Sohan Lage Re (सोहान लागे रे – शांति भारत, चौफांद, बोकारो)

 सोहान लागे रे – शांति भारत, चौफांद, बोकारो

भावार्थ 👍

इस गीत में गीतकार ने झारखंड की प्रकृति और संस्कृति का बड़ा ही मनमोहक चित्रण किया है।  कवि और गीतकार शांति भारत कहते हैं इस धरती का आंचल कितना सुंदर और सुहाना लग रहा है।  हरे-भरे जंगल झारखंड की शोभा है।  जंगल झाड़ में तरह-तरह के पशु पक्षियों की बोली गीत संगीत की तरह वातावरण में गूंज रहे हैं।  गांव घर आंगन अखड़ा आदि में तरह-तरह के गीत गूंजते रहते हैं।  सभी जगह जिंदगी की खुशियां नजर आती है।  खुशी के और खुशी से मांदर बजते हैं।  यह धरती सुहानी लगती है।  सरहुल, बहा परब में संगीत सूर मानो रिमझिम बरसात की तरह बरस्कर संपूर्ण झारखंड की धरती को आनंदित कर देती है।  झारखंड के नर नारियों का उल्लास चरम पर होता है।  प्रकृति/धरती रूपी युवती  मानो अपने खोंपा /जुड़ा में साल  का फूल खोस  कर सोलह सिंगार रूप को निखार रही है।  इस समय झारखंडी युवतीया  भी सरहुल फूल अपने खोंपा /जुड़ा में में खोस कर अपने रूप पर इतराती है।  अखड़ा में नित नूतन भावनाओं के अंकुर फूट कर नाना भाव रस के गीत बनते रहते हैं।  गीतों में मधुर प्रीत की धारा फूटती  रहती है और आधी रात को जब मीठी आवाज में कोयल कुकती है, तो रसिक की  भावनाएं जाग जाती है।  इस प्रकार झारखंड की अद्भुत धरती, प्राकृतिक घटा की सुंदरता, संस्कृति की समृद्धि, सदैव सुहानी लगती है और मनमोहक लगती है। 

 

सोहन लागे रे… सोहान लागे रे

धरती केर अँचरा सोहान लागे रे

सोहान लागे रे….!

 

हरियर बोन सोभे, झरे कहीं झरना

झार बोनें गीत गुंजे, गुँजे घर के अँगना

गाछें-पातें जिनगी हाँसे, माँदइर बाजे रे -2

धरती केर अँचरा सोहान लागे रे….!

 

सरगम बरसे सोलहो सिंगारे

रिमझिम रस चुवइ बागे – बहारें

खोपें खोंसल सरइ फूल रूप साजे रे -2

धरती केर अँचरा सेहान लागे रे….!

 

अखरें आँकुर फुटी गीत बइन जाहे

बोली फुइट मधुर-मधुर पिरित बइन जाहे

आधा रातीं कोयल कूके रसिक जागे रे-2

 

धरती केर अँचरा सोहान लागे रे

सेहान लागे रे…. सेहान लागे रे

धरती के अँचरा सोहान लागे रे-2

 

Q. सोहान लागे रे  के लिखबइया के लागथीन  ? शांति भारत, 

Q.शांति भारत के जन्मथान हकय   ? चौफांद, बोकारो

 

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