उइड़ गेलक फुलवा रहइ गइल बास संस्मरण Uid Gelak Phulwa Rahi Gayle Bass sansmaran Khortha

 उइड़ गेलक फुलवा रहइ गइल बास  संस्मरण 

Uid Gelak Phulwa Rahi Gayle Bass sansmaran Khortha

khortha (खोरठा ) For JSSC JPSC 

KHORTHA (खोरठा ) PAPER-2 FOR JSSC

 साहित्य की अन्य विद्याएँ: संस्मरण 
KHORTHA FOR JSSC JPSC

गोबिन्द महतो, ‘जंगली’

  • जनमथान – चेटर(रामगढ़)

  • ‘जंगली’ जी के पहिल पढ़ा-लिखा जनमथान्हीं भेल हलइ परें रामगढ़ से 1962 में मेटरिक पास कइर हजारीबाग कॉलेज से सनातक भेला तकर पर राँची विस्वविदिआलय से एम. ए. हिन्दी से करला। सुखेले शिक्खा परेमी रहेक चलते फइर कानून की डिग्री लेला। एखन हजारीबाग कचहरी जंगली जी ओकिलाती कर-हथ

  • जंगली जी एगो बेस चेठगर चनफनियाँ आर रइसका लोका खोरठा भासा के बाटें इनखर अजगूत टान। मातरीभासा खोरठा आर झारखंडेक संसकिरती के अनुरागी जंगली जी एगो समाज सेवियो लोक रहथ। आपन पंचायत के मुखिया बइन के आपन जनमथान के सेवा कइर रहल हथा खोरठा भासा के पतरिका ‘तीतकी’ के पुनर्परकासने इनखर बेस जोगदान। कोठारें खोरठा ऑफीस खोइल के ई बेस नाँव कमवलथा –

  • ई रचवनें हिन्दी के उपन्यासकार राधाकृष्ण जी के मुलकाइत (संस्मर ।) लिखल हथ –

उइड़ गेलक फुलवा रइह गेलक बास

  • राधाकृष्ण बाबू नाञ बुझाहत कि मोरल हथा एखन्हूँ कहियो-कहियो जखन ओकर ‘वार्ता’ वा आलाठन (व्यंग) वार्ता राँची आकासवानी से सुनही तो बुइ , हे अदमिया नाज मोरल हथ आर धाइरें बइसल हथ आर हम देखे लागल हियन। राधाकृष्ण बाबुक छाप जिनगियो नाज मलिन भेतका बराबइरे हमर मने दग-दग इंजोरिया नियर रहत।

  • जखन हम रामगढ़ हाई इसकुल के पढ़वइया रहों तखनो(1961-62) से नजिता कहनी साहितिक जिनिस गुलइन पढ़े में बड़ी मन लाग-हले। मेटरिक कितपवइनें नदी सहितें लेखक, कबि सभे के जिनगिक बखानो के हम मन लगाइ के पढ़-हलों आर मने सोच हलों कि तनि लिखवइया सब के भेंट हो जइतलका मनें कुरच-हलों कि कहाँ जाइके ई विदवान सबके भेंट होतक! ई बतवा रहइ-रहइ के तड़पाव-हलका आहे मेटरिक के सहितवे ‘रामलीला’ नावें कहनिये राधाकृष्ण बाबुक जिनगिक अता पता मिललका हमर मन तो कुहइक उठल कि हमर घरेक धाइरे राँची के रहवइया ई लागथ।

  • एहे माटिक जमल, बाढ़ल फइर संपादक साहितकार लगथ तो कइसे इनखर से भेंट करब? पुछते-गछते टावान करते ‘आदिवासी’ पतरिका के पता लगाइके मंगवे खातिर बछर पुरउती बिहारीओ पठाइ देलिये! तखनी से आदिवासी पढ़े लागलों आर संपादक राधाकृष्ण जी के रचनवइन से परिचित हवे लागलों।

  • 1962 में मेटरिक पास कइर ‘एगो मेरा हे यही कलाम’ हिन्दी कविता आदिवासी में छपेले राधाकृष्ण बाबु के पठाइ देलिये। कुछ दिनेक परें आदिवासी आपन छपल कबिता पइढ़ के हम बड़ी खुसी भेलों। मुदा उनखर से मुलाकाइत करेक साध टा रहिये गेलका

  • आखिर-हाजारीबाग कॉलेजे पढ़ेक बछरे राधाकृष्ण जोकि लिखल उपनियास रूपान्तर किन के पढ़े लागलों। पढ़ल परें हमर तो उनखर से भेंट करे खातिर मने आरो हुचुक उइठ गेल। एकदिन एतवार के राँची आये गेलों। बाजारे खोजाइर-पुछाइर करइतें इनखर डेरा खोजिये लेलो। हमतो छउवा रहों तनी मने खुटखुटियों रहे कि एते बड़ आदमी हामर भेंट होतक कि नाञा एहे भाइभ-गुइन के साहस धइर आखिर उनखर ‘बइठकीखाना’ ढुइक गेलों आर उनखर लोक के खभइर दइ देलिये कि हम उनखर से भेट तनी करबा

  • आखिर खुटखुटी मेंट गेल! हमर डाके राधाकृष्ण जी अइला आर पुछे लागला-कहाँ आइल हे छउवा? ओहो बइसके हमर जबाब सुनला –

“हमर बड़ी मने साध रहे कि हम तहर से भेंट करब से हेले हम रामगढ़ ले हियाँ पहुँचल हो। तोहर लिखल ‘रूपान्तर के हमर मने ई हुचुक उठला आइज तोहर से दरसन कइर हमर साध मेट गेलका” “सुइन के ऊ बड़ी खुसी भेला आर पुछला तोहिन के रूपान्तर के पढ़ाव हथुन? हम कहलियन कि प्रो. आर.एस. राय। फइर पुछला कितपवा के कोन ठाँव कइसन लागलो। हियांक माटिक गमक, सोंध-सोंध हवा, पानी टिटिहिंग आर डाहुक चेरइ के बखान बड़ी बेस लाग-लका फइर ऊ पुछला तोञ पहिले कि सोच-हलें कि लेखक ढाढ़ी बढ़ाइके साधु नियर होता। हम कहलिअइन कि नाइँ हम सोचल हलों कि लेखक जरूरे बुढ़ा होता। खादी के कुरता, धोती पिंधइत होता। वइसने अबिकल तो हम तोहरां देखलियो। हमर जबाब सुइन के ऊ तनी मुसइक देला आर कुछ देरी तक चुपे रहला। तकर पर चाह-पानी मंगवला। पियल परें जखन रामगढ़ के हरहरि पाठक, कैथा के जोगीदा महतो, गोला के चुनी बाबु आर महेश गोलवार के हाल-चाल पुछला तो हम अड़गुड़ भइ गेलों के राधाकृष्ण बाबु हमर गाँव धाइरेक ई गइन-माइन लोकवइन के कइसे जान-हथी? हमर मनेक सवाल टा ऊ भाइप लेला तो आपने कहे लागला – 1942 बछरेक रामगढ़ कांग्रेस सम्मेलनेक कथा फेइर – “तखन हम रामगढ़े ढेइर दिन तक रहल हलों सई संवई ऊ आस-पासेक खाइतें बड़ी सोवाद लागल हले।”

  • उनखर नेतागिरिक बयान सुइन के हम्हुँ बीर्चे टोइक देलियन – “कखनु, कखनु हमरहूँ लीडरी करेक साध लागेहे आर मुखिया, प्रमुख, एम. एल. बनेक मन हे।” तखन ऊ कहला – बाबू, बनबें तो गरीब आर मेहनइत करवइया लोकवइन के भलाये करिहें। उनखर ई बात एखन्हूँ हमर मने हे आर संजोगे एखन हम आपन पंचायत के मुखियों बनल हों।

  • आखिर सवंये उनखरां लकवा माइर देलइन । तखन ई माटिक एगो मजगूत खुंटा हिल गेल। हमर मने एगो साध रइह गेल कि उनखरा आपन घर एक धां डाकाइके छिलका रोटी खिआवब मुदा ता तकले राधाकृष्ण बागु सिराई गेला ई झारखंडेक माटी ले जनमल बाढ़ल धमके वाला फुल उइड़ गेला, मगूर ई माटी ऊ फुलवाक बास रइह गेल एखनु तक साहितेक छेतरें हमरा रूचि देइख ऊ कहल हला-“हियाँ (झारखंडेक) नदी-नाला, बोन, पीहार-परवत, झरना, दह-घाघ हेन-तेन परकिरती के बिसयें लिखा हियांक संसकिरतीक संबंधे कलपेक माधइमें जगाव, ई माटिक गरीब आदिवासी लोकवइन के उठाव, जगाव। उनखरां हियांक अदमिक सोसन के देइख नाइँ सोहा हलही ऊ गरीब, आदिवासी, हरिजन, मेहनइत करे वाला आदमी सब ले बड़ी परेम कर-हलय आर ई सबके जागवे खातिर राइत-दिन लाइग परल हलथा हाँ ऊ राँची रेडियो से खुस नाइँ रहथा हुवाँक अफसर साही, मछरी-मुरगा हेन-तेन घूस के मन से घिरना कर-हला। एतना बात हमर सवाल के सल्हा रूपें देल हला कि राँची रेडियो ले हामिन आपन कविता नाटक, कहनी हेन-तेन कइसें परसारन करवावब?

  • आइज तो राधाकृष्ण बाबू नखत मकीन कर तु-कखनु रइह के उनखर बतवल बात एखनो हमर मने परते रहई।

उइड गेलक फूलवा रइह गेलक बास 

  • उइड़ गेलक फुलवा रहइ गइल बास के लेखक गोविंद महतो जंगली है,

  • यह संस्मरण आदिवासी पत्रिका के संपादक राधाकृष्ण के जीवन से सम्बंधित है  

  • यह संस्मरण खोरठा भाषा का पहला संस्मरण है 

  • लेखक गोविंद महतो जंगली राधाकृष्ण से मिलने के लिए रामगढ़ से रांची गए थे

  • यह 1986 ईस्वी के आसपास लिखा गया है

  • राधाकृष्ण की कृतियाँ – रामलीला कहानी, रूपांतर उपन्यास, आदिवासी पत्रिका का संपादन (मेरा यही है कलाम कविता छपा )

  • 1986 ईस्वी में राधाकृष्ण का शरीर लकवा ग्रस्त हो गया। 

Q . ‘उइड गेलक फूलवा रइह गेलक बास’ केकर लिखल लागे ? गोविन्द महतो ‘जंगली’ 

Q .’उइड गेलक फूलवा रइह गेलक बास’ कइसन रचना लागे ? संस्मरण

Q .उइड गेलक फूलवा रइह गेलक बास पाठें केकर संस्मरण लिखल ? राधा कृष्ण

Q . राधाकृश्ण कोन रहथ?आदिवासी पतरिकाक संपादक 

Q . लेखक मेटरिक कलासेक किताबें राधाकृश्ण कर कोन कहनी पढ़ल रहथ? राम लीला

Q . कॉलेजें पढ़इत पहर राधाकृश्ण कर कोंन किताब (उपन्यास) कोर्स में पढ़ल रहथ? 

रूपान्तर 

Q . लेखक कर कोन कविता आदिवासी पत्रिका में छपल रहे ? मेरा है यही कलाम 

Q . राधाकृश्ण रामगढ़े काँग्रेस सम्मेलनेक प्रचार पहर महतो घारे की खाइल रहथ? छिलका रोटी

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