राज बईद सर्ग RAJ VAIDH SARG Damuderak Koran Shivnath Pramanik FOR JSSC JPSC

 राज बईद सर्ग RAJ VAIDH SARG Damuderak Koran  Shivnath Pramanik FOR JSSC JPSC 

Damuderak Koran  Shivnath Pramanik FOR JSSC JPSC

दामुदेरक कोराञ्  शिवनाथ प्रमाणिक

khortha (खोरठा ) For JSSC JPSC 
KHORTHA (खोरठा ) PAPER-2 FOR JSSC

राज बईद सर्ग ,दामुदेरक कोराञ्

दामुदर नदी की गोद में 

अध्याय -3 : राज बइद

  • धुमा नामक राजवैद्य है। 

  • धुमा कमलकेतु का इलाज करता है किंतु वह स्वस्थ नहीं हो पा रहा है ,क्यूंकि सरंची का प्यार का बुखार है । 

  • धुमा कमल और सरंची कमल को मिलाने का जुगाड़ करता है। 

  • कमलकेतु स्वस्थ होने के बाद आदिवासी गांव में जाकर रहने लगता है 

  • घुमा राजवैद्य भी वहां चला जाता है। कमलकेतु, धुमा वैद्य और सरंची तीनों मिलकर जनजागरूकता आंदोलन चलाते हैं। आदिवासियों को पढ़ाते हैं। जंगल काटने वालों को सजा देते हैं। 

  • इधर कालकेतु को जब पता चलता है तो वह आग बबूला हो जाता है और धुमा वैद्य को डांटता फटकारता है। धुमा गुस्साता है ओर कालकेतु को शाप देता कि उसका राजपाट समाप्त हो जाएगा है।

  • इस अध्याय में मूसा और बंदर का बात वर्णन किया गया है 

    • मूसा – बाहरी लोगों को (दिकू )

    • बंदर – स्थानीय जंगल में रहने वाले आदिवासियों को 


राजबइद


झार-बोने मुसा आइल 

काटे लागल गाछेक जइर। 

खरइ-खरिहाने परइच गेल

जमा करे लइर-धइर।। 


कचकचाइ देथ गादर फर, डग-कोंढ़ी टुइंग जाथ । 

बनज-खनिज धोंकरी भोइर, आपन घर लेले जाथ ||


भुइयें भूर करल मुसा 

सोना-हीराक जेठीन ढेर। 

मोट भुंइस धराइल नाँव

घुराइ देल आपन मेर।। 


मुसा-मुँइस-छुछुवाक लइकें, बनला मुँइ कोड़वइया |

 हेरले रहला बोनेक बांदर, कुरचे दल फोरवइया ।।

छउवा-पुता चेंगइर बाढ़ल 

करल आपन दाँतेक जोर। 

जंगल काइट महल करल

बाँदर रहला गाछेक जोर। 


पोडलमुँहा, बोनमानुस, ललमुँहा, लुखु, गेमनगेठा । 

बोनेक बाँदर बारऽ बेगइत, तेरऽ चुल्हाक चेठा।।


केउ रहे आम गाठे 

केउ जामुनेक डारी। 

भेलवा पाकल केउ खाइ 

केउ केंद-पियारी ।।


मोट भुंइस ढुइक गेल, माटिक भीतर। 

डोआँहथ सुखल टाँडडे, बोनेक बाँदर ।।


बोनेक बासी दबइर गेला 

भुंइसेक दाँतेक डरें। 

तकर ले आर बेसी डर

सहियाक डांगेक जोरें।। 


बोनेक बासी सुगुम सिसकथ,  आपन करम गुनें । 

रोटी-बेटी-माटी लुटाइल, दोस ककर मुड़ें ?


दरदरिया कखनु नाभान 

कखनु सरग तरी उठान। 

जिनगिक डहरें मगध-कुल

कालकेतुक बिहान ।। 


सरगतवे, संगरवे लागल, खंगटल राइज कालकेतु । 

चुसे लागल बोनेक रस, रइखा करे कमलकेतु ।।


कमलकेतुक डरें बिहार 

बौद्ध-संन्यासिन से खाली भेल ।

 पोंगापंथी बाभन

झार-बोनें नुकाइ गेल ।। 


धरल-काँड़-धनुक, बलम, बोनेक रइखा बनावल धरम | 

बोने-बोने घुइर बुलइ, कमलकेतुक एहे करम ||


गढ़ेक राजा कालकेतू

जब सुनले कमलेक करम । 

रागें ओकर घाम चुवे

अन्तर भइ गेल गरम ।। 


सीतल एक टिपका पानी पाइ, उफान दुधेक लागे सरम | 

आदमखोर मरल सुइन, राजा भइ गेल तनी नरम ।।


नाँव जइजका राजबइद 

अंकसरें ओकर बास।

 “धुमा” नावें जगत जानइ

जइर-मोवाइर जेकर चास || 


लता-पाता गाछेक छाल, परीखा करे जाने बइद | 

चिरककाल बाँचे खातिर, धुमाक-धोकरी एहे गइद ||


कहाँ ले आइल धुमा 

केउ नाञ जाने आता-पाता। 

भेउ ओकर केउ नाय  जाने

असुकेक संग नाता-गोता ।। 


सइ बुजरुग धुमा बइद, आइल राजाक बेटाक सेवाय । 

जरी-बूटी ओसध-पानी, कमलकेतू फरहरे खावाज ||


राजबइदेक बइदाली 

गातेक घाव चोखाइ लागल। 

बनसुंदरिक नयन-बानेक

मनेक घाव खेंचराइ लागल || 


मास दिनेक परहुँ जखन, खाटी नाज छोड़े केतू । 

भाइब गेल धुमा बइद, “हामर काल, कालकेंतू ।।

राइत बीतावे केतुक कुबे

धरेले असुकेक भेउ। 

जब जानल पिरीतिक रोग

धुमाक टुटल मनेक फेउ ।। 


जरी-बुटिक गाँइठ-मोट, लइ चढ़ल घोड़ाक उपरे ।। 

मइध आँधारे बाहराइल बइद, चलल गोरिआटिक धाइरें ।।


पयान करल बसिआ पहुचल 

धुमा महुवाक बोने । 

सरंचिक घर पुछे लागल

पुछाइर करे जने जने ।। 


सरंचिक जखन देइख लेल, बुजरुग राजबइद धुमें । 

आरना काड़ा अंगने खुंटाइल, पीठ ठोंके आर चुमे ।।


जगत जखन सुइत गेल 

पहर राइत भेल परे। 

सरंचिक तखन गप उठे

बइदेक संग आपन घरें।।


 “कामकेतू राजाक बेटा, सोनाक खाँचान रूपु । 

आमकुंजेक कारी कोइल, देख हमर ले कइसे बापू ?


कोठिक उपर कोठी 

अंकसरे ओकर महल। 

गाजार-बोन महुवारें

कुंबा हमर ढहल || 


जाइत ऊँचा, पाँइत ऊँचा, धरम ओकर ऊँचा । 

महल ओकर बनल ऊँचा, घटवाहा नीचा राजा ऊँचा ।।


हदरे नाज कहिहक हरनठके

ने तऽ, हलुवा हारान हबथुन । 

हदकल आइग हरे-हरें

हदहदिया पानी निझइबथुन ।। 


धइन-धइन राजबइद ! गदगदाइ गेल हमर मन | 

हमर खभइर कमल के दिहक, बेस हवे ओकर तन-मन ।।


पहुँचाइ दिहा हमर नेहोर 

बोनेक संगी घरे नाञ। 

खामखयाली बातचीत

होड़ेक संगी दिकु नाञ ।।


” नारिक जखन चोइज आवे, रागरोस फुराइ जाइ । 

राग जखन आवे नारिक, चोइज-कोऽड़ सिराइ जाइ।।


एहे कहइतें आदिवासी-बालाक 

बोहे लागल आँखिक लोर। 

बंद भेल बकिता सरंचिक

हाथ जोइर करली नेहोर ।। 


जइसन ढरके सरंचिक लोर, बइदेक उठे ढेवेक जोर। 

अड़गुड़ भेल सुइन राजबइद, बोहे लागल निजेक लोर ।।


“एक कोरी गंडा ले बेसी 

असुकेक औसध हमर धोकरी। 

पिरीत रोगेक ओसध नात्र

धुमा राजबइदेक धोकरी ।।

” लोक देखाइ ओसध देल, बाघेक नोखरल घावें । 

मुँह अंधरे गोड़ उठावल, बइद नाज सरंचिक गाँवे ।।


दुलुक-दुलुक दुलकी चाइलें

घोड़ा चले जोरियाक धाइरें। 

राजबइदेक माथा चकराइल

लहबागिक पहार थाइरें ।। 


बिहान बेराञ राजदरवारें, राजबदेक डाक भेल | 

भाटेक संगे-संगे धुमा, कालकेतुक नजीके चँहइट गेल ||


भटियाली रागे भाट सब

बकिता आपन बके लागला 

नावाँ-नावाँ गीत गाइ

कालकेतुक फूलवे लग्नाला || 


जोहारी गीत खतम भेल, बुइधलग सब आसन लेला । 

राजबइद कान पाइत, राजाक हुकुम सुने लागला ||


“मास दिनेक परहुँ जोदि 

कमल निफुट हवे नाञ। 

राजबइद धुमा खातिर

हमर राइजें ठाँव नाञ ।। 


राजाक हुकुम माथान, पाइत लेल राजबइद धुमा । 

निफुट हवेक जहर जाइन, ढुकल से केतुक कुंबा ।।


सरंचिक खोपाक बेली फूल 

बइद, दइ देल केतुक हाथें।

 ‘ओसध’ पाइ राजाक बेटा

खभइर पुछल गतें-गतें।। 


जबाब कमल लिखे लागल, खुइनेक कारी बनाइके। 

भोज पातें उखरवे लागल, निरबंध-छंद बनाइकें।।


“परानइखी सरंची बाला

गुचल हमर गातेक जाला। 

मेंतुक, पेंचा ले गुचल नाञ

बनचंडिक फुलेक माला || 


सोनाक खाँचात्र रूपु रहे, मेंतुक खाँचा ‘खाँचा’ लाइ । 

आम कुजेक कोकिल ठिन, मन हमर उड़ल जाइ ।।


अंकसरेक महल नुनी 

से तऽ हमर बापेक घर। 

राजाक बेटा सचे हामे

(मेंतुक) हमर खातिर कुंबाक घर || 


जाइत ऊँचा न पाँइत ऊँचा, ऊँचा हवे बिचार | 

मानुस-मानुस ले भेद नाञ, मानुसे हमर स्वीकार ।।


कालकेतू हमर बाप 

काल अइसन उनखर करम |

 गेरुवाधारी पोगापंथी

बिगाइड़ देला उनखर धरम || 


बुइधलग के कहल नाञ माने, से बाप के छोइड़ देलों । 

सोझ डहरें डहरवे खातिर, काँटाक डहर हम अपनउलों ।।


जे हमर बनज-खनिज लुटे 

सेहे हियाँक दिकू। 

रोटी-माटी छीनेवाला

ओहे डाकू-दिकू ।। 


बन, संस्कीरति आर बनबासिक, जोगवे आर जगवे ले | 

हमर संग दे बीरबाला तोञ, धइर ले काँड ! दिकुक भगवे ले ।।


बन हमर मात्र बाप

बनबासी हमर मीतर। 

बोनेक रइखा जनेक रइखा

हम बनबासिक भीतर ।। 


हे बनबाला ! सुन हामर बात, मन जइसन, वइसन सफा गात । 

मनेक भरम मेइट ले देबी, नेहोरइया कमल पात ।।”


भोजपात के काँडे खोइस 

बइदराजेक हाथे देल। 

धुमा बइदेक मुड़ तखन

तनी-तनी हलुक भेल ।। 


“चोठी चार नाञ हवे,” मुसइक देल राजबइद |

 “परब हम तो ‘कालेक’ कइदें, आर नाज तो कमलेक कइद ।।


लउतन रीत नावाँ पिरीत 

कमलकेतू लागल जोरे। 

लउतन गीत नावा मीत

लउतन धरम लागल गरहे ।। 


करम करले कि नाज हवे, करम से ही पथल टुटे । 

करम लाइ मानुसेक धरम, धरम से ही असुक छुटे ।।


किरिया खाइ चलल बइद 

हेठमुड़े करमेक डहरें। 

काँड़े गोंथल चिठी लइ

चले आनंदेक लहरे।। 


राजबइद देखा देल, सरंचिक दुवाइरें।

कमलकेतुक पयान सुइन, कुरचे मनेक भीतरें ।।


धुमा बइद बतावे लागल 

कमलकेतुक नीति। 

सुगुम बइद सुने सरंची

मुदा, आरो सुनेक आकुति ।। 


महल छोइड़ कुंबे रहे, कमलकेतू राजाक बेटा । 

राज रहइतें भीख माँगे, बनबासिक धरमी बेटा । ।


बापें बेटाञ बनत नाज

आपन-आपन बिचारें। 

भिनु भिनु डहर खोजला

बेस-मंदेक आचारें ।। 


सीत भेल रूपेक पिरीत, गुनेक पिरीत समुदर । 

अनीतिक पिरीत भंगइट जाइ, नीतिक पिरीत अखइ-अमर ।।


जियें तावों खटक रहल 

बनबासिक बीर बेटी।

 “सर्वइ अइलें परीखा करब

आयाँ हम घटवाहाक बेटी ।। 


घेचाक बेली फूलेक माला, आपन काँडे गोंइथके।

घुमा बैद्य हाथे देली , बीर ले नाता जोईरके।। 


बिधुर राजाक बेटा कमल 

गढ़-महल छोइड़ के। 

नदिक धारी बास करे

एगो टोल खोइल के।। 


बनबासिक छउवा-चेंगइर, पढ़ावे लागल केतुञ । 

बुइधलग बनावे लागल, आपन टोलें केतुञ ||


महुवा बोनेक छउवा-चेंगइर 

लेले आवइ सरंचि । 

दिन-भइर पढ़इ-लिखइ

घर घुइर जाइ रातिज ।। 


जनी-मरद के सेना बनावल, बोनेक गाछ राखे खातिर। 

हेजामोरा-चेठाहाराक, हुबगर चनफनियाँ बनावे खातिर ।।


निपटकाना झलफलाइ लागल 

पढ़ा-लिखाक गुने। 

जेहरा-सरना संस्कीरतिक

जोगावे लागल आपने।। 


बनबासिक छउवा-पुता, पढ़ाक गुन जाइन गेला | 

करमें-करमें आदिवासी, कमलके नाँव जगाइ देला ।।


राजबइदेक जिनगिक डहर 

मोहइड गेल आपने। 

राजगढ़ छोइड़-छाइड़

सोझाइल बनबासिक बोहोने ।। 


राजबइद सिखावे लागल, लत-पातेक चोंकाक गुन । 

बोनेक बासी बने बलगर, लगाइ देला कि असुक चून ।।


करिया, चरक, ललुहन, लील 

पियर, हरिहर पात आइन । 

जइर-मोवाइंर पीस घुइस

आदिबासिक दइ दे आपन जाइन ।।


 सरंची आर कामलकेतू, बोने हुलसथुल करे लागला | 

भूत-डाइन मनेक फहम, पोंगापंथिक भगावे लागला ||


राजा घरेक गाछ कटवइयाक 

चहटे नाञ दे कमलकेतू । 

काटल गाछ लुइट लेथ

संरची आर कमलकेतू ।। 


रोइज बेटाक दोस सुइन, कालकेतू रागें पोड़े लागल | 

सासन-सोसन कइसें, चले, सइ बुझ्ध राचे लागल ||


आपन बेटा कमलकेतुक 

सासती दियेक जुगुत करल 

राजबइद धुमाक पकरेले

सिपाही के हुकुम करल ।। 


लइके मुड़े राजाक हुकुम, सिपाही घोड़े चढ़ला | 

हाथें तरवाइर भाइज के, मोंछे सान दइ देला ||


बानारे बोने-बोने सिपाही 

राजबइद हे धुमा कहाँ? 

पइत आदिवासिक डेराञ

पुछाइर करे हियाँ-हुआँ ।। 


दामुदरेक कारघाय  बनल, जखन कमलेक टोल पहुँचला। 

राजबइद धुमाक बनार, हुआँ जाइ सुने पइला ||


राजाक हुकुम सुइन धुमा 

कमलसरंचिक भेल भरम। 

कालकेतुक काल आँटल

जोर भइ गेल कुकरम ।। 

सात घाटेक पानी पियल, धुमा चढ़ल घोड़ाक पीठे | 

बल-बुइध दुइयो बाँइध, सोझाइ गेल गढ़ बाटें ।।


राजदरबारे पहँइच गेल । 

जखन राजबइद धुमा 

मने-मन कुरचे राजा

आइज कइद भेल धुमा ।। 


सिंहासने बइस कालकेतू, चेतवे लागल धुमाक | 

आपन ताकइत देखाइके, धीरवे लागल धुमाक ।।


“राजबइद ! बइदेक तोञ राजा 

राजमहले तोर बास। 

असुकेक दुसमन लागे तोय 

जइर-मोवाइर तोर चास ।। 


मेंतुक, बइदाली छोइड़ तोञ, बल-बुइध बाँटे आदिबासिक । 

भांगाइ देलें हमर बेटाक, साटप देहीं बनबासिक!


जंगल के जंगली मानुस 

घटवाहाक बेटी छिनाइर। 

जोगमोहनी तोहनिक देलो ऊ

हमरे ले कमल भिनाइल। 


एखनु चेइत जो धुमाबइद, कालकेतुक नात्र बन काल । 

नाय  तऽ तोर हाम कालकेतुक नदियें ठेलबो कोन काला।


कालकेतुक मदरस बोली 

नाय  लेल कानें बइद धुमा। 

मुचकी हाँसी हाँइस देल

जोरगर जबाब देल धुमा ।।


 “ऐ काल! बनबासिक काल, हमर काल की बोनेक काल ।

 काल नजीकें आइ गेलो काल, हमर-तोर सब के काल ।।


Q.”काल नजीकें आइ गेलो काल, हमर-तोर सब के काल” यह किसका कथन है ?

राज वैद्य


मोरेक हामर फिकिर नाय  

हामें तऽ हों अजर अमर। 

मारनेवाला जनम लेत

मकीन, तो अब सम्हर ।। 


जेराजें कबि बइदेक अपमान होवे बारम्बार । 

भंगठल जाइ संइ राइज, बुइधलग तजे राजदरबार ।।


जोगमोहनी दिये वाली नारिक 

नजइर गाबचाइ एकबेर भाल । 

नदी-नारी सिरिस्टी करली

मलीन नाज़ कर खबरदार।। 


नारिक नरम निजोरी पइल्हीं? नाकें नुन कइस देतो ।

 रे नरकट! नाक सम्हार, नगबासी जब निकइल जितो।”


राजाक गातें आइग लागल 

धुमाक ई खेमऽता।

 “बाँध धुमाक गोड़े-हाथे

राखिहें नाज ममता।” 


खरीस अइसन फुफवाइ के, छोइड़ देलइ आसन । 

गरजे लागल राजबइद, काँपे लागत सिंहासन ।।


“जइर जितो सोनाक महल 

आँइख के निमिसे। 

बाँधले हमरा तोञ बंधइवें

जरबें बोनेक तितकी से ।। 


Q.कालकेतु को कौन श्राप देता है कि उसका राजमहल उसकी आंखों के सामने जलकर नष्ट हो जाएगा ? राज वैद्य


आदिबासिक माडल ठाँवें, भिसिड़ भइ भेलें भुंइस | 

भुँईसो मरता, भुरो मुंदइता, चिरकाल में राखल्हीं चुइस ।।”


रागें थर-थर गात काँपे 

आँखी खुइनेक बरन धरे। 

कालकेतू धरल टांगी

मकीन, धरल देवान बीरें ।। 


Q.दरबार में राजवैद्य को मारने के लिए कालकेतु कौन सा हथियार लेकर खड़ा हो जाता है ? टांगी 

Q.कालकेतु को राज वैद्य की हत्या करने से कौन रोकता है ? दीवान


देवान के देवानिक सल्हाञ, कालकेतू सम्हइर गेल | 

छोइड़ देल धुमा बइदकें, निजेक मने सरइम गेल ||


फिंगाठी अलिंगाक बखान 

झरल जेरंग बइरसे सावन। 

घसकल धुमा सान देखाइ 

चइढ़ गेल बोनेक दावन ।।

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