मौर्यकालीन हस्तशिल्प (mauryan handicrafts)
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मौर्य शासनकाल में राजनीतिक एकता एवं शक्तिशाली केंद्रीय शासन की बदौलत व्यापार-वाणिज्य में उन्नति हुई तथा इससे शिल्पियों को भी प्रोत्साहन मिला।
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इस काल में खानों से कच्ची धातु निकालने उसे गलाने, शद्ध करने तथा लचीला बनाने की क्रिया की जानकारी प्राप्त हो चुकी थी।
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मेगस्थनीज ने अनेक प्रकार की धातुओं, जैसे-सोना, चांदी, तांबा, लोहा आदि की खदानों का जिक्र किया है। इन धातुओं का उपयोग आभूषण, बर्तन, युद्ध के हथियार, सिक्के आदि बनाने में किया जाता था।
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काल में काष्ठ शिल्प के विकास के पर्याप्त प्रमाण मिले हैं, के साक्ष्य के रूप में चंद्रगुप्त मौर्य के राजप्रासाद का नाम लिया जा सकता है।
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काशी एवं पुंड्र में रेशमी कपड़े बनते थे तथा बंग का मलमल विश्व एसिद्ध था। इस समय ‘दुकूल’ जो श्वेत व चिकना वस्त्र था तथा ‘भौम’ जो एक प्रकार का रेशमी वस्त्र था, का उल्लेख मिलता है।
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इन उद्योगों के अतिरिक्त हाथी दाँत पर काम करने वाले, मिट्टी के बर्तन निर्मित करने वाले तथा चर्मकारों की उपस्थिति का भी प्रमाण मिला है।
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मौर्यकालीन काली ओपदार मिट्टी के बने उत्तरी काले चित्रित मृद्भांड मिले हैं जो पुरातत्त्ववेत्ताओं के अनुसार धनाढ्य वर्ग के लोगों द्वारा प्रयोग में लाए जाते थे।