7. साँझे हाँसइ झींगा फूल- महेन्द्र नाथ गोस्वामी
भावार्थ 👍
भादो के महीने की खूबसूरती देखने लायक होती है। इस महीने में बादल गरजते हैं, मोर नाचते हैं, चारों तरफ की धरती बिल्कुल हरा भरा होता है। नदियां में जलस्तर उच्चतम स्तर तक भरा होता है। ऐसे ही समय में कर्म पर्व का अखरा, गीत संगीत नृत्य से गूंज रहा होता है। सांझ की बेला में झींगा फूल खिलकर मुस्कुराने लगता है। झारखंडी कन्याएं इस समय कर्म पर्व के उल्लास से हर्षोलित हो उठती है। उनकी कंठो से पर्व के अनुसार गीत निकलने लगते हैं। वह अपनी सिर के खोंपा में झींगा फूल खोस लेती है और पूरे रिज के साथ मग्न होकर आनंदित होकर गीतों को गाते हुए नृत्य करती है। विवाहित बालाएं जिनके पति रोजगार के लिए प्रदेश गए हुए हैं तड़प कर रह जाती है, कर्म पर्व का आनंद नहीं उठा पाने की दुख से व्याकुल हो जाती है। मन में अजीब हलचल होने लगता है।
गरजइ बदरवा, नाचइ मेंजुरवा, भादर मासें!
हाय रे, भादर मासें!
नदिया उमड़इ दुइयो कूल रे, भादर मासें ।
साजइ अखरवा, बाजइ माँदरवा भादर मासें!
हाय रे, भादर मासें!
साँझें हाँसइ झींगा फूल रे! भादर मासें!
गाँथ-बइ फूलवा, खोंसबइ खोंपवाय , भादर मासें!
हाय रे, भादर मासें!
रीझें हिया बेयाकुल रे, भादर मासें!
पिया परदेसवा, कुहकय करेजवा, भादर मासें!
हाय रे, भादर मासें!
जीयें होवइ हुलुसथुल रे! भादर मासें!
Q. साँझे हॉसइ झीगा फूल के लिखबइया के लागथीन ? महेन्द्र नाथ गोस्वामी
Q. महेन्द्र नाथ गोस्वामी के जन्मथान हकय ?