पुइतु बुढ़ा, पुइतु बुढ़ि (Puitu Budha, Puitu Budhi, Purkhauti katha (kudmali lok-katha )
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1. पुइतु बुढ़ा, पुइतु बुढ़ि
पुरखउती कथा (कुड़माली लोककथा )
(Puitu Budha, Puitu Budhi)
Purkhauti katha (kudmali lok-katha )

एसन तअ इ कथा टा पुरखा ले इ काने उ काने हेइके एखन तड़िक पड़चि आइल आहेइक, मेनतुक लिखल भाभे ‘पुइतु बुढ़ा पुइतु बुढ़ि’ पुरखउति कथा “कुड़मालि लक कथा’ नामेक पथि ले लेल गेल आहेइक । एकर संजुएता डा. बिंदाबन माहतअ हेकत, जाकर निखरन 2012 माहान, रांचि कर पिआरा केरकेटा फांउडेसन कर दिगे ले हेल आहेइक ।

कथा कर अनुजांइ एक गांउ दुइ बुढ़ा – बुढ़ि रहल। दुइ बुढ़ा – बुढ़ि कर कनह छउआ – पुता नि रहलेइक । चास- बास करि कनह डुल खाए हेला, मेनतुक बनेक सिआरे बेजांइ साताइ हेलथिक । एखराके बनेक सिआरे नाखे दम करि राखल रहल। पुइतु बुढ़िइ कहलेइक – तहरा ! बेजांइ सिधा साधा लग हेकिहा । रिचिक राग देखाइहा ना। एक दिन सकताइके गाइर देइ ठेंगाउहान ना! जानिहा ना – ‘सकतक भकतअ’ । जेंइ सकत रहइक न अकर सभे भकतअ हेत । पुइतु बुढ़ा – इटा तअ ठिके कहले ! मेनतुक पास हेले ना ! पुइतु बुढ़िइ, पुइतु बुढ़ाके कहलेइक – मइए बन -पात तरे जाइहे आर तहरा उठिने लुकाइ रहिआ। मइए जखन कांदि – कांदि डाकबअहन तखन डांग लेइके बाहराइहा आर सभेके पिटि हान ।

एहे उपाइ करिके पुइतु बुढ़ि बन गेलि पात तरे लाइ । पात तरि खांचिंइ भरलि, मेनतुक खांचि भारि हेइ जाइएक कारन, आलगाए नि पारेइस। तखन पुइतु बुढ़ि कांदे लागलि । बुढ़िक कांदना सुनि सभे सिआर जड़अ – सड़अ हेला । पुछलेथिक किना हेलउ ठाकुर माइ? पुइतु बुढ़ि – तहर बुढ़ा बाप ( पुइतु

बुढ़ा ) मरि गेल, घारे काइज – भज दिए हेतेइक । दे टुकु खांचि टा आलगाइ ! आउएहेइक से डिनिबारे भज हेकेइक, तहरा सभे काइ आइहा जेसे नेउता रहल अहन ! भज-भात सुनि सिआर दमेइ रिझे लागला । पुइतु बुढ़ा मरि गेल, ता हेले | तअ हामराक बेजांइ जुइत, एधांउ अकर छागेइर, भेड़ि खुखड़ि, कड़अ सउभे खाब आर बुढ़ा सालांइ माचाक उपर बेसि टिंगपिटि डरा हेल । एबार निफिकिर हेइके हिआ – खालासे मन भरति जनहाइर खाब !

भजेक दिन सउब सिआर चलला पुइतु बुढ़ाक भज | खाइ लाइ । सउब सिआरेक राजा रहल ‘बांड़ा सिआर’ | सउभे राजा माने ‘बांड़ा सिआरेक’ पेछुइ – पेछुइ रिझे-रंगे उमकअलेइ जाइ लागला । सिआर पहंचला पुइतु बुढ़ाक घार । पुइतु बुढ़ि घारले बाहराइके सउआगत करलेइक पहंचलेहेन बेटा सउब ! सिआर- हां, ठाकुर माइ गउ ! पुइतु | बुढ़िइ सउभे सिआरके चिहड़ (दुधि लते) बांधे लागलेइक । तखन सिआरे पुछलेइक – बुद्धि गउ ! खुटांइ काहे बांधे हिस हामराके ? तखन बुढ़िइ कहलि – एक पासे भज देले तहरा लुटा-लुटि करबेहे, सेइ माहान सउबके आलेदा – आलेदा पातइरे भज देबअहन । बुढ़िइ सउभे सिआरके खुंटलेइक आर घार भितर जाइ पुइतु बुढ़ाके कहि देलेइक

पुइतु बुढ़ि सुधाइ बाहराइल देखि के सिआरे पुछलेइक, कइ गउ! बुढ़ि भज नि आनले ? पुइतु बुढ़ि – रिचिक नेग आहेइक । भज दिएक पेहिल एक ठपा कांदे हेइक । तखन पुइतु बुढि रदन धरि धरि कांदइस

‘बाहरांइए रे पुइतु बुढ़ा ! सिमअरिका डांग लेले, सउब सिआर के एक डांग, बांड़ा सिआरके दस डांग !’ बुढ़ा हाड़-हाड़ाइके बाहराल आर सउभे सिआरके

एक – एक डांग ठेंगाइ लागलेइक आर बांड़ा सिआरके दस डांग देलेइक। माइर खाइ सिआर कनह डुल दड़ा छिटाइके पाराइ लागला….।

तखन सिआर सउब रागाइके बुढ़ा – बुढ़िके गाइर देइ देइ गेला – साला रे साला ! तर मुरगि खाइ देबअ, कहि कहि धमकाइके चलि गेला ।

घुरि दिन पुइतु बुढ़ा खुखड़िक गादांइ एक टा हंसुआ धरिके रहल । सिआरे राइते खुखड़ि खाइ लाइ आउला । सिआरे खुखड़ि धरेक खातिर मुंड़ टा जेसे भितराइक ना, हंसुआ टांइ ठठ मारल, तखन सिआर सउभे बुझला साइअद बड़अ मुरगा टा हेकेइक । बांड़ा सिआरे मुंड़ दुकाल न अके दमेइ जउरे ‘ठान’ ले चटाइ देलेइक । तखन बांड़ा सिआर बुझल – अरे साला! इटा पुइतु बुढ़ाक काम हेकेइक पाराउआ, रे पुइतु बुढ़ा ! तर गाइछेक सिम खाइ देब

सिआर सउभेक धमकि सुनि, घुरि दिन फेर पुइतु बुढ़ा बानि भितरे तपाइके घुमाइ रहल। सिआर आउला, सिम तरि बानिक आइगे पड़ाइ लागला, न पुइतु बुढ़ांइ फुसके हाउआ छाड़इक । सिआर सउभे बुझला, सिम पड़िके फुटेहेइक साइअद? कहि खाइ लागला तअ देखत कि कांचाइ आहेइक । तखन सिआरे बिड़लेइथिक – पाराउआ रे साला ! पुइतु बुढ़ा हेकेइक । तखन सिआर सउभे आरअ थिरालेथिक रह, रे साला! तर हारे ‘गिचि ‘ ( झाड़ा) करि देबइ ।

घुरि दिन पुइतु बुढ़ा हारे खुर बांध देलेइक । सिआर आउला । सउभि गिचि करे लागला, तखन अखराके खुरे …..काटाए लागला । तखन लारि पारिके सउभे सिआरे सलहअ करला जे आर पुइतु बुढ़ाके नि पारबेइक आर उ दिन ले सिआर सउभे उ बन टाइ छाड़ि देलथिक।

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