ममलूक/दास/गुलाम/ इल्बरी वंश Mamluk / slave / Ilbury Dynasty

       

      ममलूक/दास/गुलाम/इल्बरी वंश(1206-1290 ई.)

       

      कुतुबुद्दीन ऐबक (1206-1210 ई.) 

      आरामशाह (1210 ई.) 

      इल्तुतमिश (1211-1236 ई.) 

      रुक्नुद्दीन फिरोजशाह

      रजिया सुल्तान (1236-1240 ई.)

      मुइजुद्दीन बहरामशाह

      अलारी मसूदशाह 

      नासिरुद्दीन महमूद

      गयासुद्दीन बलबन (1266–1286 ई.)

      कैखुसरो/कैकुबाद 

      शमसुद्दीन क्यूमर्स

       

       

      • तुर्की आक्रमणों के पश्चात् भारत में दिल्ली सल्तनत की स्थापना हुई

      कुतुबुद्दीन ऐबक (1206-1210 ई.) 

      • मुहम्मद गौरी की मृत्यु के पश्चात् ऐबक को सिंध और मुल्तान छोड़कर मुहम्मद गौरी द्वारा विजित उत्तर भारत का संपूर्ण क्षेत्र प्राप्त हुआ
      • कुतुबुद्दीन ऐबक ने उत्तराधिकार युद्ध की चुनौतियों का सामना अपनी कुशल वैवाहिक नीति से किया। 
        • उसने मुहम्मद गौरी के एक अधिकारी ताजुद्दीन यलदोज की पुत्री से विवाह किया। 
        • उसने अपनी बहन का विवाह नासिरुद्दीन कुबाचा से किया, जो सिंध का प्रभावी अधिकारी था। 
        • उसने अपनी पुत्री का विवाह तुर्की दास अधिकारी इल्तुतमिश से किया। 
      • कुतुबुद्दीन ऐबक ने ‘सुल्तान’ की पदवी धारण नहीं की।
      • उपाधि
        • ‘मलिक’
        • ‘सिपहसालार
        • लाखबख्श’ (लाखों का दान करने वाला)- उदारता के कारण
      • राजधानी- लाहौर
      • मृत्यु – 1210 ई. में, लाहौर में, चौगान (पोलो) खेलते समय घोड़े से गिर जाने के कारण  
      • उसके बाद आरामशाह लगभग एक साल के लिये राजगद्दी पर बैठा। 
      •  सैन्य योग्यता के साथ-साथ, वह साहित्य और कला-प्रेमी भी था। 
      • उसने दो मस्जिद का निर्माण करवाया। 
        • ‘कुव्वत-उल-इस्लाम’ (महरौली, दिल्ली)
        • अढ़ाई दिन का झोंपड़ा’ (अजमेर)
      • कुतुबुद्दीन ऐबक ने दिल्ली में कुतुबमीनार की नींव रखी
        • सूफी संत ‘ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी‘ की स्मृति में
        • बाद में इल्तुतमिश ने पूरा करवाया।

       

      आरामशाह (1210 ई.) 

      • कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु के बाद एक कमज़ोर एवं अयोग्य शासक आरामशाह लगभग एक साल के लिये राजगद्दी पर बैठा।
      • बदायूँ के प्रांताध्यक्ष इल्तुतमिश ने दिल्ली के निकट जा (Jud) नामक स्थान पर आरामशाह को परास्त कर दिल्ली की सत्ता पर अधिकार कर लिया।

      इल्तुतमिश (1211-1236 ई.) 

      • इल्तुतमिश इल्बरी तुर्क था। 
      • कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु के समय वह बदायूँ का सूबेदार (गवर्नर) था। 
      • उपनाम : 
        • दिल्ली सल्तनत का वास्तविक संस्थापक
        • गुलाम का गुलाम
      • राजधानी बनाया- लाहौर की बजाय दिल्ली को

       

      इल्तुतमिश की प्रारंभिक कठिनाइयाँ तथा उसकी सफलता 

      • दिल्ली के अमीरों का दमन
      • यलदोज का दमन
        • इल्तुतमिश ने यलदोज को 1215 में तराईन के मैदान में युद्ध कर उसे बंदी बनाकर हत्या कर दी। 
        • यलदोज की पराजय के साथ ही दिल्ली सल्तनत का संपर्क गज़नी से हमेशा के लिये समाप्त हो गया। 
      •  बंगाल के विद्रोहियों का दमन
        • बंगाल के विद्रोही गयासुद्दीन आज़म खिलजी पर 1225 ई. में आक्रमण के लिये सेना भेजी।
        • गयासुद्दीन ने इल्तुतमिश की अधीनता स्वीकार कर ली।
      •  कुबाचा का दमन
        • यलदोज के दमन के बाद इल्तुतमिश ने कुबाचा के राज्य पर अधिकार कर लिया।

      इल्तुतमिश से सम्बंधित प्रमुख तथ्य :

      • चालीस अमीरों के दल का गठन/तुर्कान-ए-चहलगानी/चालीसा दल का गठन
      • बगदाद के ख़लीफ़ा का प्रमाण पत्र – 1229 ई. में
        • इल्तुतमिश को ‘सुल्तान-ए-आजम की उपाधि प्रदान की 
        • ख़लीफ़ा से अधिकार पत्र प्राप्त करने वाला दिल्ली सल्तनत का प्रथम वैधानिक सुल्तान
      • शुद्ध अरबी सिक्के चलानेवाला पहला तुर्क सुल्तान
        • चांदी का टंका और तांबे का जीतल उसी ने आरंभ किया। 
      • इल्तुतमिश को कला एवं साहित्य से लगाव था।
      • कुतुबमीनार का निर्माण पूर्ण करने का श्रेय इल्तुतमिश को ही जाता है।
      • डॉ. आर.पी. त्रिपाठी का मत
        • “भारत में मुस्लिम संप्रभुता का वास्तविक श्रीगणेश इल्तुतमिश से ही प्रारंभ होता है।”
      • इल्तुतमिश के दरबार में इतिहासकार मिनहाज-उस-सिराज रहते थे
        • तबकात-ए-नासिरी’ की रचना – मिनहाज-उस-सिराज ने
      • इल्तुतमिश की मृत्यु30 अप्रैल, 1236 ई. में
      • इल्तुतमिश की पुत्री – रजिया सुल्तान
        • इल्तुतमिश ने अपनी मृत्यु से पूर्व अपनी योग्य पुत्री रजिया सुल्तान को उत्तराधिकारी नियुक्त किया था, परंतु उसकी मृत्यु के अगले दिन ही अमीरों ने उसके अयोग्य पुत्र रुक्नुद्दीन फिरोजशाह को सुल्तान बना दिया। 
        • रुक्नुद्दीन फिरोजशाह के शासनकाल में उसकी माँ शाह तुर्कान, जो एक तुर्क दासी थी, का नियंत्रण था। 
      • रुक्नुद्दीन फिरोजशाह के राज्य में अराजकता फैल गया
        • विद्रोहों का फायदा रजिया सुल्तान ने उठाया
        • रजिया सुल्तान ने दिल्ली की जनता का समर्थन से रुक्नुद्दीन फिरोजशाह को बंदी बना लिया
        • रज़िया दिल्ली की गद्दी पर बैठी ।

      रजिया सुल्तान (1236-1240 ई.)

      • रज़िया दिल्ली की गद्दी पर 1236 ई. में बैठी ।
      • रज़िया पर्दा त्याग कर पुरुषों की भाँति क़बा/कुबा (कोट) और कुलाह (टोपी) पहनकर जनता के समक्ष आने लगी। 
      • एक अबीसीनियाई दास जलालुद्दीन याकूत को उसने अमीर-ए-आखूर (अश्वशाला का प्रमुख) नियुक्त किया। 
        • नियुक्ति से खफा उसके एक अमीर अल्तनिया ने विद्रोह कर दिया 
          • रज़िया ने अल्तनिया को तबरहिंद (भटिंडा) का इक्तादार नियुक्त किया था
        • बाद में रज़िया ने अल्तुनिया से शादी की।
      • रज़िया जब अमीरों के विद्रोह का दमन करने राजधानी से बाहर निकली तभी जलालुद्दीन याकूत को तुर्क अमीरों ने मारकर राजधानी में मुइजुद्दीन बहरामशाह को गद्दी पर बैठा दिया। 
      • रज़िया की हत्या – 1240 ई., डाकुओं ने
      • मिनहाज का कथन :
        •  “भाग्य ने उसे पुरुष नहीं बनाया, वरना उसके समस्त गुण उसके लिये लाभप्रद हो सकते थे। रज़िया में वे सभी प्रशंसनीय गुण थे जो एक सुल्तान में होने चाहिये।”
      • एलफिंस्टन के अनुसार,
        • “यदि रज़िया स्त्री न होती तो उसका नाम भारत के महान शासकों में लिया जाता।” 

       

      रज़िया के बाद के शासक

      मुइजुद्दीन बहरामशाह

      • 1240 ई. में रज़िया की मृत्यु के बाद मुइजुद्दीन बहरामशाह शासक बना।  
      • दो वर्ष बाद 1242 ई. में उसकी भी हत्या करवा दी।  
      • मुइजुद्दीन बहरामशाह ने अपने कार्यकाल  में एक नए पद नायब अथवा नायब-ए-मुमलिकात का सृजन किया

      अलारी मसूदशाह 

      • 1242 ई. में बहरामशाह की हत्या के बाद अमीरों ने अलारी मसूदशाह को सुल्तान बनाया। 
      •  इसके काल में बलबन ने अन्य अमीरों की सहायता से चार वर्ष बाद 1246 ई. में मसूदशाह को बंदी बनाकर इल्तुतमिश के पौत्र नासिरुद्दीन महमूद को सुल्तान बनाया। 

      नासिरुद्दीन महमूद

      • वह नाममात्र का शासक था। 
      • उसने शासन का कार्य नायब-ए-मुमलिकात  बलबन को सौंप दिया 
      • बलबन भी तुर्कान-ए-चहलगानी का सदस्य था। 
      • नासिरुद्दीन महमूद  ने बलबन को ‘उलूग खाँ’ की उपाधि प्रदान की। 
      • बलबन ने अपनी पुत्री का विवाह नासिरुद्दीन महमूद से करवाया। 

       

      गयासुद्दीन बलबन (1266–1286 ई.)

      • 1265 ई. में सुल्तान नासिरुद्दीन महमूद की मृत्यु के उपरांत बलबन दिल्ली सल्तनत का सुल्तान बना। 
      • गयासुद्दीन बलबन इल्बरी तुर्क था।
        • बचपन में मंगोलों ने पकड़कर उसे गुलाम के रूप में बेच दिया था। 
      • बलबन इल्तुतमिश के ‘चालीसा दल’ का सदस्य था ।
      • बलबन को ‘उलूग खाँ’ की उपाधि प्रदान की- नासिरुद्दीन महमूद  ने

       

       बलबन की प्रारंभिक समस्याएँ तथा उनका समाधान 

      चालीसा दल की समाप्ति 

      • इल्तुतमिश के काल में निर्मित चालीस अमीरों का दल को बलबन ने समाप्त कर दिया

      विद्रोहों का दमन 

      • बलबन ने सर्वप्रथम विद्रोही मेवातियों के विरुद्ध प्रशिक्षित सेना भेजकर उनका कठोरता पूर्वक दमन किया। 
      • सन् 1279 ई. में बंगाल में तुगरिल खाँ बेग ने विद्रोह खड़ा कर दिया और अपने नाम के सिक्के जारी किये। 
      • बलबन की सेना ने तुगरिल को दबोच लिया और उसकी हत्या कर दी।

      उलेमाओं को रणनीति से पृथक् करना 

      • बलबन से पहले उलेमाओं का राजनीति में बड़ा महत्त्व था। बलबन सत्ता में आने के बाद उनसे सलाह लेना बंद कर दिया। धीरे-धीरे उनके राजनीतिक हस्तक्षेप पर रोक लगा दी गई।

      राजत्व का सिद्धांत

      • ‘राजत्व’ से तात्पर्य उन सिद्धांतों, नीतियों तथा कार्यों से है, जिन्हें सुल्तान अपनी प्रभुसत्ता, अधिकार एवं शक्ति को स्पष्ट करने के लिये अपनाता था। 
      • के.ए. निज़ामी के अनुसार, “बलबन दिल्ली सल्तनत का एकमात्र ऐसा सुल्तान है, जिसने राजत्व के विषय में विचार स्पष्ट रूप से रखे” जो निम्न है
      •  दैवीय सिद्धांत का समर्थन
        • बलबन ने राजा के दैवीय अधिकार का समर्थन किया। 
        • बलबन ने जिल्ले इलाही (ईश्वर की छाया) की उपाधि धारण की। 
        • बलबन ने यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि सुल्तान की शक्ति का आधार जनता तथा अमीर नहीं है।
      • शाही वंशज होने का दावा 
        • उसने स्वयं को फिरदौसी के शाहनामा में वर्णित अफराशियाब वंशज का बताया।
        • बलबन का प्रसिद्ध कथन था
          • “जब भी मैं किसी निम्न कुल के व्यक्ति को देखता हूँ तो अत्यधिक क्रुद्ध होकर मेरा हाथ स्वयं तलवार पर चला जाता है।”
      • ईरानी आदर्शों एवं परंपराओं का पालन 
        • सुल्तान बलबन ने दरबार में ईरानी आदर्शों को स्थापित किया।
        •  ‘सिजदा'(दंडवत्) और ‘पाबोस'(कदम चूमना) की प्रथा शुरू की। 
        • उसने ईरानी त्योहार ‘नौरोज’ को मनाना प्रारंभ किया। 

       

      सेना का संगठन 

      • बलबन से पहले तुर्की सैनिकों को सेवा के बदले जागीर देने की प्रथा प्रचलित थी, जिस कारण अधिकांश भूमि बूढ़े सैनिकों, विधवाओं तथा नाबालिगों के अधिकार में थी। 
        • बलबन ने इन लोगों के जीवित रहने तक इस भूमि पर उनका अधिकार मान्य कर दिया।
        • मृत्यु उपरांत ये भूमि राज्य के अधीनस्थ मानी गई। 
      • बलबन ने सैनिकों की शक्ति में वृद्धि की और उनके वेतन बढ़ा दिये तथा जो सैनिक सेवा के लायक नहीं रहे, उन्हें पेंशन देकर सेवा-मुक्त किया। 
      • बलवन ने दीवान-ए-आरिज ( सैन्य विभाग) का गठन किया और इमाद-उल-मुल्क को प्रथमतः यह पद सौंपा। 

       

       

      गुप्तचर विभाग का संगठन 

      • गुप्तचर विभाग का नाम ‘बरीद-ए-मुमालिक‘ था।
        • गुप्तचर अधिकारी – को ‘बरीद‘ कहा जाता था। 
      • गुप्तचरों को नकद वेतन मिलता था, वे सीधे सुल्तान के नियंत्रण में होते थे।

       

      न्याय व्यवस्था

      • बलबन की शासन व्यवस्था का आधार ‘रक्त एवं लौह’ की नीति थी
        • जिसके अंतर्गत विद्रोही व्यक्ति की हत्या कर उसकी स्त्री एवं बच्चों को दास बना लिया जाता था। 

       

      बलबन की मृत्यु 

      • 1286 ई. में बलबन की मृत्यु हो गई। 
      • ऐसा माना जाता है कि शहज़ादा मुहम्मद (बलबन का पुत्र) की मृत्यु का बलबन के स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ा। 
      •  बरनी के अनुसार, “बलबन की मृत्यु से दु:खी हुए मलिकों ने अपने वस्त्र फाड़ डाले और सुल्तान के शव को नंगे पाँव कब्रिस्तान ले जाते समय अपने सिर पर धूल फेंके और 40 दिन का उपवास किया।” 
      • बलबन की मृत्यु के 3 वर्षों के अंदर ही बलबन द्वारा स्थापित व्यवस्थाएँ और सुल्तान की पद-प्रतिष्ठा नष्ट हो गई।

       

      बलबन के उत्तराधिकारी

      • उसके पुत्र शहज़ादा मुहम्मद की मंगोलों से युद्ध करते हुए मृत्यु हो गया
        • दूसरे पुत्र बुगरा खाँ की सुल्तान पद से कोई मतलब नहीं था।
        • अपनी मृत्यु के पूर्व उसने शहज़ादा मुहम्मद के पुत्र कैखुसरो को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। 
          • बलबन की मृत्यु के बाद
            • कैखुसरो की हत्या करवा दी गई
            • बुगरा खाँ के अल्पवयस्क पुत्र कैकुबाद को सुल्तान बना दिया। 
      • कैकुबाद को तुर्क मलिक फिरोज़ ख़िलजी (जलालुद्दीन ख़िलजी) ने यमुना में फेकवा दिया
        • उसके पुत्र शमसुद्दीन क्यूमर्स का जून 1290 में हत्या कर मलिक फिरोज़ खिलजी दिल्ली सल्तनत का अगला सुल्तान बना।
        • ममलूक या गुलाम वंश का अंत हो गया और दिल्ली सल्तनत पर ख़िलजि वंश का शासन स्थापित हो गया।

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