मुगल वंश की स्थापना
- तैमूर ने मध्य एशिया के क्षेत्र में एक विशाल साम्राज्य का निर्माण चौदहवीं सदी में किया था, किंतु उसकी मृत्यु के पश्चात् उसका साम्राज्य विघटित हो गया और उसमें अनेक छोटी-छोटी शक्तियों का उदय हुआ।
- तैमूर वंशजों में बाबर भी एक था, जो मुगल साम्राज्य का संस्थापक बना।
- बाबर का पैतृक राज्य ‘फरगना’ था।
- मध्य एशिया के उज्बेक शासकों ने लंबे संघर्ष के बाद बाबर को फरगना से निकाल दिया। बाबर ने 1504 ई. में काबुल का राज्य जीत लिया और कुछ समय बाद कंधार और समरकंद की विजय में भी सफल हुआ, हालाँकि ये दोनों ही विजय क्षणिक सिद्ध हुई। तत्पश्चात् बाबर ने दक्षिण-पूर्व की ओर अर्थात् भारत की ओर अपना ध्यान आकर्षित किया।
बाबर (1526-1530 ई.)
- भारत में मुगल सत्ता का संस्थापक बाबर था।
- बाबर का वास्तविक नाम ‘जहीरुद्दीन मुहम्मद‘ था।
- तुर्की भाषा में बाबर का अर्थ ‘बाघ‘ होता है। अतः जहीरुद्दीन मुहम्मद अपने पराक्रम एवं निर्भीकता के कारण ‘बाबर’ कहलाया।
- बाबर के पिता तैमूर वंशज और माता मंगोल वंशज थी। इस प्रकार उसमें तुर्कों एवं मंगोलों दोनों के रक्त का मिश्रण था।
- बाबर का जन्म 14 फरवरी, 1483 ई. को फरगना के एक छोटे से राज्य में हुआ था, जो अब उज़्बेकिस्तान में है।
- बाबर ने जिस नवीन वंश की नींव डाली, वह तुर्की नस्ल का ‘चगताई’ वंश था। जिसका नाम चंगेज खाँ के द्वितीय पुत्र के नाम पर पड़ा, परंतु आमतौर पर उसे ‘मुगल वंश‘ पुकारा गया है।
- बाबर अपने पिता की मृत्यु के बाद 11 वर्ष की आयु में 1494 ई. में फरगना की गद्दी पर बैठा।
- बाबर ने 1501 ई. में समरकंद पर अधिकार किया, जो मात्र आठ महीने तक ही उसके कब्ज़े में रहा।
- 1504 ई. में काबुल विजय के उपरांत बाबर का काबुल और गज़नी पर अधिकार हो गया।
- 1507 ई. में बाबर ने ‘पादशाह’ (बादशाह) की उपाधि धारण की।
- पादशाह की उपाधि धारण करने से पूर्व बाबर “मिर्जा’ की पैतृक उपाधि धारण करता था।
बाबर का भारत पर आक्रमण
- बाबर का भारत के विरुद्ध किया गया प्रथम अभियान 1518-1519 ई. में ‘युसूफजाई’ जाति के विरुद्ध था। इस अभियान में बाबर ने ‘बाजौर’ और ‘भेरा/भीरा‘ को अपने अधिकार में किया।
- बाबर ने अपनी आत्मकथा (बाबरनामा) में लिखा है कि बाजौर किले को जीतने में उसने बारूद एवं तोपों का प्रयोग किया था।
- 1519 ई. में बाबर ने खैबर ढर्रे (पेशावर) को पार किया। किंतु बाबर जल्द ही पेशावर से वापस लौट गया।
- 1520 ई. में बाबर ने ‘बाजौर और भेरा/भीरा’ को पुनः जीता, साथ ही ‘स्यालकोट’ एवं ‘सैय्यदपुर’ को भी अपने अधिकार में कर लिया।
- 1524 ई. में बाबर के पेशावर अभियान के समय, बाबर को इब्राहिम लोदी व दौलत खा के मध्य मतभेद की ख़बर मिली, जिसके कारण दौलत खाँ (जो उस समय पंजाब का गवर्नर था) ने पुत्र दिलावर खाँ को बाबर के पास भारत पर आक्रमण करने के लिये संदेश भिजवाया।
- राणा सांगा ने भी बाबर को भारत पर आक्रमण करने के लिये निमंत्रण भेजा था।
पानीपत का प्रथम युद्ध (अप्रैल 1526 ई.)
- पानीपत युद्ध के समय इब्राहिम लोदी दिल्ली का सुल्तान था।
- अप्रैल 1526 ई. में पानीपत के मैदान में दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी एवं बाबर के मध्य युद्ध लड़ा गया। युद्ध में इब्राहिम लोदी मारा गया।
- इस युद्ध में बाबर ने पहली बार प्रसिद्ध तलगमा युद्ध, पद्धति’ का प्रयोग किया। बाबर ने तुलगमा युद्ध का प्रयोग उज्वेको से ग्रहण किया था।
- इस युद्ध में बाबर ने तोपों को सजाने में उस्मानी पद्धति’ ( रूमी विधि) का प्रयोग किया था।
- पानीपत के युद्ध में बाबर के तोप खाने का नेतृत्व उस्ताद अली और मुस्तफ़ा खाँ नामक दो अधिकारियों ने किया था।
- पानीपत के युद्ध में इब्राहिम लोदी की हार से भारत में अफगान की शक्ति क्षीण हो गई। युद्ध के पश्चात दिल्ली और आगरा समेत लोदी साम्राज्य के समस्त भागों पर बाबर ने अधिकार कर लिया।
- भारत विजय के उपलक्ष्य में बाबर ने प्रत्येक काबुल निवासी को एक-एक चांदी का सिक्का उपहार स्वरूप प्रदान किया।
- अपनी इसी उदारता के कारण उसे ‘कलंदर’ की उपाधि दी गई।
- इस युद्ध में विजय का श्रेय बाबर ने अपने धनुर्धारियों को दिया।
खानवा का युद्ध (मार्च 1527 ई.)
- खानवा युद्ध का मुख्य कारण बाबर का पानीपत युद्ध के पश्चात् भारत में रहने का निश्चय था। राणा सांगा की धारणा थी कि बाबर भी अन्य विदेशी आक्रमणकारियों की भाँति देश को लूटकर वापस चला जाएगा। संभवतः इसी कारण उसने इब्राहिम लोदी के विरुद्ध बाबर को सहायता देने का आश्वासन दिया था।
- ‘खानवा का युद्ध’ चित्तौड़ के राजपूत नरेश राणा सांगा और बाबर के मध्य लड़ा गया।
- मार्च 1527 ई. में राणा सांगा और बाबर की सेनाओं के बीच युद्ध आरंभ हुआ।
- खानवा के युद्ध में राणा सांगा की हार हुई। खानवा के युद्ध को जीतने के बाद बाबर ने ‘गाज़ी’ की उपाधि धारण की।
- खानवा के युद्ध में बाबर ने शराब के प्रयोग पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने के साथ ही ‘जिहाद’ का नारा दिया था।
- खानवा के युद्ध में अपने सैनिकों का मनोबल बढ़ाने के लिये बाबर ने मुसलमानों से वसूल किये जाने वाले ‘तमगा कर’ अथवा ‘व्यापारिक कर’ को समाप्त कर दिया।
अन्य अभियान
- जनवरी 1528 ई. में ‘चंदेरी का युद्ध‘ बाबर और चंदेरी के शासक मेदिनी राय के बीच हुआ। इस युद्ध में मेदिनी राय पराजित हुआ। यह विजय बाबर के लिये मालवा जीतने हेतु सहायक सिद्ध हुई।
- बाबर ने मई 1529 ई. में घाघरा के युद्ध‘ में बिहार तथा बंगाल की संयुक्त अफगान सेना को पराजित किया, जिसका नेतृत्व महमूद लोदी ने किया था।
- इन युद्ध के पश्चात् बाबर का भारत पर स्थायी रूप से अधिकार हो गया। इस प्रकार बाबर का साम्राज्य बदख्शाँ से बिहार तक फैला था। जिसमें काबुल, पंजाब व आधुनिक उत्तर प्रदेश का क्षेत्र सम्मिलित था।
बाबर की मृत्यु
- 26 दिसंबर, 1530 ई. को बाबर की आगरा में मृत्यु हो गई। बाबर केवल 4 वर्ष भारत पर शासन कर सका।
- बाबर की मृत्यु के बाद उसके शव को आगरा के ‘आरामबाग‘ में रखा गया, किंतु बाद में बाबर की अंतिम इच्छानुसार उसका शव काबुल ले जाकर दफनाया गया, जहाँ उसका मकबरा बना हुआ है।
बाबर का मूल्यांकन
- बाबर कुषाणों के बाद ऐसा पहला शासक था, जिसने काबुल एवं कंधार को अपने पूर्ण नियंत्रण में रखा।
- बाबर ने पहली बार युद्ध में तोप खाने और युद्ध की नई ‘तुलगमा युद्ध पद्धति‘ का प्रयोग किया।
- बाबर ने सड़कों की माप के लिये ‘गज-ए-बाबरी’ का शुभारंभ किया।
- बाबर अपने साथ दो महत्त्वपूर्ण खेल भारत लाया। जिसमें गंजीफा (ताश का खेल),इश्क बाज़ी (कबूतरों का खेल) थे। इश्क बाज़ी उसका प्रिय खेल था।
- बाबर ने एक नए तरह के छंद ‘मुबइयान’ का सृजन किया।
- अलंकार शास्त्र पर ‘रिसाल-ए-उसज‘ नामक पुस्तक लिखी और ‘खत-ए-बाबरी‘ नाम से एक नई शैली प्रारंभ की।
- उसके द्वारा किया गया संकलन ‘दीवान’ था,
- बाबर ने तुर्की भाषा में आत्मकथा ‘बाबरनामा’ या ‘तुजुक-ए-बाबरी‘ की रचना की।
- बाबर ने आगरा में ‘ज्यामितीय विधि’ से एक बाग लगवाया , जिसे ‘नूर-ए-अफगान’
- ( नूरे-अफगान) कहा जाता था, परंतु अब इसे ‘आरामबाग‘ कहा जाता है।
- बाबर ने ‘शाहरुख’ नामक चांदी का सिक्का भी चलाया।
बाबरनामा
- बाबर द्वारा रचित ‘तुर्की भाषा’ की इस कृति को ‘तुजुक-ए-बाबरी’ कहते हैं।
- बाबर की आत्मकथा का अनुवाद ‘पायन्दा खाँ’ तथा अब्दुर्रहीम खानखाना ने फ़ारसी और श्रीमती बेबरिज ने अंग्रेज़ी में किया।
- इस पुस्तक में उसने 5 मुस्लिम राज्यों– बंगाल, दिल्ली, मालवा, गुजरात व बहमनी तथा दो हिंदू राज्य – विजयनगर व मेवाड़ का उल्लेख किया है।
- बाबरनामा’ में बाबर ने विजयनगर के शासक ‘कृष्ण देव राय को समकालीन भारत का सबसे शक्तिशाली शासक बताया।
- बाबर ने लिखा है कि “भारतीय मरना जानते हैं, लड़ना नहीं।”