कौआ और गुदुपुचु खोरठा लोककथा (Kowa aur Gudupuchu Khortha Lok-katha)

कौआ और गुदुपुचु खोरठा लोककथा (Kowa aur Gudupuchu Khortha Lok-katha) : एगो गाछें एगो कौआ रह हल। सई गाछेक हेठें एगो गुदुपुचु रानी (लाल पोका) रह-हली । एक दिन कौआक मनें लोभ भइ गेलइ। गुदुपुचु के खाइ खातिर मने-मन कुरचे लागल। गुदुपुचु रानिक नजीकें जाइ के कहलइ-गुदुपुचु रानी, तोरा हम खइबों ।

कौआक खल मति सुइन के रानिक मनें भाभना भेलइ। कौआक चेंटे खातिर रानी एगो चाइल खेलली- तोंय यदि हामरा खाइ खोजेहे तबे हामर बात सुन। “तोय तो बार रकमेक जिनिस खइहें। तोर ठोंठ टा जूठा भइ गेल हो । जो आपन ठोंठ टा धोइ के अइबें, तकर बाद हमरा खाइहें।”

रानिक साल्हा सुइन कौआ राजी भइ गेल। मने-मन भाभल जे बेसे कह ही । काहे नॉइ हाम आपन ठोंठ टा धोइ केही ओकरा खइबइ तो बसे सवाद लागतइ । एहे भाइब-गुइन के कौआ पानिक नजीक पहुँइच गले आर कहलइ- 

देहुँ पनियाँ, धोवब ठोरवा, खाइब गुदुपुचु रनियाँ !


कौआक कथा सुइन पानी कहलइ “कइसें देबो ? हामर ठीन तो कोन्हों जोगाड़ नखो। कुम्हार घार ले चुकरी आने पारवें तो पानी पइबें।” रानिक साल्हा सुइन के कौआ सोझे कुम्हार घर बाटें सोझाइल आर पहुँइच के कहलाइ –

कुम्हारा देहु चुकरी, भोरब पनियाँ

धोवब ठोरा, खाइब गुदुपुचु रनियाँ !


कौआक कथा सुइन के कुम्हारें कहलइ “सुन कौआ ! हमार ठीन – माटी नखों जो कुकुरेक सींग ले माटी कोइड़ के लइ आनबे ओकर बाद चुकरी बनाइ देबो। सइ चुकरी पानी लइ जिबें आर आपन ठोरवा धोइकें गुदुपुचु रानि खइभी ।कुम्हारे बातें सुन  कौआ कुकुर ठीन पोहचल आर कहलइ 

कुकरा देहु सिंगला, कोडब मटिया, देबइ कुम्हाराक

देतइ चुकरी, भोरब पनियाँ, खाइब गुदुपुचु रनियाँ !


एतना सुइन के कुकरें कहलइ “हाम बहुत दिन से भूखें हो। हामरा जदि दूध भात खिवे पाबें तवें हम आपन सींग देबो। जो गाय ठीन ले लूध लइ आनबे।” कुकुरेक कथा सुइन कौआ गायेक खोजाइरें चलल। कुछ धुरेक बाद एगो बुढ़ी गाय देखे पाइल। लखन ओहे गइया ठीन जाइ के कहलइ –

गइया देहुँ दुधा,देबइ कुकराक, देतइ सिंगला

कोड़ब मटिया, देबइ कुम्हराक, देतइ चुकरी

भोर पनियाँ, धोवब ठोरा ,खाइब गुदुपुचु रनियाँ !


कौआक कथा सुइन के गायें कहली- बहुत दिन से भूखे हों। जदि तोय हमरों हरिहर घांस खिवे पारवें तबें भेले हाम दूध दिये पारबो। गायक कथा सुइन कौआ जहाँ खूभे हरिहर घांस रह-हलइ तहीं पोहइच गेल आर कहलइ-


देहु घांसा, देबइ गइयाक, देतिक दुधा

देबइ कुकराक 

कोड़ब मटिया

देबइ कुम्हराक, देतइ चुकरी, भोरब पनियाँ

धोवब ठोरा, खइबइ गुदुपुचु रनियाँ !


कौआक बात सुइन घांसे कहलइ कइसें देबो? हामर ठीन काटइक – जोगाड़ नखो। जो कामार घार ले हँसुआ लइ आन तब घांस दिए पारबो 

कौआक मने त गुदुपुचु रानिक खाइक हुचुक चढ़ल हलइ, जे बुइधें हतइ से हे करब ताओ गुदुपुचु रानिक खाइ के रहब । तखन घांसेक कथा सइन के सइ कौआ कामार धार पोंहँइच गेल आर कामार से कहलइ

कामरा देहुँ हँसुआ, काटब घासा, 

देबइ गइयाक

घर घरना देतइ सिंगला, कोड़ब मटिया

देबइ कुम्हराक,देतइ चुकरी, भोरब पनियाँ

धोवब ठोरा, खइबइ गुदुपुचु रनियाँ


कौआ एके गो बातेक रट लागाइ देलइ । तखन कामार सइ लालचाहा कौआक मनेक बात जाइन ओकराँ लालचेक फल दिएइ । बुइध रॉचल आर कहलाइ- सुन कौआ ! हँसुआ दू रकमेक हवइ गरमा-गरम आर नरमा-नरम । कोन टा तोरा बनाइ देवो। लाल-लाल पारस फूल नियर गुदुपुचु रानिक खाइ खातिर कौआक त छावाइद भइ गेल हलइ से ले कहलइ- “गरमा-गरम बनाइ दे।”

कौआक बात सुइन के कामार मने मन हॉसल आर कहलइ- “ठीक हइ बइस एखनी बनाइदेबो  एखन कामार चाँड़ा चाडी एगो हँसला तातल-तातल बनाइ के कौआक आगुँइ राइख देलइ आर कहलइ-हँसुआ बइन गेलो।”

एतना सुनबाइ आर कौआ दौड़ा-दौड़ी जाइके जइसी हसुआ ठोर मारल हइ तइसी ओकर ठोठ हदइक उठल हइ ओकर ठोठ त पोइड गेलइ, आब गुदुपुचु रानिक कि खइतइ ?

कौआ छटपटइले हुआँ से भागल आर दरदेक मारी हिन्दे हुन्दे घुरहते – रहल। साइझ भेलइ तखन सइ गाछेक डारी आइ के डरडरान भाभ बइसल । कौआक दुरदासा देइख के गुदुपुचु रानी कहलइ – कि भेलो कौआ ? आपन ठोर धोइ के अइलें?” कौआ रानिक बात सुइन के मनें-मन लजाइ गेल आर दोसर बाट मुँह कइर के काँव-काँव करे लागल। हिन्दु गुदुपुचु रानी ओकर करनी टाक देइख के बइजइक उठली रे लालचाहा! देखल्ही आपन लोभेक फल।”


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