किसानी गीत
टाँडी बुनबइ दाना, खेतें रोपबइ धाना, एहों
दूइब धाने धरती सोहान, हम बनब किसान
अन पानी जीवेकेरी जान।
बुनबइ तेलहन दाना, रोपबइ कातारी गना, एहो
तेल – गुरे बनइ पकवान, हम बनब किसान।
हाम्हूँ किसानेक बेटी, संगे-संगे देबो खटी, एहो
आँचरे पोंछबो तोहर घाम, सुना पिया किसान
अन-पानी जीवेकेरी जान।
इस गीतांश में किसान हल चला रहा है और गीत भी गा रहा है – मैं हल जोत कर खेतो में धन, तेलहन आदि का बीज डालूंगा, इससे अन्न पैदा होंगे जिससे जीवन का भरण-पोषण होगा। तब किसान की सहकर्मी कहती है मैं तुमसे कम – नहीं क्योंकि मैं भी किसान की बेटी हूँ। मैं भी तुम्हारे साथ खेतों में काम करूँगी। हल जोतने पर तुम्हारे देह पर बहते हुए पसीने को मैं अपनी साड़ी के आँचल से पोछूंगी। खेतों में काम करते हुए ऐसे श्रमशील नर-नारी अन्यत्र दुर्लभ हैं और दुर्लभ हैं इनके लोकगीत।
खेती-किसानी संबंधी एक हास्य रस के लोकगीत
हार जोतइ खेरवा, कुकुरे, बुनइ धान रे
बीनेक बांदर ढेका फोरइ, लेढ़वे किसान रे।
बाघे खोजइ रोपनी, हवइते बिहान रे
हाथी दादा कादा करइ, खाये जलपान रे।
बिहिन मारइ मुरूर्गे, लकरें धरे आइर रे।
गधा काकु पानी झींटइ हाइर पाइर रे।
सभीन मिली काज करलें हतइ हित रे
सभी लोके एहे तरि जोरिहा पिरित रे।
भाव है कि खरहा, कुत्ता, बन्दर, लकड़ा, बाघ, हाथी, मुर्गा, गधा खेत में खेती कार्य करने में मस्त हैं। खेत में मेहनत करते हुए एक दूसरे को सहायता कर रहे हैं। रचनाकार कहता है कि जब जंगली जीव खेती-बाड़ी कर सकते हैं तो हम क्यों न करें। सामूहिक खेती करने से परस्पर प्रेम बढ़ता है।
कर्मशील खोरठा क्षेत्र में दिन भर नर-नारी श्रम करते हैं। शाम को लोकगीत का तो आखरा जमता है। प्रायः सभी गाँवों में मांदर-ढोलक की आवाज सुनाई देती है और उसके साथ सुनाइ देते हैं इनके लोकगीत। जब इस क्षेत्र में कल-कारखानों की शुरूआत होने लगी तो अधिकतर किसान मजदूर बन गये और फिर हो गया सृजन लोक गीत का-
कामी जुग अइलउ भारी
चन्दरपुराअ उरू घुरू, माराफरी काम सुरू
आई गेल डीजल गाड़ी, भाइथ देलो घर-बारी
कुली रेजा गेला कते चढ़ी
कामी जुग अइलउ भारी।
चला जिबइ कोयला के वसरिया रे
कोयला काटी करबइ मजदूरिया रे ।
बराकर दामुदर के धरिया रे ।
कोयला काठी करबइ मजदुरिया रे ।
कामी (कर्म) युग आ गया। कल-कारखाने, खदान कोयला वासरी का निर्माण प्रारंभ हो गया है। आओ मिल कर हम सब मेहनत करेंगे। सरकार के फैसले को हम मिल स्वागत करेंगे। रीझा लय पर आधारित एक श्रम संबंधी लोकगीत का अवलोकन करें-
माराफारी काम खुजलउ, बाहरेक लोक करे ठीकेदारी
हमर धरती कोयला-सोना, तावो हामिन भिखारी।
माराफारी (बोकारो इस्पात नगर) में कारखाने की शुरूआत हो गई है, परन्तु बाहर के आदमी यहाँ ठीकेदारी कर फल-फूल रहे हैं। हमारी धरती रत्नगर्भा होते हुए भी आज हम शोषित, पीड़ित और भीखारी बने हुए हैं।