) का शाब्दिक अर्थ –  ‘जंगल का आदमी
  • परिवार –  पितृसत्तात्मक 
  • इनके बस्ती को टंडा कहा जाता है।
  • इनकी झोपड़ी को कुम्बा/कुरहर कहा जाता है।
    • बड़ी झोपड़ी – ‘ओड़ा कुम्बा‘ 
    • छोटी झोपड़ी ‘चू कुम्बा‘ 
  • गोत्र की संख्या – 13 
  • युवागृह को ‘गितिजोरी, गत्योरा या गितिओड़ा‘ कहा जाता है।
    •  ‘डोंडा कांठा‘ – लड़कों के गितिओड़ा 
    • डीडी कुंडी‘  – लड़कियों के गितिओड़ा 
  • 10 प्रकार के विवाहों का प्रचलन है।
    • सदर बापला‘ – क्रय विवाह 
    • सेवा विवाह – ‘किरिंग जवाई बापला’, 
    • पलायन विवाह – ‘उदरा-उदरी बापला’
    • विनिमय विवाह – ‘गुआ बापला‘, 
    • हठ विवाह – ‘बोलो बापला’ 
    • विधवा विवाह – ‘सांगा बापला’ 
  • त्योहार – करमा, सोहराई, नवाजोम, जीतिया, दलई आदि 
  • नृत्य-  डांग, लागरी तथा मुतकर आदि
  • प्रमुख वाद्ययंत्र 
    • तुमदा (मांदर या ढोल) 
    • तमक (नगाड़ा) 
    • तिरियों (बांस की बांसुरी) 
  • प्रमुख पेशा –  लकड़ी काटना, शिकार करना एवं खाद्य संग्रहण 
  • बिरहोर जनजाति घूमन्तू जीवन व्यतीत करते हैं।
    • घूमन्तू जीवन जीने वाले बिरहोर –  उलथू या भुलियास कहा जाता है।
    • स्थायी जीवन जीने वाले बिरहोरों – जांघी या थानिया कहा जाता है।
  • इनकी भूमि को तीन प्रकारों में विभाजित किया जाता है।
    • नीची भूमि – ‘बेरा‘, कहा जाता है
    • बीच की भूमि – ‘बाद‘ कहा जाता है।
    • उच्च भूमि – ‘गोड़ा‘ कहा जाता है।
  • भूमि सामुदायिक संपत्ति है जिसे बेचना निषिद्ध होता है।
  • बिरहोर जनजाति के लोग पीतल, तांबे व कांसे के कार्य में दक्ष होते हैं।
  • प्रमुख देवता 
    • सिंगबोंगा, ओरा बोंगा, कांदो बोंगा, होपरोम बोंगा, टण्डा बोंगा ,देवी माई 
  • इनके धार्मिक प्रधान को ‘नाये’ कहते हैं।