खोरठा हाय खोरठा ऑखीक गीत श्रीनिवास पानुरी KHORTHA HAY KHORTHA ANKGHIK GEET

 खोरठा हाय खोरठा  ऑखीक गीत श्रीनिवास पानुरी HAY KHORTHA HAY ANKGHIK GEET

खोरठा! हाय! खोरठा

खोरठा! हाय! खोरठा 

रटते रहली गान

ई बटें कहाँ किन्तु

खोरठा भाषीक धैयान 

मायेक उपर ममता नॉय 

श्रद्धा भक्ति प्यार

उ तो ई धरती एगो 

रगें डुबल सियार 

देही ओढ़ल बाघेक चाम 

दीन, दुर्बल, प्राण 

धोबीक कुकुर घरेक न घाटेक 

अमृत छोइड़ लालसा जूठा चाटेक 

कहाँ ओकर आन सम्मान 

विश्व सभाय स्थान

कविता का भावार्थ – 

  • इस कविता के माध्यम से कवि  कहते हैं कि वह कितने दिनों से खोरठा! हाय! खोरठा नारा देते रहें लेकिन खोरठा  भाषी लोगों का ध्यान कभी भी इसकी और गया नहीं

  • कवि कहते हैं हम जिस भाषा को अपनी मां की गोद से ही सीखते हैं उसी भाषा का हम कद्र नहीं करते हैं,किसी दूसरे की भाषा को सीखना रंगे सियार की तरह है 

  • अपनी मातृभाषा खोरठा के प्रति उदासीनता को देखकर कवि कहते हैं कि मातृभाषा ही हमारी पहचान है, यही हमारी सान है और विश्व समुदाय में इसी से हमें सम्मान भी प्राप्त होगा। 

  • उन लोगों की स्थिति तो धोबी के कुते सी है, जो अपनी मातृभाषा को भूलकर दूसरे को जुठन चाटते हैं। 

  • इस कविता में मातृभाषा का महत्व बताया गया है। 

1. खोरठा! हाथ! खोरठा ‘कविता कोन किताब से लेल गेल हे ? आँखीक गीत

2. ऊ तो ई धरती एगो रंगे डूबल सियार’ हियाँ रंगे डूबल सियार केकरा कहल गेल हे ? बाहरी लोक के 

3. “देही ओढ़ल बाधेक चाम, दीन, दुर्बल, प्राण’ ई कविताक पाँता खातिर लागू हेव हे? बाहरी लोकेक